क्या प्रदेश का एक प्रमुख नौकरशाह है आंदोलन का सूत्रधार
केन्द्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर काफूरपुर (मुरादाबाद) से शुरू हुआ जाट आंदोलन क्या किसी के द्वारा प्रायोजित है ?
क्या इस आंदोलन के जरिये विभिन्न राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में अपना मकसद पूरा करना चाहते हैं ?
क्या जाट आंदोलन की आड़ में राजनीतिक पार्टियों द्वारा शतरंज की ऐसी बिसात बिछाई गई है जिसमें जीत या हार का पता तो यूपी के विधानसभा चुनावों के बाद ही मालूम हो सकेगा लेकिन खेल का रुख चुनावों से पहले ही स्पष्ट हो जायेगा ?
इन प्रश्नों के उत्तर तलाशने पर मालूम पड़ता है कि यह सभी बातें सही हैं और आरक्षण की मांग को लेकर जाटों द्वारा शुरू किये गये आंदोलन का सूत्रधार उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख नौकरशाह है। यह नौकरशाह एक राजनीतिक दल के इशारे पर जाट आंदोलन को प्रायोजित कर रहा है और इसका सीधा मकसद आगामी विधानसभा चुनावों में इस दल को जाट वोटों का लाभ दिलाना है।
प्रदेश में कद्दावर हैसियत वाले इस नौकरशाह ने कुछ समय पूर्व ताज एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन के समुचित मुआवजे की मांग को लेकर शुरू हुए किसान आंदोलन को भी हवा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन तब उसे अपने मकसद में पर्याप्त सफलता नहीं मिली। एक तरह से तब उसका यह दांव उल्टा पड़ गया और जिस राजनीतिक दल के लिए उसने यह कवायद की थी, उसे कोई लाभ मिलता नजर नहीं आया लिहाजा अब उसने जाट आंदोलन की कमान संभाल ली।
यह बात अलग है कि जाट आंदोलन की गेंद केन्द्र सरकार के पाले में डालने की कोशिश के कारण इस नौकरशाह का खेल समय रहते अन्य राजनीतिक दलों की समझ में आ गया और उन्होंने भी अपने-अपने स्तर से मोहरे चलने प्रारम्भ कर दिये हैं। यही कारण है कि एक ओर यूपी की सत्ता पर काबिज बसपा ने बाकायदा जाट आंदोलन को समर्थन देने का ऐलान किया तो दूसरी ओर सपा व भाजपा ने जाटों की मांग को जायज ठहराते हुए उन्हें हरसंभव सहयोग का वचन दे डाला। राष्ट्रीय लोकदल तो जाट वोटों पर अपने पेटेंट का दावा करता ही है।
बताया जाता है कि केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् द्वारा आंदोलनकारी जाटों को बातचीत के लिए जो बुलावा भेजा था और कल बातचीत करके 3 दिन का समय मांगा है, उसके पीछे भी वोटों की राजनीति तथा शह और मात के खेल में बाजी मार लेने की मंशा है, हालांकि आंदोलन स्थगित न करा पाने से उनकी मंशा को झटका लगा है।
राजनीतिक गलियारों से ही प्राप्त जानकारी के अनुसार जाट आंदोलनकारियों को केन्द्रीय गृहमंत्री का बातचीत के लिए निमंत्रण मिलने और कांग्रेस की इसे लेकर बनाई गई रणनीति पर बसपा, सपा, भाजपा व रालोद सबकी नजर थी लिहाजा जैसे ही ऐसा लगा कि आंदोलनकारी जाट केन्द्रीय गृहमंत्री की बातों में आकर कहीं आंदोलन स्थगित न कर दें, सबने अपनी-अपनी गोटियां चलनी शुरू कर दीं नतीजतन जाट आंदोलन जारी रहा।
उधर कांग्रेस भी इस मामले में फूंक-फंक कर कदम रख रही है और बसपा सहित सभी दूसरे राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए है। बताया जाता है कांग्रेस ने इस मामले में अभी अपने पूरे पत्ते बेशक खोले नहीं है लेकिन उसने कुछ ऐसी योजना बना ली है जिसके बाद न सिर्फ जाट आंदोलन को लेकर खेला जा रहा शह और मात का खेल खत्म हो जायेगा बल्िक जातिगत आरक्षण की आड़ में विभिन्न पार्टियों द्वारा श्रेय लेने की गुंजाइश भी नहीं रहेगी।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अगर जाट आंदोलन आसानी से नहीं रुकता और विभिन्न राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना मकसद पूरा करने के लिए उसे हवा देती रहीं तो कांग्रेस इस बार सभी सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव ला सकती है।
सूत्रों के मुताबिक प्रत्यक्ष में जाट आंदोलन को लेकर कुछ भी न बोलने वाले राहुल गांधी भी इस योजना पर अंदर ही अंदर ठोस कार्य कर रहे हैं और पूरी तरह सक्रिय हैं।
दरअसल महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर घिरी कांग्रेस के पास अब कोई दूसरा ऐसा रास्ता नहीं बचा जिसके सहारे वह खुद को नई मुसीबतों से बचा सके, साथ ही यूपी के विधानसभा चुनावों में प्रतिद्वंदी पार्टियों को टक्कर दे सके।
सूत्रों की मानें तो बहुत जल्दी कांग्रेस इस मुद्दे पर अपने पत्ते खोल देगी ताकि जाट आंदोलन बहुत लम्बा न खिंचे और बसपा, भाजपा, सपा तथा रालोद जैसी पार्टियों को उन्हीं के अपने इस हथियार से चित्त किया जा सके।