सोमवार, 8 मई 2017

जवाहर बाग कांड का जिन्‍न ”रामवृक्ष” फिर बोतल से बाहर, CBI के सामने चुनौती

मथुरा का जवाहर बाग कांड आज ठीक साढ़े 10 महीने बाद एकबार फिर तब सुर्खियों में आ गया जब पता लगा कि उक्‍त कांड को अंजाम देने वाले तथाकथित सत्‍याग्रहियों के सरगना रामवृक्ष यादव के कथित शव का डीएनए उसके लड़के से मैच नहीं कर रहा।
पुलिस ने रामवृक्ष यादव के कथित शव का डीएनए टेस्‍ट हैदराबाद फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री से कोर्ट के आदेश पर इसलिए करवाया था क्‍योंकि कोर्ट ने उपद्रव के दौरान रामवृक्ष के मारे जाने का पुलिसिया दावा पूरी तरह खारिज कर दिया था।
विभिन्‍न याचिकाओं के आधार पर कोर्ट द्वारा रामवृक्ष के शव को लेकर व्‍यक्‍त की गई शंका आज हैदराबाद फोरेंसिक साइंस लेबोरेट्री की रिपोर्ट के बाद सही साबित हुई।
ऐसे में अब सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जिस व्‍यक्‍ति के अवशेषों को पुलिस ने रामवृक्ष का शव बताकर कहानी गढ़ी, वह शव रामवृक्ष का नहीं था तो रामवृक्ष गया कहां और जिसके शव को रामवृक्ष का बताया गया, वह शव आखिर किसका था?
इसके अलावा भी कई अन्‍य महत्‍वपूर्ण सवाल खड़े होते हैं। मसलन, पुलिस को किसी का भी शव रामवृक्ष का बताने की जरूरत क्‍या थी?
क्‍या पुलिस जानती थी कि वह रामवृक्ष के शव को लेकर झूठा दावा कर रही है और यदि उसने यह झूठा दावा किया तो किसे बचाने के लिए किया जबकि पुलिस के ही दो जांबाज अफसरों की रामवृक्ष व उसके गुर्गों ने जवाहर बाग के अंदर घेरकर बेरहमी से हत्‍या कर दी थी।
जाहिर है कि इन सभी प्रश्‍नों के उत्तर यदि कोई दे सकता है तो वही तत्‍कालीन पुलिस अफसर दे सकते हैं जिन्‍होंने जवाहर बाग कांड को अंजाम दिलाने में जाने-अनजाने बड़ी भूमिका अदा की।
2 जून 2016 से पहले के दो सालों में जिन-जिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने मथुरा को सुशोभित किया, उन्‍होंने ही इस कांड की पटकथा अपने-अपने हिसाब से लिखी नतीजतन अदना सा रामवृक्ष एक ऐसा विषवृक्ष बन बैठा जिसे उखाड़ फेंकना बहुत भारी पड़ गया।
फिलहाल, जवाहर बाग कांड की जांच हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई द्वारा की जा रही है लिहाजा अब सच्‍चाई का पता लगाने की जिम्‍मेदारी सीबीआई पर है। सीबीआई के लिए निश्‍चित ही इस कांड की परतें उघाड़ना किसी चुनौती से कम नहीं होगा क्‍योंकि इसकी जड़ें एक ओर जहां राजनीतिक गलियारों से जुड़ी हैं वहीं दूसरी ओर ब्‍यूरोक्रेट्स से ताल्‍लुक रखती हैं।
बताया जाता है कि रामवृक्ष यादव को गायब करने का मकसद ही यह था कि किसी भी प्रकार उसके राजनीतिक संरक्षणदाताओं का खुलासा न हो पाए और न यह पता लग पाए कि रामवृक्ष की योजना में कौन-कौन पर्दे के पीछे से शामिल था।
सर्वविदित है कि जिस प्रकार रामवृक्ष ने पूरे दो साल तक पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को उनकी नाक के नीचे रहकर खुली चुनौती दी और अपना पूरा साम्राज्‍य खड़ा किया, वह उसके अकेले के बस की बात नहीं थी। सैकड़ों लोगों की भोजन व्‍यवस्‍था करना भी आसान काम नहीं था। हथियारों से लेकर वाहनों तक का जखीरा उसने यूं ही इकठ्ठा नहीं कर लिया होगा। कोई तो होगा जिसने एक सामान्‍य कद काठी के बुजुर्ग को इतनी पॉवर दे रखी थी कि वह समूचे जिले के सरकारी अमले को अपनी ठोकर पर रखता था और उनकी खुलेआम बेइज्‍जती करता था।
हजारों करोड़ रुपए मूल्‍य की जिस सरकारी जमीन पर वह अवैध रूप से काबिज था, उसकी बाउंड्री के अंदर बिना उसकी इजाजत के घुसने की कोई हिम्‍मत नहीं करता था।
2 जून 2016 की शाम एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी तथा एसओ फरह संतोष यादव ने जब रामवृक्ष की मर्जी के खिलाफ जवाहर बाग की बाउंड्री तोड़कर घुसने की हिम्‍मत दिखाई तो उसने दोनों अफसरों की जान ले ली।
ज़रा अंदाज लगाइए कि रामवृक्ष व उसके गुर्गों का रूप कितना वीभत्‍स रहा होगा कि इन दोनों पुलिस अफसरों के हमराह तक उनका साथ छोड़कर भाग खड़े हुए।
बहरहाल, इसमें शायद ही किसी को शक हो कि यदि जवाहर बाग कांड का पूरा सच किसी तरह सामने आ गया तो बहुत से ऐसे चेहरे बेनकाब होंगे जिनका उस समय की सत्ता से सीधा संबंध रहा है। फिर वो चाहे राजनेता हों अथवा नौकरशाह।
रहा सवाल इस बात का कि क्‍या रामवृक्ष जीवित है, तो इसकी संभावना बहुत कम है क्‍योंकि पुलिस इतनी कच्‍ची गोलियां कभी नहीं खेलती।
पुलिस के तत्‍कालीन अफसर भली प्रकार जानते थे कि यदि रामवृक्ष जिंदा बच गया तो वह सबका कच्‍चा चिठ्ठा खोल देगा, और कच्‍चा चिठ्ठा एकबार सामने आ गया तो उसके परिणाम बहुत दूरगामी होंगे।
यह बात अलग है कि जिस व्‍यक्‍ति के अवशेषों को पुलिस ने रामवृक्ष का शव बताकर सारी कहानी का पटाक्षेप करना चाहा, वह रामवृक्ष का नहीं निकला।
सच तो यह है कि पुलिस सबकुछ पहले से जानती थी और उसने रामवृक्ष को लेकर भी जो कहानी गढ़ी, वह पूर्व नियोजित थी।
पुलिस जानती थी कि रामवृक्ष उसके लिए जितना बड़ा सिरदर्द जिंदा रहते बना रहा, उतना ही मरने के बाद उस स्‍थिति में बन जाता जिस स्‍थिति में उसे उसका पोस्‍टमॉर्टम कराना पड़ता।
पुलिस ने इसीलिए रामवृक्ष के जिंदा रहने अथवा मारे जाने को एक रहस्‍य बनाकर छोड़ दिया। पुलिस बहुत अच्‍छी तरह जानती थी कि इस रहस्‍य से पर्दा उठाना किसी के लिए आसान नहीं होगा। सीबीआई के लिए भी नहीं।
-लीजेंड न्‍यूज़

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