शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

योगी कभी मोदी नहीं हो सकते, जानिए क्‍यों…

जब से गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्‍यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बने हैं, लगभग तभी से अक्‍सर उनकी तुलना प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी से की जाती रही है। मोदी-योगी का नाम लोग कुछ इस अंदाज में लेते हैं जैसे किन्‍हीं सफल संगीतकारों की जोड़ी का नाम साथ-साथ लिया जाता है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्‍या योगी कभी मोदी के स्‍वाभाविक उत्तराधिकारी हो सकते हैं, क्‍या योगी कभी मोदी हो सकते हैं ?
यूपी में महंत योगी आदित्‍यनाथ की सरकार अगले महीने अपने कार्यकाल का आधा समय बिता लेगी।
नि:संदेह व्‍यक्‍तिगत रूप से योगी जी की कार्य के प्रति निष्‍ठा, समर्पण और ईमानदारी पर कोई प्रश्‍नचिन्‍ह नहीं लगा सकता परंतु उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों की न सिर्फ सत्‍यनिष्‍ठा संदेह के घेरे में है बल्‍कि उनकी ईमानदारी पर भी सवालिया निशान लग चुके हैं।
योगी कैबिनेट के विस्‍तार से ठीक पहले कई मंत्रियों का इस्‍तीफा इस ओर इशारा भी करता है, हालांकि वजहें दूसरी भी बताई जा रही हैं।
बहरहाल, वजह चाहे जो हों परंतु इसमें कोई दोराय नहीं कि लाख प्रयासों के बावजूद योगी सरकार प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था में ऐसा कोई उल्‍लेखनीय सुधार नहीं ला पाई जिससे लोग बेखौफ हुए हों।
दावे-प्रतिदावों की बात न की जाए तो संभवत: योगी आदित्‍यनाथ भी इस सच्‍चाई से अवगत हैं कि प्रदेश की कानून-व्‍यवस्‍था पूरी तरह पटरी पर नहीं आ सकी है। सीएम योगी द्वारा नौकरशाहों को बार-बार चेतावनी देने और पूर्ववर्ती सरकारों की तरह लगातार ट्रांसफर-पोस्‍टिंग किए जाने से स्‍थिति स्‍पष्‍ट हो जाती है।
तो क्‍या योगी आदित्‍यनाथ भी उसी रटे-रटाए ढर्रे पर चल पड़े हैं, जिन पर चलकर मुलायम, माया एवं अखिलेश की सरकारें चला करती थीं और सुशासन कायम करने में नाकाम रहने के कारण सिर्फ तबादलों से तब्‍दीली का अहसास कराने की कोशिश करती रहती थीं।
गौर से देखें तो हाल ही में किए गए तबादले कुछ इसी तरह के संकेत दे रहे हैं।
03 अगस्‍त की रात योगी सरकार ने बुलंदशहर के SSP एन कोलांची को थानेदारों की तैनाती में अनियमितता बररतने पर निलंबित कर दिया। अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कानून-व्यवस्था की समीक्षा के दौरान थानेदारों की तैनाती में अनियमितता की बात सामने आई थी।
गोपनीय जांच के दौरान पाया गया कि बुलंदशहर में दो थाने ऐसे थे जहां एसएसपी एन. कोलांची ने थानेदारों को सात दिन से भी कम समय के लिए तैनाती दी। एक थाना ऐसा था जिस पर मात्र 33 दिन में थानेदार को बदल दिया गया। यह डीजीपी की निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत था।
इतना ही नहीं, कोलांची ने दो ऐसे थानेदारों को बतौर प्रभारी तैनात कर दिया जिनको पूर्व में परिनिंदा प्रविष्टि दी जा चुकी थी।
अपर मुख्‍य सचिव ने अपनी बात चाहे जितनी चाशनी में लपेट कर रखी हो परंतु इसका निष्‍कर्ष यही निकलता है कि एन. कोलांची रिश्‍वत लेकर थानों का चार्ज बांट रहे थे।
आईपीएस अधिकारी एन. कोलांची की ऐसी कार्यप्रणाली इससे पहले क्‍या योगी सरकार के संज्ञान में नहीं रही होगी, और यदि नहीं रही तो क्‍यों नहीं रही?
