मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

कोबरा ने 1984 पर स्‍टिंग करके अब कांग्रेस को मारा डंक

नई दिल्ली। 
1984 के सिख विरोधी दंगों के बारे में एक सनसनीखेज खुलासा सामने आया है। कोबरापोस्ट द्वारा किए गए इस स्टिंग ऑपरेशन में इस बात का खुलासा किया गया है कि कैसे पुलिस ने कांग्रेस सरकार के सामने खुद को सही साबित करने के लिए दंगाइयों के खिलाफ कार्यवाही करने से मना कर दिया था, और खास बात यह कि आंशिक तौर पर पुलिस फोर्स खुद भी सांप्रदायिक हो गई थी।
दंगे के समय वहां तैनात रहे छह एसएचओ ने कोबरापोस्ट के एक अंडरकवर रिपोर्टर द्वारा लिए गए सीरीज इंटरव्यू में पुलिस द्वारा कार्यवाही न करने की बात स्वीकार की है। हालांकि, दो सीनियर ऑफिसर्स एसी. पी. गौतम कौल और तब के पुलिस कमिश्नर एस. सी. टंडन के इंटरव्यू में इस तरह बयान सामने नहीं आए हैं। जहां टंडन सारे सवालों को टाल गए, वहीं गौतम कौल ने एक घटना का जिक्र किया है कि वह गुरुद्वारा रकाबगंज के पास दंगे की खबरों की जांच के लिए गए तो उन्हें वहां से भागना पड़ा, क्योंकि वह उग्र भीड़ के सामने अकेले पड़ गए थे।
अगर ये इंटरव्‍यू सही हैं तो इससे पता चलता है कि कैसे पुलिस फोर्स न सिर्फ कार्यवाही करने में विफल रही बल्कि सिखों को 'सबक' सिखाने के लिए सरकार के साथ सांठ-गांठ भी की। यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हिंसा का सबसे खराब उदाहरण है।
जिन एसएचओ के इंटरव्यू लिए गए उनमें कल्याणपुर के शूरवीर सिंह त्यागी, दिल्ली कैंटोंमेंट के रोहतास सिंह, कृष्णा नगर के एस. एन. भाष्कर, श्रीनिवासपुर के ओ. पी. यादव तथा मेहरौली के जयपाल सिंह और तब पटेल नगर में तैनात एसएचओ अमरीक सिंह भुल्लर शामिल हैं। जयपाल सिंह ने जांच कमीशन के पास एक ऐफिडेबिट जमा कराई है जिसमें उन्होंने स्थानीय नेताओं पर न सिर्फ दंगे में शामिल होने बल्कि भीड़ को भड़काने का भी आरोप लगाया है।
इस इंटरव्यू में सामने आए सनसनीखेज खुलासों में से एक यह है कि पुलिस को यह संदेश प्रसारित किए गए कि पुलिस उन दंगाइयों के खिलाफ कोई कार्यवाही न करे जो 'इंदिरा गांधी जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे और कुछ मामलों में पीड़ितों की लाशों को दंगों की जगह से दूर फेंक दिया जाए जिससे मरने वालों की आधिकारिक संख्या कम दिखाई जा सके।
इन पुलिस वालों के अनुसार पुलिस कंट्रोल रूम में आगजनी और दंगों की खबरों की भरमार के बावजूद महज दो फीसदी संदेश ही रेकॉर्ड किए गए। बाद में सीनियर पुलिस अधिकारियों पर कार्यवाही न करने के आरोपों से बचने के लिए पुलिस लॉगबुक में परिवर्तन कर दिया गया।
सीनियर अधिकारियों ने दंगाइयों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। यहां तक कि फायर ब्रिगेड ने भी आगजनी प्रभावित क्षेत्रों में जाने से मना कर दिया। पुलिस ने दंगा प्रभावितों को एफआईआर दर्ज करने की अनुमति नहीं दी और जो एफआईआर दर्ज हुए भी उनमें भी हत्या और आगजनी की अलग-अलग घटनाओं को एक ही एफआईर में दर्ज कर लिया गया।
