मंगलवार, 15 सितंबर 2020

मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाला: SIT खुद बनी वादी, रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी भूमिगत


 

मथुरा। गोवर्धन के प्रसिद्ध मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाले की FIR में वादी भी SIT खुद ही बनी है। SIT निरीक्षक कुंवर ब्रह्मप्रकाश ने अपने यहां क्राइम नंबर 0010/20120 पर यह मामला 11 सितंबर 2020 को शाम 6 बजकर 46 मिनट पर दर्ज कराया है।

इससे पहले SIT की जांच रिपोर्ट पर FIR दर्ज किए जाने के आदेशों को नकारने वाले मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाले के मुख्‍य आरोपी रमाकांत गोस्‍वामी अब भूमिगत हो गए हैं और इस प्रयास में लगे हैं कि अब भी किसी तरह SIT के IO को प्रभावित कर अपना नाम चार्जशीट में शामिल किए जाने से बच सकें।
सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार SIT के जांच अधिकारी अगले हफ्ते लखनऊ से गोवर्धन (मथुरा) आकर आगे की कार्यवाही अमल में लाएंगे।
मथुरा के प्रतिष्‍ठित ‘श्रीजी बाबा’ परिवार से ताल्‍लुक रखने वाले कथावाचक रमाकांत गोस्‍वामी को यूं तो दौलत, शोहरत और इज्‍जत सब-कुछ विरासत में मिला किंतु उनकी ‘हवस’ ने उन्‍हें आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां से वो कभी भी अपने ‘गिरोह’ सहित जेल की सलाखों के पीछे दिखाई देंगे।
दरअसल, न्‍यायिक व्‍यवस्‍था, प्रशासनिक अव्‍यवस्‍था और धार्मिक संस्‍थाओं की कुव्‍यवस्‍थाओं से उपजा कॉकस (Caucus) जब कोई दुरभि संधि करता है तब रमाकांत गोस्‍वामी जैसे लोग सुर्खियों में आते हैं।
चूंकि इनका उदय ही किसी दुरभि संधि के तहत होता है इसलिए आसानी से इनका बाल बांका नहीं हो पाता।
मुकुट मुखारबिंद मंदिर का मामला भी सिविल जज सीनियर डिवीजन चतुर्थ के न्‍यायालय में लंबित है परंतु तमाम शिकायतों के बावजूद वहां से रिसीवर रमाकांत द्वारा लगातार की जा रही कारगुजारियों पर कोई रोक नहीं लगाई गई जबकि न्‍यायिक व्‍यवस्‍था के ही अनुसार रिसीवर को प्रत्‍येक दो माह में मंदिर का हिसाब-किताब पूरे स्‍टेटमेंट और बिल-बाउचर सहित न्‍यायालय के समक्ष प्रस्‍तुत करना अनिवार्य है।
गोवर्धन के तत्‍कालीन एसडीएम नागेन्‍द्र कुमार सिंह ने अपनी जांच आख्‍या में लिखा है कि मंदिर के रिसीवर द्वारा भूमि क्रय करने, फूल बंगले और पेंशन आदि को लेकर न्‍यायालय की अनुमति लेने का कोई सबूत पेश नहीं किया गया। जिससे परिलक्षित होता है कि मंदिर के रिसीवर ने अपने कर्तव्‍यों का निर्वहन न करते हुए घोर लापरवाही पूर्वक मंदिर की संपत्ति का दुरुपयोग किया।
एसडीएम की रिपार्ट से साफ जाहिर है कि गोवर्धन स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप होने बावजूद रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी अब तक खुली हवा में सांस कैसे ले पाए और यथासंभव सबूतों से भी छेड़छाड़ करने में किस तरह लगे रहे।
मीडिया को भी प्रभावित करने में सफल
एक विश्‍व प्रसिद्ध मंदिर के रिसीवर की गद्दी पर बैठकर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने वाले रमाकांत गोस्‍वामी को मीडिया का मुंह बंद कराने में भी महारत हासिल है लिहाजा समय-समय पर मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर की हैसियत से मीडिया को लाखों रुपए के विज्ञापन देकर ऑब्‍लाइज करने में काफी हद तक सफल रहे।
हालांकि अब उन विज्ञापनों पर हुए खर्च का हिसाब-किताब भी सौंपना होगा और यह बताना होगा कि मंदिर के पैसों को अखबारों के विज्ञापन पर खर्च करने का अधिकार उन्‍हें किसने दिया।
SIT की जांच के दौरान भी लूटते रहे मंदिर का पैसा
रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी और उनके गिरोह के दुस्‍साहस का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि NGT के निर्देश और शासनादेशों से की जा रही SIT जांच के दौरान भी वह यथासंभव मंदिर का पैसा लूटते रहे।
कोरोना जैसी महामारी के बीच जब समूचा देश ‘लॉकडाउन’ चल रहा था तब भी मुकुट मुखारबिंद मंदिर में बने बनाए फर्श उखड़वाकर उनके स्‍थान पर नए फर्श बनवाए जा रहे थे।
संभवत: इसीलिए मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटाले को इस स्‍टेज तक ले जाने वाले सभी शिकायतकर्ता SIT की FIR में न तो मात्र 12 लोगों के नाम शामिल किए जाने से से संतुष्‍ट हैं और न घोटाले की रकम से।
शिकायतकर्ताओं की बात पर भरोसा करें तो यह पूरा घपला करीब सौ करोड़ रुपए का है और इसमें शामिल लोगों की संख्‍या भी एक दर्जन न होकर लगभग पांच दर्जन है जिसमें एक न्‍यायिक अधिकारी भी आरोपी हो सकते हैं।
अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को कुछ दिन पहले तक पूरी तरह खारिज करने वाले रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी भी इस सच्‍चाई से भलीभांति वाकिफ हैं और इसलिए अब न तो मीडिया के सामने आ रहे हैं और न सार्वजनिक तौर पर दिखाई दे रहे हैं।
बावजूद इसके कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग इतना सब होने पर भी उनके खिलाफ कोई खबर छापने में दिलचस्‍पी नहीं ले रहा और इस इंतजार में है कि विज्ञापन की शक्‍ल में कोई सफाई जनता के समक्ष रख सके।
राजनीतिक संरक्षण की भी चाहत
आधा दर्जन फेसबुक अकाउंट के ‘धनी’ रमाकांत गोस्‍वामी ने अपनी ‘वॉल’ पर चस्‍पा तस्‍वीरों के जरिए तो खुद को भाजपायी साबित करने की कोशिश की ही है, साथ ही यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के हाथों पटुका पहनकर सम्‍मानित होने का फोटो भी लगा रखा है।
रिसीवर रमाकांत द्वारा ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा क्‍या रही होगी, इसे समझने के लिए बहुत दिमाग लगाने की जरूरत शायद ही हो।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मुकुट मुखारबिंद मंदिर घोटाला: SIT रिपोर्ट दबाने के लिए भाजपा नेता के माध्‍यम से दी गई 50 लाख रुपए की मोटी रिश्‍वत, जानिए… फिर भी सच कैसे आया सामने?

 


नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश पर की गई यूपी SIT की जांच को मुकुट मुखारबिंद मंदिर के घोटालेबाजों ने 50 लाख रुपए की रिश्‍वत देकर दबाने का प्रयास किया था किंतु फिर भी वो अपने मकसद में सफल नहीं हुए, आखिर क्‍यों ?

इस सवाल का जवाब जानने से पहले ये जान लें कि करीब-करीब 100 करोड़ रुपए के इस घोटाले की नींव कब रखी गई और इसके पीछे कितने शातिर दिमाग काम कर रहे थे।
कैसे हुआ खुलासा
गोवर्धन स्‍थित मुकुट मुखारबिंद मंदिर में करोड़ों रुपए के घोटाले का खुलासा सबसे पहले दसविसा (गोवर्धन) निवासी राधारमन और प्रभुदयाल शर्मा ने किया। उन्‍होंने मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी पर ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का आरोप लगाया था।
एनजीओ ने प्रेस कांफ्रेस करके लगाए गंभीर आरोप
इसके बाद 13 मई 2018 को इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन नामक NGO ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके मंदिर की संपत्ति में करोड़ों रुपए का घोटाला मंदिर के रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी द्वारा ही अपने गुर्गों के साथ मिलकर किए जाने की जानकारी दी।
उन्‍होंने बताया कि अपर सिविल जज प्रथम मथुरा के आदेश से मुकुट मुखारबिंद मंदिर के रिसीवर नियुक्‍त किए गए रमाकांत गोस्‍वामी ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए की संपत्ति हड़प ली है।
इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्‍ति में बताया गया कि वर्ष 2010 में रमाकांत गोस्‍वामी ने न्‍यायालय के समक्ष इस आशय का एक प्रस्‍ताव रखा कि मुकुट मुखारबिंद मंदिर का प्रबंधतंत्र मंदिर के पैसों से एक अस्‍पताल बनवाना चाहता है।
रमाकांत गोस्‍वामी का यह प्रस्‍ताव न्‍यायालय के पीठासीन अधिकारी को “इतना पसंद आया” कि उन्‍होंने न सिर्फ मंदिर के पैसों से अस्‍पताल बनवाने का प्रस्‍ताव स्‍वीकार कर लिया बल्‍कि रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी को ही उसके लिए आवश्‍यक जमीन खरीदने के अधिकार भी सौंप दिए।
रमाकांत गोस्‍वामी भी यही चाहते थे इसलिए उन्‍होंने तत्‍काल एक जमीन का इकरार नामा पहले तो मात्र 40 लाख रुपयों में अपने खास मित्रों के नाम करवाया और फिर 4 महीने बाद ही उसी जमीन को उसके असली मालिक से 2 करोड़ 30 लाख रुपए में मंदिर के नाम खरीद लिया।
कारनामे को अंजाम तक पहुंचाने के लिए रमाकांत गोस्‍वामी ने अपने मित्रों को द्वितीय पक्ष दिखा दिया जबकि जमीन के असली मालिक को प्रथम पक्ष बताया।
इस तरह सिर्फ चार महीने के अंतराल में मंदिर को बड़ी चालाकी के साथ करीब एक करोड़ 90 लाख रुपए का चूना लगा दिया गया।
रमाकांत गोस्‍वामी यहीं नहीं रुके, इसके बाद उन्‍होंने मंदिर को विस्‍तार देने की आड़ में 5 अगस्‍त 2011 को अपने मित्रों से ‘खास महल’ नामक एक संपत्ति 2 करोड़ 70 लाख रुपयों में खरीद ली।
वर्ष 2011 में अपनी साजिश सफल हो जाने पर रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी के हौसले बुलंद हो गए अत: उन्‍होंने वर्ष 2014-15 में फिर मंदिर की ढाई करोड़ रुपयों से अधिक की धनराशि का गबन किया। इसी प्रकार वर्ष 2015-16 में पौने चार करोड़ का, 16-17 में पौने छ: करोड़ रुपयों का घोटाला किया गया।
इतना सब हो जाने पर भी कोई कार्यवाही होते न देख इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन ने 05 जून 2018 को तहसील दिवस में एक शिकायती पत्र दिया, जिसके बाद जिलाधिकारी ने समस्‍त प्रकरण की जांच एसडीएम गोवर्धन नागेन्‍द्र कुमार सिंह के हवाले कर दी। इस जांच में एनजीओ द्वारा रमाकांत गोस्‍वामी पर लगाए गए सभी आरोप प्रथम दृष्‍टया सही पाये गए हैं।
गौरतलब है कि इन्‍हीं घोटालों की शिकायत इंपीरियल पब्‍लिक फाउंडेशन ने एनजीटी में भी की थी, जिसके बाद एनजीटी ने एसआईटी का गठन कर जांच कराने के आदेश दिए थे।
चारों ओर से खुद को फंसता देख रिसीवर रमाकांत गोस्‍वामी ने एक ओर जहां बड़े-बड़े विज्ञापन देकर मीडिया को चुप रखने की कोशिश की वहीं दूसरी ओर अपने राजनीतिक रसूखों के बल पर SIT की जांच को प्रभावित करने का प्रयास किया।
दी गई 50 लाख रुपयों की रिश्‍वत
घोटालेबाजों ने लगभग चार महीने पहले इसके लिए मथुरा में भाजपा के एक ऐसे पदाधिकारी से संपर्क किया जिसके गहरे संबंध और यहां तक कि रिश्‍तेदारी भी प्रदेश स्‍तरीय पदाधिकारी से है।
बताया जाता है कि एसआईटी की जांच को प्रभावित करने तथा उसे ठंडे बस्‍ते में डलवाने के लिए 50 लाख रुपए लखनऊ जाकर दिए गए और उसके बाद न सिर्फ यह मान लिया गया कि सब-कुछ समाप्‍त हो गया है बल्‍कि सार्वजनिक तौर पर इसका ढिंढोरा भी पीटा गया।
फिर भी सच कैसे आया सामने
इतना करने के बावजूद घोटालेबाज अपने मकसद में इसलिए कामयाब नहीं हुए और इसलिए अंतत: एसआईटी को अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करनी पड़ी क्‍योंकि गोवर्धन के ही दसबिसा निवासी हरीबाबू शर्मा पुत्र मोहन लाल शर्मा ने गत दिनों इलाहाबाइ हाईकोर्ट में एक याचिका डालने की पूरी तैयारी कर उसमें प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) उत्तर प्रदेश तथा डीआईजी (एसआईटी) लखनऊ को भी पार्टी बनाने के मकसद से अपने वकील सत्‍येन्‍द्र नारायाण सिंह के जरिए याचिका की कॉपी भेज दी।
दरअसल, हरीबाबू ऐसा करने के लिए तब मजबूर हुए जब उन्‍हें आरटीआई के माध्‍यम से यह जानकारी मिली कि जांच एजेंसी अपना काम पूरा करके रिपोर्ट शासन को दे चुकी है।
ये पता लगने के बाद हरीबाबू को यकीन हो गया कि घोटालेबाजों द्वारा किया गया दावा सही था कि वह एसआईटी की जांच को ठंडे बस्‍ते में डलवा चुके हैं।
अब जबकि हरीबाबू द्वारा प्रिंसिपल सेक्रेट्री (होम) उत्तर प्रदेश तथा डीआईजी (एसआईटी) को पार्टी बनाने की सूचना मिली तो हड़कंप मचना स्‍वाभाविक था लिहाजा तुरंत शासन स्‍तर से एक ओर जहां एसआईटी की जांच रिपोर्ट को सामने रख दिया गया वहीं दूसरी ओर 11 आरोपियों के खिलाफ एफआईआर कराने के आदेश भी कर दिए गए।
इस संबंध में पूछे जाने पर हरीबाबू शर्मा ने बताया कि एसआईटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज कर लिए जाने के बाद भी वह न्‍यायालय के माध्‍यम से मुकुट मुखारबिंद और दानघाटी मंदिर में हुए उन घोटालों को सामने लाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे जो अभी दबे हुए हैं और जिन्‍हें इस गिरोह ने अंजाम दिया है।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

सोमवार, 7 सितंबर 2020

मथुरा में बहुत मशहूर है एक और खेल, क्या इस खेल का भी खुलासा करेगी पुलिस?


मेट्रो सिटीज दिल्‍ली, मुंबई, कलकत्‍ता, चेन्‍नई सहित देश के तमाम दूसरे महानगरों तथा नगरों के साथ तरक्‍की की दौड़ में विश्‍व का नामचीन धार्मिक शहर मथुरा बेशक काफी पिछड़ा हुआ प्रतीत होता हो, बेशक यहां अभी तरक्‍की को परिभाषित करने वाली अनेक सुविधाओं का अभाव हो, बेशक देश-दुनिया के साथ तरक्‍की के लिए कदम ताल मिलाने में इसे लंबा समय लगे, लेकिन एक क्षेत्र ऐसा है जिसमें कृष्‍ण की यह नगरी अन्‍य दूसरे महानगरों एवं नगरों से किसी तरह पीछे नहीं हैं। सच तो यह है कि वह बहुत से नगरों एवं महानगरों से इस क्षेत्र में काफी आगे है।

जी हां! चाहे आपको आसानी से यकीन आये या ना आए, चाहे आपका मुंह आश्‍चर्य से एकबार को खुले का खुला रह जाए लेकिन सच्‍चाई यही है कि विश्‍व की धार्मिक, सांस्‍कृतिक, आध्‍यात्‍मिक एवं साहित्‍यिक विरासत को दरकिनार कर यह शहर उस दिशा में करवट ले चुका है जिसके बारे में सोचना तक आम आदमी के लिए किसी महापाप से कम नहीं है।

यहां हम बात कर रहे हैं पैसे वालों के एक शौक, या कहें एक ऐसे खेल की जिसे ”वाइफ स्‍वेपिंग” और ”कपल स्‍वेपिंग” कहा जाता है। पैसे वालों का इसलिए कि मध्‍यम वर्गीय लोगों की तो औकात से ही बाहर है इस खेल में शामिल होना।

इस खेल के तहत पैसे वाले परिवारों से संबंध रखने वाले कपल, कम से कम छ: कपल का एक ग्रुप बनाते हैं और यह ग्रुप फिर वाइफ स्‍वेपिंग करता है। वाइफ स्‍वेपिंग के तहत न्‍यूड एवं सेमी न्‍यूड ग्रुप डांस से लेकर ग्रुप सेक्‍स तक सब-कुछ शामिल होता है।

इसके लिए सबकी सहमति से शहर के किसी बाहरी हिस्‍से में अच्‍छे होटल का हॉल तथा कमरे बुक कराये जाते हैं, जहां ग्रुप के सदस्‍य कपल पूर्व निर्धारित दिन व समय पर अपनी-अपनी गाड़ियों से पहुंचते हैं। इस खेल में शामिल होने के लिए जितना जरूरी है एक अदद कपल का होना, उतना ही जरूरी है एक गाड़ी का होना। खेल की शुरूआत ड्रिंक या ड्रग्‍स से होती है, और उसके बाद जैसे-जैसे सुरूर चढ़ता जाता है, खेल शुरू होने लगता है।

खेल की शुरूआत के लिए ग्रुप के सभी सदस्‍य हॉल की बत्‍तियां बुझाकर एक टेबिल पर अपनी-अपनी गाड़ियों की चाभियां रख देते हैं और फिर अंधेरे में ही ग्रुप के पुरुष सदस्‍य किसी एक गाड़ी की चाभी उठाते हैं। जिसके हाथ में जिसकी गाड़ी की चाभी आ जाती है, वह उस सदस्‍य की बीबी के साथ खेल खेलने को अधिकृत हो जाता है। ठीक इसी प्रकार उसकी बीबी के साथ वह सदस्‍य खेल खेलने का अधिकारी हो जाता है जिसकी चाभी उसके हाथ लगी है।

चाभियों की अदला-बदली के साथ यह सदस्‍य अपने पार्टनर को होटल में ही पहले से बुक्‍ड कमरों में ले जाते हैं और फिर वहां स्‍वछंद सेक्‍स का यह खेल शुरू हो जाता है।

इससे भी आगे इस खेल में कुछ लोग हॉल के अंदर ही एक-दूसरे की पत्‍नियों को लेकर सब-कुछ करने को स्‍वतंत्र होते हैं जबकि कुछ लोग दो-दो और तीन-तीन की संख्‍या में ग्रुप सेक्‍स करते हैं।

जाहिर है कि इस सारे खेल का राजदार और हिस्‍सेदार वह होटल मालिक भी होता है जिसके यहां खेल खेला जाता है। उसे इसके लिए अच्‍छी-खासी रकम मिलती है, वो अलग।

बताया जाता है कि मथुरा के नवधनाढ्यों को इस खेल की लत उस क्‍लब कल्‍चर से लगी है जो कथित तौर पर समाज सेवा के कार्य करते हैं अथवा समाज सेवा करने का दावा करते हैं।

इनके अलावा कुछ लोगों ने पर्सनल क्‍लब या ग्रुप भी बना लिए हैं और उनकी आड़ में विभिन्‍न कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। जिनका असल मकसद उनके बीच से छांटकर ‘वाइफ स्‍वेपिंग’ अथवा ‘कपल’ स्‍वेपिंग के लिए एक अलग ग्रुप बनाना होता है।

विश्‍वस्‍त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार पिछले कुछ समय के अंदर इस धार्मिक शहर के विशेष वर्ग में हुईं आकस्‍मिक युवा संदिग्‍ध मौंतों के पीछे यही खेल रहा है क्‍योंकि इसके आफ्टर इफेक्‍ट अंतत: ऐसे ही परिणाम निकालते हैं।

सूत्रों की मानें तो विगत माह एक प्रसिद्ध होटल मालिक की शादी-शुदा बहिन इसी खेल में अपनी जान दे चुकी है। उसकी मौत को हालांकि इसलिए आत्‍महत्‍या प्रचारित किया गया क्‍योंकि उसने अपने मायके में जान दी थी परंतु सूत्रों की मानें तो इसके पीछे का असली कारण वाइफ स्‍वेपिंग का खेल ही था।

इसके अलावा कुछ समय पहले एक बिल्‍डर के युवा पुत्र की संदिग्‍ध मौत हो या एक अन्‍य  बड़े व्‍यवसाई के अधेड़ उम्र पुत्र की होटल के कमरे में हुई मौत का मामला हो, सबके पीछे यही खेल बताया जाता है।

जिन परिवारों में यह मौतें हुई हैं, वह दबी जुबान से इतना तो स्‍वीकार करते हैं कि अवैध संबंध इन मौतों का कारण बने हैं, लेकिन सीधे-सीधे वाइफ स्‍वेपिंग के खेल में संलिप्‍तता स्‍वीकार नहीं करते।

चूंकि इस खेल के परिणाम स्‍वरूप एचआईवी एड्स तथा आज के दौर की कोराना जैसी संक्रामक बीमारियां भी तोहफे में मिलने की पूरी संभावना रहती है इसलिए इसके परिणाम तो किसी न किसी स्‍तर पर जाकर घातक होने ही होते हैं। ऐसी स्‍थिति में पति-पत्‍नी एक-दूसरे को दोषी ठहराने का प्रयास करते हैं और इसके फलस्‍वरूप गृहक्‍लेश बढ़ जाता है। रोज-रोज के गृहक्‍लेश का नतीजा फिर किसी अनहोनी के रूप में सामने आता है।

इस खेल से जुड़े लोगों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार धार्मिक शहर मथुरा में यूं तो इस खेल की शुरूआत हुए कई साल हो चुके हैं, लेकिन पिछले करीब पांच सालों से इसमें काफी तेजी आई है। पांच सालों में मथुरा के अंदर इस खेल के कई ग्रुप बने हैं और इसी कारण सो-कॉल्‍ड सभ्रांत परिवारों में कई जवान संदिग्‍ध मौतें भी हुई हैं।

आजतक ऐसी किसी मौत का मामला पुलिस के पास न पहुंचने की वजह से पुलिस ने उसमें कोई रुचि नहीं ली क्‍योंकि यूं भी मामला पैसे वालों से जुड़ा होता है।

यही कारण है वाइफ स्‍वेपिंग का यह खेल धर्म की इस नगरी में न केवल बदस्‍तूर जारी है बल्‍कि दिन-प्रतिदिन परवान चढ़ रहा है।

एक-दो नहीं, अनेक अपराधों का रास्‍ता बनाने वाला यह खेल यदि इसी प्रकार फलता-फूलता रहा और पुलिस व प्रशासन के बड़े अधिकारियों ने इस ओर अपनी निगाहें केंद्रित न कीं तो आने वाले समय में कृष्‍ण की नगरी के लिए यह ऐसा कलंक साबित होगा जिससे पीछा छुड़ाना मुश्‍किल हो जायेगा।

मुश्‍किल इसलिए कि मथुरा से दिल्‍ली बहुत दूर नहीं है। दिल्‍ली का कचरा अगर यमुना में बहकर आ रहा है तो दिल्‍ली का कल्‍चर भी सड़क के रास्‍ते मथुरा को प्रदूषित कर ही रहा है।

-लीजेण्‍ड न्‍यूज़ 

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