-आम आदमी के साथ-साथ कई बैंक भी फंसे जयकृष्ण राणा के जाल में
-1600 एकड़ में फैला है राणा के साम्राज्य का जाल
कल्पतरू ग्रुप की रियल एस्टेट कंपनी ‘कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ का भी सैकड़ों करोड़ का ऐसा घोटाला सामने आया है जिसमें न सिर्फ कई बैंक फंस गए हैं बल्कि तमाम वो लोग भी शिकार हुए हैं जिन्होंने कभी अपने लिए एक अदद घर का सपना देखा था।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मथुरा के कस्बा फरह में दिल्ली से मथुरा और आगरा को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर-2 पर ‘कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (KBCL) का करीब 1600 एकड़ जमीन पर साम्राज्य फैला हुआ है।
कल्पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्ण राणा ने यहीं अपने अखबार कल्पतरू एक्सप्रेस से लेकर मॉटेल्स लिमिटेड, वृंदावन सीक्यूरिटीज लिमिटेड, कल्पतरू इंश्योरेंस कार्पोरेशन लिमिटेड, कल्पतरू डेरी प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्पतरू मेगामार्ट लिमिटेड, कल्पतरू इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड, कल्पतरू फूड प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्पतरू लैदर प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड तथा कल्पतरू एग्री इंडस्ट्रीज लिमिटेड का जाल फैला रखा है।
निजी सुरक्षा गार्डों तथा गुर्गों के घेरे में इसी साम्राज्य के अंदर कभी राजा-महाराजाओं की तरह बैठने वाला जयकृष्ण राणा अब जब कभी यहां आता भी है तो दबेपांव आता है ताकि ज्यादा लोगों को उसके आने की भनक न लग जाए।
बताया जाता है कि अपनी करीब एक दर्जन कंपनियों के इस जाल में जयकृष्ण राणा ने विभिन्न स्तर के लोगों को फंसाकर उन्हें सैकड़ों करोड़ रुपए का चूना लगाया है और अब वह कैसे भी अपने मूलधन को इससे निकालने की कोशिश में दिन-रात एक कर रहे हैं। उन्हें जहां इसकी मौजूदगी का पता लगता है, वो वहीं पहुंच जाते हैं।
जयकृष्ण राणा की रियल एस्टेट कंपनी ‘कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (केबीसीएल) द्वारा फरह में जो प्रोजेक्ट खड़ा किया जा रहा है, उसमें भारी घोटाले का पता लगा है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां जयकृष्ण राणा और उसके गुर्गों ने बाकायदा एक साजिश के तहत अपने एजेंट्स के माध्यम से एक-एक मकान तथा एक-एक प्लॉट का सौदा कई-कई लोगों से करके उनसे करोड़ों रुपए हड़प लिए हैं। इनमें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो फ्लैट या प्लॉट का 90 प्रतिशत पैसा केबीसीएल के नाम कर चुके हैं और जब रजिस्ट्री कराने को हैं तो पता लगा है कि उस फ्लैट या प्लॉट के तो कई-कई दावेदार हैं और सब के सब किसी तरह अपने नाम रजिस्ट्री कराने के फेर में हैं।
ऐसे लोग जयकृष्ण राणा से तो सीधे मुलाकात कर नहीं पाते लिहाजा उन एजेंट्स के पास चक्कर लगाने को मजबूर हैं जिन्होंने अपनी रोजी-रोटी की खातिर राणा की रियल एस्टेट कंपनी के लिए काम किया था।
हालांकि आज ऐसे अधिकांश लोग राणा से अलग हो चुके हैं क्योंकि उन्हें भी पैसा मिलना तो दूर, सिरदर्द मिल रहा है। जिन फ्लैट्स या प्लॉट्स का पैसा उन्होंने अपने कमीशन तथा वेतन की खातिर लिया, उसे तो जयकृष्ण राणा की रियल एस्टेट कंपनी हड़प गई लेकिन सिरदर्द बेचारे एजेंट्स को दे दिया।
यही नहीं, यहां तक पता लगा है कि जिस प्रकार राणा और उसके कॉकस ने एक-एक फ्लैट तथा प्लॉट कई-कई लोगों को बेच खाए, उसी प्रकार अपनी जमीन पर कई-कई संस्थानों से फायनेंस भी करा रखा है और उसके शिकार बैंकों सहित निजी फायनेंसर भी हुए हैं।
अब चूंकि राणा और उसके कल्पतरू ग्रुप का सारा खेल सामने आ चुका है लिहाजा आम और खास आदमी तथा बैंक व फायनेंस कंपनियां किसी भी प्रकार अपना पैसा वसूल करने की कोशिश में हैं।
बताया जाता है कि इन दिनों राणा के विभिन्न ठिकानों पर इन्हीं सब कारणों से अक्सर झगड़े होते देखे जा सकते हैं।
जयकृष्ण राणा से जुड़े सूत्रों की मानें तो राणा और कल्पतरू ग्रुप का यह हाल इसलिए हुआ क्योंकि उसने अपनी चिटफंड कंपनी से लेकर विभिन्न कंपनियों के माध्यम से एकत्र किए गए पैसे को अपनी निजी संपत्ति की तरह इस्तेमाल किया और राजा-महाराजाओं की तरह लुटाया।
बताया जाता है कि राणा ने अपनी कंपनियों में जहां ऐसे-ऐसे लोगों को डायरेक्टर बना रखा है जो कहीं चपरासी बनने की योग्यता नहीं रखते वहीं ऐसे अनेक लोगों को लग्जरी गाड़ियां उपलब्ध करा रखी हैं, जो राणा की चरण वंदना करने में माहिर थे। उनकी सबसे बड़ी योग्यता सिर्फ और सिर्फ राणा को अपनी चापलूसी के बल पर प्रसन्न रखना थी।
राणा के कॉकस में शामिल लोगों का ही कहना है कि एक खास कंपनी की विशेष लग्जरी गाड़ी इतनी बड़ी तादाद में एकसाथ शायद ही कहीं अन्यत्र देखने को मिल सकें, जितनी राणा और उसके चापलूसों के पास देखी जा सकती हैं।
बेहिसाब फिजूलखर्ची और हर स्तर पर की गई धोखाधड़ी के चलते राणा भी समझ चुका है कि अब उसके कल्पतरू ग्रुप को डूबने से कोई बचा नहीं पायेगा और इसलिए वह खुद को सुरक्षित करने की कोशिशों में लगा है। उसे उस मौके की तलाश है जिसका लाभ उठाकर वह किसी तरह यहां से निकल सके और सारे झंझट उन लोगों के लिए छोड़ जाए जिन्होंने उसके जहाज के डूबने का अंदेशा होते ही, उससे किनारा कर लिया।
अब देखना केवल यह है कि राणा अपने मकसद में सफल होकर सुरक्षित निकल जाता है या उसे भी अंतत: सहाराश्री सुब्रत राय सहारा की तरह किसी सरकारी सुरक्षा में पनाह मिलती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
-1600 एकड़ में फैला है राणा के साम्राज्य का जाल
कल्पतरू ग्रुप की रियल एस्टेट कंपनी ‘कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ का भी सैकड़ों करोड़ का ऐसा घोटाला सामने आया है जिसमें न सिर्फ कई बैंक फंस गए हैं बल्कि तमाम वो लोग भी शिकार हुए हैं जिन्होंने कभी अपने लिए एक अदद घर का सपना देखा था।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मथुरा के कस्बा फरह में दिल्ली से मथुरा और आगरा को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर-2 पर ‘कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (KBCL) का करीब 1600 एकड़ जमीन पर साम्राज्य फैला हुआ है।
कल्पतरू ग्रुप के मुखिया जयकृष्ण राणा ने यहीं अपने अखबार कल्पतरू एक्सप्रेस से लेकर मॉटेल्स लिमिटेड, वृंदावन सीक्यूरिटीज लिमिटेड, कल्पतरू इंश्योरेंस कार्पोरेशन लिमिटेड, कल्पतरू डेरी प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्पतरू मेगामार्ट लिमिटेड, कल्पतरू इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड, कल्पतरू फूड प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड, कल्पतरू लैदर प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड तथा कल्पतरू एग्री इंडस्ट्रीज लिमिटेड का जाल फैला रखा है।
निजी सुरक्षा गार्डों तथा गुर्गों के घेरे में इसी साम्राज्य के अंदर कभी राजा-महाराजाओं की तरह बैठने वाला जयकृष्ण राणा अब जब कभी यहां आता भी है तो दबेपांव आता है ताकि ज्यादा लोगों को उसके आने की भनक न लग जाए।
बताया जाता है कि अपनी करीब एक दर्जन कंपनियों के इस जाल में जयकृष्ण राणा ने विभिन्न स्तर के लोगों को फंसाकर उन्हें सैकड़ों करोड़ रुपए का चूना लगाया है और अब वह कैसे भी अपने मूलधन को इससे निकालने की कोशिश में दिन-रात एक कर रहे हैं। उन्हें जहां इसकी मौजूदगी का पता लगता है, वो वहीं पहुंच जाते हैं।
जयकृष्ण राणा की रियल एस्टेट कंपनी ‘कल्पतरू बिल्डटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (केबीसीएल) द्वारा फरह में जो प्रोजेक्ट खड़ा किया जा रहा है, उसमें भारी घोटाले का पता लगा है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां जयकृष्ण राणा और उसके गुर्गों ने बाकायदा एक साजिश के तहत अपने एजेंट्स के माध्यम से एक-एक मकान तथा एक-एक प्लॉट का सौदा कई-कई लोगों से करके उनसे करोड़ों रुपए हड़प लिए हैं। इनमें से कुछ लोग तो ऐसे हैं जो फ्लैट या प्लॉट का 90 प्रतिशत पैसा केबीसीएल के नाम कर चुके हैं और जब रजिस्ट्री कराने को हैं तो पता लगा है कि उस फ्लैट या प्लॉट के तो कई-कई दावेदार हैं और सब के सब किसी तरह अपने नाम रजिस्ट्री कराने के फेर में हैं।
ऐसे लोग जयकृष्ण राणा से तो सीधे मुलाकात कर नहीं पाते लिहाजा उन एजेंट्स के पास चक्कर लगाने को मजबूर हैं जिन्होंने अपनी रोजी-रोटी की खातिर राणा की रियल एस्टेट कंपनी के लिए काम किया था।
हालांकि आज ऐसे अधिकांश लोग राणा से अलग हो चुके हैं क्योंकि उन्हें भी पैसा मिलना तो दूर, सिरदर्द मिल रहा है। जिन फ्लैट्स या प्लॉट्स का पैसा उन्होंने अपने कमीशन तथा वेतन की खातिर लिया, उसे तो जयकृष्ण राणा की रियल एस्टेट कंपनी हड़प गई लेकिन सिरदर्द बेचारे एजेंट्स को दे दिया।
यही नहीं, यहां तक पता लगा है कि जिस प्रकार राणा और उसके कॉकस ने एक-एक फ्लैट तथा प्लॉट कई-कई लोगों को बेच खाए, उसी प्रकार अपनी जमीन पर कई-कई संस्थानों से फायनेंस भी करा रखा है और उसके शिकार बैंकों सहित निजी फायनेंसर भी हुए हैं।
अब चूंकि राणा और उसके कल्पतरू ग्रुप का सारा खेल सामने आ चुका है लिहाजा आम और खास आदमी तथा बैंक व फायनेंस कंपनियां किसी भी प्रकार अपना पैसा वसूल करने की कोशिश में हैं।
बताया जाता है कि इन दिनों राणा के विभिन्न ठिकानों पर इन्हीं सब कारणों से अक्सर झगड़े होते देखे जा सकते हैं।
जयकृष्ण राणा से जुड़े सूत्रों की मानें तो राणा और कल्पतरू ग्रुप का यह हाल इसलिए हुआ क्योंकि उसने अपनी चिटफंड कंपनी से लेकर विभिन्न कंपनियों के माध्यम से एकत्र किए गए पैसे को अपनी निजी संपत्ति की तरह इस्तेमाल किया और राजा-महाराजाओं की तरह लुटाया।
बताया जाता है कि राणा ने अपनी कंपनियों में जहां ऐसे-ऐसे लोगों को डायरेक्टर बना रखा है जो कहीं चपरासी बनने की योग्यता नहीं रखते वहीं ऐसे अनेक लोगों को लग्जरी गाड़ियां उपलब्ध करा रखी हैं, जो राणा की चरण वंदना करने में माहिर थे। उनकी सबसे बड़ी योग्यता सिर्फ और सिर्फ राणा को अपनी चापलूसी के बल पर प्रसन्न रखना थी।
राणा के कॉकस में शामिल लोगों का ही कहना है कि एक खास कंपनी की विशेष लग्जरी गाड़ी इतनी बड़ी तादाद में एकसाथ शायद ही कहीं अन्यत्र देखने को मिल सकें, जितनी राणा और उसके चापलूसों के पास देखी जा सकती हैं।
बेहिसाब फिजूलखर्ची और हर स्तर पर की गई धोखाधड़ी के चलते राणा भी समझ चुका है कि अब उसके कल्पतरू ग्रुप को डूबने से कोई बचा नहीं पायेगा और इसलिए वह खुद को सुरक्षित करने की कोशिशों में लगा है। उसे उस मौके की तलाश है जिसका लाभ उठाकर वह किसी तरह यहां से निकल सके और सारे झंझट उन लोगों के लिए छोड़ जाए जिन्होंने उसके जहाज के डूबने का अंदेशा होते ही, उससे किनारा कर लिया।
अब देखना केवल यह है कि राणा अपने मकसद में सफल होकर सुरक्षित निकल जाता है या उसे भी अंतत: सहाराश्री सुब्रत राय सहारा की तरह किसी सरकारी सुरक्षा में पनाह मिलती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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