कम से कम तीन एसएचओ ने टंडन की कुप्रबंधन के लिए आलोचना की है। त्यागी ने जोर देकर कहा, 'जानबूझकर या अनजाने में, वह (टंडन) सरकार के प्रभाव में थे। शुरुआत में उन्होंने स्थिति को ठीक ढंग से नहीं संभाला और पहले दो दिनों में स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई।' यादव ने भी टंडन पर फोर्स को नेतृत्व न प्रदान करने का आरोप लगाया।
दंगों की जांच के लिए गठित रंगनाथ मिश्रा समिति और कपूर-कुसुम मित्तल समिति दोनों ने ही टंडन को कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। जब कोबरा पोस्ट के रिपोर्टर ने टंडन की इस बारे में प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने यह कहते हुए कुछ भी कहने से मना कर दिया कि चुनाव के सीजन में उनके द्वारा कुछ भी कहने से विवाद खड़ा हो सकता है।
भाष्कर ने अपने सीनियर अधिकारियों को भेजे गए उस मेसेज को अपने पास रखा है जिसे उन्होंने अनदेखा कर दिया था। भुल्लर ने एडिशनल सीपी हुकुम चंद जाटव पर प्रेस द्वारा दी गई आगजनी और हत्या की सूचना के बाद भी कार्यवाही करने से मना कर देने का आरोप लगाया है। भुल्लर के मुताबिक जाटव तब करोल बाग के कंट्रोल रूम में थे जब एक रिपोर्टर ने उन्हें घटना की सूचना दी लेकिन जाटव ने कहा कि वह कंट्रोल रूम में ही थे और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। भुल्लर का दावा है, 'वह (जाटव) सब कुछ जानते थे लेकिन वहां से मूव ही नहीं किया।'
एक और पुलिस अधिकारी रोहतास सिंह ने कहा कि डीसीपी चंद्र प्रकाश ने उन्हें दंगाइयों की भीड़ पर गोली चलाने की अनुमति नहीं दी थी। सिंह के मुताबिक, 'उन्होंने मुझसे कहा और लिखित में दिया कि इंदिरा गांधी की हत्या एक बड़ी घटना है। अब क्यों तुम (गोली चलाकर) एक और बड़ी घटना करना चाहते हो?
सिंह जोर देकर कहते हैं कि वह अपने आरोपों को और मजबूती से साबित कर पाते अगर वायरलेस मेसेजेज को ठीक ढंग से रेकॉर्ड किया गया होता। सिंह कहते हैं, 'अगर वे मेसेजेज रेकॉर्ड किए गए होते तो मैं कई बातें साबित कर सकता था लेकिन 2 फीसदी मेसेजेज भी कंट्रोल रूम के लॉग बुक में रेकॉर्ड नहीं किए गए।' उन्होंने आरोप लगाया कि चंद्र प्रकाश ने उन मेसेजेज को भी बदल दिया जिनसे वह फंस सकते थे। सिंह यह भी स्वीकार करते हैं कि फोर्स सांप्रदायिक हो गई थी। उन्होंने कहा, 'मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि हमारे पुलिस के जवान सांप्रदायिक सोच के हो गए थे।'
इंटरव्यू से पता चलता है कि कैसे पुलिस ने तीन दिन बाद सेना के हस्ताक्षेप से दंगों पर नियंत्रण के बाद लोगों को इंसाफ दिलाने की बजाय अपनी गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश की। पहले तो उन्होंने केस दर्ज नहीं किए और जब किए भी तो असमान मामलों को एक साथ एक एफआईआर के तहत दर्ज कर लिया।
भुल्लर के मुताबिक, 'पुलिस ने केस दर्ज नहीं किए, इसके बजाय उन्होंने केस को दबाने की कोशिश की। वे जानते थे कि उनके इलाकों में जबर्दस्त दंगे हो रहे हैं इसलिए उन्होंने इसे कमतर दिखान की कोशिश की और इसलिए अपनी नौकरियां बचाने के लिए लाशों को सुल्तानपुरी में फेंक दिया गया।'
-एजेंसी
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