सोमवार, 7 नवंबर 2022

वृंदावन गार्डन अग्निकांड में FIR तो दर्ज हुई लेकिन आरोपियों के नाम नदारद, इसे कहते हैं प्रभाव


 उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश की प्रमुख धार्मिक नगरी मथुरा के वृंदावन धाम स्‍थित जिस होटल 'वृंदावन गार्डन' में कल सुबह भयंकर अग्निकांड हुआ और जिसमें होटल के दो कर्मचारियों ने अपनी जान गंवा दी तथा एक गंभीर रूप से झुलस गया उस होटल के मालिक या प्रबंधक का नाम तक न तो FIR दर्ज कराने वाले अग्निशमन अधिकारी जानते हैं और न स्‍थानीय पुलिस को पता है जबकि वो एक नामचीन बिल्डर है, साथ ही उसके वृंदावन में ही तीन होटल हैं। 

बसेरा ग्रुप के ये होटल 'बसेरा', 'बसेरा ब्रजभूमि' और होटल 'वृंदावन गार्डन' के नाम से संचालित हैं। इनमें से एक फोगला आश्रम के पास, दूसरा अटल्‍ला चुंगी पर तथा तीसरा रामकृष्‍ण मिशन हॉस्‍पिटल के सामने स्‍थित है। 
इसी प्रकार इन्‍होंने वृंदावन में ही कई कॉलोनियां डेवलप की हैं जिनमें से प्रमुख हैं 'बसेरा वैकुंठ', 'हरेकृष्‍णा धाम' और 'गौधूलि पुरम'। इसके अलावा इनके फॉर्म हाउस तथा कोल्ड स्‍टोरेज भी हैं, लेकिन इतना सब होने के बावजूद अग्निशमन विभाग और वृंदावन पुलिस के अधिकारी इनके मालिक का नाम नहीं जानते। है न भद्दा मजाक? 
सबकी आंखों में धूल झोंक कर दो लोगों की मौत के जिम्‍मेदारों को बचाने के इस शर्मनाक कृत्‍य का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि कल FIR दर्ज कराने वाले अग्निशमन विभाग ने ही 08 सितंबर 22 को 'अग्नि सुरक्षा' की दृष्‍टि से होटल 'वृंदावन गार्डन' का परीक्षण कर उसमें 6 खामियां पाई थीं और उन्‍हें 30 दिन के अंदर दूर करने का नोटिस दिया था लेकिन तब भी इन्‍होंने मालिक का नाम जानने की आवश्‍यकता तक नहीं समझी।     
जी हां, होटल वृंदावन गार्डन में कल सुबह हुए अग्निकांड की FIR तो कल देर शाम 7 बजकर 23 मिनट पर थाना कोतवाली वृंदावन में दर्ज कर ली गई किंतु इस FIR में आरोपियों की जगह 'स्‍वामी प्रबंधक' होटल 'वृंदावन गार्डन' लिखा गया है। मतलब जिस व्‍यक्ति को मथुरा-वृंदावन का बच्‍चा-बच्‍चा जानता है, उसे मथुरा के अग्निशमन अधिकारी और वृंदावन के कोतवाल नहीं जानते। 
आईपीसी की धारा 304 और 308 के तहत दर्ज इस अग्निकांड की जांच पुलिस इंस्‍पेक्‍टर ज्ञानेन्‍द्र सिंह सोलंकी को सौंपी गई है। 
आखिर क्यों दर्ज नहीं किए गए FIR में आरोपियों के नाम? 
ऐसे में हर व्‍यक्‍ति के मन में यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि आखिर FIR में आरोपियों की नामजदगी क्यों नहीं की गई? 
इसका सीधा सा उत्तर है कि इसे ही "प्रभाव" कहते हैं। यही होता है अफसरों को समय-समय पर ऑब्‍लाइज करने का प्रतिफल। पुलिस से पूछिए तो कहेगी कि जांच के दौरान या जांच के बाद आरोपियों के नाम जोड़े जा सकते हैं, किंतु उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं हो सकता कि जिसके नाम और काम से सब परिचित हैं, उससे वह कैसे अनजान हैं। 
जाहिर है कि FIR दर्ज कराने वाले और करने वाले दोनों अधिकारियों की यह मासूमियत उच्‍च अधिकारियों के आदेश-नर्देश पर निर्भर है। अधिकारी चाहते तो यह संभव ही नहीं था कि आरोपियों के नाम इस तरह नदारद कर दिए जाते। पुलिस की एफआईआर से तो यह भी स्‍पष्‍ट नहीं है कि स्‍वामी और प्रबंधक अलग-अलग हैं या दोनों को एक ही मान लिया गया है। 
कानून के जानकारों की मानें तो यह सारा खेल एक गंभीर अपराध के जिम्‍मेदारों को अपने बचाव का पूरा मौका देने और जांच में लीपापोती करने की गुंजाइश रखने के लिए खेला गया है। 
कुछ भी कहें सीएम योगी, लेकिन हकीकत यही है 
प्रदेश के सीएम योगी कुछ भी कहें और कितनी ही सख्‍ती बरतने के आदेश-निर्देश देते रहें किंतु कड़वा सच यही है। तभी तो कहीं गैंगरेप के मामले में सीओ स्‍तर का  कोई अधिकारी 5 लाख रुपए की रिश्‍वत मांगता है और कहीं भ्रष्‍टाचार के पर्याय लोकनिर्माण विभाग के अधिकारी अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आते। 
बेशक संज्ञान में आने पर शासन स्‍तर से ऐसे एक-दो लोगों के खिलाफ कभी-कभी कार्रवाई की जाती है परंतु उन अधिकारी एवं कर्मचारियों की संख्‍या काफी अधिक है जो साफ बच निकलते हैं। 
लखनऊ के होटल लेवाना में सरकार की नाक के नीचे आग लगती है तो उसके अवैध निर्माण का भी तुरंत पता लग जाता है और जिम्‍मेदारों के खिलाफ कार्रवाई भी तत्‍काल हो जाती है लेकिन वृंदावन के होटल में आग लगती है तो पुलिस होटल मालिक का नाम तक पता करना जरूरी नहीं समझती। 
इन हालातों में ऐसी कोई उम्‍मीद करना कि मथुरा-वृंदावन सहित प्रदेश भर के तमाम जिलों में बने अवैध होटल, गेस्‍ट हाउस, हॉस्‍पिटल या शॉपिंग कॉम्‍प्‍लेक्‍स के लिए सीधे-सीधे जिम्मेदार 'विकास प्राधिकरण' के अधिकारियों पर कभी कोई सख्‍त कार्रवाई होगी, हसीन सपने देखने जैसा है। 
यही कारण है कि प्रदेश का कोई जिला, कोई कस्‍बा, कोई तहसील ऐसी नहीं होगी जहां अवैध निर्माण न हो और जहां नियम-कानून को ताक पर रखकर खड़ी की गई इमारतें मौत के मंजर पेश करने की वजह न बनें। 
कल लखनऊ का लेवाना बना था, तो आज वृंदावन का वृंदावन गार्डन। लेकिन दावे के साथ कहा जा सकता है कि यह सिलसिला यहीं थमने वाला नहीं, क्‍योंकि जब लखनऊ में अवैध निर्माण संभव है तो मथुरा-वृंदावन जैसे जिलों की अहमियत ही कितनी है। 
बेनामी एफआईआर के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तारी की आस लगाना, खुद को धोखे में रखने के अलावा कुछ नहीं। हो सकता है होटल वृंदावन गार्डन का मालिक किसी अधिकारी के पास बैठा दिखाई दे और अधिकारी कहे कि मैं तो उन्‍हें पहचानता ही नहीं था। यह होटल तो किसी और के नाम है, ग्रुप इनका है तो क्या? 
-Legend News 

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