बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

अपहरण उद्योग के लिए ‘मथुरा’ में आपका स्‍वागत है, सफलता की गारंटी

महाभारत नायक योगीराज भगवान कृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली ‘मथुरा’ में अपहरण उद्योग संचालित करने के लिए आपका स्‍वागत है।
डॉ. निर्विकल्‍प अपहरण कांड की अपार सफलता के बाद यह विश्‍व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी देशभर के पेशेवर, गैरपेशेवर अथवा अन्‍य सभी किस्‍म के सफेदपोश अपराधियों को अपने यहां आमंत्रित करती है।
पीपीपी (पुलिस, प्रेस, पॉलिटिशियन) मॉडल के तहत इस उद्योग में ‘सफलता’ की चिंता कतई न करें क्‍योंकि यहां ‘निर्विकल्‍प डॉक्‍टर्स’ की कोई कमी नहीं है।
यदि आप ‘निर्विकल्‍प’ के मायने न समझते हों तो पुलिस आपको समझा देगी। वैसे ‘निर्विकल्‍प’ एक विशेषण होता है जिसका शाब्‍दिक अर्थ है- ”सदा एक रस एवं एक रूप में रहने वाला”। निश्‍चल…स्‍थिर।
डॉ. निर्विकल्‍प ने अपहरण वाले दिन से लेकर अब तक अपने नाम को पूरी तरह सार्थक करते हुए मथुरा में अपहरण उद्योग का जो रास्‍ता दिखाया है, उसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है।
10 दिसंबर 2019 की रात 52 लाख रुपए की फिरौती देकर डॉ. निर्विकल्‍प जिस निश्‍चल एवं स्‍थिर भाव के साथ बिना विचलित हुए एकरसता पर कायम रहे, वह अपहृत तथा अपहरणकर्ताओं के लिए प्रेरणादायक है और आगे का मार्ग प्रशस्‍त करता है।
सर्वप्रथम तो उन्‍होंने एक ‘प्रशिक्षित अपहृत’ की तरह अपने चारों अपहरणकर्ताओं के हर आदेश-निर्देश का अनुपालन किया। फिर चंद घंटों में उन्‍हें बिना कोई तकलीफ पहुंचाए 52 लाख रुपए की ‘पोटली’ इस ‘कमिटमेंट’ सहित थमा दी कि शेष करीब 50 लाख रुपए वह तयशुदा समय पर पहुंचा देंगे।
कमिटमेंट के पक्‍के डॉ. निर्विकल्‍प बदमाशों का बकाया भी चुकता करने ही वाले थे कि किसी ने उनकी सुहृदयता का भांडा उच्‍च पुलिस अधिकारियों के सामने फोड़कर ‘पीपीपी प्रोजेक्‍ट’ को ‘अस्‍थायी ग्रहण’ लगा दिया।
इसके बावजूद देश के एक जिम्‍मेदार नागरिक का फर्ज निभाते हुए जब जरूरत पड़ी तब डॉ. निर्विकल्‍प ने पुलिस को सब-कुछ बताया किंतु साफ-साफ ये भी कह दिया कि वह इस ‘सौहार्दपूर्ण वारदात’ के संदर्भ में कोई कानूनी कार्यवाही अथवा एफआईआर लिखाने जैसी कवायद नहीं करेंगे।
यही नहीं, उनकी अपनी संस्‍था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन IMA के स्‍थानीय पदाधिकारियों को भी उन्‍होंने दो टूक कहा कि वह अपने अपहरण कांड में संस्‍था की कोई मदद नहीं चाहते। हालांकि दूसरे कई अन्‍य डॉक्‍टर्स को उनका यह ‘निर्विकल्‍प व्‍यवहार’ नागवार गुजरा क्‍योंकि उन्‍हें अपनी फिक्र होने लगी।
उनकी फिक्र वो करें परंतु डॉ. निर्विकल्‍प मानते हैं कि भाग्‍यवान की कमाई में सबका हिस्‍सा होता है इसलिए उन्‍हें न बदमाशों से कोई परहेज है और न पुलिस से। जिस डॉक्‍टर को परहेज है, वो अपना इंतजाम करने के लिए स्‍वतंत्र है।
अब बात पहले ‘पी’ अर्थात पुलिस की
मथुरा पुलिस ने भी इस पूरे मामले में बिना किसी भय और द्वेष के स्‍थिर चित्त होकर अपने कर्म तथा धर्म का निर्वाह किया। इधर बदमाशों से पूरे 52 लाख रुपए जमा कराए और उधर डॉ. के सामने रख दिए। डॉ. ने जितने अपने समझकर उठा लिए, वह उठा लिए बाकी को पुलिस ने प्रसाद समझकर ग्रहण किया और फिर पद एवं गोपनीयता का मान रखते हुए बांटा।
प्रसाद से वंचित तबके द्वारा ‘रायता’ फैला देने पर अपनी ओर से पूरे दो महीने बाद एफआईआर लिखाई और प्रति बदमाश एक-एक लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया।
कल इनमें से एक बदमाश को बुलाकर ‘प्रेस’ के सामने प्रस्‍तुत करते हुए बताया कि किस तरह वह पुलिस की झोली में 50 हजार रुपयों सहित आ टपका।
अधिकारियों ने पूरी हिम्‍मत के साथ पत्रकारों से यह भी कहा कि वह किसी किंतु-परंतु के फेर में नहीं पड़ेंगे और उनके किसी प्रश्‍न का उत्तर नहीं देंगे। जो बता रहे हैं, उसे ही अंतिम सत्‍य मान लिया जाए।
दस-दस हजार के इनामी बदमाशों को ठोकने के बाद गिरफ्त में लेने वाली पुलिस ने एक लाख के इस इनामी बदमाश को चार दिन पूरी मेहमान नवाजी से रखा और फिर बाइज्‍जत पेश कर दिया जिससे शेष तीन नामजद भी संदेश ग्रहण कर लें।
वो जान जाएं कि पुलिस को अपनी पीठ ठोकनी है, उन्‍हें नहीं ठोकना इसलिए बेझिझक जब चाहें तब और जहां चाहें वहां पुलिस की मदद ले सकते हैं।
रही बात थोड़ी बहुत रकम “बरामद” दिखाने की तो उसकी टेंशन न लें। वो भी आखिर में कोर्ट से रिलीज हो जानी है क्‍योंकि वहां बाजी पलटनी ही है।
दूसरे ‘पी’ यानी ‘प्रेस’ अथवा ‘मीडिया’ की भूमिका
कुछ मूर्ख टाइप के लोग इस पूरे प्रकरण में पत्रकारों की भूमिका पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वो कह रहे हैं कि उन्‍हें कल प्रेस कांफ्रेस में कुछ तो सवाल दागने चाहिए थे। एक दिन पहले बिना कुछ पूछे-ताछे नवागत एसएसपी साहब की मेजबानी का लुत्फ उठा ही चुके थे, लिहाजा अब तो पूछ लेते कि ”रायता कैसे फैला” ?
इन लोगों को कौन समझाए कि पुलिस का चाय-नाश्‍ता हर किसी पत्रकार के नसीब में नहीं होता। जिनके नसीब में है, वो उसे क्‍यों छोड़ दें।
माना कि पुलिस को यदि बिना जवाब दिए ही समाचार छपवाना था तो वह विज्ञप्‍ति भेजकर भी छपवा सकती थी लेकिन समस्‍या यह है कि अब तक पुलिस ने विज्ञप्‍ति के साथ डिब्‍बा भेजने की रिवाज शुरू नहीं की है। ऐसे में पत्रकार प्रेस कांफ्रेंस अटेंड न करते तो चुहलबाजी करते हुए चाय-नाश्‍ते के आनंद से भी रह जाते।
तीसरे ‘पी’ पॉलिटिशियन
देखिए, इनके बारे में कुछ कहना या न कहना बराबर है। मथुरा में नेता नाम वाला जीव आपको चिराग लेकर ढूंढने से भी नहीं मिलेगा। जो हैं, वो या तो मंत्री हैं या फिर विधायक और सांसद।
आप अपनी गलतफहमी के लिए इन्‍हें जन-प्रतिनिधि मान सकते हैं किंतु सच तो यह है कि ये किसी के प्रतिनिधि नहीं हैं। हां, इनके अपने प्रतिनिधि जरूर हैं। मसलन सांसद प्रतिनिधि, विधायक प्रतिनिधि आदि-आदि।
ऐसे में इन्‍हें वही पता होता है जो इनके प्रतिनिधि बताते हैं, या फिर वो जो ये अपने प्रतिनिधि से जानना चाहते हैं।
यहां पक्ष-विपक्ष का सवाल मत उठाइएगा क्‍योंकि विपक्ष के लोगों का काम अगली सत्ता मिलने तक खुद को सुरक्षित रखना होता है। अपहरण जैसे ‘कामयाब उद्योग’ पर उंगली उठाना नहीं।
अपहरण उद्योग के फलने-फूलने में इनकी उतनी ही रुचि है जितनी डॉ. निर्विकल्‍प को फिरौती देकर छूट आने में, पुलिस को फिरौती की रकम का हिसाब रखने में और पत्रकारों को पन्‍ने काले करने में। इससे अधिक रुचि वह लें भी क्‍यों, उनकी भैंस किसी ने थोड़े ही खोल ली।
पुलिस ने लिखा-पढ़ी में एक पकड़ लिया है, तीन और भी ‘धीमे से’ इसी तरह पकड़ लेगी। फिर हिसाब बराबर करके दूसरी ओर देखेगी। मथुरा में ‘निर्विकल्‍पों’ की कोई कमी है क्‍या।
इंतजार करिए पुलिस की अगली प्रेस कांफ्रेंस का, हो सकता है तब तक ‘ठंडे पेय’ का मौसम आ जाए।


-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
http://legendnews.in/welcome-to-mathura-for-the-kidnapping-industry-success-is-guaranteed/

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