122 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के मामले
में गलगोटिया यूनीवर्सिटी के मालिकानों का फंसना तो शिक्षा के क्षेत्र में
माफिया की सक्रियता का एक उदाहरण भर है। सच तो यह है कि एक वर्ग विशेष ने
निजी शिक्षण संस्थाएं संचालित करने की आड़ में शिक्षा के क्षेत्र को अवैध
पैसा कमाने की खान बना लिया है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि शिक्षा का व्यवसायीकरण करके उसके माध्यम से बेहिसाब अवैध संपत्ति अर्जित करने वाला शिक्षा माफिया अब खुलेआम खुद को शिक्षाविद् कहता है।
विचारणीय है यह स्थिति कि चंद वर्षों पहले तक जहां किसी अच्छे-खासे शहर में बमुश्किल एक-दो शिक्षण संस्थान ऐसे होते थे जिनमें आधुनिक शिक्षा लिया जाना संभव था, वहां अचानक शिक्षण संस्थाओं की फेहरिस्त इतनी लंबी कैसे हो गई?
वह भी तब जबकि पहले अधिकांश शिक्षण संस्थाएं किसी न किसी संस्था द्वारा संचालित की जाती थीं न कि व्यक्ति विशेष द्वारा और आज एक-एक व्यक्ति दर्जन या आधा दर्जन शिक्षण संस्थाओं का मालिक बन बैठा है।
जाहिर है कि शिक्षा के व्यवसाय में कमाई का कोई न कोई ऐसा वैध अथवा अवैध स्त्रोत तो है जिससे बहुत कम समय के अंदर करोड़ों नहीं, अरबों रुपए की लागत वाले अत्याधुनिक शिक्षण संस्थान खड़े किये जा सकते हैं।
अगर हम बात करें मथुरा की तो करीब डेढ़ दशक पहले तक यहां किशोरी रमण महाविद्यालय तथा बीएसए यानि बाबू शिवनाथ अग्रवाल महाविद्यालय के रूप में मात्र दो ही डिग्री कॉलेज हुआ करते थे और इन दोनों महाविद्यालयों का संचालन अलग-अलग संस्थाएं करती थीं। दूसरे स्कूल-कॉलेज भी इन्हीं संस्थाओं से संचालित होते थे लेकिन डेढ़ दशक के अंदर यह धार्मिक नगरी अचानक न सिर्फ टेक्नीकल एजुकेशन का हब बन गई बल्कि गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले कंम्प्यूटर इंस्टीट्यूट भी खुल गये।
कल तक इनमें से किसी पर भू माफिया का तो किसी पर चांदी और क्रिकेट के सट्टेबाज का ठप्पा लगा था, आज वह अपने नाम से पहले बड़े फख्र के साथ शिक्षाविद् जोड़ रहे हैं।
यही नहीं, राजनीति में असफल लोग भी जब शिक्षा के व्यवसाय में उतरे तो वह सफल हो गये और आज कई-कई शिक्षण संस्थाओं के मालिक बनकर देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।
कई बड़े शिक्षा व्यवसाई तो ऐसे हैं जिनकी संतानें होटलों में अय्याशी करती पकड़ी गई हैं लेकिन आज वही इन बड़ी शिक्षण संस्थाओं में बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह गलगोटिया यूनीवर्सिटी के मालिक सुनील गलगोटिया का पुत्र ध्रुव गलगोटिया शिक्षा की इस अपनी दुकान में डायरेक्टर के पद पर काबिज़ था।
शिक्षा के व्यवसायीकरण का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि तमाम बड़ी शिक्षण संस्थाओं के मालिक अंगूठा टेक हैं और उनकी अय्याश औलादें बमुश्किल हाईस्कूल व इंटरमीडियेट तक की शिक्षा ग्रहण कर पाने में सफल हुई हैं। जिन्होंने डिग्रियां हासिल की हैं, उनकी डिग्रियां भी संदिग्ध हैं क्योंकि वह अपनी शिक्षण संस्थाएं खुलने के बाद जुगाड़ करके हासिल की हैं।
जहां तक सवाल इन शिक्षा व्यवसाइयों की नैतिकता का है, तो गलगोटियाओं का कारनामा साबित करता है कि नैतिकता उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। अपने कॉलेज और यूनीविर्सिटीज में शिक्षा के साथ-साथ उच्च नैतिक शिक्षा देने का ढिंढोरा पीटने वाले ये शिक्षा व्यवसाई व्यक्तिगत जिंदगी में कितने नैतिक हैं, इससे शायद ही कोई अपरिचित हो।
