मथुरा। गोवर्धन के प्रसिद्ध मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाले की FIR में वादी भी SIT खुद ही बनी है। SIT निरीक्षक कुंवर ब्रह्मप्रकाश ने अपने यहां क्राइम नंबर 0010/20120 पर यह मामला 11 सितंबर 2020 को शाम 6 बजकर 46 मिनट पर दर्ज कराया है।
इससे पहले SIT की जांच रिपोर्ट पर FIR दर्ज किए जाने के आदेशों को नकारने वाले मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाले के मुख्य आरोपी रमाकांत गोस्वामी अब भूमिगत हो गए हैं और इस प्रयास में लगे हैं कि अब भी किसी तरह SIT के IO को प्रभावित कर अपना नाम चार्जशीट में शामिल किए जाने से बच सकें।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार SIT के जांच अधिकारी अगले हफ्ते लखनऊ से गोवर्धन (मथुरा) आकर आगे की कार्यवाही अमल में लाएंगे।
मथुरा के प्रतिष्ठित ‘श्रीजी बाबा’ परिवार से ताल्लुक रखने वाले कथावाचक रमाकांत गोस्वामी को यूं तो दौलत, शोहरत और इज्जत सब-कुछ विरासत में मिला किंतु उनकी ‘हवस’ ने उन्हें आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां से वो कभी भी अपने ‘गिरोह’ सहित जेल की सलाखों के पीछे दिखाई देंगे।
दरअसल, न्यायिक व्यवस्था, प्रशासनिक अव्यवस्था और धार्मिक संस्थाओं की कुव्यवस्थाओं से उपजा कॉकस (Caucus) जब कोई दुरभि संधि करता है तब रमाकांत गोस्वामी जैसे लोग सुर्खियों में आते हैं।
चूंकि इनका उदय ही किसी दुरभि संधि के तहत होता है इसलिए आसानी से इनका बाल बांका नहीं हो पाता।
मुकुट मुखारबिंद मंदिर का मामला भी सिविल जज सीनियर डिवीजन चतुर्थ के न्यायालय में लंबित है परंतु तमाम शिकायतों के बावजूद वहां से रिसीवर रमाकांत द्वारा लगातार की जा रही कारगुजारियों पर कोई रोक नहीं लगाई गई जबकि न्यायिक व्यवस्था के ही अनुसार रिसीवर को प्रत्येक दो माह में मंदिर का हिसाब-किताब पूरे स्टेटमेंट और बिल-बाउचर सहित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
गोवर्धन के तत्कालीन एसडीएम नागेन्द्र कुमार सिंह ने अपनी जांच आख्या में लिखा है कि मंदिर के रिसीवर द्वारा भूमि क्रय करने, फूल बंगले और पेंशन आदि को लेकर न्यायालय की अनुमति लेने का कोई सबूत पेश नहीं किया गया। जिससे परिलक्षित होता है कि मंदिर के रिसीवर ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करते हुए घोर लापरवाही पूर्वक मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग किया।
एसडीएम की रिपार्ट से साफ जाहिर है कि गोवर्धन स्थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप होने बावजूद रिसीवर रमाकांत गोस्वामी अब तक खुली हवा में सांस कैसे ले पाए और यथासंभव सबूतों से भी छेड़छाड़ करने में किस तरह लगे रहे।
मीडिया को भी प्रभावित करने में सफल
एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर के रिसीवर की गद्दी पर बैठकर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने वाले रमाकांत गोस्वामी को मीडिया का मुंह बंद कराने में भी महारत हासिल है लिहाजा समय-समय पर मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर की हैसियत से मीडिया को लाखों रुपए के विज्ञापन देकर ऑब्लाइज करने में काफी हद तक सफल रहे।
हालांकि अब उन विज्ञापनों पर हुए खर्च का हिसाब-किताब भी सौंपना होगा और यह बताना होगा कि मंदिर के पैसों को अखबारों के विज्ञापन पर खर्च करने का अधिकार उन्हें किसने दिया।
