रविवार, 24 जनवरी 2021

उत्तर प्रदेश में अधिकारियों के लिए अगर कहीं स्‍वर्ग है तो वह यहीं है… यहीं है… यहीं है

 प्रशासनिक आधार पर 18 मंडलों वाले उत्तर प्रदेश में यूं तो 75 जिले हैं किंतु ऐसे जिलों की संख्‍या बहुत कम है, जो अधिकारियों को मुफीद बैठते हैं।

ऐसे जिलों में कृष्‍ण की जन्‍मस्‍थली का गौरव प्राप्‍त ‘मथुरा’ का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।

वैकुण्‍ठ से भी श्रेष्‍ठ और तीन लोक से न्‍यारी नगरी की उपमा प्राप्‍त मथुरा को उन सप्‍तपुरियों में भी शुमार किया जाता है जिन्‍हें मोक्षदायिनी माना गया है।
एक ओर हरियाणा तथा दूसरी ओर राजस्‍थान की सीमा से सटे इस विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक स्‍थल की एक विशेषता यहां से राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली का अत्‍यधिक नजदीक होना भी है।
कभी लखनऊ के लिए किसी सीधे रास्‍ते को तरसने वाले इस जनपद से आज प्रदेश की राजधानी तक मात्र पांच घंटों के अंदर पहुंचा जा सकता है।
अधिकारियों के लिए सर्वाधिक मुफीद क्‍यों?
इन सब सुविधाओं के बावजूद मथुरा में ऐसा कुछ अतिरिक्‍त भी है जो पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को इतना अधिक प्रिय है कि वो न सिर्फ यहां लंबी से लंबी पोस्‍टिंग चाहते हैं बल्‍कि बार-बार यहीं पोस्‍टिंग कराना चाहते हैं।
क्‍या है ऐसा?
इस सवाल पर थोड़ी गंभीरता से गौर किया जाए तो स्‍थिति आसानी से स्‍पष्‍ट हो जाती है।
उदाहरण के लिए मथुरा का आम नागरिक शांतिप्रिय है और चैन से जिंदगी गुजारने में यकीन रखता है। टकराव का रास्‍ता चुनना उसे पसंद नहीं है और उसकी यह आदतें अधिकारियों का काम काफी आसान बना देती हैं।
आम मथुरावासी की इन आदतों के कारण ‘सुविधा शुल्‍क’ सर्वसुलभ है क्‍योंकि अमन पसंद स्‍थानीय नागरिक अधिकारियों को दाम देकर काम कराने में अधिक रुचि लेता है अपेक्षाकृत अन्‍य तरीकों के।
अधिकारियों के काम में दखल ‘ना’ के बराबर
शासन में मथुरा का प्रतिनिधित्व हमेशा बने रहने तथा सत्ता के गलियारों से बराबर आमदरफ्त होते हुए भी यह एक ऐसा जिला है जिसके बाबत यह कहा जा सकता है कि यहां कोई नेता ही नहीं है। नेताओं के नाम पर कुछ है तो चापलूसों की फौज, दलालों का जमघट और बिना रीढ़ वाले वो जंतु जिन्‍हें साष्‍टांग करने में महारत हासिल है।
सरकार चाहे सपा की रही हो या बसपा की, गठबंधन से चल रही हो अथवा पूर्ण बहुमत से लेकिन मथुरा को हमेशा तरजीह दी गई।
मथुरा के लोगों ने वो दौर भी देखा है जब यहां के कुल जमा पांच में से चार विधायक मंत्री हुआ करते थे किंतु तब भी इस जिले में तूती बोलती थी तो सिर्फ अधिकारियों की। मंत्री रहते हुए अधिकारियों के सामने मिमियाने वाले नेता यहां हर दौर में पाये जाते रहे हैं।