यह बड़ा सवाल है, क्‍योंकि कोई अधिकारी रातों-रात भ्रष्‍ट नहीं हो जाता। भ्रष्‍टाचार के बीज उसके अंदर बहुत पहले अंकुरित हो जाते हैं, बाद में शासन-सत्ता के सहयोग का खाद-पानी ही उन्‍हें इस मुकाम तक पहुंचाता है।
मात्र 10-12 घंटों में 6 हत्‍याएं हो जाने पर 19 अगस्‍त को प्रयागराज (इलाहाबाद) के एसएसपी अतुल शर्मा निलंबित कर दिए गए। अतुल शर्मा की कार्यप्रणाली से स्‍वयं योगी आदित्‍यनाथ असंतुष्‍ट थे और पूर्व में उन्‍हें चेतावनी भी दे चुके थे।
आईपीएस अधिकारी अतुल शर्मा को प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने अपनी रिपोर्ट में बाकायदा ‘निकम्‍मा’ अधिकारी घोषित किया है। जाहिर है कि अतुल शर्मा भी एकाएक निकम्‍मे नहीं हो गए होंगे, बावजूद इसके उन्‍हें प्रयागराज जैसे बड़े और महत्‍वपूर्ण जिले का प्रभार कैसे सौंप दिया गया।
अब 2010 बैच के आईपीएस अफसर सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज को प्रयागराज का नया एसएसपी बनाया गया है। बिहार के मूल निवासी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज की कार्यप्रणाली कैसी है, वो कितने काबिल अफसर हैं, इसकी जानकारी किसी भी उस जनपद से ली जा सकती है जहां वो पूर्व में तैनात रहे हैं। शायद ही वो कभी कहीं अपनी विशेष छाप छोड़ पाए हों, तो फिर अब उन्‍हें प्रयागराज क्‍यों भेज दिया गया।
इससे पहले वह धर्मनगरी मथुरा के एसएसपी थे किंतु मात्र 5 महीनों में उन्‍हें मथुरा से एसटीएफ में भेज दिया गया। उनके स्‍थान पर पीएसी से शलभ माथुर को भेजा गया ।
20 अगस्‍त को यानी कल फिर 14 आईपीएस अफसरों का तबादला किया गया है।
03 अगस्‍त से लेकर 20 अगस्‍त तक किए गए ये आईपीएस अधिकारियों के तबादले तो मात्र उदाहरण हैं अन्‍यथा योगीराज आने के बाद कमोबेश यही स्‍थिति न केवल आईपीएस के बल्‍कि आईएएस अधिकारियों के तबादलों में भी रही है।
तो क्‍या मात्र तबादलों से किसी अधिकारी की कार्यक्षमता, योग्‍यता और नेकनीयत बदल जाती है, यदि नहीं तो आखिर सिर्फ तबादले ही क्‍यों ?
यदि कोई अधिकारी काबिल एवं नेकनीयत है तो वह हर जगह अपनी योग्‍यता साबित करेगा, और यदि वह अकर्मण्‍य या भ्रष्‍ट है तो हर जगह विभाग का सिर नीचा करेगा व वर्दी तथा सरकार पर दाग लगवाएगा।
इन हालातों में पूछा जा सकता है कि किसी अधिकारी को योग्‍यता के पैमाने पर खरा उतरने के बाद भी बार-बार तबादले किसलिए झेलने पड़ते हैं और कुछ अधिकारी सार्वजनिक रूप से भ्रष्‍टाचारी एवं नाकाबिल साबित होने के बावजूद लगातार चार्ज पर क्‍यों बने रहते हैं।
अगर कोई अधिकारी काबिल, ईमानदार, कर्तव्‍यनिष्‍ठ एवं सक्षम है तो उसे हटाया क्‍यों जाता है और नाकाबिल, भ्रष्‍ट तथा निकम्‍मे अधिकारी अच्‍छी तैनाती कैसे पा जाते हैं।
यहां यह कहना कतई अप्रासांगिक होगा कि अधिकारियों की शौहरत से कोई निजाम अपरिचित रह सकता है क्‍योंकि यदि ऐसा है तो इसका सीधा मतलब है कि वह स्‍वयं उस पद के योग्‍य नहीं है।
सर्वविदित है कि पुलिस और प्रशासन के ही नहीं, न्‍याय व्‍यवस्‍था के भी अधिकारियों की शौहरत उनके तैनाती स्‍थल पर उनके चार्ज लेने से पहले पहुंच जाती है। यही कारण है कि अधीनस्‍थ अधिकारी तत्‍काल खुद को उनके अनुरूप ढाल लेते हैं और उसी मोड में काम करने लगते हैं।
योगी आदित्‍यनाथ उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का भरसक प्रयास क्‍यों न कर रहे हों परंतु नतीजे बहुत अधिक उम्‍मीद नहीं जगाते। आंकड़ों की बाजीगरी को उठाकर एक ओर रख दिया जाए तो बिना दूरबीन के देखा जा सकता है कि ब्‍यूरोक्रेसी पर योगी कभी मजबूत पकड़ बना ही नहीं पाए।
इसी प्रकार उनकी कैबिनेट में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो भ्रष्‍ट, निकम्‍मे और अयोग्‍य अधिकारियों को संरक्षण दिए हुए हैं। ये अधिकारी उनके संरक्षण में आम जनता तो क्‍या, सभ्रांत लोगों के साथ भी अशिष्‍ट व्‍यवहार करने से नहीं चूकते।
मायाराज से लेकर योगीराज तक में इनकी अच्‍छे-अच्‍छे पदों पर तैनाती यह साबित करने के लिए काफी है कि शासन-सत्ता के अंदर इनकी कितनी गहरी पैठ है।
योगीराज की तुलना में यदि मोदीराज को देखें तो नजारा ठीक उलटा दिखाई देगा। मोदी जी ने अपने चारों ओर ऐसे अधिकारियों का सर्किल बना रखा है जो अपनी ड्यूटी के प्रति किसी भी हद तक जाने को तत्‍पर नजर आते हैं।
सरकार का निर्णय कितना ही जोखिमभरा क्‍यों न हो, वह मोदी जी के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते हैं और कठिन से कठिन जिम्‍मेदारी का निर्वाह करने में नहीं हिचकते।
कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाने के बाद की स्‍थितियों में इन अधिकारियों की कर्मठता इसका ज्‍वलंत उदाहरण है।
बेशक योगी आदित्‍यनाथ की मंशा उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की रही होगी परंतु धरातल पर देखें तो अभी उसके आसार दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहे।
योगी जी के पास अब सिर्फ ढाई साल का समय शेष है। इसी दौरान उन्‍हें कोई इतनी बड़ी लकीर खींचनी होगी जिससे आमूल-चूल परिवर्तन की राह नजर आती हो। अन्‍यथा मोदी की तरह योगीराज दोहरा पाना असंभव न सही परंतु कठिन जरूर हो जाएगा।
और हां, तुकबंदी के लिए पार्टीजन योगी-मोदी की तुलना भले ही कर लें परंतु तुलनात्‍मक अध्‍ययन करने बैठेंगे तो पता लगेगा कि योगी का मोदी बनना मुमकिन नहीं है क्‍योंकि योगी जी अब तक जनता को वो फील नहीं करा सके हैं।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गोवर्धन के मामले में NGT का सख्‍त रवैया बरकरार: DM और SSP को दो दिन में व्यवस्थाएं दुरुस्‍त करने के निर्देश, सीएम के सचिव व मंडलायुक्‍त से जवाब तलब

मथुरा। गोवर्धन परिक्रमा मार्ग की अव्यवस्थाओं को लेकर आज हुई सुनवाई के दौरान नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने मथुरा के प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी से पूर्व संपूर्ण व्‍यवस्‍थाएं दुरुस्‍त कराने का आदेश दिया है।
कोर्ट कमिश्नर के अनुसार गिरिराज परिक्रमा मार्ग में अतिक्रमण पर भी न्यायालय ने जिलाधिकारी मथुरा को कड़ी कार्यवाही करने के आदेश दिए हैं।
गौरतलब है कि गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में व्याप्त भयंकर गंदगी सहित अन्य सभी व्यवस्थाएं पूरी तरह ध्वस्त हो जाने को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी मथुरा सर्वज्ञराम मिश्र, एसएसपी मथुरा शलभ माथुर और एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह को आज की सुनवाई के लिए तलब किया था।
गिरिराज परिक्रमा संरक्षण संस्थान द्वारा दाखिल याचिका पर आज की सुनवाई के दौरान NGT की पीठ के न्यायाधीश रघुवेन्द्र सिंह राठौड़ व सत्यवान सिंह गब्र्याल ने मथुरा जिला प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र से कहा, कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट से साफ जाहिर है कि मुड़िया पुर्णिमा मेले में साफ सफाई की व्यवस्था सब ज्यादा खराब थी।
न्यायालय में याचिकाकर्ता आनंद गोपाल दास, सत्य प्रकाश मंगल की और से मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता व पर्यावरण विद एम सी मेहता और सार्थक चतुर्वेदी सहित कात्यायनी ने पीठ को बताया कि कल रात तक भी साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं थी। उन्‍होंने ठीक एक दिन पुराने छाया चित्र दिखाकर न्यायालय को अवगत कराया कि परिक्रमा मार्ग में साफ-सफाई की अब तक कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है।
इस पर उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आंनद ने कहा कि सफाई व्यवस्था बनाए रखने के लिये भंडारे व डी जे बंद करवा दिए गए हैं। पिंकी आंनद की इस सफाई पर न्यायालय ने उन्‍हें कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि वह जिला अधिकारी को बचाने का प्रयास ना करें। न्‍यायालय ने वहीं मौजूद डीपीआरओ को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि आपको शर्म आनी चाहिए, आप ही की वजह से सब व्यवस्था खराब हुई है, जिसे कि जिला अधिकारी भी बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
न्यायालय ने एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह को भी कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि भंडारे की परमीशन किस प्रावधान के अंतर्गत दी जा रही है और उनको देते वक्त किन-किन नियमों एवं शर्तों का ध्यान रखा गया है। कोर्ट ने एसडीएम से जब यह पूछा कि पिछली बार कितने भंडारे लगे थे, उनकी सूची है तो वह ऐसी कोई सूची उपलब्‍ध नहीं करा सके। सूची रजिस्टर ना लाने के लिए भी कोर्ट ने एसडीएम को कड़ी फटकार लगाते हुए अगली तारीख पर सभी दस्तावेजों के साथ उपस्थित रहने का आदेश दिया।
इसके अलावा न्यायालय ने जिलाधिकारी मथुरा को दो दिन के अंदर सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त करने को कहा है तथा कृष्‍ण जन्म अष्टमी से पूर्व साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया है।
कोर्ट कमिश्नर द्वारा दी गई जानकारी के बाद कोर्ट ने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ जिलाधिकारी मथुरा को कड़ी कार्यवाही करने के आदेश दिए।
इसी के साथ वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को न्यायालय ने त्योहार से पूर्व ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने की सख्त हिदायत दी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी ने न्यायालय को अवगत कराया कि गोवर्धन के एक पत्रकार को वहां के एक पुलिस अधिकारी द्वारा इस बात पर धमकाने का प्रयास किया गया कि वो NGT की बहुत खबर लिख रहा है, इस पर न्यायालय ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को कड़ी हिदायत देते हुए कहा कि इस तरह की घटना सामने नहीं आनी चाहिए नहीं तो हम कड़ी कार्यवाही करेंगे। न्यायालय ने मामले की अगली तारीख 28 अगस्त तय की है ।
-Legend News

गोवर्धन की दुर्दशा पर NGT सख्‍त: कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी से पहले तलब किए डीएम, एसएसपी और एसडीएम

गोवर्धन (मथुरा)। गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में व्याप्त भयंकर गंदगी सहित अन्य सभी व्यवस्थाएं पूरी तरह ध्वस्त हो जाने को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी मथुरा सर्वज्ञराम मिश्र, एसएसपी मथुरा शलभ माथुर और एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह को अगली सुनवाई 19 अगस्‍त पर कोर्ट में तलब किया है।
दरअसल, गोवर्धन परिक्रमा संरक्षण संस्थान से जुड़े मामले की आज नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में तत्काल सुनवाई की गई क्‍योंकि NGT को गोवर्धन की दुर्दशा से प्रसिद्ध पर्यावरणविद और इसी मामले से पूर्व में जुड़े एम सी मेहता ने ई मेल के जरिए अवगत कराया था।
पर्यावरणविद मेहता और इस मामले को देख रहे अधिवक्‍ता सार्थक चतुर्वेदी ने NGT को मथुरा के मीडिया द्वारा की गई समय-समय पर गोवर्धन की बदहाली संबंधी उस रिपोर्टिंग से भी अवगत कराया जिससे जाहिर होता था कि जिला प्रशासन किस कदर इस मामले में लापरवाही बरतते हुए कोर्ट के आदेश-निर्देशों की खुली अवहेलना कर रहा है। गोवर्धन में सभी व्‍यवस्‍थाएं ध्‍वस्‍त हो चुकी हैं जिससे कि वहां के पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है।
उल्‍लेखनीय है कि पूर्व में इस मामले को पर्यावरणविद एम सी मेहता ही देख रहे थे।
पर्यावरणविद एम सी मेहता की तरफ से मौजूद महक रस्तोगी ने न्यायालय को अवगत कराया, क्योंकि एम सी मेहता न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सके इसलिए उन्होंने ई मेल द्वारा इस मामले से जुड़ी ताजा जानकारी न्यायालय को भेजी है तथा न्यायालय से अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग भी की है ।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अधिवक्ता पिंकी आनंद को जब याचिकाकर्ता आनंद गोपाल दास व सत्य प्रकाश मंगल के अधिवक्ता सार्थक चतुर्वेदी ने सभी प्रमुख अखबारों की प्रति और अन्‍य मीडिया में प्रसारित खबरों की जानकारी दी तो अधिवक्ता पिंकी आनंद ने कोर्ट से कहा कि मीडिया में तो कुछ भी आ जाता है।
अधिवक्ता पिंकी आनंद की इस दलील पर न्यायाधीश राघवेन्द्र सिंह राठौर ने उन्‍हें कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि फिर क्यों ना वहां की स्थिति आप खुद जाकर देखें। न्यायालय ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए कहा, चूंकि 23 तारीख की जन्माष्टमी है और गोवर्धन में अव्यवस्थाओं का अंबार लगा है इसलिये जिला अधिकारी मथुरा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मथुरा व एसडीम गोवर्धन को 19 अगस्त के लिये तलब किया जाता है। मामले की अगली सुनवाई अब 19 अगस्त को होगी।
-Legend News

बुधवार, 7 अगस्त 2019

ये हैं रमाकांत गोस्‍वामी…नाम तो सुना ही होगा, अब कारनामे भी सुन लीजिए…

जब न्‍यायिक व्‍यवस्‍था, प्रशासनिक अव्‍यवस्‍था और धार्मिक संस्‍थाओं की कुव्‍यवस्‍थाओं से उपजा कॉकस (Caucus) कोई दुरभि संधि करता है तब रमाकांत गोस्‍वामी जैसे लोग सुर्खियों में आते हैं।
चूंकि इनका उदय ही किसी दुरभि संधि के तहत होता है इसलिए आसानी से इनका बाल बांका नहीं हो पाता।
यही कारण है कि गोवर्धन स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप होने बावजूद रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी खुली हवा में सांस ले रहे हैं और यथासंभव सबूतों से भी छेड़छाड़ कर रहे हैं।
रमाकांत गोस्‍वामी के कारनामों की जानकारी देने के लिए 13 मई 2018 को इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन नामक एनजीओ ने बाकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि अपर सिविल जज प्रथम मथुरा के आदेश से गोवर्धन स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर नियुक्‍त किए गए रमाकांत गोस्‍वामी ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए की संपत्ति हड़पी है।
एनजीओ के चेयरमैन रजत नारायण के अनुसार रमाकांत गोस्‍वामी का कारनामा ठीक उसी तरह का है जिस तरह का कारनामा करने पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा आज तमाम जांच एजेंसियों के चक्‍कर काट रहे हैं।
इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्‍ति में बताया गया कि वर्ष 2010 में रमाकांत गोस्‍वामी ने न्‍यायालय के समक्ष इस आशय का एक प्रस्‍ताव रखा कि मुकुट मुखारबिंद मंदिर का प्रबंधतंत्र मंदिर के पैसों से एक अस्‍पताल बनवाना चाहता है।
रमाकांत गोस्‍वामी का यह प्रस्‍ताव न्‍यायालय के पीठासीन अधिकारी को इतना पसंद आया कि उन्‍होंने न सिर्फ मंदिर के पैसों से अस्‍पताल बनवाने का प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लिया बल्‍कि रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी को ही उसके लिए आवश्‍यक जमीन खरीदने के अधिकार भी सौंप दिए।
रमाकांत गोस्‍वामी यही तो चाहते थे इसलिए उन्‍होंने तत्‍काल एक जमीन का इकरार नामा पहले तो अपने खास मित्रों के नाम मात्र 40 लाख रुपयों में करवाया और फिर मात्र 4 महीने बाद उसी जमीन को उसके असली मालिक से 2 करोड़ 30 लाख रुपए में मंदिर के नाम खरीद लिया।
कारनामे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए रमाकांत गोस्‍वामी ने अपने मित्रों को द्वितीय पक्ष दिखा दिया जबकि जमीन के असली मालिक को प्रथम पक्ष बताया।
इस तरह सिर्फ चार महीने के अंतराल में मंदिर को बड़ी चालाकी के साथ करीब एक करोड़ 90 लाख रुपए का चूना लगा दिया गया।
रमाकांत गोस्‍वामी यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्‍होंने मंदिर को विस्‍तार देने की आड़ में 5 अगस्‍त 2011 को अपने मित्रों से ‘खास महल’ नामक एक संपत्ति 2 करोड़ 70 लाख रुपयों में खरीदी।
वर्ष 2011 में अपनी साजिश सफल हो जाने पर रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी के हौसले बुलंद हो गए अत: उन्‍होंने वर्ष 2014-15 में फिर मंदिर की ढाई करोड़ रुपयों से अधिक की धनराशि का गबन किया।
इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में पौने चार करोड़ का, 16-17 में पौने छ: करोड़ रुपयों का घोटाला किया गया।
इतना सब हो जाने पर भी कोई कार्यवाही होते न देख इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन ने 05 जून 2018 को तहसील दिवस में एक शिकायती पत्र दिया, जिसके बाद जिलाधिकारी ने समस्‍त प्रकरण की जांच एसडीएम गोवर्धन के हवाले कर दी।
इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन के अध्‍यक्ष ने बताया कि उसके बाद से लेकर अब तक वह इस संबंध में डीएम मथुरा को सात पत्र और लिख चुके हैं किंतु फिलहाल कोई नतीजा सामने नहीं आया।
हां, इतना जरूर हुआ कि एनजीओ के अध्‍यक्ष रजत नारायण ने गत दो दिन पूर्व जब डीएम से मुलाकात की तो उन्‍होंने रजत नारायण को अवगत कराया कि एनजीओ द्वारा रमाकांत गोस्‍वामी पर लगाए गए सभी आरोप एसडीएम की जांच में प्रथम दृष्‍टया सही पाये गए हैं।
गौरतलब है कि इन्‍हीं घोटालों की शिकायत इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन ने एनजीटी में भी की थी, जिसके बाद एनजीटी ने एसआईटी का गठन कर जांच कराने के आदेश दिए थे।
एसआईटी की टीम अपनी जांच के संदर्भ में इन दिनों मथुरा आई हुई है और उसने रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी से पूछताछ भी की है।
रमाकांत गोस्‍वामी ने भी एसआईटी द्वारा उनसे की गई पूछताछ की पुष्‍टि करते हुए बताया कि जांच कमेटी ने उनसे कुछ दस्‍वावेजों की भी मांग की है जिन्‍हें वह आज उपलब्‍ध कराने वाले हैं।
इससे पहले दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल शर्मा ने मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप लगाया था।
इन आरोपों की जांच भी एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह द्वारा की गई और उन्‍होंने प्रथम दृष्‍ट्या रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर लगाए गए आरोपों को सही पाया।
गुरूपूर्णिमा पर दिया गया विज्ञापन भी चर्चा में 
इस बीच गुरूपूर्णिमा पर रमाकांत गोस्‍वामी द्वारा आगरा से प्रकाशित एक प्रमुख अखबार को मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर की हैसियत से पूरे पन्‍ने का मुखपृष्‍ठ कलर विज्ञापन देना भी चर्चित है।
उस विज्ञापन की चर्चा के पीछे रमाकांत गोस्‍वामी की हैसियत है। लोग पूछ रहे हैं कि आखिर उस विज्ञापन का भुगतान अखबार को किस मद से किया गया।
बताया जाता है कि मंदिर के लिए निर्धारित न्‍यायिक व्‍यवस्‍था के अनुसार रिसीवर को मात्र 10 हजार रुपए खर्च करने का अधिकार है। इससे ऊपर के सभी खर्चों के लिए न्‍यायालय की इजाजत लेना जरूरी है।
इन हालातों में सवाल यह उठ रहे हैं कि रमाकांत गोस्‍वामी ने रिसीवर की हैसियत से लाखों रुपए का विज्ञापन कैसे छपवा दिया, और उसका भुगतान किस तरह किया।
रमाकांत गोस्‍वामी का इस विषय में कहना है कि उन्‍होंने तो अखबार को विज्ञापन के एवज में मात्र 5 हजार रुपए का भुगतान किया है।
ज्‍यादा पूछने पर वह यह भी कहते हैं कि उनका अपना अखबार पर कुछ बकाया चला आ रहा था।
रमाकांत गोस्‍वामी का अखबार पर कैसा बकाया हो सकता है और उसे अखबार के मालिकान विज्ञापन की धनराशि में क्‍यों एडजस्‍ट करेंगे, यह बात रमाकांत गोस्‍वामी के अलावा शायद ही किसी अन्‍य को हजम होगी।
शायद इसीलिए रमाकांत गोस्‍वामी यह कहकर पल्‍ला झाड़ लेते हैं कि अखबार ने कैसे इतना बड़ा विज्ञापन 5 हजार रुपए में छापा, यह अखबार ही बता सकता है। मैंने तो 05 हजार रुपए का ही भुगतान किया है।
जांच और लूट साथ-साथ जारी 
इस पूरे घटनाक्रम का सबसे रोचक पहलू यह है कि एक ओर जहां इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन की शिकायत और एनजीटी के आदेश-निर्देशों पर रमाकांत गोस्‍वामी के खिलाफ जांच चल रही है वहीं रमाकांत गोस्‍वामी रिसीवर की हैसियत से न सिर्फ लगातार अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं बल्‍कि मंदिर की धनराशि का मनमाना इस्‍तेमाल भी कर रहे हैं जो एक और किसी बड़े घोटाले की साजिश का हिस्‍सा हो सकता है।
हालांकि इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन के अध्‍यक्ष रजत नारायण का कहना है कि वह सारे सबूतों के साथ केंद्रीय सतर्कता आयोग भी गए थे किंतु वहां से बताया गया कि उसके द्वारा केवल केंद्रीय कर्मचारियों से जुड़े मामलों का संज्ञान लिया जा सकता है। निजी संस्‍थाओं का संज्ञान वह नहीं ले सकता। इसके बावजूद रजत नारायण निराश नहीं हैं। वो कहते हैं कि हमारी संस्‍था लगातार इस भ्रष्‍टाचार को सक्षम अधिकारियों के समक्ष उठाती रहेगी जिससे रमाकांत को अविलंब हिरासत में लेकर कठोर कार्यवाही की जा सके और जल्‍द से जल्‍द मुकुट मुखारबिंद मंदिर की संपत्ति को लूटने का सिलसिला बंद हो।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

बेचारे ‘खिलाड़ी’ को ‘मदारी’ ने “लॉलीपॉप” दिखाकर बना दिया “बड़े वाला”

व्यंग्य: बेचारे मियां बड़ी हसरतों के साथ झोली उठाकर अमेरिका पहुंचे थे। सोच रहे थे कि ”दे दाता के नाम तुझको अल्‍ला रखे” की तर्ज पर उससे फरियाद करेंगे और झोली भरकर लौट आएंगे।
उन्‍हें शायद इस बात का इल्‍म ही नहीं था कि अमेरिका में उनका वास्‍ता सृष्टि के जिस जीव से पड़ने वाला है, वह राष्‍ट्रपति होने से पहले बहुत स्‍याना व्‍यापारी भी है। वह उनकी तरह खिलाड़ी नहीं है, मदारी है।
मदारी ने खिलाड़ी को दूर एक लॉलीपॉप दिखाई, और कहा कि यदि तुम तालिबान को हमसे समझौता वार्ता की टेबल पर ले आओ तो वह लॉलीपॉप तुम्‍हारी। लॉलीपॉप देखकर मियां इमरान के मुंह में पानी आ गया। लार टपकने लगी।
टपकती लार लेकर अपने मुल्‍क वापस लौटे तो बोले, ऐसा लग रहा है जैसे विश्‍वकप जीतकर आया हूं।
इधर जब भारत को पता लगा कि मदारी ने खिलाड़ी को उंगली के इशारे से लॉलीपॉप दिखा दी है तो भारत के मुखिया ने सबसे पहले मदारी को दो टूक समझाया।
कहा, देखो जनाब…प्रथम तो हम अपने पड़ोसी की तरह टाइमपास नेता नहीं हैं। और दूसरे गुजराती हैं। अगर राजनीति को व्‍यापार समझने की भूल कर रहे हो तो भी जान लो कि व्‍यापार हमारे रग-रग में बसा है। जिस लॉलीपॉप को दिखाकर तुम मियां इमरान से सौदेबाजी करने में लगे हो, वैसी लॉलीपॉप तो हम चाट-चाट कर फेंक देते हैं।
इतना कुछ कहने के बाद भी भारत को कुछ मजा नहीं आया। संतुष्‍टि नहीं मिली, तो उसने सोचा कि क्‍यों न खिलाड़ी और मदारी दोनों को एक जोर का झटका दिया जाए।
बताया जाए कि कुल जमा चार सौ साल की उम्र वाले एक देश और मात्र 70-72 साल के एक मुल्‍क की सोच पर हजारों साल पुराना भारत कितना भारी पड़ सकता है।
भारत ने एक झटके में लॉलीपॉप की डंडी तोड़ी और उसे नाली में फेंक दिया। जैसे कह रहा हो कि लो अब उठा सको तो उठा लो। अब दोनों मिलकर कचरे में ढूंढते रहना लॉलीपॉप को लेकिन लॉलीपॉप मिलने से रही क्‍योंकि जब तक तुम उसे ढूंढने नाली में उतरोगे तब तक वह गलकर बराबर हो लेगी।
भारत की इस चाल को न तो खुद को खुदा समझने वाला मदारी समझ पाया और न उसकी उंगली पर नाचने वाला जमूरा। एक झटके में सारी स्‍यानपत निकाल दी भारत ने। ऊपर से इस्‍लामाबाद में पोस्‍टर और लगवा दिया कि अब पीओके को संभाल सको तो संभालो। वैसे वो है तो हमारा ही, इसलिए लेकर भी हम ही रहेंगे।
अब बेचारा मदारी अपनी सफाई देने में लगा है और खिलाड़ी को उसके देश में लानत झेलनी पड़ रही है। लोग खुलेआम कह रहे हैं कि मियां… तुमसे ना हो पाएगा।
तुम तो सरकारी आवास को बारात घर बनाने और कबाड़ बेचकर जुगाड़ करने के ही लायक हो। कबाड़ बेचकर अपना घर भले ही चला लेना, पर देश यूं न चला करता। उसके लिए चाहिए अच्‍छा-खासा दिमाग, दिमाग तुम्‍हारे पास है नहीं। ऐसे में लॉलीपॉप को दूरबीन से देख तो सकते हो, लेकिन उसका स्‍वाद चखने को नहीं मिलना।
खैर, अब तो न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम। ऊपर से जलते तवे पर तसरीफ का टोकरा भी रखना पड़ रहा है। जब फुरसत मिले तो किसी कोने में जाकर तसरीफ पर पड़े फफोले चैक कर लेना। फिर बताना कि कितने हैं। मरहम हम भेज देंगे। आहिस्‍ता-आहिस्‍ता मलते रहना तब तक, जब तक कि मियां नवाज शरीफ के बग़लगीर न हो जाओ। खुदा खैर करे।
क्‍योंकि तुम्‍हारे ही लोग अब तो तुम्‍हारे मुंह पर थूककर कहने भी लगे हैं कि तुम्‍हें मदारी ने बड़े वाला बना दिया मियां।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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