मृत्यु के भय तथा भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्ति का मार्ग दिखाने वाली
श्रीमद्भागवत कथा यदि व्यासपीठ पर विराजमान कथावाचक व आयोजक के रूप में
मौजूद यजमान, दोनों के लिए ही व्यवसाय बन जाए और दोनों को ही मृत्यु के
भय से मुक्त न कर सके तो निश्चित ही ऐसी ”कथा” सिर्फ ”व्यथा” बनकर रह
जाती है।
सनातन धर्म में उल्लिखित अठारह पुराणों में से एक श्रीमद्भागवत कथा व्यासजी के पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को तब सुनाई थी जब वह तक्षक नाग से बुरी तरह भयभीत थे और मृत्यु का भय उनका किसी प्रकार पीछा नहीं छोड़ रहा था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार तक्षक पाताल के आठ नागों में से एक कश्यप नामक नाग का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को अंतत: इसी ने काटा था।
राजा परीक्षित, तक्षक को लेकर इस कदर भयभीत थे कि श्रीमद्भागवत कथा भी उन्हें उस भय से मुक्त नहीं कर पा रही थी इसलिए कथा के सातवें और अंतिम दिन शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को एक दृष्टांत सुनाया जो इस प्रकार था-
शुकदेव ने राजा परीक्षित को बताया कि शिकार के लिए निकला एक राजा अचानक आई तेज आंधी व तूफान के कारण जंगल में भटक गया। राजा के सैनिक भी उससे बिछुड़ गए। रात अधिक होने पर किसी एक आसरे की तलाश में राजा जब जंगल के अंदर भटक रहा था तो उसे दूर किसी झोंपड़ी में दीपक की लौ टिमटिमाती दिखाई थी।
थका-हारा और भयभीत राजा जब वहां पहुंचा तो उसने देखा कि झोंपड़ी के अंदर जगह-जगह हाड़-मांस तथा रक्त और पीव (मवाद) आदि बिखरा पड़ा है। तेज दुर्गंध फूट रही है। लेकिन कोई दूसरा उपाय न होने के कारण राजा ने आवाज लगाई तो अंदर से कोई कृषकाय वृद्ध बाहर निकला।
राजा ने वृद्ध को अपना परिचय दिया और एक रात झोंपड़ी के अंदर बिताने की इजाजत मांगी।
राजा के अनुरोध पर वृद्ध ने राजा से कहा, राजन मुझे तो आपके यहां ठहरने पर कोई आपत्ति नहीं है किंतु क्या आप हाड़-मांस तथा रक्त व पीव (मवाद) से सनी झोंपड़ी में रात बिता सकेंगे।
राजा के तैयार हो जाने पर वृद्ध ने कहा, ठीक है राजन। लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि सूर्योदय होते ही आप यहां से चले जायेंगे। एक पल भी नहीं रुकेंगे।
राजा बोला, कैसी बातें करते हो। मैं कोई दूसरा उपाय न होने के कारण जैसे-तैसे रात काटने के लिए रुक रहा हूं। ऐसे में भला में सुबह क्यों ठहरुंगा।
इस वार्तालाव के बाद राजा उस झोंपड़ी में रुक गया। सूर्योदय होने पर राजा को नित्य कर्मों से निवृत होने की जरूरत महसूस हुई। थके-हारे राजा ने सोचा क्यों न निवृत होकर ही चला जाए, रास्ते में पता नहीं हालात कैसे हों।
एक ओर राजा जाने में देरी कर रहा था और दूसरी ओर वृद्ध, राजा से बार-बार अनुरोध कर रहा था कि वह अपने वचन के अनुसार अब झोंपड़ी छोड़ दें क्योंकि सूर्योदय कब का हो चुका है।
शुकदेव अभी अपना दृष्टांत पूरा भी नहीं कर पाए थे कि राजा परीक्षित ने उन्हें बीच में टोकते हुए पूछा- कौन राजा ऐसा मूर्ख था जो हाड़-मांस तथा रक्त व पीव (मवाद) से सनी दुर्गंधयुक्त झोंपड़ी छोड़ने को तैयार नहीं था। नित्यकर्म तो जंगल में कहीं भी निपटाए जा सकते थे।
राजा परीक्षित के इस प्रश्न पर शुकदेव जी ने उससे कहा- वह राजा तुम्हीं हो परीक्षित।
मनुष्य का पूरा शरीर हाड़-मांस से बना है। हाड़-मांस के अंदर रक्त व पीव की भरमार है। शरीर के अंदर तमाम दुर्गंधयुक्त अवशिष्ट मौजूद हैं, बावजूद इसके वह शरीर का मोह नहीं त्याग पाता।
वह भली प्रकार जानता है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुरानी देह त्यागकर नई देह धारण करती है किंतु सब-कुछ जानते व समझते हुए वह न तो मृत्यु के भय से मुक्त हो पाता है और ना ही भौतिकता की अंधी दौड़ से। जबकि मृत्यु ही एकमात्र शास्वत सत्य है। अब राजा परीक्षित समझ चुके थे।
लेकिन इस कलियुग में भागवत कथा के श्रवण को मुक्ति का एकमात्र मार्ग बताने वाले कथावाचक और उनके आयोजक यजमान क्या वास्तव में भागवत कथा का उद्देश्य पूरा कर पा रहे हैं। क्या वो स्वयं भी मृत्यु और भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्त हो पाते हैं।
गत दिनों वृंदावन में श्री प्रियाकांत जू महाराज मंदिर का भव्य लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ है। यह लोकार्पण समारोह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कर कमलों से संपन्न हुआ। अमित शाह के अतिरिक्त भी मंदिर के इस लोकार्पण समारोह में तमाम केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के मंत्री शामिल हुए। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी आयोजन में शिरकत की। उसके बाद से श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन चल रहा है जिसकी व्यासपीठ पर देवकी नंदन ठाकुर विराजमान हैं।
भागवत वक्ता देवकी नंदन ठाकुर ही इस अतिभव्य प्रियाकांत जू महाराज के सर्वे-सर्वा हैं जिसका निर्माण विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा बेहिसाब पैसा लगाकर किया गया है। लोकार्पण से पूर्व ही लााखों रुपए खर्च करके समारोह का भारी-भरकम प्रचार हुआ और दर्जनों विशिष्ट व अति विशिष्ट अतिथियों के आगमन की सूचना दी गई।
देवकी नंदन ठाकुर अकेले ऐसे भागवत वक्ता नहीं हैं जो अपनी कथा को भव्य और दिव्य बनाने का उपाय कर रहे हों, सभी प्रमुख भागवत वक्ता यही करते हैं। मृत्यु के भय और भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्ति का मार्ग दिखाकर जीवन के प्रति वैराग्य का भाव पैदा करने वाली भागवत कथा इस कलिकाल में बहुत अच्छे व्यवसाय का रूप धारण कर चुकी है। ऐसे व्यवसाय में परिवर्तित हो चुकी है जिसकी सफलता सौ प्रतिशत तय है।
यही कारण है कि देखते-देखते अनेक कथावाचक करोड़पति ही नहीं, अरबपति भी बन चुके हैं। बहुत से भागवत वक्ता तो विभिन्न व्यवसायों में अपना पैसा निवेश करने को बाध्य हैं अन्यथा उस पर कुदृष्टि पड़ने का खतरा मंडराने लगता है।
करोड़ों रुपए कीमत वाली लग्जरी गाड़ियों में घूमने, हवाई यात्राएं करने तथा देश-विदेश में भागवत कथा के भव्य व दिव्य आयोजन कराने वाले भागवत वक्ताओं के भौतिक सुख तो सर्वविदित हैं हीं, अब उनकी विशिष्ट दिखने की चाह भी सामने आने लगी है।
इसी प्रकार मृत्यु के भय से मुक्त कराने वाली श्रीमद्भागवत कथा, संभवत: उन्हें स्वयं को भय से मुक्त नहीं करा पा रही।
यदि ऐसा नहीं है तो किसी भागवत कथा के पंडाल से बाहर दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती किसलिए।
गौरतलब है कि देवकी नंदन ठाकुर जिस पंडाल में भागवत कथा कह रहे हैं, उस पंडाल से बाहर दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती की गई है। यह तैनाती किसलिए है और किसके लिए है, इसका जवाब या तो कथा के आयोजक दे सकते हैं या फिर व्यासपीठ पर विराजमान देवकी नंदन ठाकुर।
कारण जो भी हो, लेकिन एक बात तो यह तय है कि इस दौर में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन सिर्फ और सिर्फ व्यावसायिक रूप धारण कर चुका है और उसका धार्मिक रूप पूरी तरह तिरोहित हो गया है।
जिस तरह व्यावसायिक सफलता की गारंटी के कारण जगह-जगह कुकरमुत्तों की तरह निजी स्कूल व कॉलेज खड़े हो गए हैं, उसी तरह धार्मिक व्यवसाय में सफलता की गारंटी के कारण गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले भागवत कथा वक्ता पैदा हो गए हैं।
बहुत समय नहीं बीता जब भागवत कथा पर आये हुए चढ़ावे का खुद के लिए इस्तेमाल करना कथा वाचक एक प्रकार का पाप मानते थे लेकिन आज वही कथा वाचक भागवत के चढ़ावे से अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। भक्ति व वैराग्य की ओर उन्मुख करने वाला ग्रंथ भौतिक सुखों की प्राप्ति का साधन बन गया है।
मृत्यु के भय से मुक्त कराने वाली कथा के आयोजन में दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती की जाती है।
कथा के आयोजन का ऐसा भव्य व दिव्य प्रदर्शन किसी परीक्षित को मृत्यु के भय से मुक्ति के लिए न होकर कथा वाचक में भक्ति और तमाम भौतिक सुखों में आसक्ति के लिए प्रेरित करता है।
भागवत कथा के व्यावसाईकरण का ही परिणाम है कि अब अनेक कथावाचक और आयोजक इसके आयोजन में बाकायदा हिस्सेदारी तय करते हैं। लाभ का बंटवारा उसी हिस्सेदारी के अनुपात से होता है क्योंकि धंधे के लिए भी धर्म से बड़ी कोई आड़ नहीं हो सकती। कालेधन की खपत के लिए धार्मिक आयोजन सबसे अधिक सुरक्षित रहते हैं। न कोई सवाल और न कोई जवाब। प्रायोजक भी खुश और आयोजक भी। ऊपर से चारों ओर जय-जयकार। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो…क्योंकि सभी के कल्याण में निहित है आयोजक और प्रायोजक दोनों का कल्याण।
ये कलियुग नहीं ये करयुग है…इस हाथ दे, उस हाथ ले। व्यासपीठ पर विराजमान कलियुग के शुकदेव और आयोजक के रूप में मौजूद यजमान राजा परीक्षित भली-भांति इस सत्य को जान चुके हैं कि यह दौर मुक्ति का नहीं आसक्ति का है। भौतिक सुखों से आसक्ति का दौर।
मुक्त होकर क्या मिलेगा, जो भी मिलेगा लिप्त होकर मिलेगा। इसलिए वह मौका मिलते ही कथा के साथ अपनी व्यथा सुनाने में देर नहीं करते ताकि भक्ति में लीन श्रोता कथा से अधिक उनकी व्यथा सुनकर व्यथित हो जाएं और सम्मोहित होकर पूरी तरह समर्पित हो सकें। उनके लिए भागवत कथा से बड़ा सत्य कथा वाचक की व्यथा हो जाए। फिर वो व्यथा, प्रियाकांत जू के बेमिसाल मंदिर का निर्माण कराना हो अथवा पंडाल के बाहर निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती हो। मंदिर के लोकार्पण में सत्ताधारी नेताओं की मौजूदगी का इंतजाम हो या फिर उनके माध्यम से सत्ता के गलियारों तक अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन करना हो।
इस दर्शन और प्रदर्शन के खेल में भागवत कथा अपना महत्व खो रही है या कथा वाचक अपना, फिलहाल यह तो कह पाना संभव नहीं है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि दर्शन व प्रदर्शन का यह तमाशा बहुत दिनों तक नहीं चल पायेगा और जल्दी ही धर्म को धंधा बनाने वाले तथाकथित ”ठाकुरों” की यह जमात बेनकाब होगी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सनातन धर्म में उल्लिखित अठारह पुराणों में से एक श्रीमद्भागवत कथा व्यासजी के पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को तब सुनाई थी जब वह तक्षक नाग से बुरी तरह भयभीत थे और मृत्यु का भय उनका किसी प्रकार पीछा नहीं छोड़ रहा था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार तक्षक पाताल के आठ नागों में से एक कश्यप नामक नाग का पुत्र था और कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। श्रृंगी ऋषि का शाप पूरा करने के लिये राजा परीक्षित को अंतत: इसी ने काटा था।
राजा परीक्षित, तक्षक को लेकर इस कदर भयभीत थे कि श्रीमद्भागवत कथा भी उन्हें उस भय से मुक्त नहीं कर पा रही थी इसलिए कथा के सातवें और अंतिम दिन शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को एक दृष्टांत सुनाया जो इस प्रकार था-
शुकदेव ने राजा परीक्षित को बताया कि शिकार के लिए निकला एक राजा अचानक आई तेज आंधी व तूफान के कारण जंगल में भटक गया। राजा के सैनिक भी उससे बिछुड़ गए। रात अधिक होने पर किसी एक आसरे की तलाश में राजा जब जंगल के अंदर भटक रहा था तो उसे दूर किसी झोंपड़ी में दीपक की लौ टिमटिमाती दिखाई थी।
थका-हारा और भयभीत राजा जब वहां पहुंचा तो उसने देखा कि झोंपड़ी के अंदर जगह-जगह हाड़-मांस तथा रक्त और पीव (मवाद) आदि बिखरा पड़ा है। तेज दुर्गंध फूट रही है। लेकिन कोई दूसरा उपाय न होने के कारण राजा ने आवाज लगाई तो अंदर से कोई कृषकाय वृद्ध बाहर निकला।
राजा ने वृद्ध को अपना परिचय दिया और एक रात झोंपड़ी के अंदर बिताने की इजाजत मांगी।
राजा के अनुरोध पर वृद्ध ने राजा से कहा, राजन मुझे तो आपके यहां ठहरने पर कोई आपत्ति नहीं है किंतु क्या आप हाड़-मांस तथा रक्त व पीव (मवाद) से सनी झोंपड़ी में रात बिता सकेंगे।
राजा के तैयार हो जाने पर वृद्ध ने कहा, ठीक है राजन। लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त यह है कि सूर्योदय होते ही आप यहां से चले जायेंगे। एक पल भी नहीं रुकेंगे।
राजा बोला, कैसी बातें करते हो। मैं कोई दूसरा उपाय न होने के कारण जैसे-तैसे रात काटने के लिए रुक रहा हूं। ऐसे में भला में सुबह क्यों ठहरुंगा।
इस वार्तालाव के बाद राजा उस झोंपड़ी में रुक गया। सूर्योदय होने पर राजा को नित्य कर्मों से निवृत होने की जरूरत महसूस हुई। थके-हारे राजा ने सोचा क्यों न निवृत होकर ही चला जाए, रास्ते में पता नहीं हालात कैसे हों।
एक ओर राजा जाने में देरी कर रहा था और दूसरी ओर वृद्ध, राजा से बार-बार अनुरोध कर रहा था कि वह अपने वचन के अनुसार अब झोंपड़ी छोड़ दें क्योंकि सूर्योदय कब का हो चुका है।
शुकदेव अभी अपना दृष्टांत पूरा भी नहीं कर पाए थे कि राजा परीक्षित ने उन्हें बीच में टोकते हुए पूछा- कौन राजा ऐसा मूर्ख था जो हाड़-मांस तथा रक्त व पीव (मवाद) से सनी दुर्गंधयुक्त झोंपड़ी छोड़ने को तैयार नहीं था। नित्यकर्म तो जंगल में कहीं भी निपटाए जा सकते थे।
राजा परीक्षित के इस प्रश्न पर शुकदेव जी ने उससे कहा- वह राजा तुम्हीं हो परीक्षित।
मनुष्य का पूरा शरीर हाड़-मांस से बना है। हाड़-मांस के अंदर रक्त व पीव की भरमार है। शरीर के अंदर तमाम दुर्गंधयुक्त अवशिष्ट मौजूद हैं, बावजूद इसके वह शरीर का मोह नहीं त्याग पाता।
वह भली प्रकार जानता है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुरानी देह त्यागकर नई देह धारण करती है किंतु सब-कुछ जानते व समझते हुए वह न तो मृत्यु के भय से मुक्त हो पाता है और ना ही भौतिकता की अंधी दौड़ से। जबकि मृत्यु ही एकमात्र शास्वत सत्य है। अब राजा परीक्षित समझ चुके थे।
लेकिन इस कलियुग में भागवत कथा के श्रवण को मुक्ति का एकमात्र मार्ग बताने वाले कथावाचक और उनके आयोजक यजमान क्या वास्तव में भागवत कथा का उद्देश्य पूरा कर पा रहे हैं। क्या वो स्वयं भी मृत्यु और भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्त हो पाते हैं।
गत दिनों वृंदावन में श्री प्रियाकांत जू महाराज मंदिर का भव्य लोकार्पण समारोह संपन्न हुआ है। यह लोकार्पण समारोह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कर कमलों से संपन्न हुआ। अमित शाह के अतिरिक्त भी मंदिर के इस लोकार्पण समारोह में तमाम केंद्रीय मंत्री और प्रदेश के मंत्री शामिल हुए। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी आयोजन में शिरकत की। उसके बाद से श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन चल रहा है जिसकी व्यासपीठ पर देवकी नंदन ठाकुर विराजमान हैं।
भागवत वक्ता देवकी नंदन ठाकुर ही इस अतिभव्य प्रियाकांत जू महाराज के सर्वे-सर्वा हैं जिसका निर्माण विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा बेहिसाब पैसा लगाकर किया गया है। लोकार्पण से पूर्व ही लााखों रुपए खर्च करके समारोह का भारी-भरकम प्रचार हुआ और दर्जनों विशिष्ट व अति विशिष्ट अतिथियों के आगमन की सूचना दी गई।
देवकी नंदन ठाकुर अकेले ऐसे भागवत वक्ता नहीं हैं जो अपनी कथा को भव्य और दिव्य बनाने का उपाय कर रहे हों, सभी प्रमुख भागवत वक्ता यही करते हैं। मृत्यु के भय और भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्ति का मार्ग दिखाकर जीवन के प्रति वैराग्य का भाव पैदा करने वाली भागवत कथा इस कलिकाल में बहुत अच्छे व्यवसाय का रूप धारण कर चुकी है। ऐसे व्यवसाय में परिवर्तित हो चुकी है जिसकी सफलता सौ प्रतिशत तय है।
यही कारण है कि देखते-देखते अनेक कथावाचक करोड़पति ही नहीं, अरबपति भी बन चुके हैं। बहुत से भागवत वक्ता तो विभिन्न व्यवसायों में अपना पैसा निवेश करने को बाध्य हैं अन्यथा उस पर कुदृष्टि पड़ने का खतरा मंडराने लगता है।
करोड़ों रुपए कीमत वाली लग्जरी गाड़ियों में घूमने, हवाई यात्राएं करने तथा देश-विदेश में भागवत कथा के भव्य व दिव्य आयोजन कराने वाले भागवत वक्ताओं के भौतिक सुख तो सर्वविदित हैं हीं, अब उनकी विशिष्ट दिखने की चाह भी सामने आने लगी है।
इसी प्रकार मृत्यु के भय से मुक्त कराने वाली श्रीमद्भागवत कथा, संभवत: उन्हें स्वयं को भय से मुक्त नहीं करा पा रही।
यदि ऐसा नहीं है तो किसी भागवत कथा के पंडाल से बाहर दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती किसलिए।
गौरतलब है कि देवकी नंदन ठाकुर जिस पंडाल में भागवत कथा कह रहे हैं, उस पंडाल से बाहर दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती की गई है। यह तैनाती किसलिए है और किसके लिए है, इसका जवाब या तो कथा के आयोजक दे सकते हैं या फिर व्यासपीठ पर विराजमान देवकी नंदन ठाकुर।
कारण जो भी हो, लेकिन एक बात तो यह तय है कि इस दौर में श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन सिर्फ और सिर्फ व्यावसायिक रूप धारण कर चुका है और उसका धार्मिक रूप पूरी तरह तिरोहित हो गया है।
जिस तरह व्यावसायिक सफलता की गारंटी के कारण जगह-जगह कुकरमुत्तों की तरह निजी स्कूल व कॉलेज खड़े हो गए हैं, उसी तरह धार्मिक व्यवसाय में सफलता की गारंटी के कारण गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले भागवत कथा वक्ता पैदा हो गए हैं।
बहुत समय नहीं बीता जब भागवत कथा पर आये हुए चढ़ावे का खुद के लिए इस्तेमाल करना कथा वाचक एक प्रकार का पाप मानते थे लेकिन आज वही कथा वाचक भागवत के चढ़ावे से अपनी तिजोरियां भर रहे हैं। भक्ति व वैराग्य की ओर उन्मुख करने वाला ग्रंथ भौतिक सुखों की प्राप्ति का साधन बन गया है।
मृत्यु के भय से मुक्त कराने वाली कथा के आयोजन में दर्जनों निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती की जाती है।
कथा के आयोजन का ऐसा भव्य व दिव्य प्रदर्शन किसी परीक्षित को मृत्यु के भय से मुक्ति के लिए न होकर कथा वाचक में भक्ति और तमाम भौतिक सुखों में आसक्ति के लिए प्रेरित करता है।
भागवत कथा के व्यावसाईकरण का ही परिणाम है कि अब अनेक कथावाचक और आयोजक इसके आयोजन में बाकायदा हिस्सेदारी तय करते हैं। लाभ का बंटवारा उसी हिस्सेदारी के अनुपात से होता है क्योंकि धंधे के लिए भी धर्म से बड़ी कोई आड़ नहीं हो सकती। कालेधन की खपत के लिए धार्मिक आयोजन सबसे अधिक सुरक्षित रहते हैं। न कोई सवाल और न कोई जवाब। प्रायोजक भी खुश और आयोजक भी। ऊपर से चारों ओर जय-जयकार। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो…क्योंकि सभी के कल्याण में निहित है आयोजक और प्रायोजक दोनों का कल्याण।
ये कलियुग नहीं ये करयुग है…इस हाथ दे, उस हाथ ले। व्यासपीठ पर विराजमान कलियुग के शुकदेव और आयोजक के रूप में मौजूद यजमान राजा परीक्षित भली-भांति इस सत्य को जान चुके हैं कि यह दौर मुक्ति का नहीं आसक्ति का है। भौतिक सुखों से आसक्ति का दौर।
मुक्त होकर क्या मिलेगा, जो भी मिलेगा लिप्त होकर मिलेगा। इसलिए वह मौका मिलते ही कथा के साथ अपनी व्यथा सुनाने में देर नहीं करते ताकि भक्ति में लीन श्रोता कथा से अधिक उनकी व्यथा सुनकर व्यथित हो जाएं और सम्मोहित होकर पूरी तरह समर्पित हो सकें। उनके लिए भागवत कथा से बड़ा सत्य कथा वाचक की व्यथा हो जाए। फिर वो व्यथा, प्रियाकांत जू के बेमिसाल मंदिर का निर्माण कराना हो अथवा पंडाल के बाहर निजी सुरक्षा गार्डों की तैनाती हो। मंदिर के लोकार्पण में सत्ताधारी नेताओं की मौजूदगी का इंतजाम हो या फिर उनके माध्यम से सत्ता के गलियारों तक अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन करना हो।
इस दर्शन और प्रदर्शन के खेल में भागवत कथा अपना महत्व खो रही है या कथा वाचक अपना, फिलहाल यह तो कह पाना संभव नहीं है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि दर्शन व प्रदर्शन का यह तमाशा बहुत दिनों तक नहीं चल पायेगा और जल्दी ही धर्म को धंधा बनाने वाले तथाकथित ”ठाकुरों” की यह जमात बेनकाब होगी।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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