शनिवार, 29 जून 2024

24 फरवरी 2015 को Legend News में लिखा गया था ये लेख: कुमार स्वामी... साधु या शैतान?


 सुना है पहले बड़े ही सुनियोजित तरीके से ठगों के गिरोह ठगाई का अपना धंधा किया करते थे। मसलन जैसे कोई व्‍यक्‍ति पशु पैंठ से गाय खरीद कर लाया। रास्‍ते में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर मौजूद गिरोह का एक सदस्‍य उससे पूछता था- अरे भाई, यह गधा कितने का खरीदा?

गाय को गधा बताये जाने पर पहले तो वह आदमी चौंककर कहता है कि क्‍या अंधे हो भाई... यह गधा नहीं गाय है, लेकिन रास्‍ते में जब तमाम लोग यही सवाल करते मिलते तो गाय लाने वाले को अपने ऊपर ही शक हो जाता था और वह सोचने लगता कि हो न हो मैं ही मूर्ख बन आया हूं। गांव पहुंचूंगा इसे लेकर तो बड़ी बदनामी होगी, साथ ही मजाक भी उड़ेगा लिहाजा वह खुद भी गाय को गधा मानकर रास्‍ते में ही कहीं चुपचाप छोड़कर चल देता था और पीछे से ठग उस गाय को ले उड़ते थे।

समय के साथ ठगाई का तरीका भले ही बदल गया हो लेकिन धंधा आज भी जारी है। यकीन न हो तो 'स्‍वयंभू ब्रह्मर्षि' कुमार स्‍वामी' के संदर्भ में छपा अखबार का एक विज्ञापन देख लो।

एक अखबार में जैकेट पेज विज्ञापन छपा है। यह विज्ञापन मथुरा के वृंदावन में कुमार स्‍वामी द्वारा 12 व 13 जुलाई को आयोजित 'प्रभु कृपा दुख निवारण समागम' का है। 'स्‍वयंभू ब्रह्मर्षि' कुमार स्‍वामी के इस विज्ञापन में नेशनल हाईवे नंबर दो के पास वृंदावन के ही चौमुहां क्षेत्र अंतर्गत श्री राधा-कृष्‍ण का एक विशाल मंदिर बनाये जाने की घोषणा की गई है। 108 एकड़ भूमि पर प्रस्‍तावित इस मंदिर के निर्माण में दो हजार किलो सोना इस्‍तेमाल करने की बात लिखी है।

इस मंदिर के उद्देश्‍य और इसके ऊपर होने वाले खर्च पर चर्चा बाद में, पहले इसी विज्ञापन में किए गये दूसरे दावों की बात

विज्ञापन में 'दिव्‍य पाठ से आई जीवन में खुशहाली' शीर्षक से करीब डेढ़ दर्जन लोगों के अनुभव प्रकाशित कराये गये हैं। इन लोगों में युवक-युवतियों एवं महिला-पुरुषों के अलावा दो बच्‍चों के भी फोटो लगे हैं।

इन तथाकथित निजी अनुभवों के माध्‍यम से दावा किया गया है कि ब्रह्मर्षि कुमार स्‍वामी द्वारा उपलब्‍ध कराये गये दिव्‍य पाठ से, उनके समागम में शामिल होने से तथा उनके द्वारा बताये गये अन्‍य उपायों से किस प्रकार उनके सारे कष्‍ट दूर हो गए।

इन कष्‍टों में एमबीबीएस करने के लिए एडमीशन से लेकर गोल्‍डमेडल हासिल होने तथा मनमाफिक नौकरी पाने से लेकर हार्ट की ब्‍लॉकेज समाप्‍त हो जाने तक का जिक्र है।

इतना ही नहीं, अखबार में छपे विज्ञापन के जरिए दावा किया गया है कि कुमार स्‍वामी की कृपा और उनके द्वारा बताये गये उपायों से किसी का लाइलाज ब्रेस्‍ट कैंसर पूरी तरह ठीक हो गया तो किसी की बच्‍चेदानी का कैंसर ठीक हो गया। ब्‍लड शुगर, ब्‍लड प्रेशर व थॉयराइड जैसी बीमारियां कुमार स्‍वामी की कृपा से खत्‍म होने का दावा विज्ञापन में दर्शाये गए लोगों के द्वारा कथित तौर पर किया गया है।

इसी विज्ञापन में 'मेडिकल साइंस हतप्रभ' शीर्षक से दावा किया गया है कि कुमार स्‍वामी द्वारा उपलब्‍ध कराये गये दिव्‍य पाठ के बाद जन्‍म से गूंगा व बहरा एक बच्‍चा बोलने व सुनने लगा तथा किसी कारण पूरी तरह आंखों की रोशनी गंवा चुके एक अन्‍य बच्‍चे की आंखें पूरी तरह ठीक हो गईं और वह साफ-साफ देखने लगा। विज्ञापन के अनुसार गूंगे व बहरे बच्‍चे का इलाज पूर्व में पीजीआई चण्‍डीगढ़ से चल रहा था लेकिन वहां कोई लाभ नहीं हुआ।

विज्ञापन की मानें तो जहां मेडीकल साइंस असमर्थ हो गई, वहां कुमार स्‍वामी से उपलब्‍ध दिव्‍य पाठ ने चमत्‍कार कर दिखाया। यहां तक कि अनेक असाध्‍य रोगों का इलाज मात्र ईमेल के जरिए कर दिया।

लोगों को प्रभावित करने के लिए विज्ञापन में एक ओर जहां आज देश के प्रधानमंत्री व गुजरात के पूर्व मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी तथा मथुरा की सांसद एवं सुविख्‍यात अभिनेत्री हेमा मालिनी का कुमार स्‍वामी को लेकर तथाकथित संदेश भी छापा गया है वहीं दूसरी ओर अमेरिका के सीनेटरों से प्राप्‍त अंबेसेडर ऑफ पीस अवार्ड, न्‍यूयॉर्क स्‍टेट सीनेट से प्राप्‍त सम्‍मान, मॉरीशस के पीएम से प्राप्‍त एंजल ऑफ ह्यूमेनिटी अवार्ड  तथा ब्रिटेन की संसद से प्राप्‍त अंबेसेडर ऑफ पीस अवार्ड के फोटो प्रकाशित किये गये हैं। यह बात अलग है कि इन फोटोग्राफ्स की सत्‍यता को भी प्रमाण की जरूरत पड़ सकती है। जैसे नरेन्‍द्र मोदी और हेमा मालिनी का संदेश कब और किस संदर्भ में दिया गया था, दिया गया था भी या नहीं।

इन फोटोग्राफ्स को विज्ञापन में प्रकाशित करने के पीछे लोगों को प्रभावित करने के अलावा भी कोई दूसरा मकसद हो सकता है, यह समझ से परे है। हां, यह बात जरूर समझ में आती है कि प्रभावित क्‍यों और किसलिए किया जा रहा है।

स्‍पष्‍ट है कि पूर्व में कभी जिस तरह ठगों का सरगना गाय को गधा साबित करने के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत गिरोह के सदस्‍यों का इस्‍तेमाल किया करता था, ठीक उसी तरह आज के कुमार स्‍वामी अपने तथाकथित भक्‍तों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं जो वास्‍तव में उनके गिरोह का ही हिस्‍सा हैं अन्‍यथा क्‍या ऐसा संभव है कि जन्‍म से गूंगा-बहरा कोई ऐसा बच्‍चा जिसे ठीक करने में मेडीकल साइंस भी असमर्थ हो, उसे कुमार स्‍वामी ने ठीक कर दें। क्‍या ऐसा संभव है कि लाइलाज कैंसर का इलाज और ब्‍लड शुगर व ब्‍लड प्रेशर को कुमार स्‍वामी हमेशा के लिए ठीक कर सकें। मनमाफिक नौकरी पाने की बात हो या परीक्षा में मनमाफिक अंक प्राप्‍त करने की, सबकुछ कुमार स्‍वामी करवा सकते हों।

सूरदास के भक्‍तिपदों में एक पद है-

चरण-कमल बंदौ हरि राई।

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अंधे को सब कुछ दरसाई।।

बहिरौ सुनै मूक पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई।

'सूरदास' स्वामी करूणामय, बार-बार बन्दौं तेहि पाई।।

सूरदास ने अपने भक्‍ति पदों की रचना भगवान कृष्‍ण के संदर्भ में की है जबकि सूरदास प्रत्‍यक्षत: स्‍वयं मृत्‍युपर्यन्‍त दृष्‍टिहीन ही रहे और सूरदास नाम भी जन्‍मांध लोगों का पर्याय बन गया। लेकिन यहां तो सब-कुछ ब्रह्मर्षि कुमार स्‍वामी की कृपा से संभव बताया जा रहा है।

बेशक धर्म की आड़ में लोगों को ठगने का धंधा करने वाले आज हर धर्म में सक्रिय हैं और कोई धर्म इस प्रकार के धंधेबाजों से अछूता नहीं रह गया है लेकिन कुमार स्‍वामी के विज्ञापन की चर्चा इसलिए जरूरी है क्‍योंकि यह कुछ समय पूर्व इसी तरह यमुना को शुद्ध करने का बीड़ा मथुरा में उठा चुके हैं। तब इन्‍होंने एक बड़ी धनराशि अपनी ओर से यमुना शुद्धीकरण के लिए दान देने का ऐलान यमुना पर संकल्‍प के साथ किया था लेकिन आज न उस धनराशि का कोई पता है और ना ही यमुना शुद्धीकरण के लिए उठाये गये संकल्‍प का। हां, उसके साथ ही कुमार स्‍वामी के संस्‍थान की वेबसाइट पर यमुना शुद्धीकरण के लिए यथासंभव दान देने की अपील जरूर शुरू कर दी गई थी। उसके माध्‍यम से कितना दान मिला, और कुमार स्‍वामी द्वारा यमुना के लिए दान की गई भारी-भरकम रकम का क्‍या हुआ, कुछ नहीं पता।

अब कुमार स्‍वामी ने 108 एकड़ में दो हजार किलो सोने से जड़ा राधाकृष्‍ण का मंदिर बनाने की घोषणा की है।

यदि 25 हजार रुपया प्रति दस ग्राम सोने की कीमत से दो हजार किलो सोने का भाव कैलकुलेट किया जाए तो यह रकम बैठती है पांच सौ करोड़ रुपया। पांच सौ करोड़ रुपए का सोना और उसके अलावा 108 एकड़ नेशनल हाईवे से सटी हुई जगह की कीमत, फिर इतने बड़े मंदिर के निर्माण पर आने वाला खर्च आदि सब जोड़ा जाए तो यह रकम हजारों करोड़ बैठेगी।

यहां सवाल यह पैदा होता होता है कि कुमार स्‍वामी के पास इतनी रकम पहले से है या यह उगाही जानी है। यदि पहले से है तो आई कहां से।

नहीं है तो क्‍या मंदिर के निर्माण की घोषणा और उसके लिए अखबार में दिये गये लाखों रुपये कीमत के विज्ञापन का मकसद उसी प्रकार धन की उगाही करना है जिस प्रकार यमुना शुद्धीकरण के नाम पर कुछ समय पूर्व शुरू किया था।

एक अन्‍य सवाल यहां यह भी है कि 12-13 जुलाई को वृंदावन क्षेत्र में आयोजित प्रभु कृपा दुख निवारण समागम या अन्‍य स्‍थानों पर होते आ रहे ऐसे ही दूसरे समागम क्‍या नि:शुल्‍क होते हैं अथवा इनमें शामिल होने की कोई फीस वसूली जाती है। विज्ञापन के अनुसार उत्‍तर प्रदेश में कुमार स्‍वामी का यह 396वां समागम है। 395 इससे पहले विभिन्‍न स्‍थानों पर किये जा चुके हैं।

यदि यह समागम नि:शुल्‍क होते हैं तो इनके आयोजन के लिए भारी-भरकम खर्च कहां से आता है, कौन यह खर्च उठाता है और उसका इसके पीछे मकसद क्‍या है।

जाहिर है कि इन सभी प्रश्‍नों का जवाब कुमार स्‍वामी के दो पेज वाले 'जेकेट एड' से मिल जाता है परंतु धर्म की आड़ लेकर चल रहे ठगी के इस धंधे पर रोक लगाना आसान नहीं। हाल ही मैं साईं बाबा को लेकर उपजा विवाद इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

चूंकि धर्म ही सभी पापकर्मों के लिए सबसे बड़ी आड़ का काम कर सकता है इसलिए कुमार स्‍वामी जैसे लोग न केवल धर्म को धंधा बनाकर ऐश कर रहे हैं बल्‍कि देश व विदेश में मौजूद उस कालेधन को सफेद करने में लगे हैं जिनको बाहर निकालने में अब तक सरकारें भी असफल रही हैं।

पता नहीं क्‍यों सरकारों का ध्‍यान इस ओर नहीं जाता। यदि जाने लगे तो एक बड़ी मात्रा में कालेधन का पता और उसकी आड़ बने पूरे खेल का पर्दाफाश होते ज्‍यादा वक्‍त नहीं लगेगा। 

-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी            

बुधवार, 12 जून 2024

नयति की नियति को प्राप्‍त होने जा रहा है मथुरा का एक मशहूर हॉस्पिटल, चेयरमैन की विदेशी डिग्री भी चर्चा का विषय


 कॉर्पोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया ने कृष्ण की पावन स्थली मथुरा से 28 फरवरी 2016 को एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल का संचालन शुरू किया था। 'नयति' के नाम से खोले गए इस हॉस्पिटल का उद्घाटन देश के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के हाथों कराया गया। नेशनल हाईवे से सटी एक जमीन को लीज पर लेकर शुरू किए गए इस हॉस्पिटल ने बहुत कम समय में अच्‍छी खासी शोहरत हासिल कर ली लेकिन हॉस्पिटल की चेयरपर्सन नीरा राडिया का मकसद संभवत: कुछ और था, लिहाजा हॉस्पिटल के चर्चे इलाज से अधिक विवादों के कारण होने लगे। नीरा राडिया ने इन विवादों पर ध्‍यान देने की बजाय उन्‍हें दबाने में अधिक रुचि ली जिसके परिणाम स्‍वरूप मात्र चार साल में 'नयति' अपनी 'नियति' को प्राप्‍त हो गया। आज इस हॉस्‍पिटल पर ताला लटका है। 

मथुरा का एक अन्य हॉस्‍पिटल भी अब उसी राह पर 
नयति की तरह ही नेशनल हाईवे के किनारे लीज की जमीन पर शुरू किया गया एक अन्य हॉस्‍पिटल भी अब उसी राह पर चल पड़ा है। बहुत कम समय में इस हॉस्‍पिटल ने भी प्रसिद्धि के साथ-साथ विवादों को जन्म देना प्रारंभ कर दिया है। इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और कि नयति की तरह ही इस हॉस्‍पिटल में भी एक ओर जहां मरीजों के परिजनों से रूखा व्‍यवहार करना, मनमाने पैसे वसूलना तथा गोपनीयता की आड़ लेकर इलाज की कोई जानकारी न देना एवं मरीज की स्‍थिति न बताने जैसी बातें काफी आम हो चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर नयति की तरह ही इस हॉस्‍पिटल में सेवारत डॉक्‍टर्स समय पर अपना वेतन पाने के लिए तरसने लगे हैं जिससे हॉस्‍पिटल के भविष्य का अनुमान लगाना कोई बड़ी बात नहीं रह गई। 
बताया जाता है हॉस्‍पिटल के लिए बैंक से प्राप्‍त कर्ज की किस्‍तें भी अब समय पर अदा नहीं की जा रही हैं।   
हॉस्‍पिटल के सूत्रों की मानें तो इस सबका एक बड़ा कारण संचालक द्वारा हॉस्‍पिटल से होने वाली आमदनी का बड़ा हिस्‍सा जमीनों की खरीद-फरोख्‍त में निवेश करना है ताकि एकमुश्‍त मोटी कमाई की जा सके। 
नयति सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की चेयरपर्सन नीरा राडिया और इस हॉस्‍पिटल के चेयरमैन में एक और बड़ी समानता है। सब जानते हैं कि नीरा राडिया शासन-प्रशासन में बने अपने रसूख का इस्‍तेमाल नयति या खुद के ऊपर लगे आरोपों को दबाने में करती रहीं, इसलिए नीरा राडिया के खिलाफ तमाम लोग मुंह खोलने को आसानी से तैयार नहीं होते थे। 
ठीक इसी तरह इस हॉस्‍पिटल के चेयरमैन भी पुलिस-प्रशासन के साथ-साथ सत्ता के गलियारों तक उठने-बैठने में रुचि रखते हैं, और उससे बने अपने प्रभाव का प्रयोग अपने अथवा हॉस्‍पिटल के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में कर रहे हैं। 
फर्क सिर्फ इतना है कि नीरा राडिया चिकित्सकीय पेशे से ताल्‍लुक नहीं रखती थीं जबकि ये महोदय इसी पेशे से ताल्लुक रखते हैं। हालांकि विदेश से प्राप्‍त इनकी डिग्री अच्‍छी-खासी चर्चा का विषय बनी हुई है। 
चेयरमैन की डिग्री को लेकर चर्चा क्यों? 
बताया जाता है चिकित्सकीय पेशे से जुड़े लोगों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की मथुरा इकाई में भी इस हॉस्‍पिटल के 'चेयरमैन डॉक्‍टर' की डिग्री चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि उन्‍होंने अपनी पढ़ाई भारत से न करके ऐसे देश से की है जो दुनिया में सबसे सस्‍ती चिकित्सकीय एजुकेशन देने के लिए पहचाना जाता है। 
यूं भी किसी दूसरे देश से डॉक्‍टरी की पढ़ाई पूरी करके आने वालों के लिए भारत में प्रेक्टिस शुरू करने से पहले फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (FMGE) की परीक्षा पास करनी होती है। 
क्या कहते हैं भारत के नियम-कानून 
भारत सरकार के नियमानुसार विदेश से MBBS की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने वाले डॉक्टर को पहले यहां फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (FMGE) की परीक्षा पास करनी पड़ती है और तभी वह यहां प्रेक्टिस करने के लिए अधिकृत माने जाते हैं। इस परीक्षा को पास किए बिना वे भारत में मेडिकल प्रैक्टिस नहीं कर सकते। उन्हें लाइसेंस ही नहीं मिलेगा, किंतु विदेश से पढ़कर आने वाले अधिकांश  डॉक्‍टर ऐसा नहीं करते क्योंकि इस परीक्षा को पास करने वालों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है। 
ये आंकड़े कुछ समय पहले नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस (NBE) द्वारा जारी किए गए हैं। NBE ही FMGE का आयोजन करती है। 
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई के लिए भी अब NEET अनिवार्य 
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वालों की योग्यता पर लगते रहे सवालिया निशानों से निजात पाने के लिए सरकार ने नियमों में बदलाव भी किया है। अब विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई  करने के इच्‍छुक छात्रों को भारत में NEET की परीक्षा पास करना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बाद भी केवल वही छात्र स्वदेश लौटकर मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए पात्र होंगे, जिन्होंने ऐसे देश से पढ़ाई की हो जहां भारत के समकक्ष मेडिकल की पढ़ाई होती हो। 
दरअसल, कई देश ऐसे हैं जहां डॉक्‍टर को दी जाने वाली डिग्री वहां भी मान्य नहीं होती, या सीमित चिकित्सकीय कार्य के लिए मान्य होती है। 
IMA मथुरा का क्या कहना है? 
IMA मथुरा के अध्‍यक्ष डॉक्‍टर मनोज गुप्‍ता से Legend News ने जब ये जानकारी चाही कि मथुरा में ऐसे कितने डॉक्‍टर प्रेक्टिस कर रहे हैं जिन्‍होंने देश के बाहर से डिग्री ली है, तो उनका कहना था कि IMA मथुरा के पास ऐसी कोई सूची नहीं है। सीएमओ ऑफिस में रजिस्‍टर्ड डॉक्‍टर्स को IMA की सदस्यता दे दी जाती है। 
अलबत्ता डॉक्‍टर मनोज गुप्‍ता ने इतना जरूर माना कि समय-समय पर ये मुद्दा IMA की बैठकों में उठाया जाता रहा है किंतु किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा। इसका कारण IMA में होने वाले वार्षिक चुनाव बताए जाते हैं। चूंकि IMA के पदाधिकारियों को अल्‍प अवधि के लिए चुना जाता है इसलिए कोई पदाधिकारी इस गंभीर मुद्दे पर ठोस निर्णय नहीं ले पाता। ये भी कह सकते हैं कि वो किसी विवाद में पड़ कर अपने लिए मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता। 
इस संबध में और जानकारी करने पर इतना पता जरूर लगा कि IMA मथुरा के ही एक पूर्व पदाधिकारी ने कुछ समय पहले मुख्‍यमंत्री के पोर्टल पर शिकायत कर विदेश से डिग्री लेकर आए डॉक्‍टर्स द्वारा गैर कानूनी तरीके से प्रेक्‍टिस किए जाने का मुद्दा उठाया था, जिसे सीएमओ मथुरा को रेफर भी किया गया लेकिन तत्कालीन सीएमओ मथुरा ने उसे भी 'भुना' लिया और कोई कार्रवाई नहीं की। 
वर्तमान सीएमओ मथुरा क्या बताते हैं? 
मथुरा के वर्तमान सीएमओ से जब इस मुतल्लिक बात की गई तो उनका कहना था कि विदेश से डॉक्‍टर की डिग्री लेकर आने वालों द्वारा भारत में कहीं भी प्रेक्‍टिस किए जाने की जानकारी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया या मेडिकल एजुकेशन से जुड़े विभागों को ही होती है। हमारे पास तो वही लिस्ट होती है जो IMA के पास रहती है। 
IMA मथुरा में कुल कितने डॉक्‍टर पंजीकृत हैं? 
एक अनुमान के अनुसार IMA मथुरा के सदस्‍य डॉक्‍टरों की संख्‍या लगभग चार सौ के करीब है। इसमें वो डॉक्‍टर भी शामिल हैं जो विदेश से डिग्री लेकर आए हैं और वो भी जो विभिन्न कारणों से प्रेक्टिस करने के पात्र नहीं हैं। 
ऐसे डॉक्‍टर खुद भी इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि वो प्रेक्टिस करने के लिए अधिकृत नहीं हैं इसलिए कहीं वो संचालक का चोला ओढ़कर काम कर रहे हैं तो कहीं चेयरमैन या चेयरपर्सन बनकर। 
लीज की जमीन पर हॉस्‍पिटल का संचालन कर रहे उसके चेयरमैन चिकित्सक को भी कभी किसी का उपचार करते नहीं देखा गया जबकि वो सर्जन बताए जाते हैं।  
विदेश से डिग्री लेकर आने वाले इन डॉक्‍टर्स और गैरकानूनी तरीके से प्रेक्टिस कर रहे डॉक्‍टर्स की जानकारी देने को कोई इसलिए भी तैयार नहीं है क्‍योंकि IMA मथुरा के कुछ सदस्‍य ऐसे भी हैं जिनका संरक्षण गैरकानूनी तरीके से प्रेक्टिस कर रहे इन डॉक्‍टर्स को प्राप्‍त है और वो निजी स्‍वार्थवश उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होने देना चाहते। 
बेशक काबिल डॉक्‍टर्स का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि इन तत्वों के खिलाफ ठोस एक्शन हो जिससे वो उस जमात में अलग से पहचाने जा सकें किंतु फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा। 
चिकित्‍सकीय पेशे के लिए कलंक बना कॉर्पोरेट कल्चर 
कोई भी डॉक्‍टर जिसने अपनी मेहनत एवं लगन और मरीजों के प्रति अपने प्रोफेशनल एथिक्स के बूते समाज में जगह बनाई है, वह कभी नहीं चाहता कि उसका कोई मरीज या उसके परिजन उसकी सेवा से असंतुष्ट होकर जाएं, लेकिन इसके उलट जिन्‍होंने इस पेशे को कार्पोरेट कल्चर में ढाल रखा है उनके लिए अधिक से अधिक कमाई ही उनका एकमात्र ध्‍येय होता है। 
यही कारण है कि मथुरा जैसे छोटे से शहर में आए दिन किसी न किसी हॉस्‍पिटल से कोई न कोई विवाद सामने आता रहता है, और इस स्‍थिति से जनसामान्‍य के साथ-साथ काफी बड़ी संख्‍या में स्‍थानीय डॉक्‍टर्स भी परेशान हैं। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि बिल्‍ली के गले में घंटी बांधे कौन? 
और यदि कोई ये घंटी बांधने का दुस्साहस कर भी ले तो क्या गारंटी है कि उसके बाद कार्रवाई होगी। जैसे कि मुख्‍यमंत्री पोर्टल पर शिकायत करने के बाद भी नहीं हो सकी। 
जैसे कि IMA से लेकर CMO तक, ये तो स्वीकार कर रहे हैं कि गैरकानूनी तरीके से प्रेक्‍टिस और कॉर्पोरेट कल्चर से हॉस्‍पिटल चलाने वालों की संख्‍या अच्‍छी-खासी है किंतु वो उनका नाम सार्वजनिक करने को तैयार नहीं। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी
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