गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

एक्ट्रेस के साथ रंगरेलियां मनाते पकड़े गए प्रमुख उद्योगपति

हैदराबाद 
साइबर सिटी में पुलिस ने एक हाई प्रोफाइल सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने छापा मारकर एक उद्योगपति को एक्ट्रेस के साथ रंगरलियां मनाते पकड़ा है। पुलिस ने दोनों को अपनी हिरासत में लिया है। जयराज इस्पात लिमिटेड के डायरेक्टर 60 वर्षीय एसके गोयनका और 22 साल की उभरती हुए टीवी
एक्ट्रेस को फार्चून टावर में छापा मारकर रंगरैलियां मनाते पकड़ा गया है।
हालांकि इस इस सैक्स रैकेट का मुखिया मदन मौके से भागने में कामयाब हो गया। अभिनेत्री के सैक्स रैकेट में शामिल होने की बात सामने आई है।
उल्लेखनीय है कि दक्षिण में सैक्स रैकेट में मामले में पकड़ी जाने वाली यह पहली अभिनेत्री नहीं है। पहले भी कई बार ऎसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें कई एक्ट्रेसेस को पुलिस ने इस तरह के गोरखधंधे में लिप्तता के चलते पकड़ा है।
-एजेंसी

फ़र्जी कौन..अखबार, सरकार या पीके इंस्टीट्यूट

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
कानपुर ब्‍यूरो के हवाले से 'अमर उजाला' के ऑनलाइन संस्‍करण में 'यूपी के 18 तकनीकी कॉलेज मान्यता विहीन' शीर्षक वाला एक समाचार प्रकाशित हुआ। 29 सितंबर की सुबह 8 बजकर 16 मिनट पर अपलोड किये गये इस समाचार के अनुसार 'ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्‍नीकल एजुकेशन' (AICTE) ने देश के सभी गैर मान्‍यताप्राप्‍त यानि 'फर्जी' तकनीकी शिक्षण संस्‍थाओं के नाम सार्वजनिक करते हुए अपनी वेबसाइट पर डाल दिए हैं। इन सभी कॉलेजों को 20 जून 2013 से एआईसीटीआई ने अनएप्रूव्ड घोषित किया है।
इस सूची में कुल 328 तकनीकी शिक्षण संस्‍थाओं को फ़र्जी बताया गया है जिनमें से 18 उत्‍तर प्रदेश में संचालित हैं।
यहां चल रहे किसी भी कोर्स की डिग्री मान्य नहीं होगी। 'अमर उजाला' के अनुसार खबर की पुष्टि एआईसीटीई के चेयरमैन शंकर एस मंथा ने की है।
खबर में यह भी लिखा है कि एआईसीटीई तकनीकी शिक्षा के लिए देश की सर्वोच्च नियामक संस्था है। एआईसीटीई समय-समय पर छात्र हित में (मानक के अनुसार) एप्रूव्ड और अनएप्रूव्ड तकनीकी कॉलेजों की लिस्ट जारी करती है। इस संस्था की संस्तुति के बिना कोई भी तकनीकी कॉलेज संचालित नहीं किया जा सकता।
अखबार ने अपने ऑनलाइन संस्‍करण में उत्‍तर प्रदेश के इन सभी 18 गैर मान्‍यताप्राप्‍त तकनीकी शिक्षण संस्‍थाओं की लिस्‍ट भी जारी की है जिनमें 15वें नंबर पर एक नाम है- पीके इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, मथुरा।
अब इसे इत्‍तेफाक कहें या कुछ और कि आगरा से प्रकाशित अमर उजाला के मथुरा संस्‍करण में 30 सितंबर को 'पीके ग्रुप ऑफ इंस्‍टीट्यूशंस' का हाफ पेज 'जैकेट' विज्ञापन छपता है। यही विज्ञापन इसी दिन आगरा से प्रकाशित अन्‍य प्रमुख अखबारों 'दैनिक जागरण' तथा 'हिंदुस्‍तान' के मथुरा संस्‍करण में भी छपता है। हिंदुस्‍तान में पूरे पेज का 'जैकेट' तथा दैनिक जागरण में 'पेज नंबर दो' पर पूरे पेज का विज्ञापन छापा जाता है।
इस विज्ञापन की विशेषता यह है कि इसमें ऊपर ही लिखा है- अप्रूव्‍ड बाइ "AICTE" एण्‍ड एफीलिएटेड टू UPTU, BTEUP & DBRAU.
साथ ही इस विज्ञापन में पीके इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी एण्‍ड मैंनेजमेंट, पीके इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी, पीके पॉलीटेक्‍निक तथा पीके डिग्री कॉलेज की इमारतों के चित्र छपे हैं जिसका मतलब यह है कि ये सभी शिक्षण संस्‍थाएं पीके ग्रुप ऑफ इंस्‍टीट्यूशंस द्वारा ही संचालित की जाती हैं।
इसके अलावा 'पीके ग्रुप ऑफ इंस्‍टीट्यूशंस' के चेयरमैन जे.पी. शर्मा, मैनेजिंग डायरेक्‍टर डॉ. बी.के. उपाध्‍याय का फोटो लगा है। पूरे विज्ञापन में न तो कोई कांटेक्‍ट नंबर है और ना ही कोई मेल आईडी।
हां, 'OUR SHINING STARS' के रूप में कुल 30 छात्र-छात्राओं के फोटोग्राफ्स भी इस विज्ञापन में लगे हैं।
अब यहां बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि हजारों तकनीकी छात्र-छात्राओं के भविष्‍य को प्रभावित करने वाले इस मामले में 'फर्जी' आखिर है कौन?
अमर उजाला जैसे प्रतिष्‍ठित अखबार का कानुपर ब्‍यूरो या वो सरकारी संस्‍था "AICTE" जिसने यूपी के गैर मान्‍यताप्राप्‍त तकनीकी शिक्षण संस्‍थाओं की लिस्‍ट में पीके इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, मथुरा का नाम शामिल किया है।
अगर ये दोनों सही हैं तो 'पीके ग्रुप ऑफ इंस्‍टीट्यूशंस' के विज्ञापन में लिखी यह बात कैसे सच हो सकती है कि अप्रूव्‍ड बाइ "AICTE" एण्‍ड एफीलिएटेड टू UPTU, BTEUP & DBRAU.
यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि 'पीके इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी' नामक कोई दूसरी शिक्षण संस्‍था मथुरा में संचालित नहीं है।
गौरतलब है कि सभी प्रमुख अखबार अपने यहां विज्ञापनों के संदर्भ में किसी एक पेज पर छोटा सा डिस्‍क्‍लेमर इस आशय का देते हैं कि ''पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह किसी विज्ञापन पर प्रतिक्रिया से पहले विज्ञापन में प्रकाशित किसी उत्‍पाद या सेवा के बारे में पूरी तरह उपयुक्‍त जांच-पड़ताल कर लें। यह समाचार पत्र, उत्‍पाद या सेवा की गुणवत्‍ता आदि के विवरण को लेकर विज्ञापनदाता द्वारा किए गये दावे या उल्‍लेख की पुष्‍टि या समर्थन नहीं करता। समाचार पत्र उपरोक्‍त विज्ञापनों के बारे में किसी भी प्रकार से उत्‍तरदायी नहीं होगा''।
ऐसे में अगला प्रश्‍न यह पैदा होता है कि क्‍या विज्ञापनों को लेकर प्रतिष्‍ठित अखबारों की जिम्‍मेदारी मात्र एक डिस्‍क्‍लेमर देने से पूरी हो जाती है। वह भी तब जबकि ठीक एक दिन पहले अमर उजाला छापता है कि 'पीके इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी, मथुरा' एक गैर मान्‍यताप्राप्‍त संस्‍था है अर्थात फर्जी इंस्‍टीट्यूट है।
तो क्‍या अमर उजाला, दैनिक जागरण तथा हिंदुस्‍तान जैसे नामचीन व लब्‍ध प्रतिष्‍ठित अखबार खुलेआम 'यलो जर्नलिज्‍म' (पीत पत्रकारिता) पर आमादा हो चुके हैं या फिर इनका सहारा लेकर 'पीके ग्रुप ऑफ इंस्‍टीट्यूशंस' अपनी फर्जी शिक्षण संस्‍थाओं का संचालन जारी रखना चाहता है और अपने यहां पढ़ रहे हजारों छात्रों का भविष्‍य अखबारी विज्ञापनों के झूठ से अंधकारमय कर रहा है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि करोड़ों ही नहीं अरबों रुपये की पूंजी से संचालित नामचीन मीडिया हाउस भी उस कॉकस का हिस्‍सा बन गये हैं जो सरकारी कार्यप्रणाली में बने सूराखों का लाभ उठाकर न केवल देश का भविष्‍य कहलाने वाले स्‍टुडेंट्स का भविष्‍य सुनियोजित षड्यंत्र के साथ चौपट कर रहे हैं बल्‍कि कानून की आंखों में धूल झोंक रहे हैं।
क्‍या वो मीडिया हाउस जो एक दिन पहले जिस 'पीके ग्रुप ऑफ इंस्‍टीट्यूशंस' के फर्जी होने का समाचार छापता है और दूसरे ही दिन उसी का कीमती विज्ञापन छापकर उसके मान्‍यताप्राप्‍त होने के दावे की लगभग पुष्‍टि करता है,  किसी भी मायने में कम अपराधी है?
क्‍या दूसरे वो मीडिया हाउसेस जो बिना कुछ देखे केवल इसलिए ऐसे विज्ञापन छाप देते हैं क्‍योंकि लाखों रुपये मिल रहे हैं, किसी फर्जी संस्‍था द्वारा किए जा रहे आपराधिक कृत्‍य से कम आपराधिक कृत्‍य कर रहे हैं?
सवाल कई हैं लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं। कोई जवाब देगा भी क्‍यों.. जब सब एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं।
रहा सवाल उस सरकारी संस्‍था "AICTE" का तो उसने अपनी साइट पर देशभर के गैर मान्‍यताप्राप्‍त टेक्‍नीकल इंस्‍टीट्यूट्स की सूची जारी करके अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली, अब अखबार उसे खबर बनाकर संबंधित तकनीकी शिक्षण संस्‍थाओं को कैश कर लें, तो वो क्‍या कर सकती है।
बाकी बचे ऐसी शिक्षण संस्‍थाओं में लाखों रुपये खर्च करके पढ़ने वाले छात्र तो उनके प्रति भी इनमें से कोई जवाबदेह नहीं। न अखबार, न सरकार। फर्जी शिक्षण संस्‍थाओं के संचालक तो जिम्‍मेदार होने क्‍यों लगे।
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