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बुधवार, 14 जुलाई 2021
बबुआ! ऐसा लगता है कि पुलिस का खून सफेद हो गया है… वो पुराने हुक्मरानों से बेवफा हो गई है, समझ लो
सुनो…सुनो…सुनो। यूपी के वाशिंदो सुनो। बुआ एंड बबुआ पार्टी प्रदेश की पुलिस का कायापलट करने जैसा पावन विचार रखती है, बशर्ते आप उसे एक मौका और दें।बुआ एंड बबुआ, या बुआ अथवा बबुआ में से किसी को भी यदि आप 2022 के विधानसभा चुनावों में सत्ता की कमान सौंप देते हैं तो आपके प्रदेश की पुलिस कम से कम दोरंगी और अधिक से अधिक तिरंगी हो जाएगी।
यदि बुआ एंड बबुआ पार्टी को सत्ता मिलती है तो पुलिस की ‘खाकी को खाक’ में मिलाने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा और उसकी जगह पुलिस के सिर पर नीली टोपी, लाल कमीज और हरा पैंट सजेगा।
यदि सिर्फ बबुआ को यूपी का भाग्य विधाता बनाया जाता है तो पुलिस की कैप लाल, शर्ट हरी और उसके नीचे पैंट फिर लाल कलर का होगा।
ठीक इसी तरह अगर बुआ को ये जिम्मेदारी मिलती है तो प्रदेश पुलिस नीली वर्दी में सजी-संवरी नजर आएगा। दोनों ही परिस्थितियों में उसके क्रिया-कलाप वैसे नहीं होंगे जैसे आज दिखाई दे रहे हैं।
माना कि बुआ और बबुआ को एक मर्तबा किए गए गठबंधन का अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा और इसलिए फिलहाल वह अलग-अलग से दिखाई देते हैं परंतु सत्ता की खातिर चुनाव पूर्व नहीं तो चुनाव बाद पुन: एकसाथ प्रेस वार्ता कर सकते हैं।
हाल ही में ‘दोमुंह’ से एक ही बात निकलना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बुआ और बबुआ के बीच कभी ‘मतभेद’ बेशक पनपे हों किंतु ‘मनभेद’ नहीं हैं लिहाजा वो समय पड़ने पर रिश्ता निभा सकते हैं।
बहरहाल, इतना जान लें कि यदि किसी तरह इनके मंसूबे पूरे हो गए तो पुलिस तब तक किसी आतंकी या आतंकियों के मॉड्यूल पर हाथ नहीं डालेगी जब तक कि उन्हें कोर्ट से आतंकी करार नहीं दे दिया जाता। और ये भी जान लें कि ऐसा ये होने नहीं देंगे। आखिर वोट बैंक भी कोई चीज है, उसे ऐसे कैसे सींखचों के अंदर जाने दिया जा सकता है।
किसी अपराध की प्लानिंग करना होता होगा कानून की नजर में अपराध, लेकिन बुआ और बबुआ की पुलिस इस तरह की किसी प्लानिंग को अपराध नहीं मानेगी। आतंकियों को उनकी योजना सफलता पूर्वक संपन्न करने का सुअवर अवश्य दिया जाएगा ताकि वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का आरोप चस्पा न कर सकें तथा सभी चुनावों में एकमत व एकजुट होकर मतदान करने निकलें।
ये दोरंगी या तिरंगी पुलिस ऐसे हर प्लान को पूरा करने का मौका इसलिए भी देगी जिससे बुआ-बबुआ की सरकार को कोई नया जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की जहमत न उठानी पड़े और बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के बम विस्फोटों के जरिए ये कार्य बखूबी होता रहे।
2022 के चुनाव घोषणा पत्र में बुआ-बबुआ दोनों इस बात का स्पष्ट उल्लेख कर सकते हैं कि आतंकवाद बहुत संवेदनशील मामला है इसलिए ”हमारी पुलिस” तब तक किसी संदिग्ध आतंकवादी पर हाथ डालने की हिमाकत नहीं करेगी जब तक कि वह अपने मकसद में सफल होकर इस बात को साबित न कर दे कि वह आतंकवादी ही है और उसके जेहन में आतंकवाद के अतिरिक्त कुछ नहीं रहता।
खालिस नीली अथवा लाल-नीली-हरी या फिर सिर्फ लाल और हरी वर्दी में सजी यह पुलिस जाति-धर्म-संप्रदाय का पुख्ता पता लगाने के बाद ही किसी पर हाथ डालेगी अन्यथा पहले पार्टी के डंडे में लगे झंडे को निहारेगी।
दोनों बात की पुष्टि होने के बाद ही तय करेगी कि आतंकवाद का कोई धर्म होता है या नहीं। अगर झंडे के रंगों से मेल मिलता है तो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होगा और यदि नहीं मिलता तो तय जानिए कि धर्म निर्धारित होगा। ठीक उसी तरह जिस तरह आज पुलिस और उसकी वर्दी का रंग निर्धारित किया जा रहा है।
ऐसा लगता है कि पुलिस का खून सफेद हो गया है, वो बेवफा हो गई है और अपने पुराने हुक्मरानों की मंशा के विपरीत संदिग्ध आतंकियों पर चुनाव से ठीक पहले हाथ डालने का दुस्साहस कर रही है।
कहीं ऐसा तो नहीं कि खाकी पर ये असर उस खास पार्टी की वैक्सीन कर रही हो जिसे लगवाने से बबुबा ने साफ मना कर दिया था और बुआ चुप्पी साधे बैठी हुई है कि कहीं कोई वैक्सीनेशन के लिए पकड़ कर न ले जाए।
खतरों का भांपना कोई बुआ और बबुआ से सीखे। कोई पार्टी अपनी “पारदर्शी वैक्सीन” के डोज से आतंकवादियों का तथा उनका डीएनए बदलने की कोशिश करे इससे पहले ही भेड़िया आया-भेड़िया आया चिल्लाना शुरू कर दो। बाकी जब भेड़िया आएगा, तब देखा जाएगा।
14 करोड़ से अधिक मतदाताओं वाले इस प्रदेश में तमाम ऐसे निकल आएंगे जो बुआ-बबुआ की भेड़िया चाल के शिकार में फंसेंगे। फंसे तो ठीक, और नहीं फंसे तो अगले चुनावों तक फिर ऐसे ही मुद्दे खड़े करते रहेंगे। अभी ये तैयारी 2022 की है।
2022 में किसी तरह एकबार काठ की हड़िया चढ़ जाए फिर देखना…पुलिस की वर्दी ही नहीं, वैक्सीन भी रंगीन न बनवा दी तो नाम बदल देना।
रहा सवाल जनसंख्या का तो उस पर कैसी रोक, वो तो ऊपर वाले की देन हैं। नीचे वाले कौन होते हैं दखल देने वाले। किसी की विरासत संभालने वाला कोई नहीं होता तो किसी के तीन-तीन हो जाते हैं। और कोई इस बात पर भी रोता है कि जिसे अपने हाथों से कच्ची उम्र में प्रदेश का ताज सौंप दिया, आज वही आखिरी मुगल होने पर आमादा है। जैसी जिसकी सोच। ईश्वर सबका भला करे।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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