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रविवार, 21 जुलाई 2024
यूपी में बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच सीएम योगी को खुला खत: मूल समस्या के कारण और निवारण...
लोकसभा चुनाव 2024 में अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाने के बाद से यूपी की राजनीति एक गंभीर उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। कोई इसके लिए गोरखनाथ पीठ के महंत और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर उंगली उठा रहा है तो कोई भाजपा के अंदरूनी कलह को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहा है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में चूक कर दी। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक चुनाव परिणामों की समीक्षा बैठकों के साथ कयासों का दौर भी जारी है। फिलहाल, पार्टी का फोकस उपचुनावों पर है और ऐसा माना जा रहा है कि इन चुनावों के नतीजे स्थिति को कहीं ज्यादा स्पष्ट कर देंगे लिहाजा अनुमान है कि उसके उपरांत हाईकमान कोई बड़ा तथा ठोस निर्णय ले।
बहरहाल, राजनीति की उलटबांसियां अपनी जगह किंतु जन आकांक्षाएं और जनभावनाएं अपनी जगह। राजनेताओं के लिए जनता ही अंतत: जनार्दन साबित होती है क्योंकि उसी के मत से सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। नेता चाहे जितनी चालें चल लें परंतु वोट की चोट उसे अहसास करा ही देती है कि तुरुप का इक्का किसके हाथ है।
ऐसे में जनअपेक्षाओं तथा जनभावनाओं का जानना बहुत जरूरी होता है। जो पार्टी या नेता इससे अनभिज्ञ रहता है, उसके लिए अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल होता है। यूपी की जनता भी कुछ यही इशारे कर रही है। समय रहते समझ में आ जाएं तो ठीक अन्यथा 2027 बहुत दूर नहीं है।
2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर यूपी के लोगों की भावनाएं और उनकी अपेक्षाएं क्या हैं, उसे लेकर पेश है सीएम योगी के सामने एक खुला खत-
माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार योगी आदित्यनाथ जी! आपकी निष्ठा, कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, नैतिकता, मेहनत तथा लगन को लेकर शायद ही किसी को कोई शक हो किंतु इसमें भी दोराय नहीं है कि भ्रष्टाचार के बाबत जिस जीरो टॉलरेंस की नीति का ढिंढोरा आपकी सरकार द्वारा 2017 में पीटा गया वह आज सात साल की सत्ता के बावजूद निरर्थक साबित हो रहा है।
माननीय मुख्यमंत्री जी, क्या आपको ज्ञात है कि आपकी भ्रष्टाचार को लेकर अपनाई गई जीरो टॉलरेंस की नीति प्रदेश के अधिकारी एवं कर्मचारियों के लिए बेहद मुफीद साबित हुई है क्योंकि उसे नौकरशाही ने अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया है।
आज स्थिति यह है कि उसी जीरो टॉलरेंस नीति के बहाने अधिकारी एवं कर्मचारी पहले से अधिक रिश्वत यह कहकर वसूल करते हैं कि सरकार सख्त है इसलिए रिस्क भी अधिक है।
योगी जी! क्या आपको पता है कि रिश्वत के लिए सर्वाधिक बदनाम पुलिस महकमे की बात छोड़ भी दें तो आवास-विकास, विकास प्राधिकरण, बिजली विभाग, उद्योग, लोक निर्माण विभाग से लेकर परिवहन, तहसील, सिंचाई और शिक्षा तक में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
