क्या "बसेरा ग्रुप" के मालिक रामकिशन अग्रवाल को मथुरा पुलिस बचाव का मौका दे रही है?
यह सवाल इसलिए खड़ा होता है कि बसेरा ग्रुप के वृंदावन स्थित होटल 'वृंदावन गार्डन' में हुए अग्निकांड को आज पांचवां दिन है, लेकिन अब तक इसके जिम्मेदार किसी आरोपी की गिरफ्तारी पुलिस नहीं कर सकी है जबकि इस अग्निकांड ने होटल के ही दो कर्मचारियों की जान ले ली और एक की हालत गंभीर है।
यह सवाल इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि दुर्घटना वाले दिन पहले तो वृंदावन पुलिस ने FIR में ही लीपापोती करने का प्रयास किया और 'नामजदगी' की जगह 'स्वामी प्रबंधक' होटल 'वृंदावन गार्डन' लिखकर सबको गुमराह करने की कोशिश की किंतु 'लीजेण्ड न्यूज' ने जब पुलिस की इस 'कारस्तानी' को 'हाईलाइट' किया तब अगले दिन बसेरा ग्रुप ऑफ होटल के मालिक रामकिशन अग्रवाल, प्रबंधक ऋषि कुंतल तथा एक अन्य कर्मचारी सतीश पाठक को नामजद किया।
अग्निशमन अधिकारी की ओर से आईपीसी की धारा 304 और 308 के तहत दर्ज कराए गए इस मामले में 'नामजदगी' के बावजूद पांचवें दिन तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
पुलिस दे रही है मौका
बताया जा रहा है कि जिले की पुलिस ही नहीं, प्रशासन को भी विभिन्न माध्यमों से ऑब्लाइज करने वाला बसेरा ग्रुप का मालिक रामकिशन अग्रवाल लखनऊ तक पहुंच रखता है और इसीलिए पुलिस उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं कर रही।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सत्ता के गलियारों तक पैठ बना चुका रामकिशन अग्रवाल तीन स्तर पर अपने बचाव की कोशिश में लगा है। उसकी पहली कोशिश तो यह है कि पुलिस की तफ्तीश में ही उसे क्लीन चिट मिल जाए और वह साफ बच निकले। रामकिशन अग्रवाल की दूसरी कोशिश है कि हाई कोर्ट से उसे अरेस्ट स्टे या अग्रिम जमानत प्राप्त हो जाए।
यदि इनमें से कुछ भी संभव नहीं होता तो रामकिशन अग्रवाल राजनीतिक प्रभाव से इस मामले की जांच सीबीसीआईडी के हवाले कराना चाहता है जिससे एक ओर गिरफ्तारी की आशंका से मुक्ति मिले तथा दूसरी ओर मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो जाए क्योंकि सीबीसीआईडी की जांच ऐसे लोगों के लिए बहुत मुफीद साबित होती है, साथ ही उसकी जांच का तरीका किसी केस की गर्मी को शांत करने का पूरा मौका उपलब्ध कराता है।
खबर के साथ लगा वर्ष 2014 का फोटो यह बताने के लिए काफी है कि रामकिशन अग्रवाल की सत्ता में पहुंच कब से तथा किस स्तर तक है। इस फोटो में वह किसी कार्यक्रम के दौरान यूपी के तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक जी को गाय की प्रतिमा भेंट करते दिखाई दे रहा है।
यूं भी किसी इतने बड़े कारोबारी से, जिससे पुलिस-प्रशासन समय-समय पर ऑब्लाइज होता रहता हो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना उसके लिए आसान नहीं होता। कारोबारी भी ऐसा, जिसकी सत्ताधारी पार्टी में ऊपर तक पहुंच हो।
ये भी पता लगा है कि इस बीच पुलिस प्रशासन को इस आशय का संदेश भिजवाया गया है कि अग्निकांड की चपेट में आए होटल कर्मचारियों ने चूंकि शराब का सेवन कर रखा था इसलिए वो अपना बचाव नहीं कर सके। यानी आग का शिकार होने के लिए किसी हद तक वो भी जिम्मेदार थे। हालांकि जांच अधिकारी के गले यह बात कितनी उतरती है और क्या पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ऐसी किसी बात की पुष्टि हुई है, इसका पता लगना बाकी है।
बहरहाल, इतना तो साफ है कि लखनऊ के 'लेवाना' होटल में हुए अग्निकांड की तरह कृष्ण की नगरी में हुए इस अग्निकांड को न तो पुलिस उतनी गंभीरता से ले रही है और न प्रशासन अथवा राज्य सरकार।
यही कारण है कि बिना एनओसी के चल रहे इस होटल में दो कर्मचारियों की मौत का करण बने अग्निकांड की बमुश्किल एफआईआर दर्ज किए जाने के अतिरिक्त अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। न तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी से पूछताछ हुई और न किसी को बिना एनओसी होटल का नक्शा पास करने का जिम्मेदार ठहराया गया।
बस यही फर्क है प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक होटल में हुए अग्निकांड में और मथुरा के वृंदावन स्थित होटल के अग्निकांड में। वहां न केवल 15 अधिकारी तत्काल निलंबित कर दिए गए बल्कि 19 अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए जिनमें कुछ रिटायर अधिकारी भी शामिल हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ मंडल के पुलिस आयुक्त से जांच कराई। इस जांच रिपोर्ट में फायर ब्रिगेड, ऊर्जा विभाग, नियुक्ति विभाग, आवास और शहरी विकास विभाग सहित आबकारी विभाग के कई अधिकारियों की अनियमितता व लापरवाही पाई गई।
जांच में पाया गया कि होटल 'लेवाना' को अवैध रूप से बनाया गया था। जिसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा 22 इंजीनियरों और जोनल अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गई लेकिन वृंदावन में दो मौतों के बाद भी किसी के कान पर जूं नहीं रेंग रही। आखिर लखनऊ, लखनऊ है। प्रदेश की राजधानी है। और मथुरा-वृंदावन एक अदना सा जिला। इसकी बराबरी प्रदेश की राजधानी से कैसे संभव है, चाहे मौत के मामले समान रूप से दुखदायी क्यों न माने जाते हों।
-Legend News
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