गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

मथुरा डाॅक्‍टर अपहरण कांड: फिरौती हड़पने पर मथुरा पुलिस की चुप्‍पी सवालों के घेरे में

मथुरा। गेटबंद पॉश कॉलोनी राधापुरम एस्‍टेट निवासी जिस डॉक्‍टर के कथित अपहरण से मिली फिरौती की बड़ी रकम को चंद घंटों में पुलिस ने ठिकाने लगाकर सारा मामला रफा-दफा कर दिया, उसे लेकर अब तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं।
सवाल खड़े करने वालों में खुद पुलिस भी है, डॉक्‍टर बिरादरी भी और आम आदमी भी।
इन सवालों का जवाब जानने से पहले इस ”कथित अपहरण” संबंधी पूरे घटनाक्रम पर एक बार फिर गौर करना जरूरी है।
अब तक सामने आई कहानी के अनुसार, एक मशहूर ऑर्थोपेडिक डॉक्‍टर पिछले माह जब अपने क्‍लीनिक से कार द्वारा लौट रहे थे तब नेशनल हाईवे स्‍थित गोवर्धन चौराहे के फ्लाईओवर पर उन्‍हें एक लग्जरी गाड़ी सवार चार बदमाशों ने ओवरटेक करके कब्‍जे में ले लिया और उन्‍हीं के मोबाइल से उनकी पत्‍नी को फोन करके डॉक्‍टर का अपहरण कर लिए जाने की जानकारी दी।
कहानी के मुताबिक कुछ घंटों के अंदर ही डॉक्‍टर की पत्‍नी से 55 लाख की फिरौती वसूलकर बदमाशों ने डॉक्‍टर को मुक्‍त कर दिया।
अखबारों में छपे इस पूरे घटनाक्रम पर भरोसा किया जाए तो 55 लाख रुपए की बड़ी रकम का मात्र चंद घंटों में डॉक्‍टर की पत्‍नी ने इंतजाम कर लिया और इस दौरान डॉक्‍टर को चारों बदमाश उन्‍हीं की गाड़ी में लेकर नेशनल हाईवे पर ही घूमते रहे।
दिल्‍ली-आगरा नेशनल हाईवे का ये वो हिस्‍सा है जहां दिन-रात पुलिस सक्रिय रहती है क्‍योंकि इस पर अनेक होटल, हॉस्‍पीटल, गेस्‍ट हाउस आदि के अलावा इंडस्‍ट्री एरिया भी पड़ता है।
इसके अलावा घटना स्‍थल से बमुश्‍किल 100 मीटर की दूरी पर शहर कोतवाली की रिपोर्टिंग पुलिस चौकी कृष्‍णानगर तथा हाईवे थाने की भी एक पुलिस चौकी है।
सवाल जो अब पूछे जा रहे हैं
अब इस अपहरण को लेकर उन सवालों को समझिए जिनकी वजह से इसे ‘कथित अपहरण’ कहा जा रहा है।
सवाल नंबर एक: क्‍या वाकई डॉक्‍टर का किडनैप हुआ था, या मामला कुछ ऐसा है जिसे छिपाना डॉक्‍टर दंपत्ति और उसके परिवार की मजबूरी था ?
ये सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्‍योंकि पेशेवर बदमाश यदि किसी का अपहरण करते हैं तो वो अपहृत के परिवार से तत्‍काल संपर्क स्‍थापित करने की गलती नहीं करते। पहले वो अपहृत के परिवार और पुलिस की गतिविधि को भांपते हैं, उसके बाद इत्‍मीनान से अपनी डिमांड रखते हैं।
इस मामले में बताया जा रहा है कि बदमाशों ने मात्र दो-ढाई घंटे में फिरौती की रकम वसूल ली और निकल गए, जोकि संभव नहीं है।
सवाल नंबर दो: क्‍या डॉक्‍टर ने अपने घर पर 55 लाख रुपए की बड़ी रकम पहले से रखी हुई थी, और क्‍या उनके कथित अपहरणकर्ताओं को इस बात का इल्‍म था कि डॉक्‍टर के घर पर इतनी बड़ी रकम है ?
