अब आप खबर के ऊपर लगी तस्वीरों को देखिए। ये तस्वीरें हैं मथुरा (यूपी) के कलक्ट्रेट स्थित रजिस्ट्री कार्यालय की, जहां कार्यालय के अलग-अलग पटल पर बैठे हैं ये चेहरे। इन चेहरों में से कोई ऐसा नहीं है जो सरकारी मुलाजिम हो किंतु रजिस्ट्री कार्यालय का काम इनके बिना करा पाना संभव नहीं है।
मथुरा जनपद में कुल पांच रजिस्ट्री कार्यालय हैं जिनमें से मुख्य है सदर तहसील का कलक्ट्रेट स्थित कार्यालय, जहां दो सब रजिस्ट्रार हैं। यहां सब रजिस्ट्रार प्रथम के पद पर एके त्रिपाठी और सब रजिस्ट्रार द्वितीय के पद पर विजय कुमार पांडे फिलहाल नियुक्त हैं।
इनके अतिरिक्त मांट, छाता और महावन तहसीलों के रजिस्ट्री कार्यालयों में एक-एक सब रजिस्ट्रार की तैनाती रहती है।
सदर तहसील के सब रजिस्ट्रार प्रथम एके त्रिपाठी के स्टाफ में नवल, देव, आरिफ, अतुल, राजू, रवि, शंकर और रजा कार्यरत हैं जबकि सब रजिस्ट्रार द्वितीय के अधीन हैं हेमवीर, केके, नेत्रपाल, यामीन, राहुल तथा विजय।
घोर आश्चर्य की बात यह है कि एक दर्जन से अधिक इन नामों में से कोई ऐसा नहीं है जो सरकारी मुलाजिम हो, या जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थायी अथवा अस्थायी तौर पर नियुक्ति दी हो लेकिन ये रजिस्ट्री कार्यालय में इस शान के साथ कुर्सी पर काबिज मिलेंगे जैसे सरकारी दामाद हों।
कार्यालय के अलग-अलग पटल पर बैठे ये अवैध मुलाजिम एक ओर जहां बड़ी बेशर्मी के साथ हर जायज काम के लिए भी खुलेआम रिश्वत मांगते हैं वहीं तमाम नाजायज काम करके सरकार को प्रति माह करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि पहुंचाते हैं।
रिश्वत मांगने या कहें कि पैसा झपटने में ये अवैध कर्मचारी इतने माहिर हैं कि काम कैसा भी और किसी का भी हो, इनको भेंट दिए बिना न तो कोई काम करा सकता है और न इनकी नजरों से बच के आ सकता है।
सामान्य तौर पर किसी तृतीय या चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारी को जितना वेतन महीने में एकबार मिलता है, उतना तो रजिस्ट्री कार्यालय का एक-एक अवैध कर्मचारी हर रोज अपनी जेबों में भरकर ले जाता है।
जाहिर है कि भ्रष्टाचार से होने वाली ये वो कमाई है जो ऊपर तक हिस्सा पहुंचाने के बाद बचती है और जिस पर सिर्फ और सिर्फ अवैध कर्मचारी का हक होता है। ऐसे में इनके अधिकारियों की अकूत कमाई का अंदाज लगाना कोई मुश्किल काम नहीं।
योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली का मुख्य रजिस्ट्री कार्यालय तो एक उदाहरण है अन्यथा बात करें जनपद की बाकी तीन तहसीलों के रजिस्ट्री कार्यालयों की या फिर प्रदेश भर के रजिस्ट्री कार्यालयों की, तो सब जगह कमोबेश स्थितियां यही मिलेंगी। यानी हर जगह भ्रष्टाचार के ठेके बेखौफ और बेझिझक चलते मिलेंगे, वो भी उस योगीराज में जिसने भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अख्तियार की हुई है और जिसे सख्ती से लागू करने की बात कहकर 2022 में भी वापसी की है।
