रविवार, 21 जुलाई 2019

कुछ न्‍यायाधीशों की नीयत पर सवाल उठाती ब्रज के मंदिरों की अकूत संपत्ति

ब्रज के प्रमुख मंदिरों की अकूत संपत्ति का मनमाने तरीके से इस्‍तेमाल करने के मामले सामने आने पर कुछ न्‍यायाधीशों की नीयत को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
सबसे पहला सवाल तो खुद एक ऐसे न्‍यायाधीश ने ही उठाया है जिसकी अदालत में करोड़ों रुपए के घोटाले का केस चल रहा है।
गोवर्धन के दानघाटी मंदिर से जुड़े इस मामले में मंदिर के ही सहायक प्रबंधक डालचंद चौधरी पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप है। डालचंद चौधरी फिलहाल मथुरा जिला जेल में बंद है और जमानत पाने की कोशिश कर रहा है।
गौरतलब है कि वर्ष 2005 में एक व्‍यवस्‍था के तहत तत्‍कालीन न्‍यायिक अधिकारी ने राधाचरन शर्मा को दानघाटी मंदिर (गोवर्धन) का प्रबंधक और डालचंद चौधरी को सहायक प्रबंधक नियुक्‍त किया था। राधाचरन शर्मा और डालचंद चौधरी की नियुक्‍ति तब मंदिर के ”दैनिक वेतनभोगी” कर्मचारी के रूप में की गई थी।
वर्ष 2014 में एक ”कथित” शिकायती पत्र के आधार पर तत्‍कालीन अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन ने राधाचरन शर्मा की नियुक्‍ति रद्द कर समस्‍त वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार डालचंद चौधरी को सौंप दिए। तब से लेकर अब करोड़ों रुपए की हेराफेरी के मुकद्दमे में जेल जाने से पहले तक डालचंद चौधरी असीमित अधिकारों के साथ मंदिर का प्रबंधन देख रहे थे।
फिलहाल यह मामला अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन अमर सिंह की अदालत में लंबित है।
क्‍या कहा वर्तमान न्‍यायिक अधिकारी ने 
इसी मामले की सुनवाई करते हुए दो दिन पूर्व वर्तमान न्‍यायिक अधिकारी अमर सिंह ने अपने अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी पर बड़ी तल्‍ख टिप्‍पणी की है।
पीठासीन अधिकारी अमर सिंह के अनुसार दानघाटी मंदिर गोवर्धन में आज सामने आए करोड़ों रुपए के घोटाले की नींव 2014 में तत्‍कालीन पीठासीन अधिकारी के उस निर्णय से ही रख दी गई थी जिसमें उन्‍होंने डालचंद चौधरी को असीमित अधिकार दे दिए।
वर्तमान अधिकारी अमर सिंह का कहना है कि तत्‍कालीन अधिकारी द्वारा बोया गया अनियमितताओं का बीज ही आज 13 करोड़ रुपए से अधिक की हेराफेरी के रूप में सामने खड़ा है।
एक न्‍यायिक अधिकारी द्वारा ही अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी के निर्णय पर उठाए गए गंभीर सवालों का सच कभी सामने आ पाएगा या नहीं, यह कहना तो मुश्‍किल है अलबत्‍ता एक बात तय है कि गोवर्धन के दानघाटी मंदिर सहित मुकुट मुखारबिंद मंदिर, बरसाना के लाड़ली (राधारानी) मंदिर और वृंदावन के विश्‍व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर की अकूत संपत्ति को सुनियोजित तरीके से हड़पने की साजिश किसी न किसी स्‍तर से जरूर की जा रही है।
बताया जाता है कि दानघाटी मंदिर के करोड़ों रुपए का मनमाना इस्‍तेमाल करने संबंधी मामला सामने आने से ठीक पहले तक सहायक प्रबंधक डालचंद चौधरी की कुछ न्‍यायिक अधिकारियों से निकटता न सिर्फ मथुरा न्‍यायपालिका से जुड़े अधिकारी एवं कर्मचारियों बल्‍कि अधिवक्‍ताओं तथा जनसामान्‍य के बीच भी खासी चर्चित थी।
इस चर्चा ने तब और तूल पकड़ा जब एक तत्‍कालीन न्‍यायिक अधिकारी के घरेलू कार्यक्रम का जिम्‍मा उनके गृह जनपद में जाकर डालचंद चौधरी ने उठाया। इस कार्यक्रम में तब मथुरा से भी कई अधिकारी व कर्मचारी वहां पहुंचे थे।
मुकुट मुखारबिंद मंदिर का विवाद 
गोवर्धन में मानसी गंगा के किनारे स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर भी भारी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं। इन आरोपों को जांच के उपरांत प्रथमदृष्‍या सही पाया गया है। शिकायतकर्ता दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल के अनुसार रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी ने ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए का हेरफेर किया है।
बांके बिहारी मंदिर में हो रहा निर्माण कार्य भी चर्चा में
वृंदावन के विश्‍व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में इन दिनों चल रहा निर्माण कार्य भी गोवर्धन की तरह ही वित्तीय अनियमितताओं को लेकर चर्चा में है।
बताया जाता है कि बांके बिहारी मंदिर के प्रांगण को पहले से अधिक चौड़ा करने के लिए करोड़ों रुपए अवमुक्‍त किए जा रहे हैं।
उल्‍लेखनीय है कि इस मंदिर की प्रशासनिक व्‍यवस्‍था का जिम्‍मा भी एक न्‍यायिक अधिकारी के पास है।
मंदिर से जुड़े लोगों और भक्‍तों का कहना है कि मंदिर में जो निर्माण कार्य चल रहा है और जितना कार्य होना है, उसे देखते हुए अवमुक्‍त की जा रही धनराशि बहुत अधिक है। बताया जाता है इस कार्य को पूरा करने के लिए 31 जुलाई का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है इसलिए फिलहाल तो लोग दबी जुबान से ही इसमें अनियमितता होने की बात कह रहे हैं किंतु कार्य पूर्ण हो जाने पर इसकी शिकायत करने का मन बना चुके हैं।
दरअसल, बात चाहे गोवर्धन के दानघाटी मंदिर की हो या मुकुट मुखारबिंद मंदिर की, बरसाना के राधारानी मंदिर की हो या वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर की।
बताया जाता है कि Braj के इन मंदिरों के पास सैकड़ों करोड़ रुपए की संपत्ति है। यदि अचल संपत्ति की बात करें तो यह हजारों करोड़ हो सकती है।
इस अकूत संपत्ति पर यूं तो बहुत पहले से विभिन्‍न लोगों की नजर रही है और समय-समय पर ये लोग एक्‍सपोज भी हुए हैं परंतु अब जबकि इनसे जुड़े न्‍यायिक अधिकारी ही दूसरे न्‍यायिक अधिकारियों पर सवाल उठा रहे हैं तो जाहिर है कि इस पूरे खेल में सिर्फ प्रबंध तंत्र ही शामिल नहीं है।
श्राइन बोर्ड के गठन का विरोध क्‍यों 
कुछ समय से मथुरा-वृंदावन के प्रमुख मंदिरों का जिम्‍मा श्राइन बोर्ड का गठन कर उसके सुपुर्द किए जाने की बात उठती रही है। जब-जब यह बात जोर पकड़ती है तब-तब उसका पुरजोर विरोध भी शुरू हो जाता है।
ऐसे में क्‍या यह आशंका सही साबित नहीं होती कि एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत श्राइन बोर्ड के गठन का विरोध किया जाता है ताकि मंदिरों की अकूत संपत्ति पर बारी-बारी से काबिज रहने का सिलसिला चलता रहे।
दानघाटी मंदिर के प्रबंधक पद हेतु नियुक्‍ति के लिए 20 लोगों का अदालत को प्रार्थना पत्र देना यह समझने के लिए काफी है कि आखिर क्‍यों ”इतने लोगों” की इस पद में इतनी रुचि है।
बाहर आने लगी सड़ांध की दुर्गन्‍ध 
न्‍यायपालिका में भ्रष्‍टाचार की बात यूं पहले भी उठती रही है और जिला स्‍तर पर व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार से आमजन के साथ-साथ वो न्‍यायिक अधिकारी भी आजिज आ चुके हैं जो अपना काम नेकनीयत व निष्‍ठा के साथ करते हुए पीड़ित पक्ष को न्‍याय दिलाने की कोशिश में लगे रहते हैं किंतु अब इस भ्रष्‍टाचार की सड़ांध समूचे वातावरण को प्रदूषित करती दिखाई देती है।
पहले तो जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई और फिर उच्‍च न्‍यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ के न्‍यायाधीश रंगनाथ पांडेय द्वारा सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर न्‍यायपालिका में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार, भाई-भतीजावाद व वंशवाद सहित कॉलेजियम सिस्‍टम पर सवाल उठाते हुए सीधे हस्‍तक्षेप की मांग की गई है, तब से न्‍यायपालिकाओं में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार एक बड़ा मुद्दा बनने लगा है।
तीर्थनगरी मथुरा के मंदिरों की संपत्ति पर सबकी निगाह 
जहां तक सवाल योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्‍मस्‍थली मथुरा के मंदिरों की संपत्ति का है तो उस पर सबकी निगाह रहती है।
यही कारण है कि इन मंदिरों के विवाद पहले तो न्‍यायालयों तक और फिर न्‍यायालयों से सड़क पर आकर बिखरते रहे हैं।
दानघाटी मंदिर में हुई करोड़ों रुपए की अनियमितता को एक न्‍यायिक अधिकारी द्वारा ही अपने पूर्ववर्ती न्‍यायिक अधिकारी के निर्णय की देन बताना यह जाहिर करता है कि भांग किसी एक पात्र में नहीं, पूरे कुएं में घुल चुकी है और यदि समय रहते इसका इलाज नहीं किया गया तो ‘ब्रजवासियों’ के साथ-साथ उनके ‘आराध्‍य’ भी सबकुछ लुटते हुए देखेंगे लेकिन कर कुछ नहीं पाएंगे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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