ये सवाल इसलिए महत्‍वपूर्ण हो जाता है कि आज के इस दौर में जब बड़े-बड़े व्‍यापारी और उद्योगपति भी इतना कैश अपने घर पर नहीं रखते तो डॉक्‍टर ने इतना पैसा किसलिए रखा हुआ था।
सवाल नंबर तीन: जब डॉक्‍टर, डॉक्‍टर की पत्‍नी और उसके परिजनों में से भी किसी ने पुलिस को अपहरण की जानकारी नहीं दी तो पुलिस को सूचित किसने किया ?
इस सवाल का जवाब पूरे मामले की परतें खोल सकता है क्‍योंकि पुलिस पर फिरौती की रकम में 40 लाख रुपए हड़प जाने का आरोप लगा है।
समाचारों के अनुसार पुलिस ने चारों अपहरणकर्ताओं को गिरफ्त में लेकर और पूरे 55 लाख रुपए बरामद करके जब डॉक्‍टर दंपत्ति से संपर्क किया तो वो एफआईआर दर्ज कराने पर तैयार नहीं हुए लिहाजा पुलिस ने बिना कोई कार्यवाही किए बदमाशों को रिहा कर दिया।
बताया जाता है कि डॉक्‍टर दंपत्ति के रुख ने ही पुलिस के दोनों हाथों में लड्डू दे दिए और इसीलिए उसने 15 लाख बरामद बताकर वो तो डॉक्‍टर दंपत्ति को थमा दिए तथा शेष 40 लाख की फिरौती का बंटवारा कर लिया।
जानकारी के मुताबिक इसके अलावा पुलिस ने बदमाशों को सुरक्षित रिहा करने की एवज में उनसे भी कुछ रकम हथिया ली।
सवाल नंबर चार: जो पुलिस अपने इलाके में मशहूर डॉक्‍टर के अपहरण और उसकी फिरौती वसूलने तक गहरी नींद में थी, उसे अचानक बदमाशों का पूरा ब्‍यौरा उनकी लोकेशन के साथ कैसे मिल गया कि उसने चारों बदमाशों को फिरौती की रकम ठिकाने लगाने से पहले धर दबोचा ?
पुलिस की इस हरकत में यह निहित है कि क्‍या वाकई डॉक्‍टर का अपहरण हुआ या इसके पीछे की पूरी पटकथा पुलिस ने ही बदमाशों के साथ मिलकर लिखी थी ताकि सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे।
यदि ऐसा नहीं है तो किसी भी ऐसी संगीन वारदात के बाद हफ्तों-हफ्तों टीम बनाकर अंधेरे में तीर चलाने वाली पुलिस ने कैसे इतनी जल्‍दी चारों बदमाश मय रकम के पकड़ लिए जबकि उनमें से एक बदमाश मेरठ का बताया जाता है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाशों के साथ सुरक्षित गेम खेलने के लिए कुछ खास पुलिस वालों ने सारा ड्रामा रचा और बड़ी रकम हड़प कर डकार तक नहीं ली।
पुलिस के ही भरोसमंद सूत्रों की मानें तो इस खेल में एक नहीं, दो थानों की पुलिस शामिल रही है और ये दोनों ही थाने नेशनल हाईवे के हैं। इनमें से एक थाने के प्रभारी का मेरठ के बदमाशों से गहरा ताल्‍लुक बताया जाता है।
पुलिस और बदमाशों की जुगलबंदी इस बात से भी जाहिर होती है कि सामान्‍य तौर पर ऐसी किसी वारदात के बाद सीमा विवाद पैदा करके पीड़ित को ‘फुटबॉल’ बना देने वाली पुलिस ने इस मामले में कतई हील-हुज्‍जत न करते हुए घटनास्‍थल हाईवे थाना क्षेत्र में मान लिया जबकि शहर कोतवाली की रिपोर्टिंग चौकी कृष्‍णानगर का भी कुछ क्षेत्र इसमें आता है।
सवाल नंबर पांच: आगरा और लखनऊ में बैठे पुलिस के आला अधिकारियों तक इस अपहरण की बात पहुंचने से पहले डीआईजी/एसएसपी मथुरा को इसकी भनक क्‍यों नहीं लगी ?
गौरतलब है कि पिछले महीने हुई अपहरण और फिरौती की इस बड़ी वारदात का पता आम जनता तथा डॉक्‍टर बिरादरी को भी तब लगा जब 5 फरवरी के प्रमुख अखबारों में यह खबर एडीजी आगरा जोन अजय आनंद के वर्जन सहित छपी।
आश्‍चर्य की बात यह है कि जो खबर छापी गई, वह भी अखबारों के आगरा कार्यालय से छपी थी न कि मथुरा से, और उसके लिए मथुरा के किसी पुलिस अधिकारी का वर्जन तक लेना जरूरी नहीं समझा गया।
और अंतिम सवाल: यदि किसी विशेष कारणवश ऐसा हुआ है तो भी समाचार छप जाने के बाद अब तक मथुरा पुलिस के किसी अधिकारी ने मुंह क्‍यों नहीं खोला ?
जैसा कि एडीजी आगरा जोन अजय आनंद ने कहा, यदि डॉक्‍टर व उसका परिवार अपहरण की एफआईआर दर्ज कराने में रुचि नहीं ले रहा था तो भी इलाका पुलिस को खुद एफआईआर दर्ज कर बदमाशों का चालान करना चाहिए था क्‍योंकि एक बड़ी रकम बरामद की गई थी।
समाचार के अनुसार उच्‍चाधिकारियों द्वारा इस पूरे मामले में मथुरा पुलिस से चार दिन पहले ही जवाब तलब किया जा चुका है, बावजूद इसके मथुरा पुलिस द्वारा न तो कोई कार्यवाही की गई है और न अपनी सफाई में कुछ कहा गया है।
उधर डॉक्‍टर से जुड़े सूत्रों का कहना है कि डॉक्‍टर ने कुछ दिनों पहले ही अपना निजी हॉस्‍पिटल बनाने के लिए कोई बड़ी जमीन महंगे इलाके में खरीदी है।
सूत्रों के मुताबिक इस वारदात का संबंध उस सौदे से भी हो सकता है क्‍योंकि बिना हील-हुज्‍जत आनन-फानन में 55 लाख रुपए की रकम बदमाशों तक कोई यूं ही नहीं पहुंचा सकता।
हो सकता है कि पुलिस को शामिल करने के पीछे भी बदमाशों की कुछ ऐसी ही मंशा रही हो जिससे सेफ गेम खेला जा सके और बाद के लिए कोई कांटा न बचे।
पूर्व में भी होती रही हैं ऐसी वारदातें
विश्‍व प्रसिद्ध इस धार्मिक जनपद में डॉक्‍टर्स के अपहरण और उनसे चौथ वसूली का यह कोई पहला केस नहीं है, और न पहली बार पुलिस तथा बदमाशों की मिलीभगत से रकम एंठने का मामला प्रकाश में आया है।
इससे पहले भी यह सब हुआ है और सीओ स्‍तर के पुलिस अधिकारी जेल भी गए हैं।
कुख्‍यात बदमाशों को मथुरा के डॉक्‍टर बहुत पहले से आकर्षित करते रहे हैं और ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब एक डॉक्‍टर ने ही दूसरे डॉक्‍टर की बदमाशों के लिए सुरागरसी अथवा मुखबिरी की है।
जो भी हो लेकिन इस पूरे घटनाक्रम से पर्दा उठना एक ओर जहां इसलिए जरूरी है जिससे पुलिस की छवि और प्रभावित न हो वहीं दूसरी ओर इसलिए भी आवश्‍यक है कि अन्‍य डॉक्‍टर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
http://legendnews.in/mathura-polices-silence-surrounded-by-questions-on-doctor-kidnapping-and-ransom-case/
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