जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए...
प्रसिद्ध कवि गोपाल दास 'नीरज' ने यह कविता कब लिखी थी, इतना तो नहीं मालूम परंतु इतना जरूर मालूम है कि यह कविता आज भी उतनी ही सार्थक है, जितनी अपने रचनाकाल में रही होगी।
2014 की यह दीवाली कई मायनों में देश तथा देशवासियों के लिए विशिष्ट है। अच्छे दिन लाने का वायदा करके सत्ता पर काबिज होने वाले नरेंद्र मोदी सरकार की यह पहली दीवाली है जबकि रोशनी के बीच कश्मीरियों के लिए एक उदास दिन से अधिक कुछ नहीं। हालांकि नरेंद्र मोदी अपनी ओर से उनकी दीवाली को खुशनुमा बनाने की कोशिश में उनके पास गये हैं।
पद्मश्री और पद्मभूषण डॉ. नीरज की इस कविता में और जो लाइनें हैं, वह कश्मीर के वर्तमान हालातों पर पूरी तरह सटीक बैठती हैं।
नीरज ने इस कविता में आगे कहा है-
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
उधर राजनीतिक नजरिए से भी 2014 की दीवाली का बहुत महत्व है। इस दीवाली से मात्र चार दिन पहले आये महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव परिणामों ने कांग्रेस का तो जैसे दिवाला ही निकाल दिया।
ऊपर से मोदी सरकार ने जिस काले धन की सुप्रीम कोर्ट को फिलहाल जानकारी देने में असमर्थता जाहिर की थी, उस पर भी कांग्रेस का दांव ऐन दीवाली तक उल्टा पड़ता दिखाई देने लगा क्योंकि मोदी सरकार ने न केवल 136 लोगों के नाम सुप्रीम कोर्ट को शीघ्र बताने का ऐलान कर दिया बल्कि वित्तमंत्री ने यह और कह दिया कि इस खुलासे के बाद कांग्रेस शर्मसार हो सकती है।
जाहिर है ऐसे में कई उन कांग्रेसियों का हाजमा खराब हो गया होगा, जिन पर वित्तमंत्री ने निशाना साधा है।
नीरज ने इस कविता की आखिरी लाइनों में कहा है कि-
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
इन आखिरी लाइनों को सार्थक करने की कोशिश में नरेंद्र मोदी कश्मीर गये हैं और ऐसा ही प्रयास उन्होंने कुछ दिन पहले आंध्र प्रदेश जाकर किया था जहां हुदहुद नामक तूफान के कारण भारी तबाही हुई।
राजनीति की बिसात पर बेशक नरेंद्र मोदी के हर कदम को उनके विरोधी अपने-अपने तरीके से परिभाषित करें किंतु आम जनता के मन में उन्होंने उम्मीद की किरण जगाई है। पिछले एक दशक से जिस तरह पूरे देश को दूर-दूर तक कोई रोशनी नजर नहीं आ रही थी, आज वहां दूर से ही सही परंतु दिए टिमटिमाते दिखाई देने लगे हैं।
बात चाहे स्वच्छ भारत के लिए अभियान की हो या फिर भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन मुहैया कराने के प्रयासों की, सीमा पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की हो अथवा चीन की आंखों में आंख डालकर रेल लाइन बिछाने की प्रक्रिया शुरू करने की, देशवासियों को कतरा-कतरा रोशनी सुकून जरूर दे रही है।
दलगत राजनीति से इतर यदि सोचें तो मात्र 6 महीने से भी कम के इस कार्यकाल में यह उपलब्धियां कम नहीं कही जा सकतीं।
दलगत राजनीति अपनी जगह है लेकिन देश अपनी जगह। क्या यह ज्यादा उचित नहीं होगा कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस दीवाली हम कुछ अलग नजरिया अपनाएं। हम स्वस्थ राजनीति करें। जहां विरोध जरूरी न हो, वहां विरोध न करें और सरकार के उन कार्यों के लिए उसे अवश्य प्रोत्साहित करें जिनसे आमजन का हित जुड़ा हो... जिनसे देश का हित जुड़ा हो... क्योंकि दीवाली सिर्फ अपने-अपने घरों में झालरें लटका कर आतिशबाजी कर लेने भर का त्यौहार नहीं है। दीवाली सबको साथ लेकर चलने, सबको खुशियां बांटने और सबके दुखदर्द में शरीक होने का नाम है। संभवत: इसीलिए दीवाली पर तोहफे बांटने का रिवाज कायम है।
नीरज की इसी कविता में बीच की पंक्तियां इसी ओर इशारा करती हैं-
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी
निशा की गली में तिमिर राह भूले
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
-Legendnews
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए...
प्रसिद्ध कवि गोपाल दास 'नीरज' ने यह कविता कब लिखी थी, इतना तो नहीं मालूम परंतु इतना जरूर मालूम है कि यह कविता आज भी उतनी ही सार्थक है, जितनी अपने रचनाकाल में रही होगी।
2014 की यह दीवाली कई मायनों में देश तथा देशवासियों के लिए विशिष्ट है। अच्छे दिन लाने का वायदा करके सत्ता पर काबिज होने वाले नरेंद्र मोदी सरकार की यह पहली दीवाली है जबकि रोशनी के बीच कश्मीरियों के लिए एक उदास दिन से अधिक कुछ नहीं। हालांकि नरेंद्र मोदी अपनी ओर से उनकी दीवाली को खुशनुमा बनाने की कोशिश में उनके पास गये हैं।
पद्मश्री और पद्मभूषण डॉ. नीरज की इस कविता में और जो लाइनें हैं, वह कश्मीर के वर्तमान हालातों पर पूरी तरह सटीक बैठती हैं।
नीरज ने इस कविता में आगे कहा है-
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
उधर राजनीतिक नजरिए से भी 2014 की दीवाली का बहुत महत्व है। इस दीवाली से मात्र चार दिन पहले आये महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव परिणामों ने कांग्रेस का तो जैसे दिवाला ही निकाल दिया।
ऊपर से मोदी सरकार ने जिस काले धन की सुप्रीम कोर्ट को फिलहाल जानकारी देने में असमर्थता जाहिर की थी, उस पर भी कांग्रेस का दांव ऐन दीवाली तक उल्टा पड़ता दिखाई देने लगा क्योंकि मोदी सरकार ने न केवल 136 लोगों के नाम सुप्रीम कोर्ट को शीघ्र बताने का ऐलान कर दिया बल्कि वित्तमंत्री ने यह और कह दिया कि इस खुलासे के बाद कांग्रेस शर्मसार हो सकती है।
जाहिर है ऐसे में कई उन कांग्रेसियों का हाजमा खराब हो गया होगा, जिन पर वित्तमंत्री ने निशाना साधा है।
नीरज ने इस कविता की आखिरी लाइनों में कहा है कि-
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
इन आखिरी लाइनों को सार्थक करने की कोशिश में नरेंद्र मोदी कश्मीर गये हैं और ऐसा ही प्रयास उन्होंने कुछ दिन पहले आंध्र प्रदेश जाकर किया था जहां हुदहुद नामक तूफान के कारण भारी तबाही हुई।
राजनीति की बिसात पर बेशक नरेंद्र मोदी के हर कदम को उनके विरोधी अपने-अपने तरीके से परिभाषित करें किंतु आम जनता के मन में उन्होंने उम्मीद की किरण जगाई है। पिछले एक दशक से जिस तरह पूरे देश को दूर-दूर तक कोई रोशनी नजर नहीं आ रही थी, आज वहां दूर से ही सही परंतु दिए टिमटिमाते दिखाई देने लगे हैं।
बात चाहे स्वच्छ भारत के लिए अभियान की हो या फिर भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन मुहैया कराने के प्रयासों की, सीमा पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की हो अथवा चीन की आंखों में आंख डालकर रेल लाइन बिछाने की प्रक्रिया शुरू करने की, देशवासियों को कतरा-कतरा रोशनी सुकून जरूर दे रही है।
दलगत राजनीति से इतर यदि सोचें तो मात्र 6 महीने से भी कम के इस कार्यकाल में यह उपलब्धियां कम नहीं कही जा सकतीं।
दलगत राजनीति अपनी जगह है लेकिन देश अपनी जगह। क्या यह ज्यादा उचित नहीं होगा कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस दीवाली हम कुछ अलग नजरिया अपनाएं। हम स्वस्थ राजनीति करें। जहां विरोध जरूरी न हो, वहां विरोध न करें और सरकार के उन कार्यों के लिए उसे अवश्य प्रोत्साहित करें जिनसे आमजन का हित जुड़ा हो... जिनसे देश का हित जुड़ा हो... क्योंकि दीवाली सिर्फ अपने-अपने घरों में झालरें लटका कर आतिशबाजी कर लेने भर का त्यौहार नहीं है। दीवाली सबको साथ लेकर चलने, सबको खुशियां बांटने और सबके दुखदर्द में शरीक होने का नाम है। संभवत: इसीलिए दीवाली पर तोहफे बांटने का रिवाज कायम है।
नीरज की इसी कविता में बीच की पंक्तियां इसी ओर इशारा करती हैं-
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी
निशा की गली में तिमिर राह भूले
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
-Legendnews
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया बताते चलें कि ये पोस्ट कैसी लगी ?