उत्तर प्रदेश के कद्दावर भाजपा नेताओं में शुमार और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री तथा मथुरा की शहरी सीट के विधायक श्रीकांत शर्मा खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं या फिर बिजली अधिकारियों ने उन्हें चुनाव हराने की ‘सुपारी’ ले रखी है?
अब जबकि UP के विधानसभा चुनाव होने में चंद महीने ही बचे हैं, तो ये सवाल इसलिए प्रासांगिक हो जाता है क्योंकि कुछ समय से न सिर्फ ऊर्जा मंत्री का समूचा गृह जनपद बल्कि उनका चुनाव क्षेत्र मथुरा-वृंदावन भी बिजली की भारी मार से त्रस्त है।मथुरा को पूरी तरह विद्युत कटौती से मुक्त रखे जाने का दावा करने वाले ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के विभागीय अधिकारियों का बचकाना बयान कहता है कि कोरोना के कारण लाइनें दुरुस्त करने का काम देरी से शुरू हुआ इसलिए ये समस्या आ रही है। वो ये भी कहते हैं कि शहरी क्षेत्र की विद्युत आपूर्ति में कोई समस्या नहीं है क्योंकि शहर के अधिकांश इलाकों को अंडरग्राउंड केबिल से जोड़ा जा चुका है। जो थोड़ी-बहुत परेशानी है, वो ग्रामीण क्षेत्रों में हो सकती है। यानी उन्हें मालूम ही नहीं है कि परेशानी है या नहीं।
अधीक्षण अभियंता प्रभाकर पांडे तो यहां तक बताते हैं कि अधिकांश लाइनें ठीक हैं, कुछ को ठीक करने का काम चल रहा है इसलिए जल्द समूची व्यवस्था में सुधार हो जाएगा।
अब जानिए ऊर्जा मंत्री के चुनाव क्षेत्र मथुरा-वृंदावन का हाल
पिछले करीब 15 दिनों में कल पांचवीं बार वृंदावन से आने वाली लाइन में फॉल्ट के कारण शहर का एक बड़ा हिस्सा बिजली से महरूम रहा। रात दस बजे बंद हुई लाइट आधी रात के बाद दो बजे सुचारू हो सकी। इससे पहले एक दिन 8 घंटे, एक दिन 6 घंटे तो दो दिन 5-5 घंटे के लिए लाइट बंद रही।
पूर्व में घंटों लाइट जाने का कारण जहां आंधी या बारिश बताया गया वहीं कल ऐसा बिना वजह तार टूट जाने से हुआ।
ग्राउंड पर काम करने वाले कर्मचारियों से पूछने पर पता लगता है कि राधापुरम, राधापुरम एस्टेट सहित छोटी-बड़ी एक दर्जन कॉलोनियों का लोड वृंदावन से आने वाली जिस लाइन पर डाल रखा है वह जर्जर अवस्था को प्राप्त है।
इस लाइन में जगह-जगह जोड़ हैं इसलिए मामूली सी हवा चलने अथवा आकाश से दो बूदें बरस जाने पर ही वो दिक्कत देने लगती है।
चूंकि विभागीय कर्मचारियों को यही पता नहीं होता कि वृंदावन से मथुरा तक दसियों किलोमीटर के बीच फॉल्ट कहां आया है इसलिए वो पहले तो घंटों पेट्रोलिंग करके फॉल्ट का पता लगाते हैं। उसके बाद कहीं जाकर काम किया जाता है, लेकिन तब तक सब स्टेशन पर बैठे लोगों की जान सूखती रहती है।
दरअसल, पेट्रोलिंग करने वाले कर्मचारी फॉल्ट न मिल जाने तक कुछ बताने की स्थिति में नहीं होते इसलिए वो संबंधित सब स्टेशन को ऐसी कोई जानकारी देने में असमर्थ होते हैं कि आपूर्ति सुनिश्चित होने में कितना वक्त लगेगा।
उधर सब स्टेशन पर बैठे एसएसओ से हर उपभोक्ता यह जानना चाहता है कि लाइट कब तक आएगी। ऐसे में वह अपने बुद्धि विवेक से जो बता सकता है वो बता तो देता है, किंतु सच्चाई नहीं बता पाता इसलिए समय के साथ उपभोक्ताओं का आक्रोश बढ़ना स्वभाविक है।
भीषण गर्मी के इस दौर में सब स्टेशन से ये तक जानकारी न मिल पाना कि बिजली क्यों गई है और कब तब आ पाएगी, आग में घी डालने की कहावत को कब सही साबित कर दे कहना मुश्किल है। लेकिन आला अधिकारियों का शायद इससे कोई वास्ता नहीं है। उन्हें वास्ता है तो अपनी ऐशो-आराम की नौकरी से, जिसे कैसे बजाना है वो भली प्रकार जानते हैं।
अगर कभी इन कारणों से झगड़ा होता भी है तो वो छोटे कर्मचारियों और उपभोक्ताओं को मोहरा बनाकर साफ बच निकलने की कला में माहिर हैं इसलिए उनका कभी कुछ बिगड़ने से रहा।
इसका एक उदाहरण गत 24 जून को तब मिला जब घंटों परेशान होने के बाद एक उपभोक्ता ने अधीक्षण अभियंता शहरी के सरकारी मोबाइल नंबर पर कॉल करके बिजली की स्थिति के बारे में जानकारी चाही। जाहिर है कि फोन उठा नहीं। फिर उपभोक्ता ने उन्हें वाट्सएप पर मैसेज भेजा, एसई महोदय ने मैसेज पढ़ भी लिया किंतु जवाब देना जरूरी नहीं समझा।
कड़वा सच यही है कि संबंधित जेई से लेकर एसई तक कोई किसी उपभोक्ता के फोन अथवा मैसेज का जवाब नहीं देता क्योंकि वो उनके लिए अहमियत रखते ही नहीं।
जिन दर्जनभर पॉश कॉलोनियों को वृंदावन से बिजली की आपूर्ति की जा रही है उन्हें विभाग ग्रामीण क्षेत्र मानता है या शहरी, इसका भी पता नहीं जबकि ये सर्वाधिक और समय से रेवेन्यू देने वाली कॉलोनियां हैं और यहां शत-प्रतिशत घरों में स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं इसलिए इन मीटरों की कमांड भी इलाके के एसडीओ संभालते हैं।
किसकी लाइट कब और कितना बिल बकाया होने पर गोल करनी है, ये वही तय करते हैं। इसके लिए अब विभाग के किसी कर्मचारी को उपभोक्ता के दरवाजे पर जाने या उसकी केबिल उतारने की जरूरत नहीं रह गई।
अधिकारियों द्वारा उपभोक्ताओं को कोई अहमियत न देने और सब स्टेशन पर बैठे कर्मचारियों को उनसे जूझने के लिए छोड़ देने का संभवत: एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है, हालांकि ये एकमात्र कारण नहीं है।
स्थानीय जनप्रतिनिधि के तौर पर ऊर्जा मंत्री कितने जिम्मेदार
अगर बात करें स्थानीय जनप्रतिनिधि या ऊर्जा मंत्री के तौर पर श्रीकांत शर्मा द्वारा जिम्मेदारी निभाने की तो वो अपने किसी मतदाता अथवा आम उपभोक्ता के लिए कभी उपलब्ध नहीं होते। उनकी जगह ये जिम्मेदारी उनके बड़े भाई सूर्यकांत शर्मा पहले दिन से निभा रहे हैं।
अब उनकी बात अधिकारी कितनी सुनते हैं और कितनी मानते हैं, इसका अंदाज लगाने को बिजली की वह व्यवस्था ही काफी है जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। बताया जाता है सूर्यकांत शर्मा ने व्यवस्था सुधारने के अपने स्तर से भरसक प्रयत्न किए परंतु फिलहाल नतीजा कुछ नहीं निकला।
अलबत्ता बताते हैं कि ऊर्जा मंत्री अपने कुछ खास लोगों से बंद कमरों में समय-समय पर जरूर मिलते हैं लेकिन उनसे क्या गुफ्तगू होती है, वो भी बाहर नहीं आ पाती।
भाजपा में भी ऊर्जा मंत्री के कार्य और व्यवहार की चर्चा
शायद यही कारण है कि जैसे-जैसे चुनावों की चर्चा शुरू हो रही है वैसे-वैसे आम लोगों के साथ-साथ भाजपा से जुड़े लोगों में भी श्रीकांत शर्मा के कार्य तथा व्यवहार की चर्चा होने लगी है।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता पर दोबारा काबिज होने का ही नहीं, 350 सीटें जीतने का भी लक्ष्य लेकर चल रही है।
चार दिन पहले 25 जून को बांके बिहारी मंदिर के दर्शनार्थ वृंदावन आए प्रदेश के कबीना मंत्री सतीश महाना ने कहा था कि जिन मुद्दों पर हम चुनाव में जनता के बीच दोबारा जाएंगे उनमें चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति भी अहम मुद्दा है। सतीश महाना शायद नहीं जानते कि यहां तो दीया तले अंधेरा है।
ऊर्जा मंत्री का गृह जनपद ही नहीं, उनका चुनाव क्षेत्र भी जब आए दिन चार-चार से लेकर आठ-आठ घंटों तक बिजली के लिए तरसने को अभिशप्त है तो फिर प्रदेश में बेहतर बिजली व्यवस्था के नाम पर चुनाव में उतरना क्या गुल खिलाएगा, इसका अंदाज लगाना बहुत मुश्किल काम नहीं होगा।
प्रदेश की बात छोड़ भी दें तो प्रश्न यह है कि अपना पहला विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीतने वाले श्रीकांत शर्मा इन हालातों में क्या इस बार जीत दर्ज करा सकेंगे।
कहीं ऐसा तो नहीं कि स्थानीय बिजली अधिकारियों के खोखले दावों पर भरोसा करके वो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं या फिर अधिकारियों ने ही उन्हें गुमराह करके चुनाव हराने की ‘सुपारी’ ले रखी है?
अभी भी वक्त है कि श्रीकांत शर्मा और उनके शुभचिंतक यह तय कर लें कि उन्हें बिजली की अव्यवस्था से त्रस्त जनता के कथन पर भरोसा करना है अथवा उन अधिकारियों के झूठे दावों पर जो उन्हें चुनाव हराने का मुकम्मल बंदोबस्त कर चुके हैं क्योंकि अभी तो गर्मी भी शेष हैं और बारिश भी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
जिन दर्जनभर पॉश कॉलोनियों को वृंदावन से बिजली की आपूर्ति की जा रही है उन्हें विभाग ग्रामीण क्षेत्र मानता है या शहरी, इसका भी पता नहीं जबकि ये सर्वाधिक और समय से रेवेन्यू देने वाली कॉलोनियां हैं और यहां शत-प्रतिशत घरों में स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं इसलिए इन मीटरों की कमांड भी इलाके के एसडीओ संभालते हैं।
किसकी लाइट कब और कितना बिल बकाया होने पर गोल करनी है, ये वही तय करते हैं। इसके लिए अब विभाग के किसी कर्मचारी को उपभोक्ता के दरवाजे पर जाने या उसकी केबिल उतारने की जरूरत नहीं रह गई।
अधिकारियों द्वारा उपभोक्ताओं को कोई अहमियत न देने और सब स्टेशन पर बैठे कर्मचारियों को उनसे जूझने के लिए छोड़ देने का संभवत: एक बड़ा कारण ये भी हो सकता है, हालांकि ये एकमात्र कारण नहीं है।
स्थानीय जनप्रतिनिधि के तौर पर ऊर्जा मंत्री कितने जिम्मेदार
अगर बात करें स्थानीय जनप्रतिनिधि या ऊर्जा मंत्री के तौर पर श्रीकांत शर्मा द्वारा जिम्मेदारी निभाने की तो वो अपने किसी मतदाता अथवा आम उपभोक्ता के लिए कभी उपलब्ध नहीं होते। उनकी जगह ये जिम्मेदारी उनके बड़े भाई सूर्यकांत शर्मा पहले दिन से निभा रहे हैं।
अब उनकी बात अधिकारी कितनी सुनते हैं और कितनी मानते हैं, इसका अंदाज लगाने को बिजली की वह व्यवस्था ही काफी है जिसका जिक्र ऊपर किया गया है। बताया जाता है सूर्यकांत शर्मा ने व्यवस्था सुधारने के अपने स्तर से भरसक प्रयत्न किए परंतु फिलहाल नतीजा कुछ नहीं निकला।
अलबत्ता बताते हैं कि ऊर्जा मंत्री अपने कुछ खास लोगों से बंद कमरों में समय-समय पर जरूर मिलते हैं लेकिन उनसे क्या गुफ्तगू होती है, वो भी बाहर नहीं आ पाती।
भाजपा में भी ऊर्जा मंत्री के कार्य और व्यवहार की चर्चा
शायद यही कारण है कि जैसे-जैसे चुनावों की चर्चा शुरू हो रही है वैसे-वैसे आम लोगों के साथ-साथ भाजपा से जुड़े लोगों में भी श्रीकांत शर्मा के कार्य तथा व्यवहार की चर्चा होने लगी है।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता पर दोबारा काबिज होने का ही नहीं, 350 सीटें जीतने का भी लक्ष्य लेकर चल रही है।
चार दिन पहले 25 जून को बांके बिहारी मंदिर के दर्शनार्थ वृंदावन आए प्रदेश के कबीना मंत्री सतीश महाना ने कहा था कि जिन मुद्दों पर हम चुनाव में जनता के बीच दोबारा जाएंगे उनमें चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति भी अहम मुद्दा है। सतीश महाना शायद नहीं जानते कि यहां तो दीया तले अंधेरा है।
ऊर्जा मंत्री का गृह जनपद ही नहीं, उनका चुनाव क्षेत्र भी जब आए दिन चार-चार से लेकर आठ-आठ घंटों तक बिजली के लिए तरसने को अभिशप्त है तो फिर प्रदेश में बेहतर बिजली व्यवस्था के नाम पर चुनाव में उतरना क्या गुल खिलाएगा, इसका अंदाज लगाना बहुत मुश्किल काम नहीं होगा।
प्रदेश की बात छोड़ भी दें तो प्रश्न यह है कि अपना पहला विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीतने वाले श्रीकांत शर्मा इन हालातों में क्या इस बार जीत दर्ज करा सकेंगे।
कहीं ऐसा तो नहीं कि स्थानीय बिजली अधिकारियों के खोखले दावों पर भरोसा करके वो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं या फिर अधिकारियों ने ही उन्हें गुमराह करके चुनाव हराने की ‘सुपारी’ ले रखी है?
अभी भी वक्त है कि श्रीकांत शर्मा और उनके शुभचिंतक यह तय कर लें कि उन्हें बिजली की अव्यवस्था से त्रस्त जनता के कथन पर भरोसा करना है अथवा उन अधिकारियों के झूठे दावों पर जो उन्हें चुनाव हराने का मुकम्मल बंदोबस्त कर चुके हैं क्योंकि अभी तो गर्मी भी शेष हैं और बारिश भी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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