रविवार, 21 मई 2023

अमरनाथ विद्या आश्रम पर अवैध कब्जे का विवाद गहराया, ट्रस्टी धीरेन्‍द्र भार्गव ने वाजपेयी परिवार पर लगाए गंभीर आरोप

 


 शहर ही नहीं, प्रदेश की नामचीन शिक्षण संस्‍था 'अमरनाथ विद्या आश्रम' पर अवैध कब्‍जे का विवाद अब और अधिक गहरा गया है। यूं तो इस विवाद की शुरूआत करीब 32 वर्ष पहले तभी हो गई थी जब इस विद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य आनंद मोहन वाजपेयी ने एक नए ट्रस्‍ट का गठन कर विद्यालय पर अपना आधिपत्‍य स्‍थापित कर लिया, लेकिन ताजा विवाद तब शुरू हुआ जब पिछले महीने की 30 तारीख को अमरनाथ विद्या आश्रम की ओर से 'अमर उजाला' अखबार में एक विज्ञापन प्रकाशित कराया गया। 

स विज्ञापन से इस आशय का संदेश देने की कोशिश की गई कि अमरनाथ विद्या आश्रम की स्‍थापना स्‍वर्गीय आनंद मोहन वाजपेयी ने की। इस विज्ञापन में कहीं भी विद्या आश्रम के संस्‍थापक स्‍वर्गीय द्वारिकानाथ भार्गव का जिक्र तक नहीं किया गया। 

जाहिर है कि यह बात अमरनाथ विद्या आश्रम के मूल ट्रस्‍टियों को नागवार गुजरी और ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव ने इसके जवाब में एक पैम्फलेट छपवाकर जनता के बीच प्रसारित कराया। जिसके अनुसार विद्या आश्रम के संस्‍थापक स्‍वर्गीय द्वारिकानाथ भार्गव और उनके परिवार के साथ वाजपेयी परिवार ने धोखाधड़ी करके विद्यालय पर अवैध कब्‍जा कर रखा है। इस संबंध में एक वाद एसडीम कोर्ट मथुरा में लंबित है। 

 

धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव के अनुसार वाजपेयी परिवार ने विद्यालय पर अपना कब्‍जा दिखाने के उद्देश्‍य से एक ओर जहां तमाम दानदाताओं की ओर से कराए गए निर्माण कार्य के सबूत मिटा दिए वहीं दूसरी ओर विद्यालय में गेट के ठीक सामने पार्क में लगी उन स्‍वर्गीय 'द्वारिकानाथ भार्गव' की मूर्ति भी नष्‍ट कर दी जिन्‍होंने विद्यालय की स्‍थापना की थी। 

ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा दी गई लिखित जानकारी के अनुसार अमरनाथ विद्या आश्रम को लेकर एक लम्बे समय से वाजपेयी बंधुओं द्वारा भ्रामक और गलत जानकारियाँ देकर जनता को गुमराह किया जा रहा है जबकि सच्चाई यह है कि अमरनाथ विद्या आश्रम की स्थापना सन् 1961 में स्वतंत्रता सेनानी और अधिवक्ता श्री द्वारिका नाथ भार्गव ने स्वर्गीय अमरनाथ भार्गव की स्मृति में एक ट्रस्ट के जरिए की थी। 
आनन्द मोहन वाजपेयी को तब इस शिक्षण संस्था में बतौर प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया था। सन् 1990 तक आनन्द मोहन वाजपेयी इस शिक्षण संस्था के प्रधानाध्यापक रहे। उसके बाद ट्रस्‍ट ने उन्‍हें स्कूल का निदेशक घोषित कर दिया लेकिन उन्होंने संस्था के ट्रस्टियों का भरोसा तोड़कर एक नया फर्जी ट्रस्ट रजिस्टर्ड करवा लिया और पूरी संस्था पर अपने भाई-भतीजों सहित काबिज हो गए।
आनन्द मोहन वाजपेयी ने खुद को अमरनाथ विद्या आश्रम का आजीवन ट्रस्टी दर्शाते हुए सन् 1995 में ट्रस्ट का नवीनीकरण करा लिया। जब इस बात की जानकारी हमें हुई तो हमने उपनिबंधक फर्म, सोसायटी एवं चिट्स आगरा के यहाँ उनके इस कृत्य को चुनौती दी। जिसके उपरांत उपनिबंधक ने माना कि आनन्द मोहन वाजपेयी न तो ट्रस्ट के लिए गठित कार्यकारिणी के चुनाव सम्बन्धी कोई रजिस्टर प्रस्तुत कर सके और न ही ट्रस्ट की वैधता साबित कर सके। 
उपनिबंधक आगरा द्वारा 2 जून 1995 को दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि आनन्द मोहन वाजपेयी की ओर से प्रस्तुत 30 अक्टूबर 1993 को दर्शाये गए कार्यकारिणी के चुनावों की वैधता संदिग्ध है और 1988 में हुआ चुनाव ही अंतिम चुनाव था। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव के अनुसार उपनिबंधक आगरा के यहाँ से मिली इस राहत के आधार पर हम जल्द न्याय पाने की मंशा से माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण में गए। माननीय उच्च न्यायालय ने केस की गंभीरता पर गौर करते हुए एसडीएम सदर (मथुरा) को इसका निस्तारण 90 दिन में करने का निर्देश दिया। 
इस बीच कोरोना की महामारी फैल जाने की वजह से माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्देश का पालन नहीं हो सका लिहाजा अब भी यह मामला एसडीएम सदर (मथुरा) के यहाँ लंबित व विचाराधीन है। ऐसे में अमरनाथ विद्या आश्रम जैसी एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था को लेकर भ्रामक संदेश देना वाजपेयी बंधुओं की बदनीयति साबित करता है। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव ने लिखा है कि अमरनाथ विद्या आश्रम पर मूल रूप से श्री द्वारिका नाथ भार्गव द्वारा गठित ट्रस्ट का ही अधिकार है और वही इसके संचालन का हकदार है। उन्‍होंने मीडिया से भी अनुरोध किया है कि वाजपेयी बंधु अखबारों का सहारा लेकर आम जनता में भ्रामक सन्देश देते रहते हैं जिससे अखबारों की बदनामी होती है लिहाजा मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि भविष्य में ऐसे भ्रामक सन्देश फैलाने में वाजपेयी बंधुओं की सहायता न करें। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव द्वारा लगाए गए आरोपों के संबंध में 'लीजेण्‍ड न्‍यूज़' ने अमरनाथ विद्या आश्रम के प्रधानाचार्य अरुण वाजपेयी से 7 एवं 8 मई और फिर 18 मई को वाट्सएप मैसेज भेजकर विद्यालय का पक्ष जानने की कोशिश की किंतु उन्‍होंने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा। 
दूसरी ओर ट्रस्‍टी धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव का कहना है कि वाजपेयी परिवार पर कहने के लिए कुछ है ही नहीं इसलिए वो कोई प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त नहीं कर सकते। 
धीरेन्‍द्रनाथ भार्गव का दावा है कि शीघ्र ही एसडीएम के यहां लंबित वाद का निर्णय उसी प्रकार उनके पक्ष में आएगा जिस प्रकार उपनिबंधक फर्म, सोसायटी एवं चिट्स आगरा के यहाँ से आया है। और उसके बाद स्‍पष्‍ट हो जाएगा कि तथाकथित नैतिकता की आड़ में वाजपेयी परिवार ने एक ऐसे परिवार के साथ विश्‍वासघात किया जिसने उन्‍हें प्रधानाध्‍यपक पद पर नियुक्‍त किया था। इसके साथ ही वाजपेयी परिवार ने अवैध रूप से काबिज होकर यह भी सिद्ध कर दिया कि उनके द्वारा छात्रों को नैतिकता की शिक्षा देने का दावा करना कितना खोखला और दिखावटी है जबकि वो खुद अनैतिक रूप से विद्यालय का संचालन कर रहे हैं। 
-Legend News

शनिवार, 13 मई 2023

नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश करते केजरीवाल


 देश की राजनीति बदलने चले अरविंद केजरीवाल इन दिनों नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। अन्ना आंदोलन की उपज आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जिस तेजी के साथ चाल-चरित्र तथा चेहरा बदला है, उसे देखकर खुद अन्ना भी कई बार आश्‍चर्य जता चुके हैं। 

आम जनता को तो समझ में ही नहीं आ रहा कि वो इन नेताओं के 'गिरगिटी' अंदाज पर हंसे, रोए या फिर सिर पीट ले। यूं तो अलग-अलग आरोपों में केजरीवाल सरकार के कई मंत्री जेल में हैं और उन्‍हें जमानत तक नहीं मिल पा रही, किंतु ताजा मामला उनके द्वारा अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर खर्च की गई 45 करोड़ रुपए की उस भारी-भरकम धनराशि का है जिसे लेकर वह बुरी तरह फंस चुके हैं। 
'टाइम्‍स नाउ नवभारत' ने जब पहली बार केजरीवाल के मुख्‍यमंत्री आवास से जुड़े 'ऑपरेशन शीश महल' का प्रसारण किया था तो लोगों को यकीन नहीं हो पा रहा था कि झोलाछाप शर्ट, मामूली सी पतलून तथा साधारण सैंडल धारण करके पांच रुपए की कीमत का प्‍लास्‍टिक पेन ऊपर वाली जेब में लगाकर चलने वाला शख्‍स इस कदर विलासी प्रवृत्ति का होगा। 
केजरीवाल के कारनामे पर यकीन दिलाने में 'टाइम्‍स नाउ नवभारत' को पहले तो एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा लेकिन फिर उसका यह काम केजरीवाल एंड कंपनी ने खुद पूरा कर दिया। संभवत: इसीलिए एक मीडिया हाउस के खुलासे को आज दूसरे मीडिया हाउस भी तरजीह देने पर मजबूर हैं वर्ना सामान्‍यत: वह इसे अपनी तौहीन समझते हैं और उस पर चर्चा तक करना गवारा नहीं करते।
केजरीवाल एंड कंपनी और आम आदमी पार्टी को पहले तो शायद ये समझ में ही नहीं आया कि वह इस इतने बड़े खुलासे पर अपना बचाव करे तो करे कैसे। फिर राघव चड्ढा, संजय सिंह और सौरभ भारद्वाज जैसे नेता सामने आने पर मजबूर हुए किंतु उनकी दलीलें न सिर्फ बेहद खोखली व रटी-रटाई रहीं बल्‍कि उसी कहावत को पुष्‍ट करती दिखाई दीं जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। यानी नमक से नमक खाने और भ्रष्‍टाचार से भ्रष्‍टाचार मिटाने की कोशिश।  
उनके पास कहने के नाम पर इतना भर था कि दिल्‍ली के एलजी आवास पर हुए खर्च का ब्‍यौरा क्यों नहीं मांगा जाता, या नए पीएम आवास पर किए जा रहे खर्च का हिसाब कोई क्यों नहीं मांगता। 
उनकी ऐसी बेहूदी दलीलों को सुनकर आम जनता के साथ-साथ बाकी मीडिया को भी भरोसा हो गया कि केजरीवाल ने वो कारनामा कर दिखाया है जिससे करने के लिए बड़े से बड़े घाघ और भ्रष्‍टाचारी नेता दस बार सोचने के बाद भी हिम्‍मत नहीं जुटा पाएंगे। 
केजरीवाल की कलंक कथा में नया अध्‍याय जोड़ने वाले 'टाइम्‍स नाउ नवभारत'  के 'ऑपरेशन शीश महल' की तुलना एलजी या नए पीएम आवास से करना ही प्रथम तो अत्‍यंत हास्‍यास्‍पद है, दूसरे उससे यह भी जाहिर होता है कि केजरीवाल एंड कंपनी संभवत: अपने अलावा बाकी सब को बुद्धिहीन समझ बैठी है। 
जरा विचार कीजिए कि क्या किसी अदालत में कोई हत्यारा, बलात्‍कारी, चोर, डाकू, लुटेरा या भ्रष्‍टाचारी इस तरह की दलील देकर बच सकता है कि देशभर में तमाम लोग यह सब कर रहे हैं इसलिए मैंने भी कर दिया। मुझे कठघरे में खड़ा करने से पहले बाकी सब को पकड़ कर लाइए अन्‍यथा मुझ पर उंगली भी मत उठाइए। 
माना कि राजनीति में कोई पूरी तरह दूध का धुला नहीं है और सभी राजनीतिक दलों के बहुत से नेता विभिन्‍न आपराधिक आरोपों से घिरे हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि दूसरों के कुकृत्यों को कोई अपने बचाव का हथियार बना ले और उसकी आड़ में देश को लूट लेने का सुनियोजित षड्यंत्र रच डाले। 
अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी ने जब आम आदमी पार्टी का गठन किया, तब उसका दावा था कि वो राजनीति की परिभाषा बदल देगी। जनसामान्‍य के मन में बैठी राजनेताओं की इमेज को तोड़ देगी और ऐसी परिभाषा गढ़ेगी जिसकी कल्‍पना तक लोगों ने नहीं की होगी। यह सब हुआ भी, किंतु जो हुआ वो अप्रत्‍याशित रहा।  
यही कारण है कि जनता को यह समझते देर नहीं लगी कि राजनीति की राह में अन्ना के चेले भ्रष्‍टाचार के नित नए आयाम स्‍थापित करने आए हैं। वह राजनीति बदलने नहीं, उसे कलंकित करने आए हैं। वो ऐसा सब-कुछ करने पर आमादा हैं जिसके बाद न तो कोई अन्ना किसी पर भरोसा कर सकेगा और न आमजन के मन में बैठी यह धारणा पर्याप्‍त होगी कि उसे धोखा देने के लिए किसी का नेता होना जरूरी है। 
केजरीवाल एंड कंपनी ने साबित कर दिया कि साधारण से दिखने वाला व्‍यक्‍ति भी असाधारण भ्रष्‍ट तथा बेईमान हो सकता है और कट्टर ईमानदारी का ढिंढोरा पीटकर आठ-आठ लाख के पर्दे, चार-चार लाख की टॉयलेट सीट के साथ घर को वियतनाम के मार्बल से सुसज्‍जित करवा सकता है। 
यही नहीं, ऊपर से बेशर्मी की सारी हदें पार करके यह कह सकता है कि जब हमाम में सभी नंगे हैं तो केवल मुझे ही क्यों घूरा जा रहा है। मेरे शीश महल... मेरे किचन... मेरे ड्राइंग रूम और मेरे वॉशरूम पर कैमरे की आंखें क्यों लगी हैं। 
केजरीवाल एंड कंपनी की इन दलीलों ने साबित कर दिया कि राजनीति में नीचे गिरने का शायद कोई स्‍तर होता ही नहीं। बस एक बार किसी तरह जनता को मूर्ख बनाने का मौका मिल तो जाए। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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