SIT की जांच के दौरान भी लूटते रहे मंदिर का पैसा
रिसीवर रमाकांत गोस्वामी और उनके गिरोह के दुस्साहस का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि NGT के निर्देश और शासनादेशों से की जा रही SIT जांच के दौरान भी वह यथासंभव मंदिर का पैसा लूटते रहे।
कोरोना जैसी महामारी के बीच जब समूचा देश ‘लॉकडाउन’ चल रहा था तब भी मुकुट मुखारबिंद मंदिर में बने बनाए फर्श उखड़वाकर उनके स्थान पर नए फर्श बनवाए जा रहे थे।
संभवत: इसीलिए मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटाले को इस स्टेज तक ले जाने वाले सभी शिकायतकर्ता SIT की FIR में न तो मात्र 12 लोगों के नाम शामिल किए जाने से से संतुष्ट हैं और न घोटाले की रकम से।
शिकायतकर्ताओं की बात पर भरोसा करें तो यह पूरा घपला करीब सौ करोड़ रुपए का है और इसमें शामिल लोगों की संख्या भी एक दर्जन न होकर लगभग पांच दर्जन है जिसमें एक न्यायिक अधिकारी भी आरोपी हो सकते हैं।
अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को कुछ दिन पहले तक पूरी तरह खारिज करने वाले रिसीवर रमाकांत गोस्वामी भी इस सच्चाई से भलीभांति वाकिफ हैं और इसलिए अब न तो मीडिया के सामने आ रहे हैं और न सार्वजनिक तौर पर दिखाई दे रहे हैं।
बावजूद इसके कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इतना सब होने पर भी उनके खिलाफ कोई खबर छापने में दिलचस्पी नहीं ले रहा और इस इंतजार में है कि विज्ञापन की शक्ल में कोई सफाई जनता के समक्ष रख सके।
राजनीतिक संरक्षण की भी चाहत
आधा दर्जन फेसबुक अकाउंट के ‘धनी’ रमाकांत गोस्वामी ने अपनी ‘वॉल’ पर चस्पा तस्वीरों के जरिए तो खुद को भाजपायी साबित करने की कोशिश की ही है, साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों पटुका पहनकर सम्मानित होने का फोटो भी लगा रखा है।
रिसीवर रमाकांत द्वारा ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा क्या रही होगी, इसे समझने के लिए बहुत दिमाग लगाने की जरूरत शायद ही हो।
मथुरा के प्रतिष्ठित ‘श्रीजी बाबा’ परिवार से ताल्लुक रखने वाले कथावाचक रमाकांत गोस्वामी को यूं तो दौलत, शोहरत और इज्जत सब-कुछ विरासत में मिला किंतु उनकी ‘हवस’ ने उन्हें आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां से वो कभी भी अपने ‘गिरोह’ सहित जेल की सलाखों के पीछे दिखाई देंगे।
दरअसल, न्यायिक व्यवस्था, प्रशासनिक अव्यवस्था और धार्मिक संस्थाओं की कुव्यवस्थाओं से उपजा कॉकस (Caucus) जब कोई दुरभि संधि करता है तब रमाकांत गोस्वामी जैसे लोग सुर्खियों में आते हैं।
चूंकि इनका उदय ही किसी दुरभि संधि के तहत होता है इसलिए आसानी से इनका बाल बांका नहीं हो पाता।
मुकुट मुखारबिंद मंदिर का मामला भी सिविल जज सीनियर डिवीजन चतुर्थ के न्यायालय में लंबित है परंतु तमाम शिकायतों के बावजूद वहां से रिसीवर रमाकांत द्वारा लगातार की जा रही कारगुजारियों पर कोई रोक नहीं लगाई गई जबकि न्यायिक व्यवस्था के ही अनुसार रिसीवर को प्रत्येक दो माह में मंदिर का हिसाब-किताब पूरे स्टेटमेंट और बिल-बाउचर सहित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
