शनिवार, 27 मई 2017

…और अब चैप्‍टर क्‍लोज

दो हत्‍याएं, करोड़ों की लूट, विधाता के धाम से विधानभवन तक गूंज, फिर उसकी भी अनुगूंज। अनशन, धरना-प्रदर्शन व बंद, सत्ता पक्ष व विपक्ष के दौरे, सवाल…सवाल और सवाल।
सवालों के जवाब में तीन कुख्‍यात भाइयों और उनके तीन हलूकरों की गिरफ्तारी, मात्र 20 लाख रुपए मूल्‍य के माल की कथित बरामदगी…और चैप्‍टर क्‍लोज।
पुलिस-प्रशासन मुर्दाबाद का नारा, चार दिन के अंतराल में पुलिस-प्रशासन जिंदाबाद में ”तरमीम” हो गया। बेडवर्क, गुडवर्क बन गया। चार दिन में पराई होते-होते एक पार्टी फिर से अपनी हो गई। राजनीति की रोटी सेंकने का प्रयास करने वालों के मंसूबे धरे-धरे के धरे रह गए। मरने वालों की चिता ठीक से ठंडी भी नहीं हुई कि पुलिस को प्रशस्‍ति पत्र बांट दिए गए। इनाम-इकराम से नवाजे जाने का ऐलान कर दिया गया। सम्‍मान समारोह की तैयारियां होने लगीं। राम राज्‍य लौट आया। जिंदगी से लेकर व्‍यापार तक सब अपने ढर्रे पर वापस।
कौन कह सकता है कि इसी महीने की 15 तारीख को मयंक चेन पर हुई जघन्‍य वारदात के बाद धर्म की यह छोटी सी दुनिया उबल रही थी। बच्‍चे से लेकर बूढे़ तक की जुबान सिर्फ यही बोल रही थी कि बहुत बुरा हुआ।
20 मई को भोर होते-होते वही जुबान पलटने लगी। सूर्य चढ़ने के साथ शहर का पारा नॉर्मल होने लगा। जो लोग खाकी को खाक में मिला देने को आतुर थे, वही लोग उसकी शान में कसीदे पढ़ने लगे। यही है फितरत और यही असलियत भी।
पुलिस जानती है कि उसकी स्‍क्रिप्‍ट पर उंगली उठाने की हिमाकत प्रथम तो कोई करता नहीं, और यदि कोई करता भी है तो जवाब देने की जरूरत नहीं।
प्रेस कांफ्रेंस होती हैं लेकिन लकीर पीटने के लिए। सवाल उठाने का दौर बीत गया। सवाल किसी को अच्‍छे नहीं लगते। जवाब सुहाते हैं।
मीडिया की आवाज़ नक्‍कारखाने की तूती बनकर रह गई है और मीडियाकर्मी मीडिएटर। वह न तो आवाज़ उठाते हैं और न आवाज़ बनते हैं, वह आवाज़ मिलाते हैं। जिसकी ढपली, उसका राग।
लिखा-पढ़ी में व्‍यापारी बेशक कमजोर हो किंतु पुलिस चुस्‍त-दुरुस्‍त है। उसने हवा का रुख भांपकर घटना के दूसरे दिन ही कर लिया एक तीर से कई निशाने साधने का इंतजाम। सांप मर जाए और लाठी भी जस की तस बनी रहे, इस कला में खाकी का कोई मुकाबला नहीं।
एक मृतक के परिजनों को आश्‍वासन की पोटली थमा दी तो दूसरे के परिजनों को सड़क पर मिली गहनों की पोटली। होगा कोई सर्राफ जिसने रख लिए लाखों के जेवरात।
होंगे कोई कर्मचारी व कारीगर जिनकी बदनीयत ने घायल अवस्‍था में गोलियों का धुंआ साफ होने से पहले ही सर्राफ को थमा दी जेवरात व नकदी की वह पोटली। पुलिस को अब इस सबसे क्‍या मतलब।
किसने की सर्राफों की सुरागरसी, कौन था आस्‍तीन का सांप..सारे प्रश्‍न अपनी जगह। प्रश्‍न शेष हैं तो रहें, उत्तर दिया जा चुका है। देखेंगे, देख रहे हैं और देखते रहेंगे।
किसी को छोड़ेंगे नहीं, लाखों का माल मिल गया अब करोड़ों के लिए भी कोशिश करेंगे लेकिन पहले ब्‍यौरा तो दो।
चार दिन में चार हजार बार पुलिस से उसके काम का हिसाब मांगा गया, पर कारोबार का हिसाब अब तक नहीं मिला। अब क्‍या बदमाश बताएंगे कि कितना माल लूट कर ले गए।
पहले हिसाब दो, फिर हिसाब मांगो। नहीं दे सकते तो हिसाब-किताब बराबर समझो। बहुतों का हिसाब इसी तरह हुआ है बराबर। गोली मारीं, गोली खाईं…इनका भी तो हिसाब देना है, और अकेले देना है। बदमाशों के असलाह से फायर निकले या फुहार, इससे किसी को क्‍या वास्‍ता। बदमाश खाकी को और खाकी बदमाशों को, दोनों एक-दूसरे को बहुत अच्‍छी तरह जानते हैं। दोनों के असलाह भी परस्‍पर पहचानते हैं। कितनी मार करनी है, कैसी करनी है, सब उन्‍हें पता होता है। आखिर चोली-दामन का साथ है। किसी एक घटना से कैसे छूट सकता है यह साथ।
यूं भी यूपी बहुत बड़ा है। कोई योगी आए या भोगी, कर्मयोगियों को फर्क नहीं पड़ता। ज्‍यादा से ज्‍यादा क्‍या? इधर या उधर।
वसीम बरेलवी का एक शेर, और बात खत्‍म।
जहां रहेगा, वहीं रोशनी लुटाएगा।
किसी चराग़ का अपना मकां नहीं होता।।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

यक्ष प्रश्‍नों का जवाब दिए बिना पुलिस ने “मयंक चेन” पर हुए मर्डर व लूट को खोलने का किया दावा

मथुरा। एक मुठभेड़ के बाद पुलिस ने आज आधा दर्जन बदमाशों को पकड़कर ज्‍यूलिरी फर्म ”मयंक चेन” पर हुए डबल मर्डर व करोड़ों रुपए की लूट के पर्दाफाश का दावा किया है।
15 मई की रात करीब साढ़े आठ बजे शहर के मध्‍य कोयला वाली गली में स्‍थित मयंक चेन नामक ज्‍यूलिरी फर्म पर आधा दर्जन सशस्‍त्र बदमाशों ने धावा बोला और अंधाधुंध गोलीबारी करके विकास एवं मेघ अग्रवाल की हत्‍या कर दी तथा विकास के भाई मयंक सहित तीन लोगों को गंभीर रूप से घायल कर दिया।
बदमाश यहां से करोड़ों रुपए मूल्‍य का सोना तथा लाखों रुपए नकद ले जाने में सफल रहे।
 घटना  से  जुड़ा  बीडियो  यहां  देखें - 

 https://youtu.be/5ESX391bTU4


बदमाशों द्वारा की गई यह दुस्‍साहसिक वारदात दुकान के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई किंतु अधिकांश बदमाशों के चेहरे कपड़े व हैलमेट से ढके होने के कारण उनकी पहचान करना मुश्‍किल हो रहा था।
हमलावर बदमाशों में से एक का चेहरा आधा खुला था। पुलिस का दावा है कि वही कुख्‍यात ईनामी अपराधी राकेश उर्फ रंगा है, जो गैंग का सरगना भी है।
रंगा का एक अन्‍य भाई बिल्‍ला हत्‍या के दूसरे मामले में काफी समय से जेल के अंदर निरुद्ध है।

रंगा और बिल्‍ला के नाम से कुख्‍यात यह दोनों भाई सबसे पहले तब सुर्खियों में आए जब करीब डेढ़ दशक पूर्व इन्‍होंने होलीगेट के अंदर भीड़ भरे छत्ता बाजार से आर के ज्‍वैलर्स के कर्मचारी को गोली मारकर भारी मात्रा में सोने के जेवरात व नकदी लूट ली।
दीपावली से ठीक दो दिन पहले की गई इस लूट के बाद भी शहर में काफी हंगामा हुआ था। रंगा-बिल्‍ला पकड़े तब भी गए थे और पुलिस ने इनके कब्‍जे से लूट का पूरा माल बरामद होने की बात भी कही थी किंतु बताया जाता है कि अधिकांश माल की बरामदगी नहीं हो सकी क्‍योंकि पीड़ित सर्राफा व्‍यापारी ने अंत तक अपने नुकसान का ब्‍यौरा पुलिस को नहीं दिया।
इसके बाद इन दोनों भाइयों ने एक मामूली सी बात पर अपने पड़ोसी भूलेश्‍वर चतुर्वेदी को समझौते के बहाने घर बुलाकर उसकी हत्‍या कर दी। बाद में भूलेश्‍वर के बड़े भाई तोलेश्‍वर उर्फ तोले बाबा को भी तब मार दिया गया जब वह भूलेश्‍वर के केस की पैरवी के लिए कचहरी जा रहा था। हत्‍या के इन्‍हीं मामलों में रंगा का भाई बिल्‍ला इन दिनों मथुरा जिला कारागार में बंद है।
इस रंजिश के चलते रंगा-बिल्‍ला के चाचा विजय को भी चौबिया पाड़ा क्षेत्र में मार दिया गया था।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार राकेश उर्फ रंगा पर फिलहाल एक दर्जन संगीन मामले दर्ज हैं साथ ही 15 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित है।
पुलिस का दावा है कि पकड़े गए बदमाशों में शामिल कुख्‍यात ईनामी बदमाश राकेश उर्फ रंगा ही वह शख्‍स है जो मयंक चेन से प्राप्‍त सीसीटीवी फुटेज में प्रमुख रूप से दिखाई दे रहा है।
रंगा के साथ पुलिस ने उसके दो छोटे भाई नीरज एवं चीनी उर्फ कामेश को भी पकड़ा है। गिरफ्त में आए बाकी तीन बदमाशों के नाम आयुष, विष्‍णु उर्फ छोटे तथा आदित्‍य बताए गए हैं।
बताया जाता है कि पुलिस से मुठभेड़ में नीरज गंभीर रूप से घायल हुआ है और उसे गोली लगी है तथा रंगा व चीनी भी घायल हैं।
पुलिस ने इनके कब्‍जे से 20 लाख रुपए मूल्‍य के सोने व हीरे के आभूषण तथा असलाह और मय सिम कार्ड मोबाइल की बरामदगी दिखाई है।
सीसीटीवी फुटेज में दिखाई देने वाले नकाबपोश बदमाश यही थे, इसका पता तो फुटेज की फॉरेंसिक जांच के बाद ही लगेगा अलबत्ता पुलिस ने इस बावत बुलाई गई अपनी प्रेस वार्ता में ऐसी कोई जानकारी नहीं दी कि बदमाशों के कब्‍जे से बरामद माल 16 मई को मयंक चेन के पड़ोसी सर्राफ के यहां से मिले माल से अलग है। यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि पुलिस को अब तक पीड़ित व्‍यापारियों ने लूट के माल का कोई ब्‍यौरा नहीं दिया और न ही एफआईआर में इसकी कोई जानकारी दी गई थी।
गौरतलब है कि 16 मई को बरामद वह माल पांच व्‍यापारियों की कमेटी के सामने सीओ सिटी जगदीश सिंह ने मृतक व्‍यापारी मेघ अग्रवाल के पिता को इस शर्त पर सौंप दिया था कि इसे बरामदगी मानते हुए पुलिस की जरूरत के हिसाब से प्रस्‍तुत किया जाएगा।
इसके ठीक विपरीत व्‍यापारियों का कहना था कि उस माल के मिलने में पुलिस की कोई भूमिका नहीं थी। उसे पड़ोसी सर्राफा व्‍यापारी ने व्‍यापारियों को दिया था लिहाजा उसे बरामदगी नहीं माना जा सकता।
पुलिस द्वारा रंगा गैंग से दिखाई जा रही 20 लाख रुपए मूल्‍य की बरामदगी का कोई विस्‍तृत ब्‍यौरा न दिए जाने और आज सुबह ही मेघ अग्रवाल के पिता महेश अग्रवाल द्वारा यह कहे जाने कि उनके ऊपर पुलिस सौंपे गए माल को देने का दबाव बना रही है, यह संदेह होना स्‍वाभाविक है कि पुलिस जिसे रंगा गैंग से बरामद माल बता रही है वह कहीं मेघ अग्रवाल के पिता को सौंपा गया माल ही तो नहीं है।
यदि ऐसा है तो पुलिस के पास बरामदगी के नाम पर रह क्‍या जाता है और कोर्ट में पुलिस का यह गुडवर्क पीड़ित को कितनी राहत दिला सकेगा।
सीसीटीवी फुटेज में दिखाई देने वाले चेहरों से पकड़े गए बदमाशों की शिनाख्‍त पर भी लोग उंगली उठा रहे हैं। बहुत से लोगों का लग रहा है कि जो आधे या पूरे खुले चेहरे सीसीटीवी की फुटेज में दिखाई दे रहे हैं, उनसे पकड़े गए बदमाशों का चेहरा हूबहू मेल खाता नजर नहीं आता।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि रंगा-बिल्‍ला के नाम से मशहूर चार भाइयों के इस गैंग की इलाके में भारी दहशत थी और आम आदमी तथा व्‍यापारी इनसे खौफ खाते थे। आसपड़ोस में भी इन्‍होंने आतंक फैला रखा था।
यही कारण है कि न सिर्फ शहर के लोगों ने बल्‍कि आस-पड़ोस के लोगों ने भी इनके पकड़े जाने पर राहत की सांस ली है और चौबिया पाड़ा क्षेत्र में जश्‍न का माहौल बना हुआ है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सुलझने की बजाय उलझ गया मथुरा का डबल मर्डर और लूट कांड, व्‍यापारियों की नीयत पर भी उठने लगे सवाल

मथुरा की कोयला वाली गली में ”मयंक चेन” नाम ज्‍यूलिरी फर्म पर हुए डबल मर्डर तथा करोड़ों रुपए की लूट का मामला अब सुलझने की बजाय और अधिक उलझ गया है। साथ ही इस जघन्‍य कांड के बाद सक्रिय हुए कुछ व्‍यापारियों की नीयत पर भी पुलिस से मिलीभगत को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
आज विभिन्‍न अखबारों में छपी खबर और पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक फर्म के मालिक मयंक सहित तीन लोगों को घायल करके उनके भाई विकास व व्‍यापारी मेघ अग्रवाल की हत्‍या करने वाले लुटेरों की नजर से वहां पड़ा सोने व नकदी से भरा एक बैग छूट गया था। इस बैग को लुटेरों के निकल जाने पर घायल कर्मचारी मोहम्‍मद अली ने एक पड़ोसी सर्राफ के पास यह कहकर रख दिया कि यह मेरा है और इसे मैं हॉस्‍पीटल से लौटने के बाद ले जाऊंगा।
यह भी बताया जा रहा है कि मोहम्‍मद अली को एक नहीं बल्‍कि दो बैग अशोक शाहू नामक मेरठ के कारीगर ने दिए थे जो वारदात के वक्‍त दुकान में मौजूद था और बदमाशों के हमले में वह भी घायल हुआ था। मोहम्‍मद अली को दिए गए दूसरे बैग में क्‍या था और उसका क्‍या हुआ, इसका फिलहाल कुछ पता नहीं है।
बहरहाल, पुलिस का कहना है कि वारदात के अगले ही दिन यह बैग मिल गया था जिसे पांच व्‍यापारियों की कमेटी के सामने इस शर्त पर सीओ सिटी जगदीश सिंह ने मृतक मेघ अग्रवाल के पिता को सौंपा कि इसे ”बरामदगी मानते हुए” जरूरत पड़ने पर प्रस्‍तुत किया जाएगा।
यहां सबसे पहला सवाल तो यह खड़ा होता है कि पुलिस को इस बैग के बारे में सूचना किसने दी और कैसे पुलिस उस सर्राफ तक पहुंची जिसके यहां मोहम्‍मद अली ने बैग रखा था।
पुलिस की मानें तो सीओ सिटी जगदीश सिंह को वारदात की सीसीटीवी फुटेज चैक करते वक्‍त दिखाई दिया कि एक बैग अशोक शाहू के नीचे दबा पड़ा है।
पुलिस की बात सच भी मान ली जाए तो यह प्रश्‍न बाकी रह जाता है कि सीओ सिटी को पड़ोसी सर्राफ के यहां बैग रखे होने की जानकारी किससे मिली।
पुलिस कहती है कि शक के आधार पर उसने हॉस्‍पीटल में एडमिट घायल मोहम्‍मद अली और अशोक शाहू से जब उस बैग के बारे में पूछताछ की तो उन्‍होंने बताया कि एक बैग पड़ोसी सर्राफ के यहां रखा है।
पुलिस यह भी कहती है कि इस बीच मोहम्‍मद अली की पत्‍नी और उसका बेटा उस सर्राफ के यहां बैग लेने पहुंचे थे क्‍योंकि मोहम्‍मद अली व अशोक शाहू की माल को लेकर नीयत खराब हो गई किंतु तब तक चूंकि पुलिस को पता लग चुका था इसलिए उसने सर्राफ को बैग किसी अन्‍य के हवाले न करने की हिदायत दे दी।
दूसरी ओर व्‍यापारी नेताओं का कहना है कि पुलिस ने कोई बैग बरामद नहीं किया लिहाजा वह पुलिस का गुडवर्क नहीं है। पुलिस को तो उन्‍होंने ही सोने से भरा एक बैग छूट जाने तथा पड़ोसी सर्राफ के यहां से मिल जाने की सूचना दी थी। सच्‍चाई जो भी हो, परंतु इतना तय है कि पुलिस के संज्ञान में वारदात के अगले ही दिन सोने से भरा एक बैग मिल जाने की बात आ चुकी थी।
इन दोनों ही स्‍थितियों में बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि वारदात के अगले ही दिन एक बैग मिल जाने का पता लग जाने के बावजूद पुलिस ने तीसरे दिन मथुरा आए प्रदेश के डीजीपी सुलखान सिंह और मुख्‍यमंत्री के प्रतिनिधि व प्रदेश के ऊर्जा मंत्री व मथुरा के विधायक श्रीकांत शर्मा को क्‍यों नहीं दी जबकि वह पीड़ित परिवारों के साथ-साथ व्‍यापारियों के जबर्दस्‍त आक्रोश को चुपचाप झेलते रहे।
यदि डीजीपी वहां अपने स्‍तर से इस बात की सूचना देते तो कुछ आक्रोश कम अवश्‍य होता। दूसरे दिन ही एक बैग मिल जाने का पता लगने के बाद क्‍या सीओ सिटी अगले दिन डीजीपी के आने व उनके द्वारा अपने निलंबन की घोषणा किए जाने का इंतजार कर रहे थे।
आश्‍चर्य इस बात पर भी होता है कि डीजीपी सुलखान सिंह तथा ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को मेघ अग्रवाल के परिवार ने भी बैग मिल जाने की जानकारी देना क्‍यों जरूरी नहीं समझा जबकि यह बात तो व्‍यापारी व सीओ सिटी दोनों स्‍वीकार कर रहे हैं कि बैग अगले दिन यानि 16 मई को ही मिल गया था और डीजीपी व ऊर्जा मंत्री का मथुरा दौरा 17 तारीख की सुबह हुआ है।
पुलिस तथा व्‍यापारी नेताओं की कहानी में एक बड़ा झोल इस बात को लेकर लगता है कि माल से भरे बैग पर यदि मोहम्‍मद अली तथा अशोक शाहू की नीयत खराब हो चुकी थी और मोहम्‍मद अली ने अपनी पत्‍नी व बेटे को सर्राफ के यहां बैग लेने भी भेजा था तो पुलिस ने अब तक उन्‍हें आरोपी क्‍यों नहीं बनाया।
दो हत्‍याएं करके करोड़ों का माल लूट ले जाने वाले और उसी माल में से किसी तरह छूट गए माल पर नीयत खराब करने वालों में क्‍या कोई अंतर है?
नहीं है तो पुलिस और व्‍यापारी नेता दोनों ही मोहम्‍मद अली व अशोक शाहू पर मेहरबान क्‍यों हैं।
इन सबके अतिरिक्‍त एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न यह भी है कि जिस हिसाब से लुटेरों ने दुकान में घुसने के साथ ही ताबडतोड़ गोलीबारी शुरू कर दी और वारदात को अंजाम देकर भागते वक्‍त भी गली में खड़ी गाय व कुत्‍ते के ऊपर तक फायर झोंके, छतों से झांक रहे लोगों तक पर निशाना साधा, उसके बाद भी वह सर्राफ क्‍या लुटेरों की निगाह से बचे बैग को मोहम्‍मद अली से लेने के लिए बैठा रहा। वो भी तब जबकि गोलीबारी होने के साथ ही कोयला वाली गली ही नहीं, पूरे छत्‍ता बाजार में भगदड़ मच गई थी और दुकानदार अपनी-अपनी दुकानें बंद करके भाग खड़े हुए थे।
इस सबके बावजूद यह मान भी लिया जाए कि किसी तरह वह सर्राफ बैठा रह गया तो भी क्‍या कोई व्‍यक्‍ति इतनी बड़ी व जघन्‍य वारदात के बाद एक कर्मचारी के कहने पर सोने व नकदी से भरा बैग उसके मात्र इतना कहने पर रख लेगा कि यह उसका है और हॉस्‍पीटल से लौटकर वह उसे ले जाएगा। क्‍या कोई व्‍यक्‍ति इस तरह के माहौल में खुद को बिना वजह परेशानी में डालना मुनासिब समझेगा।
अगर बैग रखने वाले सर्राफा व्‍यवसाई को बहुत दिलेर भी मान लिया जाए तो पुलिस ने अपनी तरफ से न तो उसका नाम उजागर किया और न यह बताया कि उसने अच्‍छा काम किया या बुरा।
अच्‍छा काम किया तो उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए थी और गलत काम किया है तो उसे भी लूट के बाद हुए घटनाक्रम में षड्यंत्र का आरोपी बनाना चाहिए क्‍योंकि उसने लगभग चौबीस घंटों तक बैग अपने पास छिपाकर रखा ही क्‍यों। हालांकि पब्‍लिक में अब उस सर्राफ का नाम सार्वजनिक हो चुका है।
अमर उजाला में इस बावत एसएसपी विनोद मिश्रा के हवाले से छपी खबर के अनुसार एसएसपी को मृतक मेघ अग्रवाल के पिता ने उनके पास पहुंच कर यह बात बताई कि उनके पुत्र का सोने व नकदी से भरा बैग उन्‍हें मिल गया है।
अगर यह बात सही है तो एसएसपी ने भी इतनी बड़ी बात अपने किसी उच्‍च अधिकारी अथवा मीडिया को बताना क्‍यों जरूरी नहीं समझा, और क्‍यों एसएसपी को भी बैग मिलने की जानकारी सीओ सिटी अथवा किसी अन्‍य अधीनस्‍थ से न मिलकर मेघ अग्रवाल के पिता से मिली। उस बैग के मिलने में ऐसा क्‍या था कि अधीनस्‍थ अधिकारी ने एसएसपी को भी उसके बारे में सूचित करना उचित नहीं समझा।
बताया जाता है कि बैग मिलने का खुलासा दरअसल कल तब हुआ जब मेघ अग्रवाल के परिजन होलीगेट पर भूख हड़ताल एवं धरना प्रदर्शन करने बैठ गए और विकास के परिजनों को इसकी भनक तक नहीं लगी।
विकास के परिजनों ने तब इस बात को आधार बनाकर आक्रोश व्‍यक्‍त किया कि मेघ का कथित माल तो उसके परिवार को दे दिया गया और मेघ व विकास की हत्‍या का खुलासा साथ ही होगा, ऐसे में वह अकेले अब यह सब किसलिए कर रहे हैं।
विकास के परिवार से जुड़े सूत्रों का यह भी कहना है कि बिना किसी जांच के यह कैसे मान लिया गया कि बदमाशों की नजर से छूटा बैग मेघ अग्रवाल का ही था। यह ठीक है कि मेघ अग्रवाल मयंक चेन को माल देता था और उस दिन भी माल देने ही आया था लेकिन बिना जांच के उस माल पर मेघ अग्रवाल के परिजनों का हक कैसे मान लिया गया।
यह भी तो हो सकता है कि मेघ अग्रवाल मयंक चेन के लिए लाए गए माल को उनके हवाले कर चुका हो, एसे में उस माल पर हक मेघ का न होकर मयंक चेन का बनता है।
इस संबंध में व्‍यापारी नेताओं का कहना था कि सोने के हर आभूषण पर उसे बनाने वाली कंपनी का ब्रांड नेम अंकित होता है और उसी आधार पर यह मान लिया गया कि माल मेघ अग्रवाल का है।
इसके जवाब में दूसरे सर्राफा कारोबारी बताते हैं कि ब्रांड किसी का भी हो किंतु उस पर हक तो उसे खरीदने वाली फर्म का होता है। जब मेघ अग्रवाल मयंक चेन के लिए सामान लाया था और वारदात के वक्‍त वहीं बैठा था तो बिना जांच के उस पर मेघ अग्रवाल के परिजनों का हक मान लेना अनुचित है।
वारदात से ठीक पहले के वीडियो फुटेज भी शो करते हैं कि दुकान पर मौजूद सभी लोग इत्‍मीनान के साथ बैठे हैं और सामान्‍य बातचीत में मशगूल हैं। लेनदेन होने जैसी कोई गतिविधि उसमें कहीं दिखाई नहीं देती।
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार इस पूरे घटनाक्रम में कुछ ऐसे तत्‍वों ने भूमिका अदा की है जिनकी पुलिस से अत्‍यंत निकटता है और मयंक चेन की अपेक्षा मेघ अग्रवाल के परिजनों से अधिक सहानुभूति।
इन्‍हीं तत्‍वों ने एक सोची समझी योजना के तहत डीजीपी सुलखान सिंह तथा ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को घटना स्‍थल पर जाने से रोका और इन्‍हीं तत्‍वों ने सर्राफा कमेटी के स्‍थानीय पदाधिकारियों को भी उनसे मुलाकात तक नहीं करने दी जबकि पहले यह दोनों कार्यक्रम डीजीपी व ऊर्जा मंत्री के दौरे में शामिल थे।
यह भी पता लगा है कि मौका ए वारदात पर सबसे पहले पहुंचने वालों में एक ऐसा सर्राफा व्‍यवसाई था जिसके कर्मचारी को सरेराह गोली मारकर कुछ वर्ष पूर्व नामजद बदमाश भारी मात्रा में सोने के आभूषण तथा नकदी लूट ले गए थे। तब इस सर्राफा व्‍यवसाई ने घटना के बाद लूटे गए माल की कोई जानकारी पुलिस को नहीं दी और सारा जोर आभूषणों के साथ मौजूद कागजों की बरामदगी पर लगाया, परिणाम स्‍वरूप पकड़े जाने के उपरांत भी बदमाश भारी मात्रा में आभूषण व नकदी पचा गए।
पुलिस को शक है कि मयंक चेन पर भी हत्‍या व लूट को अंजाम उन्‍हीं बदमाशों ने दिया है।
यहां इस बात का जिक्र करना इसलिए जरूरी हो जाता है कि मयंक चेन पर हुए डबल मर्डर व लूट के बाद छूटे गए बैग की बरामदगी में उक्‍त सर्राफ की बड़ी भूमिका बताई जाती है जबकि घटना वाले दिन से पूरी तरह पीड़ित परिवारों के पक्ष में खड़े रहने वाले सर्राफा कमेटी के स्‍थानीय पदाधिकारियों को छूटे गए बैग की कोई जानकारी नहीं दी गई। और तो और मेघ अग्रवाल के पिता को जिन पांच व्‍यापारियों की कमेटी बनाकर उनका कथित माल सौंपा गया, उस कमेटी में भी सर्राफा कमेटी का एक भी व्‍यक्‍ति शामिल नहीं किया गया और न यह बताया कि सपुर्दगी कमेटी में शामिल पांच व्‍यापारी कौन-कौन से हैं।
खबरों के मुताबिक पुलिस-प्रशासन ने कल मेघ अग्रवाल के परिजनों को 48 घंटों में घटना के अनावरण का आश्‍वासन देकर भूख हड़ताल व धरने से उठाने पर राजी किया, जिसमें से 24 घंटे से अधिक बीत चुके हैं।
वहीं प्रदेश के डीजीपी ने उनके आश्‍वासन के बाद भी मेघ अग्रवाल के परिजनों द्वारा धरना देने की बात पर अपनी कोई टिप्‍पणी करने से इंकार कर दिया।
दूसरी ओर आज प्रदेश की सर्राफा कमेटी के आह्वान पर प्रदेश भर के सर्राफा कारोबारियों ने बंद रखा है। स्‍थानीय व्‍यापारी और सर्राफा कमेटी के लोगों ने भी आज मथुरा के जिलाधिकारी अरविंद एम बंगारी से मुलाकात कर अपना रोष व्‍यक्‍त किया है।
हो सकता है कि पुलिस प्रशासन मेघ अग्रवाल के परिजनों को दिए गए समय के अंदर ही वारदात का खुलासा कर दे लेकिन वह वारदात के बाद पैदा हुए घटनाक्रम तथा छूटे गए बैग की कहानी के पीछे का सच बता पाएगी, यह कहना मुश्‍किल है।
पुलिस द्वारा अब तक अख्‍तियार किया गया रवैया तो कतई ऐसे कोई संकेत नहीं देता कि वह पूरे माल की बरामदगी करके असली अपराधियों को बेनकाब कर पाएगी। पुलिस को तो फिलहाल खुद ही नहीं पता कि मयंक चेन से बदमाश आखिर कितना माल लूट ले जाने में सफल रहे और छूटे गए बैग को छिपाकर रखने वालों की असली मंशा क्‍या थी।
बदमाशों की कुल संख्‍या को लेकर पुलिस पहले दिन से कनफ्यूज है ही।
अंधेरे में तीर चलाना पुलिस की कार्यप्रणाली का हिस्‍सा बन चुका है और वह इस मामले में भी वही कर रही है।
यही कारण है कि हर वारदात के बाद अगली वारदात कहीं अधिक जघन्‍य व कहीं अधिक दुस्‍साहसिक होती है। तो इंतजार कीजिए और देखिए आगे-आगे होता है क्‍या।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मथुरा की जघन्‍य वारदात के सही-सही खुल पाने पर संदेह के बादल, कल भी बाजार बंद

मथुरा। शहर की घनी आबादी के बीच होली गेट क्षेत्र की कोयला वाली गली में ज्‍वैलर्स मयंक चेन नामक फर्म पर दो युवा सर्राफा व्‍यवसाइयों की हत्‍या करके करोड़ों रुपए मूल्‍य का सोना लूटकर ले जाने जैसी जघन्‍य वारदात के पूरी तरह सही खोले जाने को लेकर अभी से संदेह के बादल मंडराने लगे हैं।
संदेह का सबसे बड़ा कारण है अब तक यह भी पता न लग पाना कि बदमाश आखिर कितने रुपए मूल्‍य का सामान ले जाने में सफल रहे।
वारदात का अति शीघ्र अनावरण किए जाने के भारी दबाव में यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा तथा प्रदेश पुलिस के मुखिया सुलखान सिंह को मथुरा भेजा जरूर है किंतु उनका आगमन पीड़ित परिवार को सांत्‍वना देने के अधिक काम आएगा, वारदात खोलने में तो मथुरा पुलिस की ही अहम भूमिका होगी।
श्रीकांत शर्मा ने आज मथुरा आकर पत्रकारों के समक्ष जो कुछ कहा, उसका आशय भी कुल मिलाकर यही है कि भविष्‍य में ऐसी किसी घटना की पुनरावृत्‍ति न हो, इसके लिए कदम उठाएंगे। ब्रज को अपराध से मुक्‍त करना है। मैं सीएम के प्रतिनिधि की हैसियत से आया हूं। हमें प्रदेश में जो बदहाल व्‍यवस्‍था मिली है, उसे दुरुस्‍त कर रहे हैं। फिलहाल पीड़ित परिवार को सांत्‍वना देने का समय है क्‍योंकि वह बेहद आहत हैं। अपराध के जाल को पूरे प्रदेश से खत्‍म करके रहेंगे और इसमें हमें कामयाबी भी मिल रही है। 50 दिनों में बहुत काम हुआ है परंतु सुधार की दरकार है।
प्रदेश पुलिस के मुखिया सुलखान सिंह ने भी यही कहा कि सीएम ने मुझे विशेष रूप से भेजा है। दोषियों पर सख्‍त कार्यवाही की जाएगी। कानून-व्‍यवस्‍था को और मजबूत करेंगे। इस वारदात से संबंधित सभी पहलुओं की जांच की जा रही है।
श्रीकांत शर्मा और सुलखान सिंह दोनों के बयान यह बताने को काफी हैं कि वह एक रटी हुई स्‍क्रिप्‍ट पढ़ने आए थे।
इस बात का अहसास इससे भी होता है कि मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से जीतकर विधायक और फिर ऊर्जा मंत्री बने श्रीकांत शर्मा तथा डीजीपी सुलखान सिंह मथुरा आए जरूर लेकिन न तो उन्‍होंने घटना स्‍थल पर जाना जरूरी समझा और न सर्राफा कमेटी के किसी स्‍थानीय पदाधिकारी से मुलाकात करना। मंत्री महोदय और डीजीपी वहां भी नहीं गए जहां घटना स्‍थल के पास व्‍यापारी धरने पर बैठे थे।
इस संबंध में पूछे जाने पर सर्राफा कमेटी के महामंत्री योगेश ”जॉली” ने कहा कि हमें मंत्री और डीजीपी के आगमन की कोई सूचना या उनसे मुलाकात का कोई प्रोग्राम नहीं मिला। इससे सर्राफा कमेटी में रोष व्‍याप्‍त है।
योगेश जॉली का कहना था कि श्रीकांत शर्मा मंत्री बाद में बने हैं, वह स्‍थानीय विधायक पहले हैं इसलिए उन्‍हें कम से कम अपने लोगों के बीच में आकर बात तो करनी चाहिए थी।
बताया जाता है मंत्री और डीजीपी दोनों सीधे पीड़ित परिवारों से मुलाकात करने पहुंचे और बिना कुछ बताए चले गए।
गौरतलब है कि कल मथुरा भाजपा के जिलाध्‍यक्ष चौधरी तेजवीर सिंह तथा ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के भाई व उनके कथित प्रतिनिधि सूर्यकांत शर्मा मृतक युवाओं की अंत्‍येष्‍टि में फोटोग्राफर लेकर पहुंच गए थे जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने न सिर्फ उन्‍हें खरी-खोटी सुनाईं बल्‍कि लगभग खदेड़ दिया। जिलाध्‍यक्ष और मंत्री के कथित प्रतिनिधि की इस हरकत से भी व्‍यापारी समुदाय बहुत आहत है।
योगेश जॉली ने बताया कि आज लखनऊ में प्रदेशभर के व्‍यापारियों की एक बैठक बुलाई हुई है और मथुरा में भी एक बैठक शाम को रखी गई है। अब तक के निर्णय के अनुसार कल भी मथुरा बंद रखा जाएगा, उसके बाद अगला निर्णय प्रदेश संगठन के निर्देश से लिया जाना तय हुआ है। प्रदेश संगठन ने वारदात खोलने के लिए शासन-प्रशासन को तीन दिन का समय दिया था जो कल शाम पूरा हो जाएगा।
इस बीच एक स्‍थानीय केबिल न्‍यूज़ चैनल का दावा है कि दोनों पीड़ित परिवार, बदमाशों का एनकाउंटर चाहते हैं। चैनल के मुताबिक पीड़ित परिवार का कहना है कि बदमाश यदि पुलिस की गिरफ्त में आ भी जाते हैं तो वह उन्‍हें धमकाएंगे और केस कमजोर करने के लिए दबाव बनाएंगे।
पीड़ित परिवार की अपनी भावनाएं हैं लिहाजा वो जो भी चाहते हों परंतु प्रदेश की करीब दो महीने पुरानी योगी सरकार के इकबाल पर सवालिया निशान लगाने तथा विधानसभा तक पहुंच जाने वाली इस वारदात का खुलना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है वारदात से पहले यह पता लगना कि बदमाश कितना माल लूटकर ले जा पाए।
पुलिस को दी गई तहरीर में इस बात का कोई उल्‍लेख नहीं किया गया था कि सर्राफा व्‍यवसाइयों का कितना नुकसान हुआ है।
स्‍वतंत्र भारत में जब से पुलिस का गठन हुआ है तभी से पुलिस हर आपराधिक वारदात के अनावरण में ऐसी ही खामियों का लाभ उठाकर बड़ा खेल करती रही है।
इस मामले में भी यदि पीड़ितों के परिजन यह नहीं बता पाते कि उनका कितना आर्थिक नुकसान हुआ है तो पुलिस के लिए वारदात को खोलना बहुत आसान हो जाएगा।
ऐसे में पुलिस आंशिक माल दर्शाकर तय समय-सीमा के अंदर खोल सकती है और वह भी असली अपराधियों को गिरफ्त में लिए बिना जबकि असली अपराधियों की शिनाख्‍त तभी संभव है जबकि लूटा गया पूरा माल बरामद हो।
इसे यूं भी कह सकते हैं कि यदि पुलिस इस जघन्‍य वारदात में शामिल सही-सही बदमाशों को पकड़ पाती है तो उनसे लूट का पूरा माल भी बरामद अवश्‍य होगा।
सर्राफा कमेटी के लोगों की मानें तो अब तक लूट के पूरे माल का आंकलन न हो पाने की वजह दो प्रमुख व्‍यापारियों विकास व मेघ की हत्‍या हो जाना तथा विकास के भाई मयंक का गंभीर घायल अवस्‍था में होना है।
उनका कहना है कि मयंक की स्‍थिति ठीक होने पर ही लूटे गए माल का सही आंकलन हो पाएगा।
सर्राफा कमेटी के लोग जो भी कहें किंतु अब तक हुई लूट की अन्‍य वारदातों का इतिहास कुछ और बताता है और यह इतिहास ही इस वारदात के भी सही अनावरण पर संदेह उत्‍पन्‍न कराता है।
यदि यह मान भी लिया जाए कि पुलिस असली अपराधियों तक पहुंच गई तो भी लूटे गए माल की पूरी बरामदगी हुए बिना भविष्‍य में ऐसी वारदातों का रुक पाना असंभव होगा।
वो इसलिए कि तब पकड़े जाने के बावजूद बदमाश काफी माल पचा पाने में सफल होंगे और यही माल उन्‍हें बार-बार वारदातें करने को उत्‍साहित करेगा।
मथुरा में हुई वारदातें ऐसे घटनाक्रम से भरी पड़ी हैं इसलिए इस वारदात के खुलने से पहले लूट के कुल माल का पता लगना अत्‍यंत आवश्‍यक है अन्‍यथा यह वारदात भी सिर्फ एक संख्‍या बनकर रह जाएगी और अगली वारदात होते ही लोग इसे भूल जाएंगे।
वर्षों पहले शहर के लाला दरवाजा क्षेत्र में ऐसे ही एक युवा व्‍यवसाई की हत्‍या करके बदमाश कई किलो सोना लूट ले गए थे। कहने के लिए उस वारदात का भी पुलिस ने अनावरण किया लेकिन उसका नतीजा क्‍या रहा, यह सर्वविदित है। बदमाश तो पकड़े गए पर माल ना के बराबर बरामद हुआ। उस वारदात के बाद भी काफी हंगामा हुआ था, यहां तक कि तत्‍कालीन एसएसपी राजेश कुमार राय की सरकारी गाड़ी पर आक्रोशित व्‍यापारियों ने पथराव भी किया था और एसएसपी बमुश्‍किल अपनी जान बचाकर निकल पाए थे। उस मामले में एक व्‍यापारी नेता के खिलाफ पुलिस ने गोविंद नगर थाने में मुकद्दमा भी दर्ज कराया था।
व्‍यापारी नेताओं को भी चाहिए कि यदि वह असली अपराधियों को पकड़वाना चाहते हैं तो पहले लूटे गए माल का पूरा ब्‍यौरा लिखा-पढ़ी में पुलिस को सौंपें ताकि पुलिस कोई खेल न कर सके और भविष्‍य में ऐसी जघन्‍य वारदात को करने से पहले बदमाशों को भी कई बार सोचने पर मजबूर होना पड़े।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

मथुरा का सर्राफा व्‍यवसाई हत्‍या और लूटकांड: 5 करोड़ रुपए का सोना ले जाने में सफल रहे बदमाश!

मथुरा के होली गेट क्षेत्र में दो सर्राफा व्‍यवसाइयों की हत्‍या करने वाले बदमाश करीब 5 करोड़ रुपए का सोना लूटकर ले गए हैं।
यह जानकारी सर्राफा व्‍यवसाय से जुड़े सूत्रों ने दी है, हालांकि पीड़ित परिवारों ने अभी नुकसान का आंकलन नहीं किया है।
गौरतलब है कि कोयला वाली गली में मयंक चेन के नाम से सर्राफा व्‍यवसाय करने वाले विकास अग्रवाल सिर्फ सोने का ही व्‍यवसाय करते थे और इसलिए उनके यहां सोने के ही दूसरे कारोबारियों का आवागमन रहता था।
यही कारण था कि लूट के वक्‍त एक अन्‍य सर्राफा व्‍यवसाई 30 वर्षीय मेघ अग्रवाल भी व्‍यावसायिक कारोबार के संदर्भ में मयंक चेन पर मौजूद थे।
सर्राफा कमेटी के सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार ढाई से तीन किलो सोना तो मेघ अग्रवाल ही अपने साथ मयंक चेन पर लेकर गए थे।
सर्राफा कमेटी ने इस जघन्‍य वारदात का खुलासा न होने तक सर्राफा बाजार पूरी तरह बंद करने का निर्णय लिया है और आगे की रणनीति के लिए आज शाम बैठक बुलाई है।
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मथुरा में किसी सर्राफा व्‍यवसाई के यहां होने वाली यह कोई पहली जघन्‍य वारदात नहीं है। इससे पहले भी बदमाश कई दुस्‍साहसिक वारदातों को अंजाम दे चुके हैं और कई सर्राफा व्‍यवसाई इसमें अपनी जान गंवा चुके हैं।
पुलिस हर वारदात का अपने रटे-रटाए तरीके से खुलासा कर देती है किंतु वारदातें हैं कि रुकने का नाम नहीं लेतीं।
ऐसे में यह सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि जब पुलिस बदमाशों को पकड़ती है तो फिर वारदातों पर लगाम क्‍यों नहीं लगती ?
इस सवाल के जवाब में ही छिपा है जघन्‍य अपराधों का पूरा कच्चा चिठ्ठा और यही जवाब बता सकता है कि सत्ता बदल जाने के बावजूद अपराधों का ग्राफ नीचे क्‍यों नहीं आता।
प्रथम तो सोने-चांदी का धंधा अधिकांशत: ”वायदा कारोबार” पर निर्भर है जिसमें लिखा-पढ़ी काफी कम होती है। सर्राफा कारोबार की इस सच्‍चाई से बदमाश भी भली-भांति वाकिफ हैं लिहाजा वह बेखौफ होकर वारदात को अंजाम देते हैं। उन्‍हें पता होता है कि पकड़े जाने पर भी उनके पास लूट का इतना माल बच जाएगा जिससे वह पुलिस को भी सेट कर सकते हैं और कानूनी लड़ाई भी लड़ सकते हैं।
नोटबंदी के बाद शहर के कृष्‍णा नगर क्षेत्र में हुई लूट की ऐसी ही एक वारदात को पीड़ित सर्राफ ने किस तरह नकार दिया और बदमाशों को लूट की रकम के साथ पकड़ने के बावजूद पुलिस की कितनी छीछालेदर हुई, यह इसका एक उदाहरण है अन्‍यथा इससे पहले भी अनेक वारदातों में इसी प्रकार सच्‍चाई छिपाई जाती रही है। पुलिस को फिर वह पैसा आयकर विभाग में जमा कराना पड़ा।
दूसरे जब कोई बड़ी वारदात हो जाती है तो पुलिस पर उसे जल्‍द से जल्‍द खोलने का दबाव इतना अधिक रहता है कि वह असली अपराधियों तक पहुंच नहीं पाती और अपने यहां दर्ज आपराधिक रिकॉर्ड को खंगाल कर उन्‍हीं में से किसी को बलि का बकरा बना देती है ताकि एक ओर जहां पब्‍लिक का आक्रोश शांत कर वाहवाही लूटी जा सके वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दबाब से भी मुक्‍ति पाई जा सके।
सर्राफा व्‍यवसाइयों के यहां लूट की वारदातें लगातार होते रहने का तीसरा कारण उन व्‍यक्‍तियों का कभी गिरफ्त में न आ पाना है जो बदमाशों के लिए मुखबिरी का काम करते हैं और उसके एवज में लूट के माल का अच्‍छा खासा हिस्‍सा पाते हैं।
कौन नहीं जानता कि कोई भी लूट की ऐसी वारदात तभी होती है जब बदमाशों को किसी से अपने शिकार की सटीक जानकारी मिलती है। बदमाशों को पता होता है कि जहां वह वारदात को अंजाम देने जा रहे हैं वहां उन्‍हें कितना माल मिल सकता है और उसमें से कितना माल नंबर दो यानि बिना लिखा-पढ़ी का होगा।
उधर पुलिस भी वारदात का जल्‍द से जल्‍द अनावरण करने के लिए जो मिलता है और जैसा मिलता है, उसी को आरोपी बनाकर अपने कर्तव्‍य की इतिश्री कर लेती है। ऐसे में उसके दोनों हाथ में लड्डू होते हैं।
सरकार योगी की हो अथवा किसी अन्‍य की, पुलिस वही है और पुलिस की कार्यप्रणाली भी वही है। सत्‍ता जरूर बदलती है किंतु बाकी कुछ नहीं बदलता।
सत्‍ता पर काबिज होने वाले लोग पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों का सिर्फ तबादला करके या उन्‍हें ताश के पत्‍तों की तरह फैंटकर यह समझ लेते हैं कि व्‍यवस्‍था परिवर्तन हो जाएगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। अधिकारी और कर्मचारियों की सूरतें बदलती अवश्‍य दिखाई देती हैं परंतु सीरत जस के तस रहती है।
लगता है कि नेताओं से कहीं ज्‍यादा अच्‍छी तरह इस चूहे-बिल्‍ली के खेल को बदमाश समझते हैं और इसलिए वह ”बंदर” बनकर अपना उल्‍लू सीधा करते रहते हैं।
मयंक चेन पर हुई जघन्‍य वारदात को आज विधानसभा में भी उठाया गया और सरकार के प्रवक्‍ता, मथुरा शहर के विधायक और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने भी एक कुशल राजनेता की तरह उसके शीघ्र अनावरण की बात कही।
हो सकता है कि जल्‍द से जल्‍द वारदात का अनावरण कर भी दिया जाए लेकिन क्‍या इससे सर्राफा व्‍यवसाइयों के साथ हो रही वारदातों पर प्रभावी अंकुश लग पाएगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं।
होगा भी नहीं, क्‍योंकि सत्‍ता बदलती हैं पर व्‍यवस्‍थाएं नहीं। चेहरे बदलते हैं किंतु कार्यप्रणाली नहीं। यहां तक कि मानसिकता भी नहीं बदलती। और जब सबकुछ वही रहता है तो कैसे संभव है कि लखनऊ की कुर्सी पर बैठने वाले एक अदद व्‍यक्‍ति के बदल जाने से व्‍यवस्‍थाओं में आमूल-चूल परिवर्तन हो जाएगा।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का डिजिटिलाइजेशन किए जाने के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कहे गए ये शब्‍द बहुत मायने रखते हैं कि व्‍यवस्‍थाएं तब बदलती हैं जब उन्‍हें एप्‍लाई करने वालों का मन बदलता है। व्‍यवस्‍थाएं केवल तकनीक से नहीं बदल सकतीं।
बहुत बड़ा है उत्‍तर प्रदेश, इसलिए कहीं न कहीं बदमाश इसी प्रकार व्‍यावसायिक, राजनीतिक और प्रशासनिक खामियों का लाभ उठाकर जघन्‍य वारदातों को अंजाम देते रहेंगे। कहीं न कहीं कोई मेघ अग्रवाल, कोई विकास मारे जाते रहेंगे।
यूपी में सरकार जरूर बदली है किंतु सरकारी तंत्र का मन बदलता दिखाई नहीं दे रहा। और जब तक इस तंत्र का मन नहीं बदलेगा तब तक कुछ भी बदलने की उम्‍मीद भी करना, खुद को धोखे में रखने जैसा ही है।
-Legend News

शनिवार, 13 मई 2017

So Sorry: अखिलेश में गुजरात के गधों से भी कम दिमाग है, वह बेवकूफ हैं…

उत्तर प्रदेश के पदच्‍युत मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव में गुजरात के गधों जितना भी दिमाग नहीं हैं, यह उन्‍होंने कल के अपने बयान से खुद-ब-खुद सिद्ध कर दिया।
यह कहना है गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह का। लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया इसी साल जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे।
नाराज मुनीम सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि एक आदमी जो अपने पिता का नहीं हो सका, वह देश का क्या होगा?
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में उन्होंने हिंदू और मुस्लिमों को बांटा। ऐसे ही ठाकुरों, ब्राह्मणों और राजपूतों को बांटा। इसी बांटने वाली राजनीति के कारण उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया। उन्होंने पूर्व में गुजरात के गधों को लेकर बात की थी और आज साबित कर दिया है कि उनके पास एक गधे के बराबर भी दिमाग नहीं है।’
एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई कहते हैं, ‘अखिलेश यादव ने जो कहा वह बेवकूफी की हद है। शहीद सिर्फ शहीद होता है भले ही वह यूपी, बिहार या कहीं और का हो। यह बहुत घृणित बयान है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, चाहे यह कोई आम आदमी कहे या फिर कोई पूर्व सीएम।’
उल्‍लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कल कहा था कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत और देश के दूसरे हिस्से के जवानों ने शहादत दी है। कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा था कि गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह और एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई ने अखिलेश यादव के इसी बयान पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
उन्‍होंने पूछा है कि अखिलेश यादव क्या आप जानते हैं?
1- विजयवाड़ा के नजदीक साबरकांठा जिले के मात्र 6500 की जनसंख्‍या वाले कोडियावाड़ा में 1,200 से अधिक लोग भारतीय सेना के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 700 परिवार वाले इस गांव में हर परिवार से एक से अधिक सदस्य सेना में है।
2- गुजरात में मार्च 31 तक 26,656 पूर्व सर्विसमैन थे और 3,517 शहीदों की विधवाएं। इनमें से 6,223 तो सिर्फ अहमदाबाद से ही थे। गुजरात के 39 बेटों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गुजरात के 20 बेटों ने आंतकियों से लोहा लेते हुए अपनी जान गंवाई और 24 बेटों ने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान किया।
1999 के करगिल युद्ध में शहीद हुए मुकेश राठौड़ की पत्नी राजश्री का कहना है, ‘अखिलेश का बयान हमारे लिए दिल तोड़ने वाला है।
कहते हैं कि कमान से निकला हुआ तीर और जुबान से निकले हुए शब्‍द, वापस नहीं लिए जा सकते। अखिलेश यादव ने जो बोल दिया सो बोल दिया।
बहरहाल, अखिलेश के इस बयान ने एक रहस्‍य पर से पर्दा जरूर उठा दिया।
वह रहस्‍य जिसे अखिलेश ने ही यूपी के चुनावों में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से दोस्‍ती करके गठबंधन के रूप में क्रिएट किया था।
अब शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि अखिलेश और राहुल की दोस्‍ती का आधार पार्टी के धरातल पर न होकर बुद्धि के धरातल पर था।
यह बात अलग है कि अखिलेश की बुद्धि का पता उनके चुनाव हारने के बाद लगा है और राहुल की बुद्धि का आंकलन कांग्रेस के साथ-साथ देश ने भी बहुत पहले ही कर लिया था। यह भी एक इत्‍तिफाक है कि दोनों युवराज अपनी अंतिम शिक्षा विदेश से प्राप्‍त करके आए थे।
यूपी को ”इनका साथ” कितना पसंद आया, यह बताने की तो अब कोई जरूरत रह नहीं गई अलबत्‍ता यह बताना शायद आवश्‍यक हो गया है कि पढ़ाई देश में हो अथवा विदेश में, दिमाग के अंदर उतनी ही समा पाती है जितना दिमाग आपके पास होता है। बाकी तो सब सिर के ऊपर से निकल जाती है।
वैसे भी पढ़ाई और शिक्षा दो अलग-अलग चीजें हैं। अखिलेश यादव पढ़े-लिखे हो सकते हैं किंतु शिक्षित नजर नहीं आते। शिक्षा प्राप्‍त की होती तो गुजरात से शहीद हुए जवानों की बावत कुछ तो पता होता।
उन्‍होंने तो सीधे-सीधे न सिर्फ सवाल दाग दिया बल्‍कि जवाब भी दे दिया।
पहले कहा, कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
फिर बोले, गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
मुझे तो लगता है कि वह भारत के भौगोलिक ज्ञान से भी शून्‍य हैं। उन्‍हें शायद ही पता हो कि भारत कितना बड़ा है और उसकी सीमाएं कहां-कहां तक फैली हुई हैं।
ऐसा भी संभव है कि यूपी के मुख्‍यमंत्री पद पर रहते हुए उन्‍हें यूपी में ही संपूर्ण भारत के दर्शन होते रहे हों और इसीलिए वह कभी प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी को चुनौती देते थे तो कभी गुजरात के गधों का विज्ञापन देखकर भड़क जाते थे।
रही-सही कसर राहुल गांधी से उस दोस्‍ती ने पूरी कर दी जिसकी खातिर वह अब भी गुनगुना रहे हैं कि ”ये दोस्‍ती हम नहीं तोड़ेंगे”।
गोस्‍वामी तुलसीदास सैकड़ों साल पहले कह गए थे कि ”जाकों प्रभु दारुण दु:ख दैहीं, ताकी मति पहले हर लैहीं”।
अखिलेश के बयानों को सुनकर अब ऐसा लगने लगा है कि वह एक ओर जहां समाजवादी पार्टी को इतिहास बना देने वाले आखिरी युवराज साबित होंगे वहीं दूसरी ओर समाजवादी कुनबे के लिए अंतिम मुख्‍यमंत्री।
बताते हैं कि उनके बचपन का नाम टीपू है जिसे लेकर वह हमेशा खुद के टीपू सुल्‍तान होने का मुगालता पालते रहे। टीपू तो सामान्‍य बोलचाल की भाषा में टीपने वाले यानि नकल करने वाले को भी कहते हैं।
अक्‍ल के इस्‍तेमाल में अखिलेश, राहुल गांधी की नकल कर रहे हैं या अपनी बुआ मायावती की, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन इतना तो कोई भी बता सकता है कि उनके पास अक्‍ल बहुत इफराती नहीं है।
ऐसे में शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह द्वारा अखिलेश को गुजरात के गधों से भी कम अक्‍ल बताना और एयरफोर्स से ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई द्वारा बेवकूफ की संज्ञा देना, कोई अतिशयोक्‍ति नजर नहीं आती।
सच तो यह है कि चाहे किसी शहीद का पिता हो अथवा चाहे कोई सेवानिवृत आर्मी अफसर, अखिलेश जैसे बयानवीरों को इससे ज्‍यादा शलीन शब्‍दों में जवाब दे नहीं दे सकता क्‍योंकि इनके लिए इतना तो बनता है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

12 घंटे अंधेरे में डूबा रहा ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का चुनाव क्षेत्र, पंडों पर CM के कमेंट को लेकर भी श्रीकांत शर्मा की सफाई नाकाफी

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मात्र एक तार टूटने पर उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा के चुनाव क्षेत्र का सर्वाघिक पॉश इलाका पूरे 12 घंटे अंधेरे में डूबा रहा जबकि प्रदेश सरकार शहरी क्षेत्र को 24 घंटे, तहसील मुख्‍यालय को 20 घंटे और ग्रामीण क्षेत्रों को 16 घंटे बिजली देने का दावा कर रही है।
यह हाल तो तब है जबकि मथुरा के ही कस्‍बा गोवर्धन का ‘गांठौली’, ऊर्जा मंत्री का पैतृक गांव है और मथुरा जनपद विश्‍व पटल पर महाभारत नायक योगीराज श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली के रूप में न सिर्फ विशिष्‍ट स्‍थान रखता है बल्‍कि उस ताज ट्रिपेजियम जोन का भी हिस्‍सा है जहां निर्बाध विद्युत आपूर्ति के आदेश सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिए हुए हैं।
अब इसे दिया तले अंधेरे की संज्ञा दें अथवा दुष्यंत कुमार के इस शेर से जोड़ें कि-
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये।
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये।।
कल रात करीब साढ़े दस बजे मामूली सी हवा क्‍या चली, उसने प्रदेश सरकार के दावे की भी हवा निकाल कर रख दी। वृंदावन फीडर से पोषित शहर के सर्वाधिक पॉश इलाकों में शुमार कॉलोनियां राधापुरम्, राधापुरम् एस्‍टेट और राधापुरम् एस्‍टेट ऐक्‍सटेंशन सहित कृष्‍णा नगर आदि का समूचा क्षेत्र अंधेरे में पूरी तरह डूब गया। 42 डिग्री तक तापमान वाली भीषण गर्मी के इस दौर में पहले तो लोग सोचते रहे कि हवा कम होते ही रोज की तरह बिजली आ जाएगी किंतु बिजली ने पूरी रात इंतजार में कटवा दी।
सुबह 7 बजे और फिर 8 बजे दो बार 15-15 मिनट के लिए बिजली चमकी लेकिन फिर गई तो साढ़े दस बजे यानि पूरे 12 घंटे बाद ही सामान्‍य हो सकी।
इस बारे में पूछे जाने पर विद्युत विभाग के शहरी एसई प्रदीप मित्तल ने बताया कि रात को हवा चलने पर गोकुल रेस्‍टोरेंट के पास ओवरहेड लाइन का तार टूट गया था, जिसे रात में हमारे कर्मचारी तलाश नहीं पाए। सुबह तार जोड़ दिया गया लेकिन फिर एकसाथ लोड बढ़ जाने के कारण सप्‍लाई बाधित करनी पड़ी।
गौरतलब है कि इसी क्षेत्र में स्‍थित राधा वैली कॉलोनी में ऊर्जा मंत्री ने अपने लिए किराए का एक आवास ले रखा है परंतु वहां की बिजली हवा चलने के एक घंटे बाद ही सुचारू हो गई। अधिकारियों की मानें तो ऊर्जा मंत्री की कॉलोनी को सप्‍लाई ”गौर केंद्र” नामक औद्योगिक क्षेत्र से मिलती है इसलिए वहां कोई समस्‍या खड़ी नहीं हुई।
वैसे ऊर्जा मंत्री ने राधा वैली में अपना अस्‍थाई निवास मथुरा की शहरी सीट से चुनाव लड़ने के दौरान बनाया था क्‍योंकि उन पर बाहरी होने का ठप्‍पा लगाया जा रहा था।
ऐसा इसलिए क्‍योंकि ऊर्जा मंत्री गोवर्धन के गांव गांठौली को करीब दो दशक पहले राम-राम कहकर चले गए और तभी अचानक सामने आए जब उनका नाम मथुरा की शहरी सीट से चुनाव लड़ने के लिए घोषित किया गया।
ऊर्जा मंत्री के चुनाव क्षेत्र का एक बड़ा हिस्‍सा 12 घंटे इस भीषण गर्मी में बिजली के लिए तरसता रहा किंतु ऊर्जा मंत्री को इसकी खबर भी लगी या नहीं लगी, इसकी खबर देने वाला कोई नहीं है।
”लीजेंड न्‍यूज़” ने ऊर्जा मंत्री के मोबाइल नंबर 09999476555 पर बात करने की कोशिश की तो फोन रिसीव करने वाले उनके किसी निजी सचिव ने कहा कि हमने नोट कर लिया है, थोड़ी देर में मंत्री जी से आपकी बात करा देंगे लेकिन शाम तक मंत्री जी या उनके किसी नुमाइंदे से भी जवाब नहीं मिला।
यहां उल्‍लेखनीय है कि बिजली को एक बड़ा मुद्दा बनाकर सत्‍ता पर काबिज होने वाली भाजपा सरकार के ऊर्जा मंत्री और मुख्‍यमंत्री ने भी इस आशय के आदेश विभागीय अधिकारियों को दे रखे हैं कि सामान्‍यत: तो बिजली की आपूर्ति में बाधा आनी ही नहीं चाहिए और आती भी है तो उसका तत्‍काल समाधान होना चाहिए। रात में तो बिजली की आपूर्ति शत-प्रतिशत सुनिश्‍चित होनी चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश में योगी आदित्‍यनाथ की सरकार बनने के बाद बिजली की आपूर्ति में उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है किंतु कल रात जिस तरह मात्र एक तार टूटने पर 12 घंटे सप्‍लाई ठप्‍प रही उसने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
लोगों के सोचने पर मजबूर होने का एक कारण यह भी है कि अभी तो आंधी रूपी हवाओं के चलने का यह प्रथम चरण है, अभी तो करीब दो महीने काफी तेज आंधियां भी आ सकती हैं और हवाएं भी चल सकती हैं। इसके बाद बारिश का दौर शुरू हो जाएगा और ऐसे में यदि बिजली विभाग इसी गति से काम करेगा तो ”अखिलेश राज” का अहसास होते देर नहीं लगेगी।
ऊर्जा मंत्री से मथुरा की जनता इसलिए भी अपेक्षा रखती है क्‍योंकि सांसद हेमा मालिनी स्‍थानीय जनप्रतिनिधि बनने के बावजूद स्‍वप्‍नसुंदरी ही बनी हुई हैं जबकि उनके कार्यकाल का आधे से अधिक हिस्‍सा बीत चुका है।
कहने को भाजपा ने यहां एक मीडिया प्रभारी और एक मीडिया प्रमुख भी बना रखा है लेकिन उनकी सक्रियता सिर्फ और सिर्फ किसी बड़े नेता के आगमन पर दिखाई देती है। सामान्‍य तौर पर मीडिया से उनकी दूरी किसी विशिष्‍ट व्‍यक्‍ति की तरह बनी रहती है जबकि भाजपा विशिष्‍ट और अति विशिष्‍ट कल्‍चर से मुक्‍त होने की हिमायती है। हालांकि मीडिया प्रमुख संजय शर्मा को जब यह जानकारी दी गई कि शहर का एक बड़ा क्षेत्र मात्र तार टूटने के कारण 12 घंटे अंधेरे में डूबा रहा तो उन्‍होंने कहा कि वह ऊर्जा मंत्री को इस बात से अवगत कराएंगे।
अब देखना होगा कि ऊर्जा मंत्री उनकी बात को कितनी गंभीरता से लेते हैं और भविष्‍य में इस भीषण गर्मी के चलते इस तरह की पुनरावृत्ति होने से रोक पाते हैं या नहीं।
बहरहाल, 2022 भले ही दूर हो लेकिन 2019 बहुत दूर नहीं है। श्रीकांत शर्मा हों या दूसरे विधायक और मंत्री, वीआपी कल्‍चर से मुक्‍त रहने का प्रदर्शन करने भर से काम नहीं चलेगा। वास्‍तविकता के धरातल पर आकर महसूस भी कराना होगा कि वह हर सुख-दुख में जनता के साथ खड़े हैं। पत्रकार तो क्‍या, किसी आमजन का भी नंबर मंत्री के निजी सचिव द्वारा नोट कर लेना उसी सरकारी कल्‍चर का हिस्‍सा है जिससे मुक्‍ति की बात तो भाजपा कर रही है, लेकिन मुक्‍त होती नजर नहीं आ रही।
अब बात मथुरा के ”पंडों” को लेकर दी गई सफाई पर
हाल में यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने अपने आगरा दौरे पर मथुरा व आगरा में सक्रिय ”लपकों” के साथ पंडों को भी जोड़ते हुए उनके खिलाफ अभियान चलाने की बात कही जबकि लपकों और पंडों को किसी भी तरह एकसाथ नहीं जोड़ा जा सकता।
देश के हर प्रमुख धार्मिक स्‍थल पर पंडे होते हैं, जो दरअसल पुरोहित हैं। पूरब से पश्‍चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक इन पुरोहितों का अपने यजमानों से एक ओर जहां आत्‍मिक रिश्‍ता होता है वहीं दूसरी ओर इनका उनके साथ पारिवारिक संबंध रहता है। यह एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं। एक-दूसरे के यहां ठहरते हैं और उनके सुख-दुख में सहभागी बनते हैं।
परहित सोचने वाले को पुरोहित कहा जाता है और पुरोहितों की इसी सोच ने देशभर में उन्‍हें हमेशा मान-सम्‍मान दिलाया है। यजमान नया हो अथवा पुराना, पुरोहित हमेशा उसके हित में ही लगा रहता है।
इसके ठीक विपरीत ”लपके” वह तत्‍व हैं जिनका एकमात्र मकसद किसी न किसी तरह यात्री, पर्यटक एवं सैलानियों का आर्थिक दोहन करना होता है। मथुरा में यह तत्‍व धर्म की आड़ लेकर इस काम को करते हैं तो आगरा जैसे पर्यटन स्‍थल पर अवैध गाइड के रूप में।
जाहिर है कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ द्वारा लपकों और पंडों को एक ही श्रेणी में रखकर किए गए कमेंट से मथुरा-वृंदावन सहित आसपास के सभी प्रमुख धार्मिक स्‍थलों के पुराहितों को ठेस लगना स्‍वाभाविक था लिहाजा सभी ने अपने-अपने तरह से योगी जी के कमेंट पर विरोध प्रदर्शन किया।
यहां सबसे महत्‍वपूर्ण और गौर करने वाली बात यह है कि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री और सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा भी जिस कौशिक परिवार से ताल्‍लुक रखते हैं उसका भी पारंपरिक व्‍यवसाय पुरोहिताई करना ही रहा है। कहने का अर्थ यह है कि वह या उनके परिवार में से किसी ने कभी पंडागीरी की हो अथवा न की हो किंतु हैं वह भी पंडा ही। ऐसे में उनके द्वारा मुख्‍यमंत्री के बचाव में मात्र इतना कह देना कि सरकार पंडा-पुरोहितों का पूरा सम्‍मान करती है, पर्याप्‍त नहीं है।
सरकार के प्रवक्‍ता की हैसियत से उन्‍हें आगे आकर मुख्‍यमंत्री को पंडों और लपकों का भेद बताना चाहिए और मथुरा जनपद के पुरोहितों से वायदा करना चाहिए कि भविष्‍य में ऐसी चूक नहीं होगी।
हो सकता है कि योगी आदित्‍यनाथ पंडों और लपकों में भारी फर्क से अनभिज्ञ हों लेकिन एक पुरोहित परिवार का हिस्‍सा होने के नाते ऊर्जा मंत्री व सरकार के प्रवक्‍ता श्रीकांत शर्मा को योगी जी के सामने स्‍थिति स्‍पष्‍ट करनी चाहिए न कि अपने स्‍तर पर बयान देकर सतही रूप से मामले को रफा-दफा करने का प्रयास करना चाहिए।
श्रीकांत शर्मा का यह पहला चुनाव था और पहली ही बार उन्‍हें मंत्रिपद प्राप्‍त हुआ है। उनसे पूर्व भी मथुरा से निर्वचित अनेक विधायक विभिन्‍न मंत्री पदों को सुशोभित करते रहे हैं किंतु आज उनकी राजनीति अवसान पर है।
बेहतर होगा कि श्रीकांत शर्मा उनके असमय राजनीतिक अवसान के कारणों को अपने जेहन में रखें अन्‍यथा यह तो जानते ही होंगे कि मथुरा को तीन लोक से न्‍यारी नगरी की उपमा भी प्राप्‍त है। पार्टी के 14 साल के वनवास को खत्‍म हुए अभी तो चौदह सप्‍ताह भी नहीं हुए। अभी मथुरा की जनता को उनकी दरकार है, फिर उन्‍हें मथुरा की दरकार होगी।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 8 मई 2017

योगी आदित्‍यनाथ ”एक्‍शन” में लेकिन मथुरा भाजपा ”डिप्रेशन” में

उत्तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ”एक्‍शन” में हैं लेकिन मथुरा भाजपा ”डिप्रेशन” में है। लगता है जैसे कि सूबे की सत्ता से ”वनवास” का समय पूरा होने के बाद अब मथुरा भाजपा ”अज्ञातवास” पर है।
मथुरा में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्‍यक्ष को एसएसपी मुकुल गुप्‍ता इसलिए अपने ऑफिस से दो वरिष्‍ठ भाजपा नेताओं के सामने गिरफ्तार करा देते हैं क्‍योंकि वह एसएसपी को आइना दिखाने की कोशिश करते हैं किंतु मथुरा भाजपा का कुछ पता नहीं रहता। एक कार्यकर्ता को एक दरोगा बुरी तरह पीट देता है लेकिन मथुरा की भाजपा चुप्‍पी साधे बैठे रहती है।
वृंदावन की महिलाओं के अश्‍लील फोटो सोशल साइट पर डाले जा रहे हैं और यह काम एक गिरोह द्वारा किया जा रहा है, पीड़ित महिलाएं कभी थाने के तो कभी समाज सेवकों और नेताओं के चक्‍कर काट रही हैं लेकिन मथुरा भाजपा निष्‍क्रिय है।
पीड़ित महिलाओं को पुलिस उसी तरह मीठी गोली देकर बहला रही है जिस तरह समाजवादी शासन में बहला चुकी है लेकिन मथुरा भाजपा के किसी नेता ने पुलिस से जवाब तलब करना जरूरी नहीं समझा।
भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्‍यक्ष को अपने कार्यालय से पकड़वाकर उनका शांति भंग करने की धारा 151 में चालान कराने वाले एसएसपी मोहित गुप्‍ता इस संवेदनशील मामले में कहते हैं कि जांच चल रही है, हरकत करने वालों को गिरफ्तार करने के प्रयास जारी हैं जबकि पीड़ित महिलाओं का कहना है कि इस घ्रणित अपराध को अंजाम देने वाले वृंदावन के अंदर ही छिपे हैं।
सत्‍ताधारी भारतीय जनता पार्टी के स्‍थानीय विधायक और मंत्री कहने को तो पार्टी कार्यालय पर बारी-बारी से जनशिकायतों के लिए मजमा लगाते हैं लेकिन उन जनशिकायतों का निवारण होना तो दूर, खुद विधायक और मंत्रियों की बात भी अधिकारी सुनने को तैयार नहीं। कभी बल्‍देव क्षेत्र के विधायक पूरन प्रकाश को पार्टी कार्यालय के निकट बने शौचालय का ताला तोड़ना पड़ता है तो कभी तत्‍कालीन डीएम का तबादला होने जैसी थोथी दलील देनी पड़ती है।
आश्‍चर्य की बात तो यह है कि बल्‍देव क्षेत्र के विधायक पूरन प्रकाश को जिस सार्वजनिक शौचालय का ताला तोड़ना पड़ा, उसकी चाभी उस नगर पालिका प्रशासन के कब्‍जे में थी जिस पर भाजपा नेत्री मनीषा गुप्‍ता काबिज हैं। विधायक पूरन प्रकाश पूर्व में पालिका प्रशासन से शौचालय का ताला खुलावाने को कह चुके थे लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी।
विश्‍व हिंदू परिषद के नेता और पूर्व आर्मी अफसर कैप्‍टिन हरिहर शर्मा अपने शहीद पुत्र की पत्‍नी के नाम जमीन को दंबंगों के अवैध कब्‍जे से मुक्‍त कराने के लिए कभी पुलिस की तो कभी अपनी ही पार्टी के विधायकों की गणेश परिक्रमा कर रहे हैं लेकिन कहीं से राहत मिलती नजर नहीं आ रही पर मथुरा भाजपा चुप्‍पी साधे बैठी है।
भाजपा के ही फायर ब्रांड हिंदूवादी नेता और यमुना को प्रदूषण मुक्‍त कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा एनजीटी में याचिका दाखिल करने वाले गोपेश्‍वर नाथ चतुर्वेदी को अधिकारियों से शिकायत करनी पड़ रही है कि आज भी अवैध रूप से बूचड़ खाने चल रहे हैं और अवैध बूचड़खाने चलाने वालों ने पूर्व में सील किए गए कट्टीघर की दीवार तोड़ दी है लेकिन मथुरा भाजपा के स्‍तर से उनका साथ देने कोई खड़ा नहीं होता।
होता है तो यह कि मीट की जिन अवैध दुकानों को बंद कराने के लिए सपा तथा उससे पहले बसपा के शासन में भी भाजपा के कुछ लोग एड़ी-चोटी का जोर लगाते रहे, उन्‍हें जब प्रदेश का निजाम बदलने के बाद हवा का रुख देखकर जिला प्रशासन ने बंद कराया तो भाजपा नेत्री मनीषा गुप्‍ता के नेतृत्‍व वाले नगर पालिका प्रशासन ने मानकों को ताक पर रखकर उनके लिए लाइसेंस जारी कर दिया। अब चंद भाजपाई उन लाइसेंसों को निरस्‍त कराने की कोशिश कर रहे हैं किंतु मथुरा भाजपा जीत की खुमारी उतारने में व्‍यस्‍त है।
योगी सरकार और उसके नुमाइंदे ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा द्वारा बार-बार कहे जाने के बावजूद बिजली विभाग गरीबों को बिना पैसे बिजली कनैक्‍शन देने के लिए तैयार नहीं है लेकिन मथुरा भाजपा हाथ पर हाथ रखे बैठी है।
मथुरा भाजपा की कमान संभाले बैठे चौधरी तेजवीर सिंह तीन बार सांसद रह चुके हैं, लिहाजा उनकी कार्यप्रणाली से जिले की जनता बखूबी परिचित है। मथुरा में भाजपा को ”इतिहास बनाने वालों” की सूची के वह टॉपर रहे हैं लेकिन प्रदेश भाजपा को उनमें पता नहीं ऐसा क्‍या नजर आ रहा है कि वह उन्‍हें ही खेवनहार समझे बैठी है।
सब जानते हैं कि जो चौधरी तेजवीर सिंह तीन बार की अपनी सांसदी के दौरान किसी समस्‍या का समाधान कराने में सफल नहीं हुए, वो जिलाध्‍यक्ष के रूप में ऐसा क्‍या कर लेंगे जिसकी जनता को भाजपा से उम्‍मीद की जा रही है।
प्रदेश के कबीना मंत्री और छाता क्षेत्र से विधायक लक्ष्‍मीनारायण चौधरी को पार्टी के जिला कार्यालय में जनसुनवाई के दौरान एक फरियादी ने बताया कि उसकी पत्रावली पर एडीएम वित्त से लेकर तहसीलदार तक ने काम करने के आदेश जारी कर रखे हैं लेकिन एक लेखपाल उस पर कुंडली मारकर बैठा है।
फरियादी के अनुसार लेखपाल का कहना है कि तुमने भाजपा को वोट दिया है इसलिए अब भाजपा वालों से ही काम करा लो।
सदर तहसील के इस लेखपाल को वहां से हटाकर छाता तहसील भेजने का मौखिक आदेश मंत्री चौधरी लक्ष्‍मीनारायण ने तत्‍कालीन डीएम नितिन बंसल को दिया ताकि वह निष्‍पक्ष काम में रुकावट न बने किंतु डीएम ने मंत्री जी का आदेश एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया।
इसके बाद यही फरियादी प्रदेश के ऊर्जा मंत्री, सरकार के प्रवक्‍ता और मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक श्रीकांत शर्मा से उनके राधा वैली स्‍थित मकान पर आकर मिला और अपनी व्‍यथा तथा प्रशासन की कथा बताई, जिस पर ऊर्जा मंत्री ने पूरी ऊर्जा से दावा किया कि 24 घंटों के अंदर समस्‍या का समाधान हो जाएगा। कल ऊर्जा मंत्री के दावे को 24 घंटे बीत गए लेकिन नतीजा अब भी ढाक के तीन पात है।
यह हाल तो तब है जबकि जिलाध्‍यक्ष चौधरी तेजवीर सिंह हर शिकायत का लेखा-जोखा रखने की बात कहते हैं और बताते हैं कि कृत कार्यवाही का ब्‍यौरा भी ले रहे हैं।
जिलाध्‍यक्ष की मानें तो जिस विभाग द्वारा काम नहीं किया जाएगा, उस विभाग की शिकायत मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ से की जाएगी।
अब जिलाध्‍यक्ष को कौन समझाए कि यदि योगी आदित्‍यनाथ को ही सारी शिकायतों का निस्‍तारण कराना होता तो क्‍यों वह अधिकारियों को कोई आदेश-निर्देश देते और क्‍यों यह कहते कि जनप्रतिनिधियों को जनता की शिकायतें न सिर्फ सुननी हैं बल्‍कि उनका निराकरण भी करना व कराना है।
योगी आदित्‍यनाथ के स्‍तर से ही सब-कुछ होगा तो संगठन की जिला कार्यकारिणी क्‍या करेगी, क्‍या वह केवल मंत्रियों के आगमन पर उनके इर्द-गिर्द खड़े होकर फोटो खिंचवाती रहेगी ताकि सनद रहे और वक्‍त जरूरत काम आए।
कल की ही अपनी लखनऊ मीटिंग में योगी आदित्‍यनाथ ने कार्यकताओं से कहा है कि मंत्रियों का स्‍वागत करने और उन्‍हें मालाएं पहनाने तक सीमित मत रहो। जनता के बीच जाकर उसकी समस्‍याओं का समाधान करो क्‍योंकि सत्‍ता हमें मौज करने के लिए नहीं मिली है। जनता ने भरोसा किया है अत: उसके भरोसे का मान रखो किंतु लगता है कि मथुरा भाजपा ऊंचा सुनती है। उसे लखनऊ की आवाज सुनाई नहीं देती।
यह हाल तो तब है जबकि नगर निकाय के चुनाव सिर पर हैं और भाजपा नेत्री मनीषा गुप्‍ता के नेतृत्‍व वाले नगर पालिका प्रशासन पर पौने दो करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप शासन स्‍तर पर तथा एनजीटी में लंबित है। आम जन तो क्‍या, खुद भाजपाई भी मनीषा गुप्‍ता के कार्यकाल से खुश नहीं हैं। चेयर पर्सन मनीषा गुप्‍ता पर भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाने वालों में भाजपाई ही आगे रहे हैं।
माना कि मोदी जी का मुखौटा फिलहाल जमकर बिक रहा है और उसके सामने शिकवा-शिकायतें फीकी पड़ जाती हैं किंतु नगर निकाय के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव भी सामने है। स्‍वप्‍न सुंदरी सांसद ने तीन साल से ऊपर का समय तो यह बताकर निकाल लिया कि यूपी में भाजपा की सरकार न होने के कारण वह अपेक्षित काम नहीं कर सकीं किंतु अब यह डायलॉग काम आने वाला नहीं है। अब उन्‍हें भी कुछ करके दिखाना होगा वर्ना जनता उसी तरह ठेंगा दिखा देगी जिस तरह जयंत चौधरी को दिखाया था।
स्‍वप्‍न सुंदरी तो स्‍वप्‍न सुंदरी हैं, हो सकता है उन्‍हें आगे की जीत-हार से कोई खास फर्क न पड़े लेकिन चौधरी तेजवीर सिंह एंड पार्टी और तमाम दूसरे स्‍थानीय भाजपा नेता आगे आने वाले परिणामों से जरूर प्रभावित होंगे। प्रभावित तो मोदी जी और विश्‍व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा भी होगी इसलिए बेहतर है कि समय रहते सच्‍चाई को जान लें और समझ लें कि आमजन को कथा-पटकथा से ज्‍यादा मतलब नहीं होता। उसे मतलब होता है तो अपने काम से। काम के लिए आराम हराम है, और यही मंत्र मोदी जी का है तथा यही योगी जी का भी।
योगी जी की तरह एक्‍शन में रहोगे तो रिएक्‍शन नहीं होगा लेकिन यदि इसी प्रकार डिप्रेशन में बने रहे जैसे कि सत्ता पर काबिज होने के लगभग डेढ़ महीने बाद तक बने हुए हो तो तय जानिए कि रिएक्‍शन बड़ा भी हो सकता है।
जिलाध्‍यक्ष तेजवीर सिंह तो जनता के एक्‍शन और रिएक्‍शन दोनों का स्‍वाद भली प्रकार चख चुके हैं लिहाजा उनसे उम्‍मीद की जाती है कि लॉलीपॉप पकड़ाने की राजनीति समय रहते त्‍याग देंगे अन्‍यथा जनता के पास भाजपा को त्‍यागने के बहुत मौके होंगे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

जवाहर बाग कांड का जिन्‍न ”रामवृक्ष” फिर बोतल से बाहर, CBI के सामने चुनौती

मथुरा का जवाहर बाग कांड आज ठीक साढ़े 10 महीने बाद एकबार फिर तब सुर्खियों में आ गया जब पता लगा कि उक्‍त कांड को अंजाम देने वाले तथाकथित सत्‍याग्रहियों के सरगना रामवृक्ष यादव के कथित शव का डीएनए उसके लड़के से मैच नहीं कर रहा।
पुलिस ने रामवृक्ष यादव के कथित शव का डीएनए टेस्‍ट हैदराबाद फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री से कोर्ट के आदेश पर इसलिए करवाया था क्‍योंकि कोर्ट ने उपद्रव के दौरान रामवृक्ष के मारे जाने का पुलिसिया दावा पूरी तरह खारिज कर दिया था।
विभिन्‍न याचिकाओं के आधार पर कोर्ट द्वारा रामवृक्ष के शव को लेकर व्‍यक्‍त की गई शंका आज हैदराबाद फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री की रिपोर्ट के बाद सही साबित हुई।
ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जिस व्‍यक्‍ति के अवशेषों को पुलिस ने रामवृक्ष का शव बताकर कहानी गढ़ी, वह शव रामवृक्ष का नहीं था तो रामवृक्ष गया कहां और जिसके शव को रामवृक्ष का बताया गया, वह शव आखिर किसका था?
इसके अलावा भी कई अन्‍य महत्‍वपूर्ण सवाल खड़े होते हैं। मसलन, पुलिस को किसी का भी शव रामवृक्ष का बताने की जरूरत क्‍या थी?
क्‍या पुलिस जानती थी कि वह रामवृक्ष के शव को लेकर झूठा दावा कर रही है और यदि उसने यह झूठा दावा किया तो किसे बचाने के लिए किया जबकि पुलिस के ही दो जांबाज अफसरों की रामवृक्ष व उसके गुर्गों ने जवाहर बाग के अंदर घेरकर बेरहमी से हत्‍या कर दी थी।
जाहिर है कि इन सभी प्रश्‍नों के उत्तर यदि कोई दे सकता है तो वही तत्‍कालीन पुलिस अफसर दे सकते हैं जिन्‍होंने जवाहर बाग कांड को अंजाम दिलाने में जाने-अनजाने बड़ी भूमिका अदा की।
2 जून 2016 से पहले के दो सालों में जिन-जिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने मथुरा को सुशोभित किया, उन्‍होंने ही इस कांड की पटकथा अपने-अपने हिसाब से लिखी नतीजतन अदना सा रामवृक्ष एक ऐसा विषवृक्ष बन बैठा जिसे उखाड़ फेंकना बहुत भारी पड़ गया।
फिलहाल, जवाहर बाग कांड की जांच हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई द्वारा की जा रही है लिहाजा अब सच्‍चाई का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सीबीआई पर है। सीबीआई के लिए निश्‍चित ही इस कांड की परतें उघाड़ना किसी चुनौती से कम नहीं होगा क्‍योंकि इसकी जड़ें एक ओर जहां राजनीतिक गलियारों से जुड़ी हैं वहीं दूसरी ओर ब्‍यूरोक्रेट्स से ताल्‍लुक रखती हैं।
बताया जाता है कि रामवृक्ष यादव को गायब करने का मकसद ही यह था कि किसी भी प्रकार उसके राजनीतिक संरक्षणदाताओं का खुलासा न हो पाए और न यह पता लग पाए कि रामवृक्ष की योजना में कौन-कौन पर्दे के पीछे से शामिल था।
सर्वविदित है कि जिस प्रकार रामवृक्ष ने पूरे दो साल तक पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को उनकी नाक के नीचे रहकर खुली चुनौती दी और अपना पूरा साम्राज्‍य खड़ा किया, वह उसके अकेले के बस की बात नहीं थी। सैकड़ों लोगों की भोजन व्‍यवस्‍था करना भी आसान काम नहीं था। हथियारों से लेकर वाहनों तक का जखीरा उसने यूं ही इकठ्ठा नहीं कर लिया होगा। कोई तो होगा जिसने एक सामान्‍य कद काठी के बुजुर्ग को इतनी पॉवर दे रखी थी कि वह समूचे जिले के सरकारी अमले को अपनी ठोकर पर रखता था और उनकी खुलेआम बेइज्‍जती करता था।
हजारों करोड़ रुपए मूल्‍य की जिस सरकारी जमीन पर वह अवैध रूप से काबिज था, उसकी बाउंड्री के अंदर बिना उसकी इजाजत के घुसने की कोई हिम्‍मत नहीं करता था।
2 जून 2016 की शाम एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी तथा एसओ फरह संतोष यादव ने जब रामवृक्ष की मर्जी के खिलाफ जवाहर बाग की बाउंड्री तोड़कर घुसने की हिम्‍मत दिखाई तो उसने दोनों अफसरों की जान ले ली।
ज़रा अंदाज लगाइए कि रामवृक्ष व उसके गुर्गों का रूप कितना वीभत्‍स रहा होगा कि इन दोनों पुलिस अफसरों के हमराह तक उनका साथ छोड़कर भाग खड़े हुए।
बहरहाल, इसमें शायद ही किसी को शक हो कि यदि जवाहर बाग कांड का पूरा सच किसी तरह सामने आ गया तो बहुत से ऐसे चेहरे बेनकाब होंगे जिनका उस समय की सत्ता से सीधा संबंध रहा है। फिर वो चाहे राजनेता हों अथवा नौकरशाह।
रहा सवाल इस बात का कि क्‍या रामवृक्ष जीवित है, तो इसकी संभावना बहुत कम है क्‍योंकि पुलिस इतनी कच्‍ची गोलियां कभी नहीं खेलती।
पुलिस के तत्‍कालीन अफसर भली प्रकार जानते थे कि यदि रामवृक्ष जिंदा बच गया तो वह सबका कच्‍चा चिठ्ठा खोल देगा, और कच्‍चा चिठ्ठा एकबार सामने आ गया तो उसके परिणाम बहुत दूरगामी होंगे।
यह बात अलग है कि जिस व्‍यक्‍ति के अवशेषों को पुलिस ने रामवृक्ष का शव बताकर सारी कहानी का पटाक्षेप करना चाहा, वह रामवृक्ष का नहीं निकला।
सच तो यह है कि पुलिस सबकुछ पहले से जानती थी और उसने रामवृक्ष को लेकर भी जो कहानी गढ़ी, वह पूर्व नियोजित थी।
पुलिस जानती थी कि रामवृक्ष उसके लिए जितना बड़ा सिरदर्द जिंदा रहते बना रहा, उतना ही मरने के बाद उस स्‍थिति में बन जाता जिस स्‍थिति में उसे उसका पोस्‍टमॉर्टम कराना पड़ता।
पुलिस ने इसीलिए रामवृक्ष के जिंदा रहने अथवा मारे जाने को एक रहस्‍य बनाकर छोड़ दिया। पुलिस बहुत अच्‍छी तरह जानती थी कि इस रहस्‍य से पर्दा उठाना किसी के लिए आसान नहीं होगा। सीबीआई के लिए भी नहीं।
-लीजेंड न्‍यूज़
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