ये जड़ों की ओर लौटने का न सही, लेकिन जड़ों की ओर मुड़कर देखते हुए आगे बढ़ने का समय जरूर है। ‘सिंहावलोकन’ का समय है।
माना कि ‘लॉकडाउन’ बहुत से लोगों को परेशान कर रहा है क्योंकि उन्हें लगता है यह थोपा गया है, परंतु सही अर्थों में महसूस करेंगे तो पता लगेगा कि यह प्रकृति प्रदत्त एक ऐसा अवसर भी है जो भौतिकता की अंधी दौड़ से मुक्ति का मार्ग दिखा रहा है।
मात्र 21 दिनों के लॉकडाउन ने इतना अहसास तो कराया है कि समय के साथ कदमताल मिलाना जितना आवश्यक है, उससे कहीं ज्यादा आवश्यक है रफ्तार को नियंत्रित करने की कला जानना क्योंकि सधे हुए कदमों से चलकर ही मंजिल हासिल की जा सकती है। बहुत अधिक सुस्ती यदि मुकाम पाने में बाधक बनती है तो अनावश्यक तेजी भी लड़खड़ाकर गिर जाने का कारण बन जाती है।
इन दिनों तमाम लोग श्मशान वैराग्य अथवा चिता ज्ञान की अनुभूति कर रहे हैं। उन्हें अचानक जीवन क्षणभंगुर लगने लगा है। लेकिन कौन नहीं जानता कि ये दोनों भाव भी क्षणभंगुर हैं, अस्थायी हैं।
अपने प्रियजनों की चिता को अग्नि के हवाले करते वक्त मन में आने वाले भाव श्मशान छोड़ते ही तिरोहित हो जाते हैं। मरघट से घर तक की दूरी तय करते ही वैराग्य और ज्ञान साथ छोड़ जाते हैं।
कोराना से उपजे विश्वव्यापी संकट का फिलहाल कोई देश उपचार नहीं ढूंढ़ पाया है, सिवाय इसके कि साफ-सफाई के साथ रहें। लॉकडाउन का आनंद उठाते हुए एक निर्धारित सामाजिक दूरी बनाए रखें ताकि वायरस का संभावित प्रवेश रोका जा सके।
इस व्यवस्था पर राजनीति करने वालों की बात यदि न की जाए तो सारी दुनिया एकराय है। वैज्ञानिकों से लेकर डॉक्टरों तक की यही राय है कि इस महामारी की चपेट में आने से बचाव का एकमात्र कारगर उपाय लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग ही है। कोई वैक्सीन, कोई दवाई या कोई दूसरे उपाय जब सामने आएंगे, तब आएंगे परंतु अभी कोई विकल्प नहीं है।
यही स्थिति हम भारतीयों को जड़ों की ओर देखने का अवसर दे रही है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ नि:संदेह सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है और इसीलिए यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है-
अयं निजः परोवैति गणना लघुचेतसाम् | उदारचरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्
अर्थात् यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो सम्पूर्ण धरती ही परिवार है।
परंतु यहां विचारणीय यह है कि जिनकी संस्कृति और संस्कार ही बहुत ‘उथले’ हैं, उन्हें हमारी संस्कृति एवं संस्कारों की गहराइयों का ज्ञान इतनी आसानी से होगा भी कैसे।
किसी डूबते हुए प्राणी का जीवन बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक है कि बचाने की कोशिश करने वाला पहले अपने प्राणों की रक्षा करे। वह स्वयं बचा रहेगा तो डूबने वाले को भी उबार लेगा अन्यथा डूबने वाला तो हमेशा आत्मरक्षा में बचाने वाले को अपनी ओर खींचता ही है।
विश्व के सबसे प्राचीन धर्म (सनातन), सबसे प्राचीन संस्कृति और सबसे प्राचीन परंपराओं के वाहक भारतीय यदि सही अर्थों में ‘महोपनिषद्’ अध्याय 4 के श्लोक 71 को सार्थक करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम उन्हें अपनी जड़ों की ओर मुड़कर देखना होगा। ‘सिंहावलोकन’ करना होगा ताकि जड़ों से इतने न कट जाएं कि जुड़ने का कोई उपाय ही शेष न रहे। आगे बढ़ें, तरक्की करें, मुकाम हासिल करें और टारगेट अचीव करें किंतु जड़ों से कटने की भूल कतई न करें।
आज लॉकडाउन थोपा हुआ है तो क्या, उसका आनंद उठाएं, साथ ही प्रण करें कि ‘जान है तो जहान है’ के मंत्र को अपनाते हुए वसुधैव कुटुम्बकम् को एकबार फिर भारत की भूमि से सार्थक करेंगे और भारत के गौरवशाली अतीत को माध्यम बनाकर विश्व का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी