मथुरा में अब तक घोषित प्रत्याशियों को लेकर BSP (बहुजन समाज पार्टी) बड़ा
फेरबदल करने की तैयारी कर रही है। लखनऊ में बैठे उच्च पदस्थ सूत्रों से
प्राप्त जानकारी के अनुसार पार्टी सुप्रीमो मायावती मथुरा की पांचों
विधानसभा सीटों पर काबिज होना चाहती हैं और इसलिए वह मौजूदा घोषित
प्रत्याशियों में बड़ा उलटफेर कर सकती हैं।
सूत्रों की मानें तो यह उलटफेर ऐन वक्त तक भी हो सकता है क्योंकि मायावती इसके लिए दूसरी पार्टियों के पत्ते खुलने का इंतजार कर रही हैं।
अब तक बसपा ने मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से वृंदावन निवासी योगेश द्विवेदी को प्रत्याशी घोषित किया हुआ है। नगरपालिका वृंदावन की पूर्व चेयरमैन पुष्पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी बसपा की टिकट पर ही गत लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। लगभग तभी से योगेश द्विवेदी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
बताया जाता है कि शहर की इस सीट को लेकर बहिनजी काफी गंभीर हैं लिहाजा इसे खोना नहीं चाहतीं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी इस सीट के लिए किसी बाह्मण को ही प्रत्याशी बनाए जाने की प्रबल संभावना है। यदि ऐसा होता है तो बसपा योगेश द्विवेदी को चुनाव लड़ाने पर पुनर्विचार कर सकती है क्योंकि बहिनजी ऐसी स्थिति में ब्राह्मण मतों के विभाजन का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेंगी।
इसके अतिरिक्त यह भी कहा जा रहा है कि मांट क्षेत्र से घोषित बसपा प्रत्याशी पंडित श्यामसुंदर शर्मा राष्ट्रीय लोकदल के पत्ते खुलने का इंतजार कर रहे हैं। यदि राष्ट्रीय लोकदल उनके खिलाफ जयंत चौधरी की पत्नी चारू चौधरी को चुनाव मैदान में ले आता है तो श्यामसुंदर शर्मा भी अपने लिए क्षेत्र बदलने की मांग कर सकते हैं। चूंकि श्यामसुंदर शर्मा जाट बाहुल्य मांट क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान जयंत चौधरी से शिकस्त खा चुके हैं इसलिए वह इस बार कोई जोखिम उठाना नहीं चाहेंगे।
बताया जाता है कि अगर हालात श्यामसुंदर शर्मा को अपने अनुकूल नहीं लगते तो वह भी मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से लड़ना पसंद करेंगे।
इधर गोवर्धन विधानसभा से भी सिटिंग विधायक राजकुमार रावत का क्षेत्र बदले जाने की संभावना जताई जा रही है। राजकुमार रावत की स्थिति हालांकि अपने क्षेत्र में मजबूत है और वह लगातार वहां सक्रिय भी रहे हैं किंतु पार्टी सूत्रों की मानें तो गोवर्धन से प्रदेश के पूर्व कबीना मंत्री और बहिनजी के करीबी माने जाने वाले रामवीर उपाध्याय को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। पार्टी रामवीर उपाध्याय के लिए उनके पुराने क्षेत्र को मुफीद नहीं मान रही। पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसी स्थिति में सिटिंग विधायक राजकुमार रावत के लिए जनपद के बाहर भी कोई क्षेत्र चुना जा सकता है।
छाता विधानसभा क्षेत्र से हालांकि पिछले दिनों बसपा ने अशर एग्रो के निदेशक इंडस्ट्रियलिस्ट मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को अपना प्रत्याशी घोषित किया है किंतु बताया जाता है कि मनोज चतुर्वेदी को चुनाव लड़ाए जाने की संभावना काफी कम हैं।
मूल रूप से मथुरा के चौबिया पाड़ा क्षेत्र अंतर्गत गजापाइसा निवासी मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को न तो राजनीति का कोई अनुभव है और ना ही छाता क्षेत्र में उनका कोई जनाधार है। छाता क्षेत्र से उनका यदि कोई वास्ता है तो सिर्फ्र इतना कि उनकी धान फैक्ट्री अशर एग्रो छाता क्षेत्र में स्थित है।
यूं भी छाता क्षेत्र के सिटिंग विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह के पुत्र ठाकुर अतुल सिसौदिया ”लवी” ने पिछले दिनों बसपा ज्वाइन की है और यही माना जा रहा था कि लवी ही छाता से बसपा के प्रत्याशी होंगे किंतु पिछले दिनों अचानक एक कार्यक्रम के दौरान पार्टी ने मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। मनोज चतुर्वेदी (पाठक) की उम्मीदवारी किसी की समझ में नहीं आ रही और पार्टी के ही पदाधिकारी दबी जुबान से यह स्वीकार भी कर रहे हैं कि मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को छाता से चुनाव लड़ाने का मतलब होगा, भाजपा प्रत्याशी चौधरी लक्ष्मीनारायण को प्लेट में रखकर जीत उपलब्ध करा देना। बसपा सरकार में ही लंबे समय तक कबीना मंत्री रहे चौधरी लक्ष्मीनारायण अब भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं और उनकी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।
यूं भी यदि बसपा मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को चुनाव लड़ाती है तो उसे बगावत भी झेलनी पड़ सकती है, और उस स्थिति में बसपा के लिए ज्यादा मुसीबत खड़ी होना लाजिमी है। इसकी एक वजह यह बताई जाती है मनोज पाठक ने अपनी उम्मीदवारी घोषित कराने के लिए मोटा पैसा खर्च किया है। मनोज पाठक की अचानक सामने आई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी लोगों के गले नहीं उतर रही।
शेष रह जाती है गोकुल सुरक्षित सीट, जहां से प्रेमचंद कर्दम को पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया हुआ है।
बताया जाता है यूं तो प्रेमचंद कर्दम के लिए फिलहाल कोई खतरा नहीं है किंतु एक सिटिंग विधायक वहां से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ने के प्रबल इच्छुक हैं। इसके लिए वह पार्टी भी बदलने को तैयार हैं और बसपा के कुछ कद्दावर नेताओं के संपर्क में हैं।
यदि यह बात सही है तो प्रेमचंद कर्दम का भी पत्ता कट सकता है क्योंकि बसपा इससे दोहरा लाभ अर्जित करने का लोभ शायद ही त्याग पाए।
बसपा फिलहाल कृष्ण नगरी की कुल पांच विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर काबिज है। हालांकि इनमें से दो विधायकों मांट के श्यामसुंदर शर्मा तथा छाता के ठाकुर तेजपाल ने हाल ही में बसपा ज्वाइन की है। श्यामसुंदर शर्मा ने अपना पिछला चुनाव ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ रहकर लड़ा था जबकि छाता से ठाकुर तेजपाल ने राष्ट्रीय लोकदल प्रत्याशी के तौर पर बसपा के चौधरी लक्ष्मीनारायण को हराया था।
इस तरह पिछले विधानसभा चुनावों के बाद बसपा के खाते में गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र से राजकुमार रावत के रूप में एकमात्र विधायक ही आ पाया था। अब जबकि दो विधायक उसके खाते में आगामी चुनावों से पहले और जुड़ चुके हैं तो बसपा उन्हें भी खोना नहीं चाहेगी। बेशक उसे उनके लिए कोई बड़ा फेरबदल ही क्यों न करना पड़े।
यही कारण है कि उच्च स्तर पर बसपा में इसके लिए गंभीर चिंतन चल रहा है और पार्टी चाहती है कि वह इस बार मथुरा-वृंदावन के साथ-साथ गोकुल क्षेत्र में भी कोई चमत्कार कर दे ताकि भाजपा के सामने बड़ी लकीर खींच सके।
बसपा की इस कोशिश के पीछे एक कारण मथुरा में उसके सामने भाजपा के अतिरिक्त कोई दूसरी चुनौती न होना भी है। समाजवादी पार्टी लाख प्रयासों के बावजूद मथुरा में कभी अपना खाता नहीं खोल पाई है और कांग्रेस के पास एक शहरी सीट के अलावा यहां कुछ है नहीं। इस शहरी सीट पर काबिज कांग्रेसी विधायक प्रदीप माथुर को लेकर क्षेत्रीय जनता में भारी आक्रोश व्याप्त है। प्रदीप माथुर पिछला चुनाव भी मात्र 500 मतों से बमुश्किल जीत पाए थे, वो भी तब जबकि पिछले चुनावों में कांग्रेस का राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन था और इसका लाभ प्रदीप माथुर को मिला।
शेष चारों विधानसभा क्षेत्रों छाता, मांट, गोकुल और गोवर्धन में आज भी कांग्रेस यथास्थिति को प्राप्त है लिहाजा वह दूसरी किसी पार्टी के लिए चुनौती बनने की स्थिति में नहीं है।
राष्ट्रीय लोकदल जरूर इन चुनावों में हाथ-पैर मार रही है किंतु उसका अब तक का इतिहास उसकी साख पर बट्टा लगा चुका है। 2009 के लोकसभा चुनावों में मथुरा की जनता ने रालोद के युवराज जयंत चौधरी को सिर-आंखों पर बैठाया और भाजपा के सहयोग से जयंत चौधरी ने वह चुनाव भारी मतों के अंतर से जीता किंतु उसके बाद जयंत चौधरी ने मथुरा की जनता को पूरी तरह निराश किया। यहां तक कि मथुरा में रहना भी जयंत ने जरूरी नहीं समझा। इसके बाद जयंत चौधरी ने सांसद रहते 2012 का मांट से श्यामसुंदर शर्मा के खिलाफ विधानसभा चुनाव भी लड़ा और इसमें भी जीत हासिल की जबकि श्यामसुंदर शर्मा मांट क्षेत्र में अपराजेय माने जाते थे। जयंत चौधरी को क्षेत्रीय जनता ने उनके इस आश्वासन पर चुनाव जितवाया कि वह जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता त्याग देंगे और विधायक रहकर क्षेत्र का विकास कराएंगे।
दरअसल, तब राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह अपने पुत्र को राजनीतिक सौदेबाजी के तहत मुख्यमंत्री बनाने का ख्वाब अपने मन में संजोए बैठे थे किंतु सपा को मिले स्पष्ट बहुमत ने उनके इस ख्वाब को मिट्टी में मिला दिया।
ख्वाब के मिट्टी में मिलते ही रालोद और जयंत चौधरी ने क्षेत्रीय जनता से किया गया लोकसभा की सदस्यता त्यागने का वायदा तोड़ने में रत्तीभर मुरव्वत नहीं की और लोकसभा की जगह मांट की विधायकी से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद हुए उप चुनावों में एकबार फिर श्यामसुंदर शर्मा को जीत हासिल हुई।
यही सब कारण थे कि 2014 के लोकसभा चुनावों में रालोद के युवराज कहीं के नहीं रहे और भाजपा की हेमा मालिनी ने भारी मतों से जीत दर्ज की।
अब बेशक रालोद एकबार फिर अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए हाथ-पैर मार रहा है किंतु उसमें वह कितना सफल होगा और किन सीटों पर सफल होगा, यह वक्त ही बताएगा। हां, एकबात जरूर तय है कि रालोद अब मथुरा में किसी पार्टी के लिए चुनौती देने की स्थिति में नहीं रहा। मांट क्षेत्र में भी वह तभी चुनौती बन सकता है जब खुद जयंत चौधरी अथवा उनकी पत्नी चारू चौधरी चुनाव मैदान में उतरें। दूसरे चुनाव क्षेत्रों में तो उसके पास प्रत्याशियों का भी टोटा दिखाई देता है।
संभवत: इन्हीं सब स्थिति-परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए बसपा मथुरा को लेकर गंभीर है और गहन चिंतन कर रही है। वह इस मौके को खोना नहीं चाहती, चाहे इसके लिए उसे पूर्व घोषित उम्मीदवारों में बड़ा फेरबदल ही क्यों न करना पड़े।
-लीजेंड न्यूज़
सूत्रों की मानें तो यह उलटफेर ऐन वक्त तक भी हो सकता है क्योंकि मायावती इसके लिए दूसरी पार्टियों के पत्ते खुलने का इंतजार कर रही हैं।
अब तक बसपा ने मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से वृंदावन निवासी योगेश द्विवेदी को प्रत्याशी घोषित किया हुआ है। नगरपालिका वृंदावन की पूर्व चेयरमैन पुष्पा शर्मा के पुत्र योगेश द्विवेदी बसपा की टिकट पर ही गत लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। लगभग तभी से योगेश द्विवेदी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
बताया जाता है कि शहर की इस सीट को लेकर बहिनजी काफी गंभीर हैं लिहाजा इसे खोना नहीं चाहतीं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी इस सीट के लिए किसी बाह्मण को ही प्रत्याशी बनाए जाने की प्रबल संभावना है। यदि ऐसा होता है तो बसपा योगेश द्विवेदी को चुनाव लड़ाने पर पुनर्विचार कर सकती है क्योंकि बहिनजी ऐसी स्थिति में ब्राह्मण मतों के विभाजन का खामियाजा नहीं भुगतना चाहेंगी।
इसके अतिरिक्त यह भी कहा जा रहा है कि मांट क्षेत्र से घोषित बसपा प्रत्याशी पंडित श्यामसुंदर शर्मा राष्ट्रीय लोकदल के पत्ते खुलने का इंतजार कर रहे हैं। यदि राष्ट्रीय लोकदल उनके खिलाफ जयंत चौधरी की पत्नी चारू चौधरी को चुनाव मैदान में ले आता है तो श्यामसुंदर शर्मा भी अपने लिए क्षेत्र बदलने की मांग कर सकते हैं। चूंकि श्यामसुंदर शर्मा जाट बाहुल्य मांट क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान जयंत चौधरी से शिकस्त खा चुके हैं इसलिए वह इस बार कोई जोखिम उठाना नहीं चाहेंगे।
बताया जाता है कि अगर हालात श्यामसुंदर शर्मा को अपने अनुकूल नहीं लगते तो वह भी मथुरा-वृंदावन क्षेत्र से लड़ना पसंद करेंगे।
इधर गोवर्धन विधानसभा से भी सिटिंग विधायक राजकुमार रावत का क्षेत्र बदले जाने की संभावना जताई जा रही है। राजकुमार रावत की स्थिति हालांकि अपने क्षेत्र में मजबूत है और वह लगातार वहां सक्रिय भी रहे हैं किंतु पार्टी सूत्रों की मानें तो गोवर्धन से प्रदेश के पूर्व कबीना मंत्री और बहिनजी के करीबी माने जाने वाले रामवीर उपाध्याय को चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। पार्टी रामवीर उपाध्याय के लिए उनके पुराने क्षेत्र को मुफीद नहीं मान रही। पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसी स्थिति में सिटिंग विधायक राजकुमार रावत के लिए जनपद के बाहर भी कोई क्षेत्र चुना जा सकता है।
छाता विधानसभा क्षेत्र से हालांकि पिछले दिनों बसपा ने अशर एग्रो के निदेशक इंडस्ट्रियलिस्ट मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को अपना प्रत्याशी घोषित किया है किंतु बताया जाता है कि मनोज चतुर्वेदी को चुनाव लड़ाए जाने की संभावना काफी कम हैं।
मूल रूप से मथुरा के चौबिया पाड़ा क्षेत्र अंतर्गत गजापाइसा निवासी मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को न तो राजनीति का कोई अनुभव है और ना ही छाता क्षेत्र में उनका कोई जनाधार है। छाता क्षेत्र से उनका यदि कोई वास्ता है तो सिर्फ्र इतना कि उनकी धान फैक्ट्री अशर एग्रो छाता क्षेत्र में स्थित है।
यूं भी छाता क्षेत्र के सिटिंग विधायक ठाकुर तेजपाल सिंह के पुत्र ठाकुर अतुल सिसौदिया ”लवी” ने पिछले दिनों बसपा ज्वाइन की है और यही माना जा रहा था कि लवी ही छाता से बसपा के प्रत्याशी होंगे किंतु पिछले दिनों अचानक एक कार्यक्रम के दौरान पार्टी ने मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। मनोज चतुर्वेदी (पाठक) की उम्मीदवारी किसी की समझ में नहीं आ रही और पार्टी के ही पदाधिकारी दबी जुबान से यह स्वीकार भी कर रहे हैं कि मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को छाता से चुनाव लड़ाने का मतलब होगा, भाजपा प्रत्याशी चौधरी लक्ष्मीनारायण को प्लेट में रखकर जीत उपलब्ध करा देना। बसपा सरकार में ही लंबे समय तक कबीना मंत्री रहे चौधरी लक्ष्मीनारायण अब भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं और उनकी पत्नी जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।
यूं भी यदि बसपा मनोज चतुर्वेदी (पाठक) को चुनाव लड़ाती है तो उसे बगावत भी झेलनी पड़ सकती है, और उस स्थिति में बसपा के लिए ज्यादा मुसीबत खड़ी होना लाजिमी है। इसकी एक वजह यह बताई जाती है मनोज पाठक ने अपनी उम्मीदवारी घोषित कराने के लिए मोटा पैसा खर्च किया है। मनोज पाठक की अचानक सामने आई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी लोगों के गले नहीं उतर रही।
शेष रह जाती है गोकुल सुरक्षित सीट, जहां से प्रेमचंद कर्दम को पार्टी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया हुआ है।
बताया जाता है यूं तो प्रेमचंद कर्दम के लिए फिलहाल कोई खतरा नहीं है किंतु एक सिटिंग विधायक वहां से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ने के प्रबल इच्छुक हैं। इसके लिए वह पार्टी भी बदलने को तैयार हैं और बसपा के कुछ कद्दावर नेताओं के संपर्क में हैं।
यदि यह बात सही है तो प्रेमचंद कर्दम का भी पत्ता कट सकता है क्योंकि बसपा इससे दोहरा लाभ अर्जित करने का लोभ शायद ही त्याग पाए।
बसपा फिलहाल कृष्ण नगरी की कुल पांच विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर काबिज है। हालांकि इनमें से दो विधायकों मांट के श्यामसुंदर शर्मा तथा छाता के ठाकुर तेजपाल ने हाल ही में बसपा ज्वाइन की है। श्यामसुंदर शर्मा ने अपना पिछला चुनाव ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ रहकर लड़ा था जबकि छाता से ठाकुर तेजपाल ने राष्ट्रीय लोकदल प्रत्याशी के तौर पर बसपा के चौधरी लक्ष्मीनारायण को हराया था।
इस तरह पिछले विधानसभा चुनावों के बाद बसपा के खाते में गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र से राजकुमार रावत के रूप में एकमात्र विधायक ही आ पाया था। अब जबकि दो विधायक उसके खाते में आगामी चुनावों से पहले और जुड़ चुके हैं तो बसपा उन्हें भी खोना नहीं चाहेगी। बेशक उसे उनके लिए कोई बड़ा फेरबदल ही क्यों न करना पड़े।
यही कारण है कि उच्च स्तर पर बसपा में इसके लिए गंभीर चिंतन चल रहा है और पार्टी चाहती है कि वह इस बार मथुरा-वृंदावन के साथ-साथ गोकुल क्षेत्र में भी कोई चमत्कार कर दे ताकि भाजपा के सामने बड़ी लकीर खींच सके।
बसपा की इस कोशिश के पीछे एक कारण मथुरा में उसके सामने भाजपा के अतिरिक्त कोई दूसरी चुनौती न होना भी है। समाजवादी पार्टी लाख प्रयासों के बावजूद मथुरा में कभी अपना खाता नहीं खोल पाई है और कांग्रेस के पास एक शहरी सीट के अलावा यहां कुछ है नहीं। इस शहरी सीट पर काबिज कांग्रेसी विधायक प्रदीप माथुर को लेकर क्षेत्रीय जनता में भारी आक्रोश व्याप्त है। प्रदीप माथुर पिछला चुनाव भी मात्र 500 मतों से बमुश्किल जीत पाए थे, वो भी तब जबकि पिछले चुनावों में कांग्रेस का राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन था और इसका लाभ प्रदीप माथुर को मिला।
शेष चारों विधानसभा क्षेत्रों छाता, मांट, गोकुल और गोवर्धन में आज भी कांग्रेस यथास्थिति को प्राप्त है लिहाजा वह दूसरी किसी पार्टी के लिए चुनौती बनने की स्थिति में नहीं है।
राष्ट्रीय लोकदल जरूर इन चुनावों में हाथ-पैर मार रही है किंतु उसका अब तक का इतिहास उसकी साख पर बट्टा लगा चुका है। 2009 के लोकसभा चुनावों में मथुरा की जनता ने रालोद के युवराज जयंत चौधरी को सिर-आंखों पर बैठाया और भाजपा के सहयोग से जयंत चौधरी ने वह चुनाव भारी मतों के अंतर से जीता किंतु उसके बाद जयंत चौधरी ने मथुरा की जनता को पूरी तरह निराश किया। यहां तक कि मथुरा में रहना भी जयंत ने जरूरी नहीं समझा। इसके बाद जयंत चौधरी ने सांसद रहते 2012 का मांट से श्यामसुंदर शर्मा के खिलाफ विधानसभा चुनाव भी लड़ा और इसमें भी जीत हासिल की जबकि श्यामसुंदर शर्मा मांट क्षेत्र में अपराजेय माने जाते थे। जयंत चौधरी को क्षेत्रीय जनता ने उनके इस आश्वासन पर चुनाव जितवाया कि वह जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता त्याग देंगे और विधायक रहकर क्षेत्र का विकास कराएंगे।
दरअसल, तब राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह अपने पुत्र को राजनीतिक सौदेबाजी के तहत मुख्यमंत्री बनाने का ख्वाब अपने मन में संजोए बैठे थे किंतु सपा को मिले स्पष्ट बहुमत ने उनके इस ख्वाब को मिट्टी में मिला दिया।
ख्वाब के मिट्टी में मिलते ही रालोद और जयंत चौधरी ने क्षेत्रीय जनता से किया गया लोकसभा की सदस्यता त्यागने का वायदा तोड़ने में रत्तीभर मुरव्वत नहीं की और लोकसभा की जगह मांट की विधायकी से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद हुए उप चुनावों में एकबार फिर श्यामसुंदर शर्मा को जीत हासिल हुई।
यही सब कारण थे कि 2014 के लोकसभा चुनावों में रालोद के युवराज कहीं के नहीं रहे और भाजपा की हेमा मालिनी ने भारी मतों से जीत दर्ज की।
अब बेशक रालोद एकबार फिर अपनी खोई हुई जमीन पाने के लिए हाथ-पैर मार रहा है किंतु उसमें वह कितना सफल होगा और किन सीटों पर सफल होगा, यह वक्त ही बताएगा। हां, एकबात जरूर तय है कि रालोद अब मथुरा में किसी पार्टी के लिए चुनौती देने की स्थिति में नहीं रहा। मांट क्षेत्र में भी वह तभी चुनौती बन सकता है जब खुद जयंत चौधरी अथवा उनकी पत्नी चारू चौधरी चुनाव मैदान में उतरें। दूसरे चुनाव क्षेत्रों में तो उसके पास प्रत्याशियों का भी टोटा दिखाई देता है।
संभवत: इन्हीं सब स्थिति-परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए बसपा मथुरा को लेकर गंभीर है और गहन चिंतन कर रही है। वह इस मौके को खोना नहीं चाहती, चाहे इसके लिए उसे पूर्व घोषित उम्मीदवारों में बड़ा फेरबदल ही क्यों न करना पड़े।
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