उत्तर प्रदेश के पदच्युत मुख्यमंत्री अखिलेश यादव में गुजरात के गधों
जितना भी दिमाग नहीं हैं, यह उन्होंने कल के अपने बयान से खुद-ब-खुद सिद्ध
कर दिया।
यह कहना है गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह का। लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया इसी साल जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे।
नाराज मुनीम सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि एक आदमी जो अपने पिता का नहीं हो सका, वह देश का क्या होगा?
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में उन्होंने हिंदू और मुस्लिमों को बांटा। ऐसे ही ठाकुरों, ब्राह्मणों और राजपूतों को बांटा। इसी बांटने वाली राजनीति के कारण उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया। उन्होंने पूर्व में गुजरात के गधों को लेकर बात की थी और आज साबित कर दिया है कि उनके पास एक गधे के बराबर भी दिमाग नहीं है।’
एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई कहते हैं, ‘अखिलेश यादव ने जो कहा वह बेवकूफी की हद है। शहीद सिर्फ शहीद होता है भले ही वह यूपी, बिहार या कहीं और का हो। यह बहुत घृणित बयान है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, चाहे यह कोई आम आदमी कहे या फिर कोई पूर्व सीएम।’
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कल कहा था कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत और देश के दूसरे हिस्से के जवानों ने शहादत दी है। कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा था कि गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह और एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई ने अखिलेश यादव के इसी बयान पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने पूछा है कि अखिलेश यादव क्या आप जानते हैं?
1- विजयवाड़ा के नजदीक साबरकांठा जिले के मात्र 6500 की जनसंख्या वाले कोडियावाड़ा में 1,200 से अधिक लोग भारतीय सेना के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 700 परिवार वाले इस गांव में हर परिवार से एक से अधिक सदस्य सेना में है।
2- गुजरात में मार्च 31 तक 26,656 पूर्व सर्विसमैन थे और 3,517 शहीदों की विधवाएं। इनमें से 6,223 तो सिर्फ अहमदाबाद से ही थे। गुजरात के 39 बेटों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गुजरात के 20 बेटों ने आंतकियों से लोहा लेते हुए अपनी जान गंवाई और 24 बेटों ने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान किया।
1999 के करगिल युद्ध में शहीद हुए मुकेश राठौड़ की पत्नी राजश्री का कहना है, ‘अखिलेश का बयान हमारे लिए दिल तोड़ने वाला है।
कहते हैं कि कमान से निकला हुआ तीर और जुबान से निकले हुए शब्द, वापस नहीं लिए जा सकते। अखिलेश यादव ने जो बोल दिया सो बोल दिया।
बहरहाल, अखिलेश के इस बयान ने एक रहस्य पर से पर्दा जरूर उठा दिया।
वह रहस्य जिसे अखिलेश ने ही यूपी के चुनावों में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से दोस्ती करके गठबंधन के रूप में क्रिएट किया था।
अब शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि अखिलेश और राहुल की दोस्ती का आधार पार्टी के धरातल पर न होकर बुद्धि के धरातल पर था।
यह बात अलग है कि अखिलेश की बुद्धि का पता उनके चुनाव हारने के बाद लगा है और राहुल की बुद्धि का आंकलन कांग्रेस के साथ-साथ देश ने भी बहुत पहले ही कर लिया था। यह भी एक इत्तिफाक है कि दोनों युवराज अपनी अंतिम शिक्षा विदेश से प्राप्त करके आए थे।
यूपी को ”इनका साथ” कितना पसंद आया, यह बताने की तो अब कोई जरूरत रह नहीं गई अलबत्ता यह बताना शायद आवश्यक हो गया है कि पढ़ाई देश में हो अथवा विदेश में, दिमाग के अंदर उतनी ही समा पाती है जितना दिमाग आपके पास होता है। बाकी तो सब सिर के ऊपर से निकल जाती है।
वैसे भी पढ़ाई और शिक्षा दो अलग-अलग चीजें हैं। अखिलेश यादव पढ़े-लिखे हो सकते हैं किंतु शिक्षित नजर नहीं आते। शिक्षा प्राप्त की होती तो गुजरात से शहीद हुए जवानों की बावत कुछ तो पता होता।
उन्होंने तो सीधे-सीधे न सिर्फ सवाल दाग दिया बल्कि जवाब भी दे दिया।
पहले कहा, कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
फिर बोले, गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
मुझे तो लगता है कि वह भारत के भौगोलिक ज्ञान से भी शून्य हैं। उन्हें शायद ही पता हो कि भारत कितना बड़ा है और उसकी सीमाएं कहां-कहां तक फैली हुई हैं।
ऐसा भी संभव है कि यूपी के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्हें यूपी में ही संपूर्ण भारत के दर्शन होते रहे हों और इसीलिए वह कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देते थे तो कभी गुजरात के गधों का विज्ञापन देखकर भड़क जाते थे।
रही-सही कसर राहुल गांधी से उस दोस्ती ने पूरी कर दी जिसकी खातिर वह अब भी गुनगुना रहे हैं कि ”ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे”।
गोस्वामी तुलसीदास सैकड़ों साल पहले कह गए थे कि ”जाकों प्रभु दारुण दु:ख दैहीं, ताकी मति पहले हर लैहीं”।
अखिलेश के बयानों को सुनकर अब ऐसा लगने लगा है कि वह एक ओर जहां समाजवादी पार्टी को इतिहास बना देने वाले आखिरी युवराज साबित होंगे वहीं दूसरी ओर समाजवादी कुनबे के लिए अंतिम मुख्यमंत्री।
बताते हैं कि उनके बचपन का नाम टीपू है जिसे लेकर वह हमेशा खुद के टीपू सुल्तान होने का मुगालता पालते रहे। टीपू तो सामान्य बोलचाल की भाषा में टीपने वाले यानि नकल करने वाले को भी कहते हैं।
अक्ल के इस्तेमाल में अखिलेश, राहुल गांधी की नकल कर रहे हैं या अपनी बुआ मायावती की, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन इतना तो कोई भी बता सकता है कि उनके पास अक्ल बहुत इफराती नहीं है।
ऐसे में शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह द्वारा अखिलेश को गुजरात के गधों से भी कम अक्ल बताना और एयरफोर्स से ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई द्वारा बेवकूफ की संज्ञा देना, कोई अतिशयोक्ति नजर नहीं आती।
सच तो यह है कि चाहे किसी शहीद का पिता हो अथवा चाहे कोई सेवानिवृत आर्मी अफसर, अखिलेश जैसे बयानवीरों को इससे ज्यादा शलीन शब्दों में जवाब दे नहीं दे सकता क्योंकि इनके लिए इतना तो बनता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
यह कहना है गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह का। लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया इसी साल जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए थे।
नाराज मुनीम सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि एक आदमी जो अपने पिता का नहीं हो सका, वह देश का क्या होगा?
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश में उन्होंने हिंदू और मुस्लिमों को बांटा। ऐसे ही ठाकुरों, ब्राह्मणों और राजपूतों को बांटा। इसी बांटने वाली राजनीति के कारण उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया। उन्होंने पूर्व में गुजरात के गधों को लेकर बात की थी और आज साबित कर दिया है कि उनके पास एक गधे के बराबर भी दिमाग नहीं है।’
एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई कहते हैं, ‘अखिलेश यादव ने जो कहा वह बेवकूफी की हद है। शहीद सिर्फ शहीद होता है भले ही वह यूपी, बिहार या कहीं और का हो। यह बहुत घृणित बयान है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, चाहे यह कोई आम आदमी कहे या फिर कोई पूर्व सीएम।’
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कल कहा था कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत और देश के दूसरे हिस्से के जवानों ने शहादत दी है। कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा था कि गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
गुजरात के शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह और एयरफोर्स से बतौर नॉन कमिशंड ऑफिसर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई ने अखिलेश यादव के इसी बयान पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने पूछा है कि अखिलेश यादव क्या आप जानते हैं?
1- विजयवाड़ा के नजदीक साबरकांठा जिले के मात्र 6500 की जनसंख्या वाले कोडियावाड़ा में 1,200 से अधिक लोग भारतीय सेना के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 700 परिवार वाले इस गांव में हर परिवार से एक से अधिक सदस्य सेना में है।
2- गुजरात में मार्च 31 तक 26,656 पूर्व सर्विसमैन थे और 3,517 शहीदों की विधवाएं। इनमें से 6,223 तो सिर्फ अहमदाबाद से ही थे। गुजरात के 39 बेटों को वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। गुजरात के 20 बेटों ने आंतकियों से लोहा लेते हुए अपनी जान गंवाई और 24 बेटों ने देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए प्राणों का बलिदान किया।
1999 के करगिल युद्ध में शहीद हुए मुकेश राठौड़ की पत्नी राजश्री का कहना है, ‘अखिलेश का बयान हमारे लिए दिल तोड़ने वाला है।
कहते हैं कि कमान से निकला हुआ तीर और जुबान से निकले हुए शब्द, वापस नहीं लिए जा सकते। अखिलेश यादव ने जो बोल दिया सो बोल दिया।
बहरहाल, अखिलेश के इस बयान ने एक रहस्य पर से पर्दा जरूर उठा दिया।
वह रहस्य जिसे अखिलेश ने ही यूपी के चुनावों में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से दोस्ती करके गठबंधन के रूप में क्रिएट किया था।
अब शायद लोगों को समझ में आ गया होगा कि अखिलेश और राहुल की दोस्ती का आधार पार्टी के धरातल पर न होकर बुद्धि के धरातल पर था।
यह बात अलग है कि अखिलेश की बुद्धि का पता उनके चुनाव हारने के बाद लगा है और राहुल की बुद्धि का आंकलन कांग्रेस के साथ-साथ देश ने भी बहुत पहले ही कर लिया था। यह भी एक इत्तिफाक है कि दोनों युवराज अपनी अंतिम शिक्षा विदेश से प्राप्त करके आए थे।
यूपी को ”इनका साथ” कितना पसंद आया, यह बताने की तो अब कोई जरूरत रह नहीं गई अलबत्ता यह बताना शायद आवश्यक हो गया है कि पढ़ाई देश में हो अथवा विदेश में, दिमाग के अंदर उतनी ही समा पाती है जितना दिमाग आपके पास होता है। बाकी तो सब सिर के ऊपर से निकल जाती है।
वैसे भी पढ़ाई और शिक्षा दो अलग-अलग चीजें हैं। अखिलेश यादव पढ़े-लिखे हो सकते हैं किंतु शिक्षित नजर नहीं आते। शिक्षा प्राप्त की होती तो गुजरात से शहीद हुए जवानों की बावत कुछ तो पता होता।
उन्होंने तो सीधे-सीधे न सिर्फ सवाल दाग दिया बल्कि जवाब भी दे दिया।
पहले कहा, कोई मुझे बता सकता है कि गुजरात का कोई जवान देश की रक्षा के लिए शहीद हुआ हो?
फिर बोले, गुजरात के किसी जवान ने आज तक शहादत नहीं दी है।
मुझे तो लगता है कि वह भारत के भौगोलिक ज्ञान से भी शून्य हैं। उन्हें शायद ही पता हो कि भारत कितना बड़ा है और उसकी सीमाएं कहां-कहां तक फैली हुई हैं।
ऐसा भी संभव है कि यूपी के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए उन्हें यूपी में ही संपूर्ण भारत के दर्शन होते रहे हों और इसीलिए वह कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देते थे तो कभी गुजरात के गधों का विज्ञापन देखकर भड़क जाते थे।
रही-सही कसर राहुल गांधी से उस दोस्ती ने पूरी कर दी जिसकी खातिर वह अब भी गुनगुना रहे हैं कि ”ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे”।
गोस्वामी तुलसीदास सैकड़ों साल पहले कह गए थे कि ”जाकों प्रभु दारुण दु:ख दैहीं, ताकी मति पहले हर लैहीं”।
अखिलेश के बयानों को सुनकर अब ऐसा लगने लगा है कि वह एक ओर जहां समाजवादी पार्टी को इतिहास बना देने वाले आखिरी युवराज साबित होंगे वहीं दूसरी ओर समाजवादी कुनबे के लिए अंतिम मुख्यमंत्री।
बताते हैं कि उनके बचपन का नाम टीपू है जिसे लेकर वह हमेशा खुद के टीपू सुल्तान होने का मुगालता पालते रहे। टीपू तो सामान्य बोलचाल की भाषा में टीपने वाले यानि नकल करने वाले को भी कहते हैं।
अक्ल के इस्तेमाल में अखिलेश, राहुल गांधी की नकल कर रहे हैं या अपनी बुआ मायावती की, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन इतना तो कोई भी बता सकता है कि उनके पास अक्ल बहुत इफराती नहीं है।
ऐसे में शहीद लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के पिता मुनीम सिंह द्वारा अखिलेश को गुजरात के गधों से भी कम अक्ल बताना और एयरफोर्स से ऑफिसर के तौर पर सेवानिवृत होने वाले नरेंद्र देसाई द्वारा बेवकूफ की संज्ञा देना, कोई अतिशयोक्ति नजर नहीं आती।
सच तो यह है कि चाहे किसी शहीद का पिता हो अथवा चाहे कोई सेवानिवृत आर्मी अफसर, अखिलेश जैसे बयानवीरों को इससे ज्यादा शलीन शब्दों में जवाब दे नहीं दे सकता क्योंकि इनके लिए इतना तो बनता है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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