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सोमवार, 19 जुलाई 2021
मुकुट मुखारविंद मंदिर घोटाला: रिसीवर रमाकांत की याचिका हाईकोर्ट से खारिज़
गोवर्धन के प्रसिद्ध मंदिर मुकुट मुखारविंद में हुए करोड़ों रुपए के घोटाले की जांच और उसके उपरांत दर्ज हुई FIR पर सवाल उठाने वाली याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज़ कर दी है।घोटाले के मुख्य आरोपी और कोर्ट से नियुक्त मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्वामी ने यह याचिका इसी साल फरवरी में दायर की थी।
आरोपी के अनुसार चूंकि उसे कोर्ट से रिसीवर नियुक्त किया गया था लिहाजा न तो गोवर्धन के एसडीएम को मंदिर में हुए किसी घोटाले की जांच करने का अधिकार था और न ही उस जांच के आधार पर SIT कोई FIR दर्ज करा सकती थी।
रमाकांत गोस्वामी ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) सहित जिलाधिकारी मथुरा तथा उपजिलाधिकारी (एसडीएम) गोवर्धन को पार्टी बनाते हुए 05 फरवरी 2021 को यह याचिका दायर की थी जिसे 10 फरवरी 2021 को कोर्ट ने रजिस्टर्ड किया।
उल्लेखनीय है कि करीब 3 वर्ष पूर्व इंपीरियल पब्लिक फाउंडेशन नामक एनजीओ ने गोवर्धन स्थित विश्व प्रसिद्ध मंदिर मुकुट मुखारविंद में करोड़ों रुपए का घोटाला किए जाने की शिकायत तहसील दिवस पर प्रार्थना प्रत्र देकर की थी।
इस शिकायत के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्रा द्वारा मामले की जांच गोवर्धन के तत्कालीन एसडीएम नागेन्द्र कुमार सिंह को सौंप दी गई।
एसडीएम नागेन्द्र कुमार सिंह ने अपनी जांच में प्रथम दृष्ट्या रिसीवर रमांकत पर लगाए गए सभी आरोपों को सही पाया, बावजूद इसके यूपी SIT ने अपने स्तर से फिर इस मामले की जांच की।
जांच पूरी करने के बाद यूपी SIT के निरीक्षक कुंवर ब्रह्मप्रकाश ने अपने यहां क्राइम नंबर 0010/20120 पर यह मामला 11 सितंबर 2020 की शाम 6 बजकर 46 मिनट पर दर्ज करा दिया।
तब से यह मामला पता नहीं किन कारणोंवश लटका रहा लिहाजा इसमें मुख्य आरोपी रमाकांत गोस्वामी या किसी अन्य आरोपी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई जबकि SIT ने इसमें करीब डेढ़ दर्जन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है।
SIT की इसी ढील का फायदा उठाकर मुख्य आरोपी रमाकांत गोस्वामी अपने बचाव में कोई न कोई नया हथकंडा इस्तेमाल करते रहते हैं।
बहरहाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत 13 जुलाई को रमाकांत गोस्वामी की याचिका का निस्तारण करते हुए अपने आदेश में लिखा है कि एसडीएम गोवर्धन की जांच और SIT द्वारा दर्ज कराई गई FIR से याचिकाकर्ता के किसी अधिकार का हनन होता प्रतीत नहीं हुआ इसलिए याचिका खारिज़ की जाती है।
इस बारे में मंदिर घोटाले की सर्वप्रथम शिकायत करने वाले एनजीओ इंपीरियल पब्लिक फाउंडेशन के अध्यक्ष रजत नारायण का कहना है कि रमाकंत गोस्वामी को अपर सिविल जज प्रथम मथुरा के आदेश से गोवर्धन स्थित मुकुट मुखारविंद मंदिर का रिसीवर नियुक्त किया गया था न कि वो स्वयं में कोई न्यायिक अधिकारी हैं।
हालांकि उनका व्यवहार यही दर्शाता है कि वह खुद को सबसे ऊपर समझ रहे हैं और इसलिए न केवल एसडीएम की जांच तथा SIT की FIR पर प्रश्नचिन्ह लगाने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि उन्हें कानूनन गलत साबित करने की कोशिश में लगे हैं।
अब देखना यह होगा कि एसडीएम की जांच और SIT की FIR को चुनौती देने वाली मुख्य आरोपी रमाकांत की याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट से खारिज़ कर दिए जाने के बाद भी SIT हाथ पर हाथ रखे बैठी रहती है या करोड़ों लोगों की आस्था एवं विश्वास से खिलवाड़ करने वाले घोटालेबाजों की धरपकड़ शुरू कर कानून पर भरोसा कायम रहने का काम करती है।
– सुरेन्द्र चतुर्वेदी
बुधवार, 14 जुलाई 2021
बबुआ! ऐसा लगता है कि पुलिस का खून सफेद हो गया है… वो पुराने हुक्मरानों से बेवफा हो गई है, समझ लो
सुनो…सुनो…सुनो। यूपी के वाशिंदो सुनो। बुआ एंड बबुआ पार्टी प्रदेश की पुलिस का कायापलट करने जैसा पावन विचार रखती है, बशर्ते आप उसे एक मौका और दें।बुआ एंड बबुआ, या बुआ अथवा बबुआ में से किसी को भी यदि आप 2022 के विधानसभा चुनावों में सत्ता की कमान सौंप देते हैं तो आपके प्रदेश की पुलिस कम से कम दोरंगी और अधिक से अधिक तिरंगी हो जाएगी।
यदि बुआ एंड बबुआ पार्टी को सत्ता मिलती है तो पुलिस की ‘खाकी को खाक’ में मिलाने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा और उसकी जगह पुलिस के सिर पर नीली टोपी, लाल कमीज और हरा पैंट सजेगा।
यदि सिर्फ बबुआ को यूपी का भाग्य विधाता बनाया जाता है तो पुलिस की कैप लाल, शर्ट हरी और उसके नीचे पैंट फिर लाल कलर का होगा।
ठीक इसी तरह अगर बुआ को ये जिम्मेदारी मिलती है तो प्रदेश पुलिस नीली वर्दी में सजी-संवरी नजर आएगा। दोनों ही परिस्थितियों में उसके क्रिया-कलाप वैसे नहीं होंगे जैसे आज दिखाई दे रहे हैं।
माना कि बुआ और बबुआ को एक मर्तबा किए गए गठबंधन का अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा और इसलिए फिलहाल वह अलग-अलग से दिखाई देते हैं परंतु सत्ता की खातिर चुनाव पूर्व नहीं तो चुनाव बाद पुन: एकसाथ प्रेस वार्ता कर सकते हैं।
हाल ही में ‘दोमुंह’ से एक ही बात निकलना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बुआ और बबुआ के बीच कभी ‘मतभेद’ बेशक पनपे हों किंतु ‘मनभेद’ नहीं हैं लिहाजा वो समय पड़ने पर रिश्ता निभा सकते हैं।
बहरहाल, इतना जान लें कि यदि किसी तरह इनके मंसूबे पूरे हो गए तो पुलिस तब तक किसी आतंकी या आतंकियों के मॉड्यूल पर हाथ नहीं डालेगी जब तक कि उन्हें कोर्ट से आतंकी करार नहीं दे दिया जाता। और ये भी जान लें कि ऐसा ये होने नहीं देंगे। आखिर वोट बैंक भी कोई चीज है, उसे ऐसे कैसे सींखचों के अंदर जाने दिया जा सकता है।
किसी अपराध की प्लानिंग करना होता होगा कानून की नजर में अपराध, लेकिन बुआ और बबुआ की पुलिस इस तरह की किसी प्लानिंग को अपराध नहीं मानेगी। आतंकियों को उनकी योजना सफलता पूर्वक संपन्न करने का सुअवर अवश्य दिया जाएगा ताकि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का आरोप चस्पा न कर सकें तथा सभी चुनावों में एकमत व एकजुट होकर मतदान करने निकलें।
ये दोरंगी या तिरंगी पुलिस ऐसे हर प्लान को पूरा करने का मौका इसलिए भी देगी जिससे बुआ-बबुआ की सरकार को कोई नया जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की जहमत न उठानी पड़े और बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के बम विस्फोटों के जरिए ये कार्य बखूबी होता रहे।
2022 के चुनाव घोषणा पत्र में बुआ-बबुआ दोनों इस बात का स्पष्ट उल्लेख कर सकते हैं कि आतंकवाद बहुत संवेदनशील मामला है इसलिए ”हमारी पुलिस” तब तक किसी संदिग्ध आतंकवादी पर हाथ डालने की हिमाकत नहीं करेगी जब तक कि वह अपने मकसद में सफल होकर इस बात को साबित न कर दे कि वह आतंकवादी ही है और उसके जेहन में आतंकवाद के अतिरिक्त कुछ नहीं रहता।
खालिस नीली अथवा लाल-नीली-हरी या फिर सिर्फ लाल और हरी वर्दी में सजी यह पुलिस जाति-धर्म-संप्रदाय का पुख्ता पता लगाने के बाद ही किसी पर हाथ डालेगी अन्यथा पहले पार्टी के डंडे में लगे झंडे को निहारेगी।
दोनों बात की पुष्टि होने के बाद ही तय करेगी कि आतंकवाद का कोई धर्म होता है या नहीं। अगर झंडे के रंगों से मेल मिलता है तो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होगा और यदि नहीं मिलता तो तय जानिए कि धर्म निर्धारित होगा। ठीक उसी तरह जिस तरह आज पुलिस और उसकी वर्दी का रंग निर्धारित किया जा रहा है।
ऐसा लगता है कि पुलिस का खून सफेद हो गया है, वो बेवफा हो गई है और अपने पुराने हुक्मरानों की मंशा के विपरीत संदिग्ध आतंकियों पर चुनाव से ठीक पहले हाथ डालने का दुस्साहस कर रही है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि खाकी पर ये असर उस खास पार्टी की वैक्सीन कर रही हो जिसे लगवाने से बबुबा ने साफ मना कर दिया था और बुआ चुप्पी साधे बैठी हुई है कि कहीं कोई वैक्सीनेशन के लिए पकड़ कर न ले जाए।
खतरों का भांपना कोई बुआ और बबुआ से सीखे। कोई पार्टी अपनी “पारदर्शी वैक्सीन” के डोज से आतंकवादियों का तथा उनका डीएनए बदलने की कोशिश करे इससे पहले ही भेड़िया आया-भेड़िया आया चिल्लाना शुरू कर दो। बाकी जब भेड़िया आएगा, तब देखा जाएगा।
14 करोड़ से अधिक मतदाताओं वाले इस प्रदेश में तमाम ऐसे निकल आएंगे जो बुआ-बबुआ की भेड़िया चाल के शिकार में फंसेंगे। फंसे तो ठीक, और नहीं फंसे तो अगले चुनावों तक फिर ऐसे ही मुद्दे खड़े करते रहेंगे। अभी ये तैयारी 2022 की है।
2022 में किसी तरह एकबार काठ की हड़िया चढ़ जाए फिर देखना…पुलिस की वर्दी ही नहीं, वैक्सीन भी रंगीन न बनवा दी तो नाम बदल देना।
रहा सवाल जनसंख्या का तो उस पर कैसी रोक, वो तो ऊपर वाले की देन हैं। नीचे वाले कौन होते हैं दखल देने वाले। किसी की विरासत संभालने वाला कोई नहीं होता तो किसी के तीन-तीन हो जाते हैं। और कोई इस बात पर भी रोता है कि जिसे अपने हाथों से कच्ची उम्र में प्रदेश का ताज सौंप दिया, आज वही आखिरी मुगल होने पर आमादा है। जैसी जिसकी सोच। ईश्वर सबका भला करे।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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