सुप्रसिद्ध शायर सर मुहम्मद इकबाल के अनुसार काफिर (कुफ्र) के मानी हैं- इखलाक (जीव जगत) से मुहब्बत न करने के जज़्बात।
इस्लामिक रिसर्च के मुताबिक खुदा की बनाई हुई कायनात से विद्रोह, अकृतज्ञता और नमकहरामी भी कुफ्र हैं।
ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार यदि कोर्इ नौकर अपने मालिक का नमक खाकर उसके साथ विश्वासघात करता है तो उसे नमकहराम कहते हैं। यदि कोर्इ सरकारी कर्मचारी हुकूमत के दिए हुए अधिकारों का प्रयोग हुकूमत के ही विरुद्ध करता है, तो उसे विद्रोही कहते हैं। यदि कोर्इ व्यक्ति अपने उपकारकर्ता के साथ विश्वासघात करता है, तो उसे कृतघ्न कहते हैं।
अब बताओ कि जो खुदा, मनुष्य का वास्तविक उपकारकर्ता है, वास्तविक सम्राट है, सबसे बड़ा पालनकर्ता है, यदि उसी के साथ मनुष्य कुफ्र करे, उसी की बनाई हुई कायनात को न माने, उसकी बन्दगी से इंकार करे तो क्या यह कृतघ्नता और नमकहरामी नहीं है।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत-बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित ”वंदे मातरम्” को संविधान ने राष्ट्रगीत का दर्जा दिया है और इस गीत में मातृभूमि की ही वंदना की गई है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में ”भारत माता” नाम से एक चैप्टर है। इस चैप्टर को नेहरू ने ”मदर इंडिया” नाम नहीं दिया। इंग्लिश में होने के बावजूद इसे उन्होंने “BHARAT MATA” नाम दिया है।
इस चैप्टर में नेहरू लिखते हैं कि वह जहां भी जाते थे, लोग भारत माता की जय के नारे लगाने लगते थे। एक बार उन्होंने भीड़ से पूछा कि आखिर यह भारत माता कौन है जिसकी जय आप बोलते हैं और जिसके विजयी होने की कामना करते हैं।
नेहरू के अनुसार भीड़ में मौजूद लोगों ने कहा कि हमारी मातृभूमि ही भारत माता है।
नेहरू ने फिर पूछा कि मातृभूमि से आपका क्या तात्पर्य है। क्या आपके गांव, इलाके या शहर की भूमि?
इस पर लोगों का जवाब था कि मातृभूमि से हमारा तात्पर्य हमारे देश की भूमि, उस भूमि पर मौजूद जल, जंगल, पहाड़ वनस्पतियां और वह सब-कुछ जो प्रकृति है और जिससे हमारे लहू का एक-एक कतरा अभिसिचिंत है। जिससे हम अपने लिए अन्न, जल, फल-फूल, वनस्पतियां और यहां तक कि प्राणवायु पाते हैं।
पंडित नेहरू को न सिर्फ जवाब मिल चुका था बल्कि उन्हें ”भारत माता” की जयघोष के पीछे छिपी मनोकामना भी समझ में आ चुकी थी।
ऐसे में ऑल इंडिया मजलिस इत्तिहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया और सांसद असदउद्दीन ओवैसी का यह कहना कि यदि कोई उनके गले पर छुरी रखकर भी ”भारत माता की जय” बुलवाना चाहे तो वह ”भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे क्योंकि संविधान में कहीं ऐसा नहीं लिखा है।
जहां तक मुझे मालूम है असदउद्दीन ओवैसी अच्छे-खासे पढ़े-लिखे हैं। डिग्री होल्डर हैं। हालांकि पढ़े-लिखे होने और शिक्षित होने में बहुत बड़ा फर्क है इसलिए मैं यह नहीं बता सकता कि वह शिक्षित कितने हैं किंतु संविधान का जिक्र करके वह साबित यही करना चाहते हैं कि वह शिक्षित हैं।
बहरहाल, असदउद्दीन ओवैसी साहब मुस्लिम हैं और भारतीय भी हैं लिहाजा उन्हें भारतीय मुस्लिम होने के लिए किसी अन्य से प्रमाण पत्र की दरकार नहीं हैं परंतु शायद उन्हें खुद को शिक्षित साबित करने के लिए कई स्तर से प्रमाण पत्र की दरकार है।
सबसे पहले तो असदउद्दीन ओवैसी को ‘इस्लाम’ के विद्वानों से ही शिक्षित होने का प्रमाण पत्र लेना होगा क्यों कि इस्लाम के अनुसार खुदा की बनाई हुई कायनात का शुक्रगुजार न होना कुफ्र है। उसके प्रति विद्रोह, अकृतज्ञता तथा नमकहरामी कुफ्र है।
क्या असदउद्दीन ओवैसी साहब यह बतायेंगे कि मातृभूमि, खुदा की बनाई हुई कायनात का हिस्सा नहीं है। क्या उनकी रगों में दौड़ रहा खून उस जमीन के जर्रे-जर्रे से अभिसिंचित नहीं है। वह जो-कुछ भी खाते-पीते हैं, क्या उसका मूल स्त्रोत यह भूमि नहीं है। यदि इन सवालों का उत्तर ओवैसी साहब को मिल जाए तो वह खुद तय कर लें कि उन्हें क्या कहा जाना चाहिए और इस्लाम के मुताबिक वह क्या कहलवाने के अधिकारी हैं।
धर्म के इतर यदि बात करें देश के उस संविधान की जिसका उन्होंने जिक्र यह कहकर किया कि संविधान में कहीं ”भारत माता की जय” बोलने जैसी बाध्यता नहीं है तो पहले वह जान लें कि जिस संविधान में ”वंदे मातरम्” को राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त है, वह पूरा गीत ही मातृभूमि की वंदना है। मातृभूमि पर मौजूद प्रकृति के उस कण-कण की वंदना है जिसकी रचना इस्लाम के अनुसार खुदा ने की है और जिसकी वंदना न करना खुदा का अपमान करना है। उसके प्रति कृतघ्न होना, नमकहराम होना तथा विद्रोही हो जाना है। इस्लाम ने ऐसे लोगों के लिए भी काफिर शब्द का प्रयोग किया है, सिर्फ विधर्मियों के लिए नहीं। कुफ्र से बने शब्द ”काफिर” की तमाम व्याख्याओं में से एक व्याख्या यह भी है, और शायद इसी व्याख्या को सुप्रसिद्ध शायर सर मुहम्मद इकबाल ने माना है जिसका ऊपर जिक्र किया गया है।
माना कि असदउद्दीन ओवैसी साहब एक राजनेता हैं और वोट की राजनीति करना उनका हक है किंतु इसका यह मतलब तो नहीं कि वोट की राजनीति के लिए वह इतना नीचे गिर जाएं कि संविधान के साथ-साथ इस्लामिक शिक्षा को भी ताक पर रख दें।
मातृभूमि की वंदना करना यदि इस्लाम में निषिद्ध होता तो क्यों जावेद अख्तर जैसे नामचीन शायर तथा राज्यसभा सदस्य खुलेआम तीन-तीन बार भारत माता की जय बोलते।
इस्लाम यदि मातृभूमि की वंदना करने से रोकता तो क्यों अब तक जावेद अख्तर को कौम से बेदखल करने का फरमान जारी नहीं किया गया।
जावेद अख्तर तो एक उदाहरण भर हैं। बाकी देश के अधिकांश मुसलमानों को मातृभूमि की जय के नारे लगाने से कभी कोई परहेज नहीं रहा।
असदउद्दीन ओवैसी अपनी ओछी राजनीति में संभवत: यह भूल गए कि संसद में बैठने का अधिकार उन्हें जिस जनता ने दिया है, वह जनता भी उनके ऐसे विचारों से इत्तेफाक नहीं रखती।
वह यह भी भूल गए कि सीमा पर तैनात सेना का हर जवान मातृभूमि की रक्षा के लिए ही जीता है और उसी के लिए अपने प्राणों को खुशी-खुशी न्यौछावर कर देता है। सीमा पर तैनात इन जवानों में क्या मुसलमान नहीं हैं, अथवा उनकी इस्लाम के प्रति समझ असदउद्दीन ओवैसी से कम है। आखिर क्या साबित करना चाहते हैं असदउद्दीन ओवैसी।
मेरे ख्याल से ओवैसी साहब का दांव उल्टा पड़ चुका है, यह बात वह जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा है क्योंकि राजनीति आखिर उन्हीं लोगों के बल-बूते चलती है जिन्हें अक्सर राजनेता जाहिल और गंवार समझने की भूल कर बैठते हैं।
यूं भी धर्म और राजनीति का घालमेल आटे में नमक के बराबर ही ठीक रहता है, जहां इसका अनुपात गड़बड़ाया वहां पूरी की पूरी राजनीति का ऊंट करवट बदल लेता है।
भारत माता की जय न बोलने को बेवजह मुद्दा बनाकर असदउद्दीन ओवैसी ने साबित कर दिया कि न तो उन्हें इस्लाम की समझ है और न राजनीति की। वह इस्लाम के भी गुनहगार हैं और राजनीति के भी। बेहतर होगा कि समय रहते वह कुफ्र व काफिर के विस्तृत अर्थों को समझ लें और संविधान से राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त ”वंदे मातरम्” की पंक्तियों को भी पढ़ लें। शायद उन्हें समझ में आ जाए कि दोनों ही जगह मातृभूमि की वंदना जोर जबरदस्ती से नहीं धर्म और कर्म समझकर करने की नसीहत दी गई है।
जावेद अख्तर ने सही कहा था कि संविधान में तो टोपी और दाढ़ी रखने की भी बाध्यता नहीं है, तो क्या ओवैसी साहब टोपी और दाढ़ी भी छोड़ देंगे।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
इस्लामिक रिसर्च के मुताबिक खुदा की बनाई हुई कायनात से विद्रोह, अकृतज्ञता और नमकहरामी भी कुफ्र हैं।
ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार यदि कोर्इ नौकर अपने मालिक का नमक खाकर उसके साथ विश्वासघात करता है तो उसे नमकहराम कहते हैं। यदि कोर्इ सरकारी कर्मचारी हुकूमत के दिए हुए अधिकारों का प्रयोग हुकूमत के ही विरुद्ध करता है, तो उसे विद्रोही कहते हैं। यदि कोर्इ व्यक्ति अपने उपकारकर्ता के साथ विश्वासघात करता है, तो उसे कृतघ्न कहते हैं।
अब बताओ कि जो खुदा, मनुष्य का वास्तविक उपकारकर्ता है, वास्तविक सम्राट है, सबसे बड़ा पालनकर्ता है, यदि उसी के साथ मनुष्य कुफ्र करे, उसी की बनाई हुई कायनात को न माने, उसकी बन्दगी से इंकार करे तो क्या यह कृतघ्नता और नमकहरामी नहीं है।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत-बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित ”वंदे मातरम्” को संविधान ने राष्ट्रगीत का दर्जा दिया है और इस गीत में मातृभूमि की ही वंदना की गई है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू की किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में ”भारत माता” नाम से एक चैप्टर है। इस चैप्टर को नेहरू ने ”मदर इंडिया” नाम नहीं दिया। इंग्लिश में होने के बावजूद इसे उन्होंने “BHARAT MATA” नाम दिया है।
इस चैप्टर में नेहरू लिखते हैं कि वह जहां भी जाते थे, लोग भारत माता की जय के नारे लगाने लगते थे। एक बार उन्होंने भीड़ से पूछा कि आखिर यह भारत माता कौन है जिसकी जय आप बोलते हैं और जिसके विजयी होने की कामना करते हैं।
नेहरू के अनुसार भीड़ में मौजूद लोगों ने कहा कि हमारी मातृभूमि ही भारत माता है।
नेहरू ने फिर पूछा कि मातृभूमि से आपका क्या तात्पर्य है। क्या आपके गांव, इलाके या शहर की भूमि?
इस पर लोगों का जवाब था कि मातृभूमि से हमारा तात्पर्य हमारे देश की भूमि, उस भूमि पर मौजूद जल, जंगल, पहाड़ वनस्पतियां और वह सब-कुछ जो प्रकृति है और जिससे हमारे लहू का एक-एक कतरा अभिसिचिंत है। जिससे हम अपने लिए अन्न, जल, फल-फूल, वनस्पतियां और यहां तक कि प्राणवायु पाते हैं।
पंडित नेहरू को न सिर्फ जवाब मिल चुका था बल्कि उन्हें ”भारत माता” की जयघोष के पीछे छिपी मनोकामना भी समझ में आ चुकी थी।
ऐसे में ऑल इंडिया मजलिस इत्तिहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के मुखिया और सांसद असदउद्दीन ओवैसी का यह कहना कि यदि कोई उनके गले पर छुरी रखकर भी ”भारत माता की जय” बुलवाना चाहे तो वह ”भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे क्योंकि संविधान में कहीं ऐसा नहीं लिखा है।
जहां तक मुझे मालूम है असदउद्दीन ओवैसी अच्छे-खासे पढ़े-लिखे हैं। डिग्री होल्डर हैं। हालांकि पढ़े-लिखे होने और शिक्षित होने में बहुत बड़ा फर्क है इसलिए मैं यह नहीं बता सकता कि वह शिक्षित कितने हैं किंतु संविधान का जिक्र करके वह साबित यही करना चाहते हैं कि वह शिक्षित हैं।
बहरहाल, असदउद्दीन ओवैसी साहब मुस्लिम हैं और भारतीय भी हैं लिहाजा उन्हें भारतीय मुस्लिम होने के लिए किसी अन्य से प्रमाण पत्र की दरकार नहीं हैं परंतु शायद उन्हें खुद को शिक्षित साबित करने के लिए कई स्तर से प्रमाण पत्र की दरकार है।
सबसे पहले तो असदउद्दीन ओवैसी को ‘इस्लाम’ के विद्वानों से ही शिक्षित होने का प्रमाण पत्र लेना होगा क्यों कि इस्लाम के अनुसार खुदा की बनाई हुई कायनात का शुक्रगुजार न होना कुफ्र है। उसके प्रति विद्रोह, अकृतज्ञता तथा नमकहरामी कुफ्र है।
क्या असदउद्दीन ओवैसी साहब यह बतायेंगे कि मातृभूमि, खुदा की बनाई हुई कायनात का हिस्सा नहीं है। क्या उनकी रगों में दौड़ रहा खून उस जमीन के जर्रे-जर्रे से अभिसिंचित नहीं है। वह जो-कुछ भी खाते-पीते हैं, क्या उसका मूल स्त्रोत यह भूमि नहीं है। यदि इन सवालों का उत्तर ओवैसी साहब को मिल जाए तो वह खुद तय कर लें कि उन्हें क्या कहा जाना चाहिए और इस्लाम के मुताबिक वह क्या कहलवाने के अधिकारी हैं।
धर्म के इतर यदि बात करें देश के उस संविधान की जिसका उन्होंने जिक्र यह कहकर किया कि संविधान में कहीं ”भारत माता की जय” बोलने जैसी बाध्यता नहीं है तो पहले वह जान लें कि जिस संविधान में ”वंदे मातरम्” को राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त है, वह पूरा गीत ही मातृभूमि की वंदना है। मातृभूमि पर मौजूद प्रकृति के उस कण-कण की वंदना है जिसकी रचना इस्लाम के अनुसार खुदा ने की है और जिसकी वंदना न करना खुदा का अपमान करना है। उसके प्रति कृतघ्न होना, नमकहराम होना तथा विद्रोही हो जाना है। इस्लाम ने ऐसे लोगों के लिए भी काफिर शब्द का प्रयोग किया है, सिर्फ विधर्मियों के लिए नहीं। कुफ्र से बने शब्द ”काफिर” की तमाम व्याख्याओं में से एक व्याख्या यह भी है, और शायद इसी व्याख्या को सुप्रसिद्ध शायर सर मुहम्मद इकबाल ने माना है जिसका ऊपर जिक्र किया गया है।
माना कि असदउद्दीन ओवैसी साहब एक राजनेता हैं और वोट की राजनीति करना उनका हक है किंतु इसका यह मतलब तो नहीं कि वोट की राजनीति के लिए वह इतना नीचे गिर जाएं कि संविधान के साथ-साथ इस्लामिक शिक्षा को भी ताक पर रख दें।
मातृभूमि की वंदना करना यदि इस्लाम में निषिद्ध होता तो क्यों जावेद अख्तर जैसे नामचीन शायर तथा राज्यसभा सदस्य खुलेआम तीन-तीन बार भारत माता की जय बोलते।
इस्लाम यदि मातृभूमि की वंदना करने से रोकता तो क्यों अब तक जावेद अख्तर को कौम से बेदखल करने का फरमान जारी नहीं किया गया।
जावेद अख्तर तो एक उदाहरण भर हैं। बाकी देश के अधिकांश मुसलमानों को मातृभूमि की जय के नारे लगाने से कभी कोई परहेज नहीं रहा।
असदउद्दीन ओवैसी अपनी ओछी राजनीति में संभवत: यह भूल गए कि संसद में बैठने का अधिकार उन्हें जिस जनता ने दिया है, वह जनता भी उनके ऐसे विचारों से इत्तेफाक नहीं रखती।
वह यह भी भूल गए कि सीमा पर तैनात सेना का हर जवान मातृभूमि की रक्षा के लिए ही जीता है और उसी के लिए अपने प्राणों को खुशी-खुशी न्यौछावर कर देता है। सीमा पर तैनात इन जवानों में क्या मुसलमान नहीं हैं, अथवा उनकी इस्लाम के प्रति समझ असदउद्दीन ओवैसी से कम है। आखिर क्या साबित करना चाहते हैं असदउद्दीन ओवैसी।
मेरे ख्याल से ओवैसी साहब का दांव उल्टा पड़ चुका है, यह बात वह जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा है क्योंकि राजनीति आखिर उन्हीं लोगों के बल-बूते चलती है जिन्हें अक्सर राजनेता जाहिल और गंवार समझने की भूल कर बैठते हैं।
यूं भी धर्म और राजनीति का घालमेल आटे में नमक के बराबर ही ठीक रहता है, जहां इसका अनुपात गड़बड़ाया वहां पूरी की पूरी राजनीति का ऊंट करवट बदल लेता है।
भारत माता की जय न बोलने को बेवजह मुद्दा बनाकर असदउद्दीन ओवैसी ने साबित कर दिया कि न तो उन्हें इस्लाम की समझ है और न राजनीति की। वह इस्लाम के भी गुनहगार हैं और राजनीति के भी। बेहतर होगा कि समय रहते वह कुफ्र व काफिर के विस्तृत अर्थों को समझ लें और संविधान से राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त ”वंदे मातरम्” की पंक्तियों को भी पढ़ लें। शायद उन्हें समझ में आ जाए कि दोनों ही जगह मातृभूमि की वंदना जोर जबरदस्ती से नहीं धर्म और कर्म समझकर करने की नसीहत दी गई है।
जावेद अख्तर ने सही कहा था कि संविधान में तो टोपी और दाढ़ी रखने की भी बाध्यता नहीं है, तो क्या ओवैसी साहब टोपी और दाढ़ी भी छोड़ देंगे।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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