इसका ज्वलंत उदाहरण है हाल ही में घटी वो घटना जब प्रदेश के कद्दावर मंत्री, सरकार के प्रवक्‍ता और मथुरा-वृंदावन सीट से विधायक श्रीकांत शर्मा को स्‍थानीय अधिकारियों के खिलाफ सीधे मुख्‍यमंत्री के नाम इसलिए पत्र लिखना पड़ा क्‍योंकि प्रस्‍तावित कुंभ मेले के इंतजामों को वो उनके कहने से तरजीह नहीं दे रहे थे।
हुआ भी वही, मुख्‍यमंत्री तक शिकायत पहुंचने के बाद ही कुंभ मेले से जुड़े अधिकारियों ने सक्रियता दिखाई अन्‍यथा न तो उनके ऊपर ऊर्जा मंत्री का भारी भरकम पद कोई प्रभाव डाल पा रहा था और न संत-महंतों की नाराजगी कोई असर छोड़ रही थी।
हर जिले में अधिकारियों को उनकी जिम्‍मेदारी का अहसास कराने वाला दूसरा सर्वाधिक प्रभावशाली तबका होता है ‘पत्रकारों’ का, किंतु बात करें कृष्‍ण नगरी की तो यहां ‘पत्रकारों’ की संख्‍या भले ही सैकड़ों में हो परंतु ‘पत्रकारिता’ करने वाले ढूंढे नहीं मिलते।
नेता नगरी से कदम-ताल मिलाते हुए अधिकांश पत्रकार अधिकारियों की जी-हजूरी में अपना समय जाया करना अधिक उपयुक्‍त समझते हैं क्‍योंकि किसी एक अधिकारी की कृपा भी उनके लिए पर्याप्‍त होती है।
अधिकारी के कृपा पात्र बनते ही उनकी आर्थिक एवं सामाजिक दरिद्रता तो दूर होने ही लगती है, साथ ही घर-परिवार व नाते रिश्‍तेदारों में रुतबा भी बढ़ जाता है।
सुबह से शाम तक कलेक्‍ट्रेट के इर्द-गिर्द घूमने वाले तथाकथित पत्रकारों की एक जमात को तो इसलिए भी अधिकारियों का वरदहस्‍त जरूरी होता है क्‍योंकि उसके बिना उनके गोरखधंधे बंद हो जाएंगे और वो कानून के शिकंजे में इस कदर फंसेंगे कि लंबे समय तक उससे बाहर आना संभव नहीं होगा।
पत्रकारों का ये वर्ग अधिकारियों की जी-हजूरी में इतना मुस्‍तैद रहता है कि उनके निजी शौक और ऐब भी पूरे कराने में परहेज नहीं करता।
लोकतंत्र के चौथे खंभे को इस स्‍थिति में देख किसी को भी पत्रकारों और पत्रकारिता से भी घृणा हो सकती है लेकिन इन कथित पत्रकारों को खुद से कभी घृणा नहीं होती इसलिए वो पूरी शिद्दत के साथ हमेशा अधिकारियों के सामने दुम हिलाते देखे जा सकते हैं।
पत्रकारों की यही वो श्रेणी है जिनके बल पर पत्रकारों को कई-कई गुटों में बांटकर अधिकारी अपना उल्‍लू सीधा करते रहते हैं। अधिकारियों द्वारा डाले हुए टुकड़ों पर जीविका और जिजीविषा पाने वाले ये तत्‍व उनके साथ एक अदद फोटो खिंचवाने तक को लालायित रहते हैं और ‘पत्रकारिता दिवस’ पर भी आयोजन-प्रायोजनों के जरिए उन्‍हें सम्‍मानित करने का मौका नहीं चूकते।
घोर आश्‍चर्य की बात तो यह है कि इतना सब करने के बाद भी बमुश्‍किल वह मात्र उतना ही हासिल कर पाते हैं जितना कि कोई नेता अपने चमचों को सुबह-शाम बख़्शीश में दिलवा देता है।
नेता और पत्रकारों के अलावा हर जिले में एक तीसरा वर्ग भी होता है जो अधिकारियों की कार्यप्रणाली को ऑब्जर्व करता है। सामाजिक संगठनों के रूप में सक्रिय यह वर्ग चूंकि सुविधा संपन्‍न पाया जाता है इसलिए इसकी समाज में महत्ता बड़ी होती है।
महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली में भी ऐसे संगठन तो बहुत पाए जाते हैं लेकिन वो भी नेता और पत्रकारों की तरह चापलूसी के माध्‍यम से अपनी दुकान चलाने में माहिर हैं।
इस तबके के लोगों का भी कार्य नेता और पत्रकारों की भांति किसी न किसी तरह अधिकारियों का सानिध्‍य पाना और इसके लिए हद से भी गुजर जाना है।
इस वर्ग के लोगों से जुड़ा यह कड़वा सच जानकर कोई भी हैरान हुए बिना नहीं रह सकता कि ये वर्ग अधिकारियों को खुश करने के लिए थ्री डब्‍ल्‍यू यानी वाइन, वेल्‍थ और यहां तक कि वुमैन का इंतजाम करने से भी पीछे नहीं हटता।
यही कारण है कि विश्‍व प्रसिद्ध इस धार्मिक जनपद में एकबार पोस्‍टिंग पा जाने वाला अधिकारी एक ओर जहां बार-बार यहां पोस्‍टिंग पाने की कोशिश में लगा रहता है वहीं दूसरी ओर यहां से चले जाने अथवा नौकरी से अवकाश प्राप्‍ति के बाद भी किसी ने किसी रूप में यहीं मंडराता रहता है। वर्तमान में भी कई अधिकारी इसकी जीती जागती नजीर हैं लेकिन क्‍या मजाल कि कोई उनके ऊपर उंगली भी उठा सके।
भांग, भोजन तथा भजन के लिए विश्‍व के पटल पर विशिष्‍ट पहचान रखने वाली मथुरा नगरी ने ऐसे कई अधिकारी देखे हैं जिन्‍होंने यहां की एक अदद पोस्‍टिंग से अपनी तीन-तीन पीढ़ियों का मुकम्‍मल इंतजाम कर लिया लेकिन उनका बाल तक बांका नहीं हो सका।
ऐसे-ऐसे नेता उसके सामने हैं जो कुछ वर्षों पहले तक लंबे-लंबे कुर्ते पहनकर कचहरी पर दिन-रात छोटे-मोटे कामों के लिए चक्‍कर लगाते थे लेकिन आज करोड़ों नहीं अरबों की संपत्ति के मालिक हैं। शहर के तमाम व्‍यवसायी उनके द्वारा किए गए पैसे के निवेश से अपनी शानो-शौकत बनाए हुए हैं।
जिनकी औकात एक दुपहिया खरीदने की नहीं हुआ करती थी और कचहरी तक जाने के लिए भी किसी से लिफ्ट पाने का मौका तलाशले थे आज उनके गुर्गे कई-कई लग्‍जरी गाड़ियों के मालिक हैं।
अधिकारियों और नेताओं के इस वर्ग की अंधी कमाई से बहुत से मशहूर शिक्षण संस्‍थान संचालित हो रहे हैं और भूमाफिया बेनामी संपत्ति एकत्र कर रहे हैं।
पत्रकारों का एक खास वर्ग भी अपनी औकात से अधिक धन अर्जित करके इनके संरक्षण में ही अपनी सुरक्षा देखता है इसलिए उन्‍हें उपकृत करने का कोई अवसर हाथ से निकलने नहीं देता।
‘अंधे पीसें कुत्ते खाएं’ की कहावत को चरितार्थ करने के कारण ही मथुरा आज तक अधिकारियों के लिए दुधारू गाय साबित होता रहा है और उस गरिमामय मुकाम को हासिल करने के लिए तरस रहा है जिसका वह सही मायनों में हकदार है।
बात चाहे कालिंदी के कलुष की हो या निरंकुश अधिकारियों की, भ्रष्‍टाचार की हो या बदहाली की। कृष्‍ण की नगरी हर मामले में अपनी कलंक कथा खुद कहती है, लेकिन सुनने और देखने वाला कोई नहीं। सुनेगा और देखेगा भी कैसे, जब जिम्‍मेदार वर्ग ही आंख, कान व मुंह बंद करके बैठा होगा।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी 

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड: मुठभेड़, या फिर फिरौती पचाने और सफेदपोशों को बचाने का मुकम्‍मल इंतजाम


 यूपी STF ने कल एक लाख रुपए के इनामी बदमाश अनूप चौधरी को भी एक मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार दिखाकर डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण से फिरौती में वसूले गए पूरे 52 लाख रुपए पचाने और उन सफेदपोश अपराधियों को बचा ले जाने का मुकम्‍मल इंतजाम कर लिया जिनमें कुछ वर्दीधारी तो कुछ बिना वर्दी वाले शामिल रहे थे।

मथुरा जनपद के ही थाना नौहझील अंतर्गत गांव कोलाहार निवासी अनूप चौधरी को पुलिस शुरू से डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण केस का मास्‍टर माइंड बताती रही किंतु सब जानते हैं कि इस अपहरण में मास्‍टर माइंड कोई था तो वो थी पुलिस और उसके सहयोगी ऐसे सफेदपोश जिन्‍होंने डॉक्‍टर को आसान शिकार बताकर 52 लाख रुपए की मोटी रकम चंद मिनटों में वसूल कर ली।
कथित मास्‍टर माइंड अनूप चौधरी से कल हुई मुठभेड़ की कहानी के मुताबिक उसे STF ने नोएडा में दिल्‍ली बॉर्डर पर पकड़ा और जब यमुना एक्‍सप्रेस वे के रास्‍ते मथुरा के थाना हाईवे लेकर आ रही थी तब उसने सुरीर कोतवाली क्षेत्र में एक सिपाही की पिस्‍टल छीनकर पुलिस पर फायरिंग करते हुए भागने का प्रयास किया। जवाबी कार्यवाही में अनूप चौधरी घायल हो गया, जिसके बाद उसे जिला अस्‍पताल मथुरा में उपचार के लिए भर्ती करा दिया गया।
पुलिस और बदमाशों के बीच मुठभेड़ की हर कहानी यूं तो लगभग एक जैसी होती है इसलिए सतही तौर पर इसमें भी कुछ गलत नहीं है परंतु बारीकी से देखेंगे तो पता लगेगा कि ये ‘विशेष मुठभेड़’ दरअसल फिरौती की उस पूरी रकम को पचाने के साथ-साथ उन बावर्दी और सफेदपोश अपराधियों को साफ बचा ले जाने के लिए की गई जिन्‍होंने डॉ. निर्विकल्‍प को अगवा कराया।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि STF को प्रदेशभर में कहीं से भी गिरफ्तारी करने का अधिकार प्राप्‍त है लिहाजा STF नोएडा ने अनूप चौधरी को दिल्‍ली बॉर्डर पर पकड़ लिया लेकिन नोएडा में गिरफ्तारी नहीं दिखाई। आखिर क्‍यों?
इसी एक सवाल से खड़े हो जाते हैं बहुत से सवाल
जैसे STF चाहती तो नोएडा में ही उससे चौबीस घंटे तो कानूनन पूछताछ कर सकती थी और इस दौरान यह जान सकती थी कि डॉ. निर्विकल्‍प को उठाने का आइडिया किसने तथा क्‍यों दिया?
अनूप चौधरी को इस बात की गारंटी किसने दी थी कि डॉ. निर्विकल्‍प इतनी बड़ी फिरौती देने के बावजूद अपना मुंह नहीं खोलेंगे?
अनूप चौधरी को उसी पॉश कॉलोनी राधापुरम एस्‍टेट में किसने और किस मकसद से मकान किराए पर दिलवाया जिसमें डॉ. निर्विकल्‍प रहते हैं?
डॉ. निर्विकल्‍प को उठाने के बाद चंद घंटों में मिली फिरौती की इतनी बड़ी रकम कहां गई और क्‍यों व किसके भरोसे उन्‍होंने डॉक्‍टर को इस शर्त के साथ रिहा कर दिया कि वह एक महीने के अंदर शेष तयशुदा 50 लाख रुपए और उन तक पहुंचा देंगे?
ऐसे कौन से कारण रहे कि एक हाईप्रोफाइल अपहरण पर मुंह सिलकर बैठने वाली मथुरा पुलिस ने दो महीने बाद अपनी ओर से एफआईआर दर्ज कर एफआईआर लिखाने वाले थाना प्रभारी को ही निलंबित कर अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली। तब भी जबकि इंस्‍पेक्‍टर को इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के आदेश से बहाल कर दिया गया?
इन सब सवालों का जवाब इसमें निहित है कि यदि अनूप चौधरी को STF नोएडा में गिरफ्तार दिखाती तो एक ओर उसे जहां नोएडा पुलिस को भरोसे में लेना पड़ता वहीं दूसरी ओर नोएडा कोर्ट से मथुरा लाने की परमिशन लेनी पड़ती।
ऐसा करने पर डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण की पूरी सच्‍ची कथा सामने आने का डर था लिहाजा बिना लिखा-पढ़ी एसटीएफ उसे नोएडा से मथुरा लेकर चल दी, फिर संबंधित थाने पर पहुंचने से पहले मुठभेड़ को अंजाम दिया जिससे सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
जाहिर है कि मुठभेड़ के बाद आरोपी को जितना जरूरी अस्‍पताल पहुंचाना था, उतना ही जरूरी उसकी गिरफ्तारी दिखाना भी था ताकि अगले चौबीस घंटों के अंदर उसकी कोर्ट में पेशी की जा सके।
घायलावस्‍था में पूछताछ का चिरपरिचित पुलिसिया तरीका काम नहीं आने का, और ठीक होने पर अगर पूछताछ करनी जरूरी समझी जाएगी तो कोर्ट से लोकल पुलिस को कस्‍टडी रिमांड पानी होगी।
रिमांड मिल भी गई तो वो टाइम बाउंड होगी। यानी सब-कुछ उस प्‍लान के मुताबिक किया गया जिससे केस ‘दाखिल दफ्तर’ हो जाए और किसी के पास उंगली उठाने की गुंजाइश भी न रहे।
एसटीएफ हो या मथुरा पुलिस, ऐसे केस में गुंजाइश छोड़ी भी कैसे जा सकती है जिसमें दो-दो उच्‍चाधिकारियों का नाम उछला हो और जिसके सूत्रधार वो सफेदपोश हों जिनका रहमो-करम सदा ‘खाकी पर’ बना रहता हो।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

कोरोना की स्‍वदेशी वैक्‍सीन का विरोध करने वाले नेता और पंडित नेहरू की भविष्‍यवाणी


 




कोरोना की स्‍वदेशी वैक्‍सीन के विरोध से याद आया कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपने दौर में मासिक पत्र ‘विक्रम’ के लिए कुछ लेख लिखे थे क्‍योंकि इस पत्र के संपादक पंडित नेहरू के अभिन्‍न मित्र पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्‍यास थे।

इनमें से एक लेख में पंडित नेहरू ने लिखा था कि लंदन में बनाए गए ‘मैडम तुसॉद’ के “चैम्‍बर्स ऑफ हॉरर्स” नामक अनोखे “अजायबघर” की तरह “हिंदुस्‍तान” में भी कभी न कभी एक “अजायबघर” कायम किया जाएगा।
इस अजायबघर में हमारे बहुत से मंत्रियों की मूर्तियां स्‍थापित की जाएंगी ताकि आने वाली पीढ़ियां यह जान सकें कि इस देश के अंदर कैसे-कैसे ‘नमूने’ सत्ता का सुख भोग कर चले गए।
लेख के मुताबिक उस आने वाले स्‍वर्ण युग में अध्‍यापक अपने छात्रों को इन नेताओं की आदमकद मूर्तियां दिखाकर बताएंगे कि ऐसे-ऐसे लोग हमारे देश के मंत्री रहे थे। यहां तक कि इनमें से कई के हाथों में तो राज्‍यों की कमान भी रही थी और वो अपने से कहीं अधिक बुद्धिमान लोगों पर हुकूमत करते थे।
अध्‍यापक अपने छात्रों को बताएंगे कि उस जमाने में योग्‍यता, प्रतिभा, ज्ञान अथवा जनता को प्रभावित करने जैसे गुणों के आधार पर किसी को सत्ता नहीं मिलती थी, बल्‍कि भेड़ों की तरह जनता को हांकने की क्षमता रखने वाला ही पद के योग्‍य समझा जाता था।
वह विद्यार्थियों को यह भी बताएंगे कि उस युग में सच्‍चाई के साथ देश सेवा करने की मंशा रखना और सिद्धांतों को लेकर दृढ़ता दिखाना ऐसे अवगुण थे जिनसे शासन के भूखे नेता खुद तो हमेशा दूर रहते ही थे, साथ ही ऐसे शासकों का अकारण विरोध करते थे।
पंडित नेहरू ने इस लेख में यह भी लिखा है कि इन नेताओं को किसी विषय, विभाग और आविष्‍कारों के बारे में उतनी भी जानकारी नहीं होगी जितनी कि किसी कुली या मजदूर को ‘मंगलग्रह’ के बारे में हो सकती है।
अंत में पंडित नेहरू लिखते हैं कि… ”और आने वाले युग का विद्यार्थी इन नेताओं की आदमकद मूर्तियां देखकर यह सोचने पर मजबूर होगा कि जिन राजनीति‍ज्ञों एवं मंत्रियों को अत्‍यधिक बुद्धिमान समझा जाता रहा, वो वास्‍तव में कितने बुद्धिहीन तथा अक्‍ल से अंधे थे।
उस दौर के विद्यार्थियों को ऐसी जनता पर भी आश्‍चर्य होगा जो शेर की खाल ओढ़कर सत्ता हासिल करने वाले इन ‘गीदड़ों’ से शासित होती रही।
पंडित नेहरू के बारे में इस बात से तो कोई इंकार नहीं कर सकता कि वो कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ अच्‍छे दूरदृष्‍टा भी थे, किंतु आज जिस तरह कोरोना जैसे घातक वायरस की वैक्‍सीन का वो नेता विरोध कर रहे हैं जिन्‍होंने कभी देश व प्रदेश के बड़े-बड़े पदों को सुशोभित किया है, उन्‍हें देखकर लगता है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री संभवत: बहुत काबिल ‘भविष्‍यवक्‍ता’ भी रहे होंगे।
बहरहाल, आज जिस तरह एक महामारी से मुकाबले के लिए देश के वैज्ञानिकों ने बहुत कम समय में वैक्‍सीन तैयार करके समूचे विश्‍व को चौंका दिया है, उस पर गर्व करने की बजाय सत्तापक्ष के अंधे विरोध पर उतारू देश के कुछ नेता पंडित नेहरू की लेखनी और उनकी दूरदृष्‍टि को शत-प्रतिशत सच साबित अवश्‍य कर रहे हैं।
ये बात और है कि लंदन में बने मैडम तुसॉद के “चैम्‍बर्स ऑफ हॉरर्स” नामक अनोखे “अयाबघर” की कमी फिलहाल हिंदुस्‍तान की जनता को खल रही है। उम्‍मीद है कि पंडित नेहरू की यह भविष्‍यवाणी भी जल्‍द पूरी होगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

रविवार, 3 जनवरी 2021

डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड: क्‍या फिरौती के पूरे 52 लाख रुपए बदमाशों के साथ मिलकर हड़प गई पुलिस?


 10 दिसंबर 2019 को रात करीब 8 बजे मथुरा के मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण कर वसूली गई 52 लाख रुपयों की फिरौती के पूरे 52 लाख रुपए क्‍या बदमाशों के साथ मिलकर पुलिस हड़प गई, या अब भी कोई उम्‍मीद बाकी है?

इस सवाल का संभावित जवाब तो “LEGEND NEWS” ने 13 फरवरी 2020 को ही अपनी इस खबर में जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है, दे दिया था किंतु फिर भी एक उम्‍मीद है कि योगीराज में शायद पुलिस इतनी आसानी से फिरौती की इतनी बड़ी रकम पचा न पाए।

“डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड: खेल खतम… पैसा हजम… जनता बजाए ताली” शीर्षक से 13 फरवरी 2020 को लिखी गई खबर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्‍लिक कीजिए-
http://legendnews.in/dr-nirvikalp-kidnapping-case-khel-khatam-paisa-hazam-janta-bajaye-taali/

पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक हाईवे थाना क्षेत्र की गेटबंद पॉश कालॉनी राधापुरम एस्‍टेट निवासी डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण 10 दिसंबर 2019 को रात करीब 8 बजे थाना क्षेत्र के ही गोवर्धन फ्लाईओवर से तब कर लिया गया था जब वो महोली रोड स्‍थित अपने क्‍लीनिक से घर लौट रहे थे।
बताया जाता है कि डॉक्‍टर की रिहाई 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलने के बाद की गई, बावजूद इसके न तो डॉक्‍टर ने इसकी FIR कराना जरूरी समझा और न पुलिस ने कोई एक्‍शन लिया लेकिन ‘अपहरण’ अच्‍छा-खासा चर्चा में बना रहा।
मथुरा और आगरा से लेकर लखनऊ तक फजीहत होने पर हाईवे थाना पुलिस ने पूरे दो महीने बाद 11 फरवरी 2020 की रात 10 बजकर 53 मिनट पर IPC की धारा 364 A के तहत एक एफआईआर दर्ज की।
हाईवे थाने के तत्‍कालीन प्रभारी इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह की ओर से दर्ज कराई गई इस एफआईआर में सनी मलिक पुत्र देवेन्‍द्र मलिक निवासी न्‍यू सैनिक विहार कॉलोनी थाना कंकरखेड़ा मेरठ, महेश पुत्र रघुनाथ निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा, अनूप पुत्र जगदीश निवासी ग्राम कौलाहार थाना नौहझील मथुरा तथा नीतेश उर्फ रीगल पुत्र नामालूम निवासी भोपाल मध्‍यप्रदेश (हाल निवासी दिल्‍ली एनसीआर) को नामजद किया गया।
इस मामले का एक दिलचस्‍प पहलू यह भी रहा कि डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण की अपनी ओर से FIR दर्ज कराने वाले इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह को उसी दिन तत्‍काल प्रभाव से तत्‍कालीन एसएसपी शलभ माथुर ने निलंबित कर दिया।
ये बात और है कि विगत माह इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने इंस्‍पेक्‍टर जगदंबा सिंह को बहाल करने का आदेश दिया, जिसके बाद से वह ड्यूटी पर हैं लेकिन केस के बारे में कुछ बताने को तैयार नहीं।
पुलिस द्वारा दर्ज FIR के घटनाक्रम पर भरोसा करें तो 10 दिसंबर 2019 की रात करीब 8 बजे हुई इस वारदात का पता बीट सूचना के जरिए हाईवे थाना प्रभारी को 11 फरवरी 2020 की दोपहर में लगा।
पुलिस का दावा है कि FIR दर्ज किए जाने के बाद जब डॉ. निर्विकल्‍प से पुलिस ने पूछताछ की तब उन्‍होंने बताया कि बदमाशों ने उनके ही मोबाइल फोन से उनकी पत्‍नी डॉ. भावना को फोन करके 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलकर नेशनल हाईवे स्‍थित सिटी हॉस्‍पीटल के पास मुक्‍त कर दिया।
मथुरा पुलिस पर आरोप
11 फरवरी 2020 को हाईवे थाना पुलिस द्वारा लिखाई गई एफआईआर से पहले मथुरा पुलिस पर जो आरोप लग रहे थे उनके अनुसार घटना के तत्‍काल बाद पुलिस को डॉ. के अपहरण और फिरौती का पता ही नहीं लग चुका था, बल्‍कि बदमाश भी उसकी गिरफ्त में आ चुके थे।
पुलिस ने बदमाशों को मिली फिरौती के पूरे 52 लाख रुपए उनसे छीनकर उसका बंदरबांट कर लिया क्‍योंकि डॉ. दंपत्ति कोई केस दर्ज कराने को तैयार नहीं थे। बदले में बदमाशों को अभयदान दे दिया गया।
बताया जाता है कि इस बंदरबांट में मथुरा जनपद के दो उच्‍च पुलिस अधिकारियों का नाम भी सामने आया लिहाजा जांच के दौरान आगरा जोन के एडीजी अजय आनंद तथा आईजी ए. सतीश गणेश ने उनके बयान भी दर्ज किए परंतु उसके बाद सबकुछ दबा दिया गया।
हां, लकीर पीटने के लिए मथुरा पुलिस एक आरोपी नितेश उर्फ रीगल को मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल से पकड़ लाई। मध्‍यप्रदेश पुलिसकर्मी के पुत्र नितेश के अनुसार उसने अपने पिता के कहने पर मध्‍यप्रदेश पुलिस के सामने ही सरेंडर किया था न कि मथुरा पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।
उसने बताया कि मध्‍यप्रदेश से ही उसे यहां लाया गया है और इसलिए यहां की पुलिस ने उसके साथ कोई अभद्र व्‍यवहार करना तो दूर, हाथ तक नहीं लगाया।
दूसरे आरोपी सनी मलिक ने मेरठ पुलिस से सांठगांठ करके खुद को तमंचे में वहां गिरफ्तार करवा लिया लेकिन मथुरा पुलिस उसकी रिमांड तक नहीं ले सकी क्योंकि उससे पुलिस के बहुत से राज तो खुलते ही, साथ ही कई उच्‍च पुलिस अधिकारियों की भी नौकरी पर बन आती।
तीसरे आरोपी महेश को कई महीनों बाद एसटीएफ ने मथुरा में ही धर दबोचा लेकिन एक लाख रुपए का ईनाम घोषित किए जाने के बाद भी मास्‍टर माइंड अनूप चौधरी आज तक पुलिस की पकड़ से बाहर है।
ऐसे में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि डॉक्‍टर निर्विकल्‍प से फिरौती में वसूले गए 52 लाख रुपए गए कहां।
अब तक की पुलिसिया कार्यप्रणाली से तो यही लगता है कि पुलिस अपने हिस्‍से की और बदमाश अपने हिस्‍से की फिरौती डकार गए। जो मामूली रकम नितेश उर्फ रीगल से बरामद दिखाई भी है, वह उसे देर-सवेर कोर्ट से मिल ही जानी है क्‍योंकि डॉ. निर्विकल्‍प तो फिरौती देने की बात कोर्ट में स्‍वीकार करने से रहे।
फिरौती ही क्‍या, हो सकता है कि डॉ. निर्विकल्‍प तो अपने अपहरण की बात से भी कोर्ट में मुकर जाएं क्‍योंकि जब उन्‍होंने एफआईआर ही नहीं लिखाई तो वो अपहरण की बात क्‍यों स्‍वीकार करने लगे।
कुल मिलाकर निष्‍कर्ष यह निकलता है कि डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण से लेकर 52 लाख रुपए की फिरौती वसूलने जैसी दुस्‍साहसिक वारदात को अंजाम देने वाले सारे लोग आज मौज कर रहे हैं क्‍योंकि समय की काफी गर्द इस मामले की फाइलों पर जम चुकी है।
आरोपी नीतेश के खुलासे पर गौर करें तो डॉ. निर्विकल्‍प का अपहरण न सिर्फ पूर्व नियोजित था बल्‍कि पूरी ‘सेटिंग’ से किया गया था इसलिए चारों नामजद इस बात से आश्‍वस्‍त थे कि बिना हील-हुज्‍जत डॉक्‍टर के यहां से रुपए मिल ही जाएंगे।
किसकी सेटिंग से यह सारा खेल खेला, इसकी जानकारी तभी संभव है जब सनी और अनूप को गिरफ्त में लेकर पुलिस इस राज से पर्दा उठाने में रुचि ले।
नितेश के अनुसार डॉ. निर्विकल्‍प की गाड़ी में टक्‍कर मारने के बाद वह खुद भी तब आश्‍चर्यचकित रह गया था जब डॉ. निर्विकल्‍प की पत्‍नी डॉ. भावना मात्र 15 से 20 मिनट के अंदर पूरे 52 लाख रुपए लेकर आ गईं।
दरअसल, यह केस खुलता तो बहुत से चेहरों से नकाब उतरना तय था। मसलन अपहरणकर्ता न तो डॉक्‍टर निर्विकल्‍प के परिचित थे और न उनसे उनकी कोई रंजिश थी, फिर उन्‍हें डॉक्‍टर को अगवा करने को किसने व क्‍यों कहा।
बदमाशों द्वारा फोन करने के बाद मात्र 15 से 20 बीस मिनट के अंदर डॉ. निर्विकल्‍प की पत्‍नी डॉ. भावना किसके कहने पर पुलिस को सूचित किए बिना 52 लाख रुपए की बड़ी रकम बदमाशों को देने अकेली जा पहुंची। वो भी तब जबकि डॉ. भावना के घर की दीवार उनके अपने पिता के घर से सटी हुई है लेकिन उन्‍होंने किसी मदद नहीं ली।
इस सबके अलावा कुछ अन्‍य लोगों ने भी पुलिस और डॉक्‍टर निर्विकल्‍प व उनके परिवार को साधे रखने में बड़ी भूमिका निभाई थी। ये भूमिका निभाने के पीछे आखिर उनका मकसद क्‍या था और क्‍यों वो नहीं चाहते थे कि अपहरण के मूल मकसद का पता लगे।
जो भी हो, इसमें दो राय नहीं कि अब भी यदि डॉ. निर्विकल्‍प के अपहरण का खुलासा होता है तो 52 लाख रुपए की रकम सहित उन बड़े कारनामों से भी पर्दा उठ सकता है जिसे पुलिस, बदमाश और सफेदपोश लोगों का कॉम्‍बिनेशन अक्‍सर अंजाम देता आया है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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