मथुरा के एक नामचीन शिक्षा व्यवसाई का अपने ही संस्थान में बड़े पद पर काबिज की हुई अधेड़ महिला से क्या रिश्ता है और वह उस संस्थान में इस मुकाम तक कैसे पहुंची, यह सर्वविदित है लेकिन आज ऐसे चरित्रहीन लोग शिक्षाविद् तथा समाजसेवी का तमगा लगाये हुए हैं।
छात्रों के साथ स्कॉलरशिप से लेकर प्लेसमेंट तक के नाम पर खुली धोखाधड़ी करने तथा उनके अभिभावकों को जमकर लूटने वाले इन तथाकथित शिक्षाविदों के बीच इन दिनों खुद को पुरस्कृत कराने की एक होड़ और चल पड़ी है। एक शिक्षा माफिया कहीं से एक सम्मान हासिल करके लाता है तो दूसरा शिक्षा माफिया दूसरे दिन कहीं किसी और से कोई सम्मान ले आता है। इस तरह एक-एक शिक्षा माफिया, दर्जनों पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त है जबकि यह सम्मान व पुरस्कार कैसे लिए जाते हैं, किसी से छिपा नहीं है।
आज भले ही गलगोटिया का ही सच सामने आया हो, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब पता लगेगा कि दो दूनी चार करने में अधिकांश शिक्षा माफिया एक-दूसरे से पीछे नहीं हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में माफियाराज के पनपने की सूचना चूंकि अब केंद्र सरकार से भी छिपी नहीं रही इसलिए केंद्र की भी इस पर नजरें लगी हैं। निकट भविष्य में अब शिक्षा माफिया यदि सरकार के निशाने पर हो और हर जिले में गलगोटियाओं व उनके परिजनों की धरपकड़ शुरू हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि हर गलगोटिया अंत तक आखिरी दांव फेंकने में माहिर होता है। वह व्यवस्था की आंखों में धूल झोंकने के सभी इंतजाम करता है। यह बात दीगर है कि भ्रष्टाचार के इस दौर में भी कानून जब अपना शिकंजा कसता है तो न कोई गलगोटिया बचता है और न आसाराम बापू व तरुण तेजपाल जैसे सामाजिक अपराधी और न सुब्रत राय सहारा जैसे आर्थिक अपराधी।
बस देखना यह होता है कि किसका नंबर कब आता है।
-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष
आश्चर्य की बात तो यह है कि शिक्षा का व्यवसायीकरण करके उसके माध्यम से बेहिसाब अवैध संपत्ति अर्जित करने वाला शिक्षा माफिया अब खुलेआम खुद को शिक्षाविद् कहता है।
विचारणीय है यह स्थिति कि चंद वर्षों पहले तक जहां किसी अच्छे-खासे शहर में बमुश्किल एक-दो शिक्षण संस्थान ऐसे होते थे जिनमें आधुनिक शिक्षा लिया जाना संभव था, वहां अचानक शिक्षण संस्थाओं की फेहरिस्त इतनी लंबी कैसे हो गई?
वह भी तब जबकि पहले अधिकांश शिक्षण संस्थाएं किसी न किसी संस्था द्वारा संचालित की जाती थीं न कि व्यक्ति विशेष द्वारा और आज एक-एक व्यक्ति दर्जन या आधा दर्जन शिक्षण संस्थाओं का मालिक बन बैठा है।
जाहिर है कि शिक्षा के व्यवसाय में कमाई का कोई न कोई ऐसा वैध अथवा अवैध स्त्रोत तो है जिससे बहुत कम समय के अंदर करोड़ों नहीं, अरबों रुपए की लागत वाले अत्याधुनिक शिक्षण संस्थान खड़े किये जा सकते हैं।
अगर हम बात करें मथुरा की तो करीब डेढ़ दशक पहले तक यहां किशोरी रमण महाविद्यालय तथा बीएसए यानि बाबू शिवनाथ अग्रवाल महाविद्यालय के रूप में मात्र दो ही डिग्री कॉलेज हुआ करते थे और इन दोनों महाविद्यालयों का संचालन अलग-अलग संस्थाएं करती थीं। दूसरे स्कूल-कॉलेज भी इन्हीं संस्थाओं से संचालित होते थे लेकिन डेढ़ दशक के अंदर यह धार्मिक नगरी अचानक न सिर्फ टेक्नीकल एजुकेशन का हब बन गई बल्कि गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले कंम्प्यूटर इंस्टीट्यूट भी खुल गये।
कल तक इनमें से किसी पर भू माफिया का तो किसी पर चांदी और क्रिकेट के सट्टेबाज का ठप्पा लगा था, आज वह अपने नाम से पहले बड़े फख्र के साथ शिक्षाविद् जोड़ रहे हैं।
यही नहीं, राजनीति में असफल लोग भी जब शिक्षा के व्यवसाय में उतरे तो वह सफल हो गये और आज कई-कई शिक्षण संस्थाओं के मालिक बनकर देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।
कई बड़े शिक्षा व्यवसाई तो ऐसे हैं जिनकी संतानें होटलों में अय्याशी करती पकड़ी गई हैं लेकिन आज वही इन बड़ी शिक्षण संस्थाओं में बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर रहे हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह गलगोटिया यूनीवर्सिटी के मालिक सुनील गलगोटिया का पुत्र ध्रुव गलगोटिया शिक्षा की इस अपनी दुकान में डायरेक्टर के पद पर काबिज़ था।
शिक्षा के व्यवसायीकरण का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि तमाम बड़ी शिक्षण संस्थाओं के मालिक अंगूठा टेक हैं और उनकी अय्याश औलादें बमुश्किल हाईस्कूल व इंटरमीडियेट तक की शिक्षा ग्रहण कर पाने में सफल हुई हैं। जिन्होंने डिग्रियां हासिल की हैं, उनकी डिग्रियां भी संदिग्ध हैं क्योंकि वह अपनी शिक्षण संस्थाएं खुलने के बाद जुगाड़ करके हासिल की हैं।
जहां तक सवाल इन शिक्षा व्यवसाइयों की नैतिकता का है, तो गलगोटियाओं का कारनामा साबित करता है कि नैतिकता उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। अपने कॉलेज और यूनीविर्सिटीज में शिक्षा के साथ-साथ उच्च नैतिक शिक्षा देने का ढिंढोरा पीटने वाले ये शिक्षा व्यवसाई व्यक्तिगत जिंदगी में कितने नैतिक हैं, इससे शायद ही कोई अपरिचित हो।
मथुरा के एक नामचीन शिक्षा व्यवसाई का अपने ही संस्थान में बड़े पद पर काबिज की हुई अधेड़ महिला से क्या रिश्ता है और वह उस संस्थान में इस मुकाम तक कैसे पहुंची, यह सर्वविदित है लेकिन आज ऐसे चरित्रहीन लोग शिक्षाविद् तथा समाजसेवी का तमगा लगाये हुए हैं।
छात्रों के साथ स्कॉलरशिप से लेकर प्लेसमेंट तक के नाम पर खुली धोखाधड़ी करने तथा उनके अभिभावकों को जमकर लूटने वाले इन तथाकथित शिक्षाविदों के बीच इन दिनों खुद को पुरस्कृत कराने की एक होड़ और चल पड़ी है। एक शिक्षा माफिया कहीं से एक सम्मान हासिल करके लाता है तो दूसरा शिक्षा माफिया दूसरे दिन कहीं किसी और से कोई सम्मान ले आता है। इस तरह एक-एक शिक्षा माफिया, दर्जनों पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त है जबकि यह सम्मान व पुरस्कार कैसे लिए जाते हैं, किसी से छिपा नहीं है।
आज भले ही गलगोटिया का ही सच सामने आया हो, लेकिन वह दिन दूर नहीं जब पता लगेगा कि दो दूनी चार करने में अधिकांश शिक्षा माफिया एक-दूसरे से पीछे नहीं हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में माफियाराज के पनपने की सूचना चूंकि अब केंद्र सरकार से भी छिपी नहीं रही इसलिए केंद्र की भी इस पर नजरें लगी हैं। निकट भविष्य में अब शिक्षा माफिया यदि सरकार के निशाने पर हो और हर जिले में गलगोटियाओं व उनके परिजनों की धरपकड़ शुरू हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि हर गलगोटिया अंत तक आखिरी दांव फेंकने में माहिर होता है। वह व्यवस्था की आंखों में धूल झोंकने के सभी इंतजाम करता है। यह बात दीगर है कि भ्रष्टाचार के इस दौर में भी कानून जब अपना शिकंजा कसता है तो न कोई गलगोटिया बचता है और न आसाराम बापू व तरुण तेजपाल जैसे सामाजिक अपराधी और न सुब्रत राय सहारा जैसे आर्थिक अपराधी।
बस देखना यह होता है कि किसका नंबर कब आता है।
-लीजेण्ड न्यूज़ विशेष
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