शनिवार, 13 मई 2023

नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश करते केजरीवाल


 देश की राजनीति बदलने चले अरविंद केजरीवाल इन दिनों नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। अन्ना आंदोलन की उपज आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जिस तेजी के साथ चाल-चरित्र तथा चेहरा बदला है, उसे देखकर खुद अन्ना भी कई बार आश्‍चर्य जता चुके हैं। 

आम जनता को तो समझ में ही नहीं आ रहा कि वो इन नेताओं के 'गिरगिटी' अंदाज पर हंसे, रोए या फिर सिर पीट ले। यूं तो अलग-अलग आरोपों में केजरीवाल सरकार के कई मंत्री जेल में हैं और उन्‍हें जमानत तक नहीं मिल पा रही, किंतु ताजा मामला उनके द्वारा अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर खर्च की गई 45 करोड़ रुपए की उस भारी-भरकम धनराशि का है जिसे लेकर वह बुरी तरह फंस चुके हैं। 
'टाइम्‍स नाउ नवभारत' ने जब पहली बार केजरीवाल के मुख्‍यमंत्री आवास से जुड़े 'ऑपरेशन शीश महल' का प्रसारण किया था तो लोगों को यकीन नहीं हो पा रहा था कि झोलाछाप शर्ट, मामूली सी पतलून तथा साधारण सैंडल धारण करके पांच रुपए की कीमत का प्‍लास्‍टिक पेन ऊपर वाली जेब में लगाकर चलने वाला शख्‍स इस कदर विलासी प्रवृत्ति का होगा। 
केजरीवाल के कारनामे पर यकीन दिलाने में 'टाइम्‍स नाउ नवभारत' को पहले तो एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा लेकिन फिर उसका यह काम केजरीवाल एंड कंपनी ने खुद पूरा कर दिया। संभवत: इसीलिए एक मीडिया हाउस के खुलासे को आज दूसरे मीडिया हाउस भी तरजीह देने पर मजबूर हैं वर्ना सामान्‍यत: वह इसे अपनी तौहीन समझते हैं और उस पर चर्चा तक करना गवारा नहीं करते।
केजरीवाल एंड कंपनी और आम आदमी पार्टी को पहले तो शायद ये समझ में ही नहीं आया कि वह इस इतने बड़े खुलासे पर अपना बचाव करे तो करे कैसे। फिर राघव चड्ढा, संजय सिंह और सौरभ भारद्वाज जैसे नेता सामने आने पर मजबूर हुए किंतु उनकी दलीलें न सिर्फ बेहद खोखली व रटी-रटाई रहीं बल्‍कि उसी कहावत को पुष्‍ट करती दिखाई दीं जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। यानी नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश।  
उनके पास कहने के नाम पर इतना भर था कि दिल्‍ली के एलजी आवास पर हुए खर्च का ब्‍यौरा क्यों नहीं मांगा जाता, या नए पीएम आवास पर किए जा रहे खर्च का हिसाब कोई क्यों नहीं मांगता। 
उनकी ऐसी बेहूदी दलीलों को सुनकर आम जनता के साथ-साथ बाकी मीडिया को भी भरोसा हो गया कि केजरीवाल ने वो कारनामा कर दिखाया है जिससे करने के लिए बड़े से बड़े घाघ और भ्रष्‍टाचारी नेता दस बार सोचने के बाद भी हिम्‍मत नहीं जुटा पाएंगे। 
केजरीवाल की कलंक कथा में नया अध्‍याय जोड़ने वाले 'टाइम्‍स नाउ नवभारत'  के 'ऑपरेशन शीश महल' की तुलना एलजी या नए पीएम आवास से करना ही प्रथम तो अत्‍यंत हास्‍यास्‍पद है, दूसरे उससे यह भी जाहिर होता है कि केजरीवाल एंड कंपनी संभवत: अपने अलावा बाकी सब को बुद्धिहीन समझ बैठी है। 
जरा विचार कीजिए कि क्या किसी अदालत में कोई हत्यारा, बलात्‍कारी, चोर, डाकू, लुटेरा या भ्रष्‍टाचारी इस तरह की दलील देकर बच सकता है कि देशभर में तमाम लोग यह सब कर रहे हैं इसलिए मैंने भी कर दिया। मुझे कठघरे में खड़ा करने से पहले बाकी सब को पकड़ कर लाइए अन्‍यथा मुझ पर उंगली भी मत उठाइए। 
माना कि राजनीति में कोई पूरी तरह दूध का धुला नहीं है और सभी राजनीतिक दलों के बहुत से नेता विभिन्‍न आपराधिक आरोपों से घिरे हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि दूसरों के कुकृत्यों को कोई अपने बचाव का हथियार बना ले और उसकी आड़ में देश को लूट लेने का सुनियोजित षड्यंत्र रच डाले। 
अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी ने जब आम आदमी पार्टी का गठन किया, तब उसका दावा था कि वो राजनीति की परिभाषा बदल देगी। जनसामान्‍य के मन में बैठी राजनेताओं की इमेज को तोड़ देगी और ऐसी परिभाषा गढ़ेगी जिसकी कल्‍पना तक लोगों ने नहीं की होगी। यह सब हुआ भी, किंतु जो हुआ वो अप्रत्‍याशित रहा।  
यही कारण है कि जनता को यह समझते देर नहीं लगी कि राजनीति की राह में अन्ना के चेले भ्रष्‍टाचार के नित नए आयाम स्‍थापित करने आए हैं। वह राजनीति बदलने नहीं, उसे कलंकित करने आए हैं। वो ऐसा सब-कुछ करने पर आमादा हैं जिसके बाद न तो कोई अन्ना किसी पर भरोसा कर सकेगा और न आमजन के मन में बैठी यह धारणा पर्याप्‍त होगी कि उसे धोखा देने के लिए किसी का नेता होना जरूरी है। 
केजरीवाल एंड कंपनी ने साबित कर दिया कि साधारण से दिखने वाला व्‍यक्‍ति भी असाधारण भ्रष्‍ट तथा बेईमान हो सकता है और कट्टर ईमानदारी का ढिंढोरा पीटकर आठ-आठ लाख के पर्दे, चार-चार लाख की टॉयलेट सीट के साथ घर को वियतनाम के मार्बल से सुसज्‍जित करवा सकता है। 
यही नहीं, ऊपर से बेशर्मी की सारी हदें पार करके यह कह सकता है कि जब हमाम में सभी नंगे हैं तो केवल मुझे ही क्यों घूरा जा रहा है। मेरे शीश महल... मेरे किचन... मेरे ड्राइंग रूम और मेरे वॉशरूम पर कैमरे की आंखें क्यों लगी हैं। 
केजरीवाल एंड कंपनी की इन दलीलों ने साबित कर दिया कि राजनीति में नीचे गिरने का शायद कोई स्‍तर होता ही नहीं। बस एक बार किसी तरह जनता को मूर्ख बनाने का मौका मिल तो जाए। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...