मथुरा या प्रदेश के किसी भी रजिस्ट्री कार्यालय में अवैध कमाई के कितने रास्ते होते हैं और किसकी कितनी कीमत तय है, इसका विस्तृत विवरण अगली बार…
कौन उठाता है भ्रष्टाचार का ये ठेका, और कौन करता है अवैध नियुक्तियां
रजिस्ट्री कार्यालय के ही सूत्र बताते हैं कि यहां अवैध तौर पर कार्यरत कर्मचारियों की जानकारी यूं तो सभी उच्च अधिकारियों को है किंतु इनकी नियुक्तियों में प्रमुख भूमिका सहायक स्टांप आयुक्त की होती है जो विकास प्राधिकरण में बैठते हैं।
जाहिर है कि सब रजिस्ट्रारों की सहमति के बिना या उनकी जानकारी के बगैर ये नियुक्तियां संभव नहीं हैं लिहाजा वो दूध के धुले नहीं हो सकते।
सूत्र बताते हैं कि किसी भी उच्च प्रशासनिक अधिकारी का कभी रजिस्ट्री कार्यालय में आकस्मिक निरीक्षण के लिए न आना और न अवैध नियुक्तियों को लेकर कभी किसी जिम्मेदार अधिकारी से कोई जवाब तलब करना, यह समझने के लिए काफी है कि स्थितियां किस हद तक बिगड़ी हुई हैं।
इसे यूं भी समझा जा सकता है सर्वाधिक कमाई वाले सरकारी विभागों में शुमार रजिस्ट्री कार्यालय के अवैध कर्मचारी ही अधिकारियों की वो दुधारू गाय हैं जो हर रोज उनके साथ-साथ विकास प्राधिकरण को भी मोटी कमाई करने तथा कमाई के नए-नए ‘ठिकाने’ तलाश कर देते हैं।
किसी भी जिले में कलक्ट्रेट वो जगह होती है जहां पुलिस व प्रशासन के आला अफसर बैठते हैं। यहीं से आमजन को न्याय मिलता है, किंतु जब पूरे कुएं में भी भांग घुली हो तो किससे शिकायत और कैसी शिकायत।
कहते हैं मथुरा तीन लोक से न्यारी है। शायद इसीलिए कभी एक ‘रामवृक्ष यादव’ नाम का दुबला-पतला शख्स अपने गुर्गों के साथ यहां आया था और सरकारी जवाहर बाग की सैंकड़ों एकड़ बेशकीमती जमीन पर वर्षों काबिज रहा।
इसी कलक्ट्रेट पर ऐसे ही बड़े-बड़े अधिकारियों की नाक के नीचे उसने जवाहर बाग में नंगा नाच किया, और जब उच्च न्यायालय की सख्ती के बाद अधिकारी उसे अवैध कब्जे से बेदखल करने पर मजबूर हुए तो दो पुलिस अफसरों को जान गंवानी पड़ी।
आज बेशक कोई सरकारी जमीन किसी के अवैध कब्जे में न सही किंतु वैध को अवैध तथा अवैध को वैध बताकर लोगों को खुलेआम लूटने और सरकारी खजाने को चूना लगाने का खेल बदस्तूर जारी है।
साथ ही जारी है एक ऐसे प्रदेश में अवैध नियुक्तियों के जरिए भ्रष्टाचार को ठेके पर उठाने का कारनामा, जहां नौकरी के लिए लाखों युवा दर-दर की ठोकरें खाते देखे जा सकते हैं।
यह सब इसलिए हो पा रहा है क्योंकि शिकवा-शिकायत के बावजूद भ्रष्टाचार के इन ठेकेदारों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता। बिगड़ना तो दूर, कोई यह तक पूछने वाला नहीं कि भ्रष्टाचार को ठेके पर देने की कारस्तानी किसकी शह पर तथा किसकी कलम से हो रही है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी