कहते हैं किसी भी पापकर्म को करने के लिए धर्म से बड़ी कोई आड़ नहीं हो सकती क्योंकि पाप को छिपाने में हमेशा से धर्म बड़ी भूमिका निभाता चला आ रहा है।
यह बात सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होती है और इसीलिए ईसाई मिशनरी से लेकर इस्लाम तक तथा हिंदू धर्म से लेकर सिख, जैन एवं बुद्धिस्ट तक में पापाचारियों की संख्या कम नहीं है।
किसी धार्मिक स्थल पर धर्म की आड़ लेना और भी आसान हो जाता है क्योंकि भूमि का प्रताप उसमें ‘सोने पर सुहागा’ जैसी कहावत को चरितार्थ करता है।
योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली होने की वजह से मथुरा चूंकि देश ही नहीं संपूर्ण विश्व में अपनी एक विशिष्ट धार्मिक पहचान रखता है इसलिए यहां राक्षसी प्रवृत्ति के लोग भी हमेशा सक्रिय रहे हैं।
इस दौर की बात करें तो भगवान का दर्जा प्राप्त इंसानों में शुमार चिकित्सकीय कारोबार से जुड़े कई लोग यहां न केवल लोगों की जेब काट रहे हैं बल्कि उनके अंगों का भी अवैध धंधा करने में लिप्त हैं।
इस बात का खुलासा हाल ही में तब हुआ जब कानपुर के बर्रा क्षेत्र से पकड़े गए कुछ लोगों ने पूछताछ के दौरान पीएसआरआई हॉस्पिटल की कोऑर्डिनेटर सुनीता वर्मा और मिथुन सहित फोर्टिस की कोऑर्डिनेटर सोनिका के नाम उजागर करते हुए बताया कि वो इनके साथ मिलकर मरीजों के परिजनों से किडनी एवं लिवर की सौदेबाजी करते थे।
आरोपियों से यह चौंकाने वाली जानकारी मिलने के बाद मानव अंगों (किडनी-लिवर) की खरीद-फरोख्त में पुलिस ने दिल्ली के पीएसआरआई (पुष्पावति सिंहानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट), फोर्टिस एवं गंगाराम हॉस्पिटल के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को भी नोटिस भेजा है।
एसआईटी अब इन अस्पतालों के प्रशासनिक अधिकारियों, डॉक्टर्स और कर्मचारियों से पूछताछ करेगी। इसके लिए एसआईटी की टीम दिल्ली पहुंच चुकी है। हालांकि अपोलो अस्पताल के प्रबंधतंत्र ने इस बाबत सफाई देते हुए कहा है कि वह ऐसे किसी धंधे में संलिप्त नहीं है।
अपोलो अस्पताल का प्रबंधतंत्र कुछ भी कहे किंतु हकीकत यह है कि 2016 के किडनी कांड में अपोलो अस्पताल और वहां के एक नामचीन डॉक्टर मानव अंगों की खरीद-फरोख्त के आरोपी बनाए गए थे।
डॉक्टर के दो निजी सचिव शैलेश सक्सेना व आदित्य भी उनके साथ सहआरोपी थे। शैलेश इस मामले में जेल भी भेजा गया था इसलिए एसआईटी ने फिर से अपोलो अस्पताल के प्रबंधतंत्र को नोटिस भेजा है।
एसपी साउथ रवीना त्यागी के मुताबिक अब फिर से अस्पताल स्टाफ सहित उन लोगों को भी पूछताछ में शामिल किया जाएगा जिनके नाम पहले सामने आ चुके हैं।
फिलहाल मानव अंगों की खरीद-फरोख्त के आरोप में कानुपर से पकड़े गए लोगों ने जिस तरह की जानकारी पुलिस को दी है, उससे यह माना जा रहा है कि इन अस्पतालों के अलावा भी कई अस्पताल इस गलीज़ धंधे को लंबे समय से कर रहे हैं।
अगर बात करें धर्मक्षेत्र मथुरा की तो यहां पिछले कुछ वर्षों के अंदर जिस तरह कुछ नामचीन लोगों ने चिकित्सा के क्षेत्र में पैसे का निवेश किया, उससे साफ जाहिर था कि उनका मकसद यहां की जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देने से कहीं बहुत अधिक निजी आर्थिक लाभ अर्जित करना था।
अब उनके इस मकसद की पुष्टि आए दिन मिलने वाले उन समाचारों से भी होती है जिनमें अधिकांश मरीज एवं तीमारदार वहां जाकर खुद को लुटा हुआ महसूस करते हैं।
मथुरा के एक मशहूर हॉस्पिटल का आलम तो यह है कि शायद ही कोई व्यक्ति वहां से संतुष्ट होकर बाहर आता हो।
कोई कहता है कि मरीज को नाजायज तरीकों से इसलिए लगभग बंधक बनाकर रखा गया ताकि लाखों रुपए का बिल बनाया जा सके तो कोई बताता है कि जबरन चीर-फाड़ करके लाखों रुपए वसूलने के बाद भी डेड बॉडी थमा दी गई।
बताया जाता है कि मामूली सी मामूली तकलीफ लेकर भी यदि कोई व्यक्ति इस हॉस्पिटल की चारदीवारी के अंदर घुस गया तो तय मानिए कि या तो उसकी अच्छी तरह जेब कटेगी या वो खुद कटेगा। पूर्व में लोगों ने ऐसी शिकायतें सार्वजनिक तौर पर की हैं कि वो इलाज कराने गए थे किसी बीमारी का लेकिन किडनी अथवा लिवर संबंधी बीमारी बताकर खेल कर दिया।
लोगों की ऐसी शिकायत में दम इसलिए नजर आता है क्योंकि संपूर्ण आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होने का दावा करने वाले इस हॉस्पिटल में मरीजों की मृत्युदर आश्चर्यजनक रूप से काफी अधिक है।
इस अत्यधिक मृत्यु दर को लेकर हॉस्पीटल का प्रबंधतंत्र समय-समय पर इस आशय की सफाई देता रहा है कि उनके यहां लोग गंभीर स्थिति में ही लाए जाते हैं किंतु उनके इस जवाब से शायद ही कोई संतुष्ट हुआ हो।
संभवत: इसीलिए इस हॉस्पीटल में आए दिन बखेड़ा खड़ा होना आम बात है। इन बखेड़ों की खबरें प्रकाशित या प्रसारित न हों, इसके लिए हॉस्पिटल का प्रबंधतंत्र मीडिया को मैनेज करने में लगा रहता है।
जो मीडिया पर्सन मैनेज नहीं होते, उन्हें रास्ते पर लाने के लिए दूसरे हथकंडे अपनाए जाते हैं। इन दूसरे उपायों में डराने-धमकाने से लेकर प्रभाव का इस्तेमाल करने जैसे सभी क्रिया-कलाप शामिल हैं।
हॉस्पिटल के सूत्र बताते हैं कि यदि कानूनी प्रक्रिया के तहत ही इस हॉस्पिटल की कार्यप्रणाली एवं यहां होने वाली मौतों के पीछे छिपे कारणों की गहन जांच करा ली जाए तो सबकुछ सामने आ जाएगा।
यह पता लगते देर नहीं लगेगी कि यदि कोई जवान व्यक्ति फिसल कर गिरने की वजह से हॉस्पिटल में एडमिट हुआ हो, तो उसकी मौत लिवर फेल होने से कैसे हो गई। इलाज के दौरान उसके घबराए हुए परिजनों से उन्हें अवसर दिए बिना पेपर्स पर दस्तखत क्यों करा लिए गए।
इसके अलावा जो मामले किसी तरह पुलिस तक पहुंचे, उनमें समझौता क्यों कर लिया गया।
कई मामले तो इस हॉस्पिटल के ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें मरीज खुद चलकर हॉस्पिटल तक पहुंचे हैं लेकिन लौट नहीं पाए। लौटे तो डेड बॉडी बनकर, वो भी लाखों रुपए का बिल वसूले जाने के बाद।
किसी नामचीन हॉस्पिटल में ऐसी अप्रत्याशित मौतें और इन मौतों का आंकड़ा यह शंका पैदा कराने के लिए काफी है कि हर मौत ऊपर वाले की मर्जी से नहीं होती, कुछ मौतें ऐसी भी होती हैं जिनका निर्धारण ‘नियति’ नहीं, हॉस्पिटल की ‘नीयत’ से भी होता है।
यही मौतें यह भी संकेत देती हैं कि हो न हो मानव अंगों का अवैध कारोबार करने वाले दिल्ली एनसीआर तक सीमित न होकर मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों पर भी सक्रिय हों क्यों कि यहां की भौगोलिक ही नहीं, सामाजिक स्थिति भी उनके अनुकूल है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
यह बात सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होती है और इसीलिए ईसाई मिशनरी से लेकर इस्लाम तक तथा हिंदू धर्म से लेकर सिख, जैन एवं बुद्धिस्ट तक में पापाचारियों की संख्या कम नहीं है।
किसी धार्मिक स्थल पर धर्म की आड़ लेना और भी आसान हो जाता है क्योंकि भूमि का प्रताप उसमें ‘सोने पर सुहागा’ जैसी कहावत को चरितार्थ करता है।
योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली होने की वजह से मथुरा चूंकि देश ही नहीं संपूर्ण विश्व में अपनी एक विशिष्ट धार्मिक पहचान रखता है इसलिए यहां राक्षसी प्रवृत्ति के लोग भी हमेशा सक्रिय रहे हैं।
इस दौर की बात करें तो भगवान का दर्जा प्राप्त इंसानों में शुमार चिकित्सकीय कारोबार से जुड़े कई लोग यहां न केवल लोगों की जेब काट रहे हैं बल्कि उनके अंगों का भी अवैध धंधा करने में लिप्त हैं।
इस बात का खुलासा हाल ही में तब हुआ जब कानपुर के बर्रा क्षेत्र से पकड़े गए कुछ लोगों ने पूछताछ के दौरान पीएसआरआई हॉस्पिटल की कोऑर्डिनेटर सुनीता वर्मा और मिथुन सहित फोर्टिस की कोऑर्डिनेटर सोनिका के नाम उजागर करते हुए बताया कि वो इनके साथ मिलकर मरीजों के परिजनों से किडनी एवं लिवर की सौदेबाजी करते थे।
आरोपियों से यह चौंकाने वाली जानकारी मिलने के बाद मानव अंगों (किडनी-लिवर) की खरीद-फरोख्त में पुलिस ने दिल्ली के पीएसआरआई (पुष्पावति सिंहानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट), फोर्टिस एवं गंगाराम हॉस्पिटल के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को भी नोटिस भेजा है।
एसआईटी अब इन अस्पतालों के प्रशासनिक अधिकारियों, डॉक्टर्स और कर्मचारियों से पूछताछ करेगी। इसके लिए एसआईटी की टीम दिल्ली पहुंच चुकी है। हालांकि अपोलो अस्पताल के प्रबंधतंत्र ने इस बाबत सफाई देते हुए कहा है कि वह ऐसे किसी धंधे में संलिप्त नहीं है।
अपोलो अस्पताल का प्रबंधतंत्र कुछ भी कहे किंतु हकीकत यह है कि 2016 के किडनी कांड में अपोलो अस्पताल और वहां के एक नामचीन डॉक्टर मानव अंगों की खरीद-फरोख्त के आरोपी बनाए गए थे।
डॉक्टर के दो निजी सचिव शैलेश सक्सेना व आदित्य भी उनके साथ सहआरोपी थे। शैलेश इस मामले में जेल भी भेजा गया था इसलिए एसआईटी ने फिर से अपोलो अस्पताल के प्रबंधतंत्र को नोटिस भेजा है।
एसपी साउथ रवीना त्यागी के मुताबिक अब फिर से अस्पताल स्टाफ सहित उन लोगों को भी पूछताछ में शामिल किया जाएगा जिनके नाम पहले सामने आ चुके हैं।
फिलहाल मानव अंगों की खरीद-फरोख्त के आरोप में कानुपर से पकड़े गए लोगों ने जिस तरह की जानकारी पुलिस को दी है, उससे यह माना जा रहा है कि इन अस्पतालों के अलावा भी कई अस्पताल इस गलीज़ धंधे को लंबे समय से कर रहे हैं।
अगर बात करें धर्मक्षेत्र मथुरा की तो यहां पिछले कुछ वर्षों के अंदर जिस तरह कुछ नामचीन लोगों ने चिकित्सा के क्षेत्र में पैसे का निवेश किया, उससे साफ जाहिर था कि उनका मकसद यहां की जनता को स्वास्थ्य सेवाएं देने से कहीं बहुत अधिक निजी आर्थिक लाभ अर्जित करना था।
अब उनके इस मकसद की पुष्टि आए दिन मिलने वाले उन समाचारों से भी होती है जिनमें अधिकांश मरीज एवं तीमारदार वहां जाकर खुद को लुटा हुआ महसूस करते हैं।
मथुरा के एक मशहूर हॉस्पिटल का आलम तो यह है कि शायद ही कोई व्यक्ति वहां से संतुष्ट होकर बाहर आता हो।
कोई कहता है कि मरीज को नाजायज तरीकों से इसलिए लगभग बंधक बनाकर रखा गया ताकि लाखों रुपए का बिल बनाया जा सके तो कोई बताता है कि जबरन चीर-फाड़ करके लाखों रुपए वसूलने के बाद भी डेड बॉडी थमा दी गई।
बताया जाता है कि मामूली सी मामूली तकलीफ लेकर भी यदि कोई व्यक्ति इस हॉस्पिटल की चारदीवारी के अंदर घुस गया तो तय मानिए कि या तो उसकी अच्छी तरह जेब कटेगी या वो खुद कटेगा। पूर्व में लोगों ने ऐसी शिकायतें सार्वजनिक तौर पर की हैं कि वो इलाज कराने गए थे किसी बीमारी का लेकिन किडनी अथवा लिवर संबंधी बीमारी बताकर खेल कर दिया।
लोगों की ऐसी शिकायत में दम इसलिए नजर आता है क्योंकि संपूर्ण आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होने का दावा करने वाले इस हॉस्पिटल में मरीजों की मृत्युदर आश्चर्यजनक रूप से काफी अधिक है।
इस अत्यधिक मृत्यु दर को लेकर हॉस्पीटल का प्रबंधतंत्र समय-समय पर इस आशय की सफाई देता रहा है कि उनके यहां लोग गंभीर स्थिति में ही लाए जाते हैं किंतु उनके इस जवाब से शायद ही कोई संतुष्ट हुआ हो।
संभवत: इसीलिए इस हॉस्पीटल में आए दिन बखेड़ा खड़ा होना आम बात है। इन बखेड़ों की खबरें प्रकाशित या प्रसारित न हों, इसके लिए हॉस्पिटल का प्रबंधतंत्र मीडिया को मैनेज करने में लगा रहता है।
जो मीडिया पर्सन मैनेज नहीं होते, उन्हें रास्ते पर लाने के लिए दूसरे हथकंडे अपनाए जाते हैं। इन दूसरे उपायों में डराने-धमकाने से लेकर प्रभाव का इस्तेमाल करने जैसे सभी क्रिया-कलाप शामिल हैं।
हॉस्पिटल के सूत्र बताते हैं कि यदि कानूनी प्रक्रिया के तहत ही इस हॉस्पिटल की कार्यप्रणाली एवं यहां होने वाली मौतों के पीछे छिपे कारणों की गहन जांच करा ली जाए तो सबकुछ सामने आ जाएगा।
यह पता लगते देर नहीं लगेगी कि यदि कोई जवान व्यक्ति फिसल कर गिरने की वजह से हॉस्पिटल में एडमिट हुआ हो, तो उसकी मौत लिवर फेल होने से कैसे हो गई। इलाज के दौरान उसके घबराए हुए परिजनों से उन्हें अवसर दिए बिना पेपर्स पर दस्तखत क्यों करा लिए गए।
इसके अलावा जो मामले किसी तरह पुलिस तक पहुंचे, उनमें समझौता क्यों कर लिया गया।
कई मामले तो इस हॉस्पिटल के ऐसे भी सामने आए हैं जिनमें मरीज खुद चलकर हॉस्पिटल तक पहुंचे हैं लेकिन लौट नहीं पाए। लौटे तो डेड बॉडी बनकर, वो भी लाखों रुपए का बिल वसूले जाने के बाद।
किसी नामचीन हॉस्पिटल में ऐसी अप्रत्याशित मौतें और इन मौतों का आंकड़ा यह शंका पैदा कराने के लिए काफी है कि हर मौत ऊपर वाले की मर्जी से नहीं होती, कुछ मौतें ऐसी भी होती हैं जिनका निर्धारण ‘नियति’ नहीं, हॉस्पिटल की ‘नीयत’ से भी होता है।
यही मौतें यह भी संकेत देती हैं कि हो न हो मानव अंगों का अवैध कारोबार करने वाले दिल्ली एनसीआर तक सीमित न होकर मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों पर भी सक्रिय हों क्यों कि यहां की भौगोलिक ही नहीं, सामाजिक स्थिति भी उनके अनुकूल है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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