गोवर्धन के तत्कालीन एसडीएम नागेन्द्र कुमार सिंह ने अपनी जांच आख्या में लिखा है कि मंदिर के रिसीवर द्वारा भूमि क्रय करने, फूल बंगले और पेंशन आदि को लेकर न्यायालय की अनुमति लेने का कोई सबूत पेश नहीं किया गया। जिससे परिलक्षित होता है कि मंदिर के रिसीवर ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करते हुए घोर लापरवाही पूर्वक मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग किया।
एसडीएम की रिपार्ट से साफ जाहिर है कि गोवर्धन स्थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप होने बावजूद रिसीवर रमाकांत गोस्वामी अब तक खुली हवा में सांस कैसे ले पाए और यथासंभव सबूतों से भी छेड़छाड़ करने में किस तरह लगे रहे।
मीडिया को भी प्रभावित करने में सफल
एक विश्व प्रसिद्ध मंदिर के रिसीवर की गद्दी पर बैठकर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने वाले रमाकांत गोस्वामी को मीडिया का मुंह बंद कराने में भी महारत हासिल है लिहाजा समय-समय पर मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर की हैसियत से मीडिया को लाखों रुपए के विज्ञापन देकर ऑब्लाइज करने में काफी हद तक सफल रहे।
हालांकि अब उन विज्ञापनों पर हुए खर्च का हिसाब-किताब भी सौंपना होगा और यह बताना होगा कि मंदिर के पैसों को अखबारों के विज्ञापन पर खर्च करने का अधिकार उन्हें किसने दिया।
SIT की जांच के दौरान भी लूटते रहे मंदिर का पैसा
रिसीवर रमाकांत गोस्वामी और उनके गिरोह के दुस्साहस का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि NGT के निर्देश और शासनादेशों से की जा रही SIT जांच के दौरान भी वह यथासंभव मंदिर का पैसा लूटते रहे।
कोरोना जैसी महामारी के बीच जब समूचा देश ‘लॉकडाउन’ चल रहा था तब भी मुकुट मुखारबिंद मंदिर में बने बनाए फर्श उखड़वाकर उनके स्थान पर नए फर्श बनवाए जा रहे थे।
संभवत: इसीलिए मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटाले को इस स्टेज तक ले जाने वाले सभी शिकायतकर्ता SIT की FIR में न तो मात्र 12 लोगों के नाम शामिल किए जाने से से संतुष्ट हैं और न घोटाले की रकम से।
शिकायतकर्ताओं की बात पर भरोसा करें तो यह पूरा घपला करीब सौ करोड़ रुपए का है और इसमें शामिल लोगों की संख्या भी एक दर्जन न होकर लगभग पांच दर्जन है जिसमें एक न्यायिक अधिकारी भी आरोपी हो सकते हैं।
अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को कुछ दिन पहले तक पूरी तरह खारिज करने वाले रिसीवर रमाकांत गोस्वामी भी इस सच्चाई से भलीभांति वाकिफ हैं और इसलिए अब न तो मीडिया के सामने आ रहे हैं और न सार्वजनिक तौर पर दिखाई दे रहे हैं।
बावजूद इसके कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इतना सब होने पर भी उनके खिलाफ कोई खबर छापने में दिलचस्पी नहीं ले रहा और इस इंतजार में है कि विज्ञापन की शक्ल में कोई सफाई जनता के समक्ष रख सके।
राजनीतिक संरक्षण की भी चाहत
आधा दर्जन फेसबुक अकाउंट के ‘धनी’ रमाकांत गोस्वामी ने अपनी ‘वॉल’ पर चस्पा तस्वीरों के जरिए तो खुद को भाजपायी साबित करने की कोशिश की ही है, साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों पटुका पहनकर सम्मानित होने का फोटो भी लगा रखा है।
रिसीवर रमाकांत द्वारा ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा क्या रही होगी, इसे समझने के लिए बहुत दिमाग लगाने की जरूरत शायद ही हो।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी