बुधवार, 10 अक्तूबर 2018

#MeToo को समर्पित टीवी, फिल्‍म और मीडिया जगत की नवरात्रियां

डिसक्लेमर: इस लेख का संबंध किसी जीवित या मृत स्‍त्री-पुरुष से नहीं है, और न इसका उद्देश्‍य किसी की भाव-नाओं को आ-हत करना है। यह विशुद्ध रूप से जनहित में #MeToo को समर्पित है लिहाजा इसके समर्पण पर जाएं, समानता पर नहीं। 
अचानक दीवाली सेल पर कुछ खास हाथ लगने की लालसा में कल दोपहर घर से निकला ही था कि एक कुषाणकालीन मित्र के हत्‍थे चढ़ गया। पहले तो वह मुझे देखकर पहचानने का प्रयास करते हुए थोड़ा सकुचाया और फिर मेरे होने की पुष्‍टि करके मुस्‍कुराया। उसके बाद दहाड़ मारकर चिल्‍लाते हुए बोला- मैं यहां कोई दीवाली की छूट के लिए नहीं आया, मैं तो तुझे ही तलाशने आया था क्‍योंकि मुझे पूरा यकीन था कि तू यहीं कहीं पाया जाएगा।
भरी जवानी से मैं जानता हूं कि तू दो ही किस्‍म के मेलों में पाया जा सकता है। पहला दीवाली मेला और दूसरा कुंभ का मेला। कुंभ का मेला 2019 में है इसलिए 2018 में तेरी तलाश पूरी हुई।
मुझे एक शब्‍द बोलने का मौका दिए बिना उसने पूछना शुरू किया- चुंगी के कॉन्वेंट स्‍कूल में को-एजुकेशन लेते वक्‍त अपने साथ जो सबसे गोल-मटोल लड़की पढ़ती थी, वह याद है ?
मैंने बमुश्‍किल 40 साल पहले की स्‍मृतियों को संजोने की कोशिश प्रारंभ की ही थी कि वह फिर शुरू हो गया- याद कर 40 साल पहले 60 किलो की वह सहपाठी पैर फिसल जाने के कारण स्‍कूल के पास वाले गंदे नाले में गिर गई थी और तूने अपने धवल वस्‍त्रों की परवाह किए बिना, जान हथेली पर रखकर उस लड़की को नाले से निकाला था। सारे साथी तमाशा देख रहे थे लेकिन तूने उस भारी-भरकम काया को निकालने के लिए नाले में यह सोचे-समझे बिना छलांग लगा दी थी कि उसका वजन तुझे भी साथ लेकर डूब सकता है।
कुषाणकालीन मित्र द्वारा इतना कुछ याद दिलाने के बाद मैं स्‍मृतियों को ठीक से सहेज भी नहीं पाया था कि वह एकबार फिर कंटीन्‍यू हुआ और बोला- 60 किलो से 200 किलों में बदल चुकी वह काया तुझे जल्‍द ही Twitter पर #MeToo के तहत लपेटने वाली है।
उसका कहना है कि नाले में से उसे निकालने का तूने जो उपक्रम किया था, वह दरअसल तेरी बदनीयती का हिस्‍सा था। तूने 40 साल पहले उसका यौन उत्‍पीड़न किया था। तूने तब उसके पूरे बदन को अपने हाथों से छुआ जबकि वह काम किसी क्रेन को बुलाकर भी कराया जा सकता था।
40 साल पहले के कथित पुण्‍यकार्य को यौन उत्‍पीड़न में कन्वर्ट होते देख एकबार तो मेरी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई, फिर जैसे-तैसे खुद को संभाला और अपने मित्र से पूछा- भाई, पहले तू मुझे उसका नाम तो बता दे। मोदी सरकार से भी अधिक ग्रोथ रेट को प्राप्‍त उस भारी भरकम काया को मैं Twitter पर भी पहचानूंगा कैसे।
मेरी दशा और दिशा का अनुमान लगाकर मित्र कहने लगा- ज्‍यादा बनने की कोशिश मत कर, उसे अपने साथ हुए यौन अपराध का एक-एक पल याद है और तू कहता है कि तुझे उसका नाम तक याद नहीं। बेटा, राष्‍ट्रीय महिला आयोग का Twitter या whatsapp के थ्रू नोटिस मिलेगा तो सब याद आ जाएगा। उसकी सूरत भी और अपनी सीरत भी।
मित्र से यह शॉकिंग समाचार सुनकर मैं सुन्‍न अवस्‍था में वहीं से उलटे पैर लौट आया। अभी घर की लॉबी में प्रवेश किया ही था कि पत्‍नी चहक कर बोली- सुना, वो अपने टीवी वाले संस्‍कारी बाबूजी भी #MeToo के लपेटे में आ गए हैं। किसी महिला लेखक ने 20 साल पहले उन पर बलात्‍कार करने का आरोप लगाया है। ऐसा लगता है कि संस्‍कारी बाबूजी इस झटके को सह नहीं पाए, क्‍योंकि जवाब में बहकी-बहकी सी बातें कर रहे थे। कुछ-कुछ ऐसे बड़बड़ा रहे थे…हुआ होगा बलात्‍कार, लेकिन मैंने नहीं किया। मैं न इंकार कर सकता हूं और न इकरार कर रहा हूं।
मुझे तो इस उम्र में बाबूजी के इस हाल पर दया आ रही है लेकिन उन्‍हें #MeToo में लपेटने वाली लेखिका का कहना है कि 20 साल बाद तक उसे ‘मदहोशी’ में हुआ दुष्‍कर्म जब ‘पूरी तरह याद’ है तो पूरे होशो हवास में उसके साथ दुष्‍कर्म करने वाले बाबूजी कैसे भूल सकते हैं।
संस्‍कारी बाबूजी की कथित करतूत सुनाते-सुनाते पत्‍नी जी ने तुरंत यू टर्न लिया और मेरी ओर मुखातिब होकर कहने लगीं- मुझे तो लगता है कि करीब-करीब 25 साल पहले आपने जो घुटनों पर आकर मुझे प्रपोज किया था, उसमें भी आपकी नीयत ठीक नहीं थी। अगले 24 घंटों में दिमाग पर जोर डालकर सोचती हूं कि प्रपोज करने के पीछे आपकी कौन सी कुत्‍सित चाल थी। उसके बात #MeToo कैंपेन में भाग लेने पर विचार करूंगी।
अब मेरा ध्‍यान पत्‍नी द्वारा चटखारे ले-लेकर सुनाई जा रही टीवी वाले संस्‍कारी बाबूजी की कथा या व्‍यथा पर न होकर अपने मित्र द्वारा सुनाई गई कालातीत दुर-घटना तथा पत्‍नी द्वारा 25 साल पूर्व की घटना को लेकर दी गई ताजा-ताजा धमकी पर केंद्रित हो गया जिसका बम कभी भी मेरे सिर फूट सकता था।
जैसे-तैसे मैंने मंगलवार का मौनव्रत घोषित कर पूरा दिन तो काट लिया किंतु रात में बिस्‍तर पर #MeToo मेरे सामने पूरी भयावहता के साथ आ खड़ा हुआ। मैंने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला और यह सोचने की कोशिश की कि आखिर इंसानियत के नाते किसी सहपाठी को नाले में से निकालना यौन उत्‍पीड़न कैसे हो सकता है, किंतु मेरी अंतरात्‍मा कुछ बताती कि इससे पहले #MeToo बोल पड़ा। कहने लगा- बरखुरदार, नाले में से निकालना यौन उत्‍पीड़न की वजह नहीं बन सकता यह साबित अब तुम्‍हें करना है। तुम्‍हारी सहपाठी तो कह ही रही है कि नाले में से उसे निकालने में तुम्‍हारी नीयत ठीक नहीं थी। यह बात अलग है कि तब वह तुम्‍हारी बदनीयत को नहीं समझ पायी किंतु अब उसे सबकुछ साफ-साफ समझ में आ चुका है। उसके नाती-पोतों ने भी इस बात की पुष्‍टि कर दी है कि वह सही दिशा में जा रही है।
#MeToo के भय का साया सुबह अपने मन से झटकने की कोशिश में नित्‍य की भांति टहलने निकल पड़ा। थोड़ी दूर ही पहुंचा था कि साइकिलिंग कर रहीं पड़ोसी महिला डॉक्‍टर को जर्मन शेफर्ड डॉग से घिरा देखा। किसी सभ्‍य व सुसंस्‍कृत गृहस्‍वामी का वह इल्‍लिट्रेट कुत्ता अपने पूरे जबड़े खोलकर महिला डॉक्‍टर पर भौंक रहा था।
महिला डॉक्‍टर का चूंकि डर के मारे बुरा हाल था लिहाजा वो चिल्‍ला-चिल्‍लाकर मुझसे मदद मांगने लगीं। एकबार को मैं पिछले चौबीस घंटों से आ रहे #MeToo के भयानक स्‍वप्‍नों को भूलकर महिला डॉक्‍टर की मदद के लिए आगे बढ़ने लगा किंतु तभी दिल ने दिमाग से काम लेने को कहा। कहीं अंदर से आवाज आई, बेटा पहले 40 साल पहले कमाए गए पुण्‍य से तो निपट ले जो किसी भी समय #MeToo बोलने वाला है, उसके बाद और पुण्‍य कमा लेना। इस उम्र में यह नया पुण्‍य कमाने का प्रयास कब्र तक पीछा नहीं छोड़ेगा। बच्‍चों से श्राद्ध करवाने की बजाय यदि गंगा में प्रवाहित की गई अस्‍थियों को ‘सम्‍मन’ का सामना कराना है तो पचड़े में पड़, वरना चुपचाप खिसक ले।
दिमाग ने दिल की दहशत को समझा और यह सोचकर किनारा कर लिया कि डॉक्‍टर साहिबा को दो-चार इंजेक्‍शन ही तो लगेंगे, लेकिन मेरे पीछे जो #MeToo लग गया तो समाज इतने इंजेक्‍शन लगाएगा कि सब सुन्न कर देगा। दिल, दिमाग और शरीर सब। न निगलते बनेगा, और न उगलते।
40 साल पहले वाली क्‍लासमेट की तरह कुछ सालों बाद इन डॉक्‍टर साहिबा को भी कहीं याद आ गया कि उन्‍हें जर्मन शेफर्ड से बचाने में मेरी नीयत ठीक नहीं थी तो लेने के देने पड़ जाएंगे। यहां तो गवाह भी मैडम ही हैं और सबूत भी वही हैं।
देश में राष्‍ट्रीय महिला आयोग है, पुरुष आयोग नहीं। पुरुषों के लिए राष्‍ट्रीय तो क्‍या, कोई क्षेत्रीय आयोग भी नहीं है। पुरुषों की सुनवाई के लिए बाबा साहब ने संविधान में कोई व्‍यवस्‍था नहीं की।
क्‍या पुरुषों के लिए किसी #MeToo की कोई संभावना है, या मी लॉर्ड के सामने खड़े होना ही एकमात्र विकल्‍प है।
जो भी हो, फिलहाल तो पूरे देश में #MeToo का जोर है। टीवी, फिल्‍म और मीडिया से जुड़े लोग जितना जल्‍दी हो सके पुराने पुण्‍यों या यूं कहें कि मन, वचन और कर्म से किए गए पापों का लेखा-जोखा अपने लेखाकार से लगवा लें अन्‍यथा #MeToo तो सारे हिसाब लगवा ही लेगा। खुदा हाफिज़। जय हिंद। जय भारत।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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