बेशक ये विभाग सदा से भ्रष्ट थे, और पूर्ववर्ती सरकारों में इनके अधिकारी एवं कर्मचारियों का आमजन के प्रति रवैया खासा खराब था परंतु कड़वा सच यह है कि आज भी स्थित जस की तस है। इसमें कोई अंतर कहीं दिखाई नहीं देता। दिखाई देता है तो केवल इतना कि नौकरशाह अब 'जीरो टॉलरेंस' की आड़ में जमकर टॉर्चर कर रहे हैं। यकीन न हो तो किसी भी एक विभाग को आप स्वयं चुन लीजिए, और उसकी सच्चाई जानिए। शर्त यह है कि किसी भी तरह आपके अभियान की भनक न लगे। गोपनीयता इसके लिए बेहद जरूरी है।
प्रदेश भर के सभी सरकारी विभागों में चल रहे भ्रष्टाचार के बड़े खेल का सिलसिलेवार ब्यौरा बाद में लेकिन उससे पहले वो सवाल जो जनता के मन में बैठे हैं और जिन्हें लेकर जनता आपसे बहुत उम्मीद लगाए बैठी थी परंतु नतीजा आज तक शून्य नजर आता है।
सबसे पहले बात लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की
माननीय मुख्यमंत्री जी! सर्वविदित है कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हजारों करोड़ रुपए का गोमती रिवर फ्रंट घोटाला हुआ। आपने अपनी पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने के साथ ये ऐलान किया था कि गोमती रिवर फ्रंट घोटाले का कोई अपराधी बच नहीं सकेगा और जल्द से जल्द सारे घोटालेबाज जेल के अंदर होंगे।
सीबीआई ने इस मामले में कुल 189 लोगों को आरोपी बनाया लेकिन आज तक सतही कार्रवाई के अलावा कुछ नहीं हुआ। अगर पकड़े भी गए तो वो लोग जिन्हें गुर्गे कहा जा सकता है। कोई भी सरगना या मास्टर माइंड आज तक गिरफ्त में नहीं आया। सच कहें तो आज वही आप पर और आपकी सरकार पर हमलावर हैं, लेकिन आप कुछ नहीं कर पा रहे। जनता जानना चाहती है कि ऐसा क्यों।
हजारों करोड़ रुपए का घोटाले करने वाले अब तक सरकार की पकड़ से दूर क्यों हैं और सरकार इसमें क्या कर रही है।
माननीय योगी जी! आप भली भांति जानते हैं कि कोई भी बड़ा घोटाला सत्ता का संरक्षण पाए बिना संभव ही नहीं है। सत्ता का संरक्षण किसी भी घोटाले को तब मिलता है जब सरकार पर काबिज लोगों के निजी स्वार्थ उससे पूरे होते हों, तो फिर आज तक गोमती रिवर फ्रंट घोटाले के संरक्षणदाताओं का क्यों कुछ नहीं बिगड़ा।
मायावती के कार्यकाल का नोएडा पार्क घोटाला
अखिलेश यादव के कार्यकाल से पहले मायावती के शासनकाल में नोएडा का पार्क घोटाला सामने आया। हजारों करोड़ रुपए के इस घोटाले में भी बड़े-बड़े लोगों की संलिप्तता सामने आई। इस पार्क में लगाए गए पत्थरों के हाथी और बहनजी की मूर्तियों पर किसी आम आदमी की सोच से भी परे जाकर पैसा खर्च किया गया। पहले अखिलेश यादव ने कहा कि इस घोटाले का कोई आरोपी बच नहीं सकेगा। फिर आपकी सरकार ने उम्मीद जगाई किंतु राजनीति के बियाबान में इस घोटाले की सच्चाई कहां खो गई, कुछ पता नहीं लगा।
आज बहिन जी राजनीतिक हैसियत भले ही पहले जितनी न रह गई हो लेकिन उनके ठाठ-बाट और शानो-शौकत में कोई कमी नहीं है। पत्थरों के बने बुत बोल पाते तो बताते कि घोटालेबाज आज भी मौज कर रहे हैं। सत्ता का संरक्षण उन्हें भी प्राप्त था, और क्यों प्राप्त था इसे अब दोहराने की दरकार नहीं रह गई।
आय से अधिक संपत्ति के मामले भी ठंडे बस्ते में
माननीय मुख्यमंत्री जी! इसी प्रकार कुछ कद्दावर नेताओं पर आय से अधिक संपत्ति के मामले दर्ज हुए थे। ये मामले कोर्ट-कचहरी तक भी पहुंचे किंतु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। आपकी सरकार कह सकती है कि कुछ को न्यायालय से राहत मिल गई और कुछ लंबित हैं, लेकिन सवाल यह भी है कि न्यायालय से राहत कैसे मिल गई। मामले अब तक लंबित क्यों है। इन मामलों में पर्याप्त पैरोकारी क्यों नहीं की जा रही, और की जा रही है तो उसकी स्थिति क्या है।
योगी जी! आप ही बताइए कि क्या ये सब जानने का जनता को कोई अधिकार नहीं है। क्या जनता को आपसे जो अपेक्षाएं थीं, वो गलत थीं। यदि वो सही थीं तो हजारों-हजार करोड़ रुपया डकार जाने वाले आज तक बेनकाब क्यों नहीं हुए। उल्टा क्यों आज तक वो आपको, आपकी नीतियों को, आपके काम को तथा आपकी पार्टी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।
शायद इसलिए कि उन्हें इसके लिए भरपूर मौका मिल रहा है। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि ये मौका कौन दे रहा है और क्यों दे रहा है।
पहले पत्र में इतना ही। बाकी ये सिलसिला जारी रहेगा ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए क्योंकि यूपी को 2027 के लिए भी आपसे बहुत उम्मीदें हैं। दरअसल, सवाल चुनावों में जीत-हार का नहीं उस भरोसे का है जो आपने दिया है और जो अभी टूटा नहीं है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
शनिवार, 13 जुलाई 2024
हरि अनंत हरि कथा अनंता: मान गए गुज्जू भाई आपको, जूता भी उनका... चांद भी उनकी... वो भी सरेआम
मान गए गुज्जू भाई आपको! वाकई कमाल की खोपड़ी पाई है ऊपर वाले से आपने। कल तक जो पानी-पी पीकर भरी सभाओं में आपको कोसा करते थे, वही आज पूरे टब्बर के साथ शिरकत करने जा पहुंचे। यहां तक कि जो बुढ़ऊ कोर्ट से कहते रहते हैं कि माई-बाप, तमाम बीमारियों ने घेर रखा है। हाथ-पैर काम नहीं करते। शरीर से लाचार हूं। व्हीलचेयर के सहारे जिंदगी सरक रही है, वह भी दोनों पैरों पर सरपट चलते दिखाई दिए। राजनीतिक कुनबे के दूसरे सदस्यों का हाल कुछ अलग नहीं रहा। कोई दरवाजे पर दांत निपोरते नजर आया तो कोई लाइन में लगा हुआ था। मीडिया से मुंह छिपाना आसान न रहा तो नजर चुराते हुए किसी ने कहा, हम तो आशीर्वाद देने आए हैं। कोई बोला, निमंत्रण था... बहुत इसरार किया इसलिए आना पड़ा।
पिता-पुत्र की एक जोड़ी तो दरवाजे पर खड़ी होकर ऐसे दांत निपोर रही थी जैसे ढोल-नगाड़े वाले न्योछावर पाने की फिराक में निपोरते हैं। शेर की खाल वाले ये गीदड़ कतई नमूने नजर आ रहे थे, लेकिन उन्हें इस बात का रत्तीभर घमंड नहीं था।
खप्पर हाथ में लेकर हर वक्त खून की प्यासी सी रहने वाली एक नेत्री भी जा पहुंचीं। दुश्मन दल के 'दोस्त' की मेहमान नवाजी ही कुछ ऐसी थी कि खुद के पहुंचने के बहाने भी खुद ही गढ़ लिए।
बिना टोपी के जिन्हें रात में नींद नहीं आती, उनकी टोपी नदारद नजर आई। अलबत्ता बाकी लिबास वही था, जो उनकी पहचान बन गया है। बीबी-बच्चे बेशक आयोजन की नजाकत समझ रहे थे इसीलिए मौके और दस्तूर के मुताबिक सज-संवर कर आए लेकिन भैया ने समारोह को भी सम्मेलन समझ लिया। शायद ये डर भी रहा होगा कि पार्टी के ड्रेस कोड से इतर कुछ पहन-ओढ़ लिया तो कहीं लोग पहचानने से ही इंकार न कर दें। कल को इतने भव्य आयोजन में गैर हाजिरी लग गई तो लोग पूछने लगेंगे कि भैया कहां रास्ता भटक गए। भाभी-बच्चे तो चहकते दिखाई दिए लेकिन आपका वो सिर, सिरे से गायब क्यों रहा जिस पर दिन-रात खास रंग की टोपी सुशोभित होती रहती है।
हाल ही में जीवन के 54 बसंत देख चुके चिर युवा नेता जी तो गुज्जू भैया की शान में इतने कसीदे पढ़ चुके हैं कि निमंत्रण मिलने पर उनकी स्थिति दयनीय सी हो गई। उनके और उनकी अम्मा के गले में अटक गया ये न्योता। समझ में ही नहीं आया कि उसे निगलें कि उगलें। आखिर एक उपाय सूझा कि फिलहाल पतली गली से विदेश यात्रा पर निकल लो। बाद की बाद में देखा जाएगा। अम्मा का क्या है, बुढ़िया भी है और बीमार भी। कोई न कोई बहाना बना ही देगी। रिटर्न गिफ्ट नहीं मिल सकेगा तो न सही। वैसे संभव है कि सोने-चांदी के वर्क लगे लड्डुओं का डिब्बा, मय रिटर्न गिफ्ट घर पर ही आ जाए। यूं तो अभी दो आयोजन और बाकी हैं, क्या पता अम्मा देर-सवेर हाजिरी लगा ही दे।
जनता का क्या है, अगले इलेक्शन तक सब भूल जाती है। फिर हमारी जात की बेशर्मी का कोई तोड़ है क्या किसी के पास। शैतान भी हमारे सामने पानी मांग जाता है। गुज्जू भाइयों को गरियाने का कोई नया बहाना तब तक ढूंढ लेंगे। और इस बात का भी कि हम देश को लूटने वाले कारोबारियों के यहां क्यों गए थे। कह देंगे कि हम तो अपनी हिस्सेदारी तय करने गए थे। जिसकी जितनी संख्या भारी... उतनी उसकी हिस्सेदारी। हर बार 99 के फेर में थोड़े ही फंसना है। किनारे से लग गए हैं तो कभी लहर भी आ ही जाएगी। हां, अफसोस इस बात का जरूर रहेगा कि शादी-ब्याह रचाया होता, बाल-बच्चे खेल-कूद रहे होते तो हर बात के लिए अम्मा का मुंह न ताकना पड़ता। बिना पूछे भी जाना हो सकता था। मीडिया वालों से मुंह छिपाकर निकलने में तो महारत हासिल है। जैसे बाकी बातों के लिए टरका देते हैं, वैसे ही इस मामले में भी टरका देते। वैसे हैं अब भी बड़ी उलझन में, इसलिए विदेश यात्रा बीच में छोड़कर आशीर्वाद देने जा पहुंचें तो कोई आश्चर्य नहीं।
अधेड़ उम्र वाले युवराज की सिपहसालारी करने वाले एक पूर्व मंत्री अपनी ओवरवेट बेगम के जा पहुंचे तो वायरल वीडियो के लिए कुख्यात कानूनविद ने भी मौका हाथ से नहीं निकलने दिया।
बहरहाल, अब सुनिए मुद्दे की बात। और मुद्दे की बात यह है कि गुज्जू भाइयों ने इस मौके पर सबकी लंका लगाने का प्लान लोकतंत्र के महापर्व की मझधार में ही बना लिया था। उन्होंने कानाफूसी करके उसी दौरान तय कर लिया था कि न्योते को लालायित इन सारे चिल्लरों को सपरिवार आमंत्रित करना है। गुज्जू भाइयों को अपनी अक्ल और इनकी बेअक्ली पर पूरा भरोसा था। उन्हें पता था कि न्योता मिलते ही ये सब लार टपकाते आ पहुंचेंगे क्योंकि बुनियादी रूप से तो सबकी जात एक ही है और इसी लिए एक ही हमाम में बैठे हैं।
गुज्जू भाइयों को बखूबी पता था कि इनका थूका हुआ इन्हीं की जीभ से चटवाने का इससे बेहतर अवसर दूसरा नहीं मिलेगा। चूंकि इन्होंने थूका भी था भरी सभाओं में तो चाटने के लिए भी इससे अच्छा मंच कौन सा होगा जहां देशी ही नहीं, विदेशी मेहमान भी इकठ्ठे हों।
अब वो मेहमान देश-दुनिया को बता सकेंगे कि गुज्जू भाइयों को दिन-रात गरियाने वालों की असली औकात है क्या। वो दिखा सकेंगे कि कभी किसी तरह पद या कुर्सी पा जाने से कूकुर की फितरत नहीं बदल जाती। नस्ल कोई भी क्यों न रही हो, मूल प्रवृत्ति तो वही रहती है।
गुज्जू भाई जानते हैं भोंकने के आदी ये लोग बेशक भोंकने से बाज अब भी नहीं आऐंगे, लेकिन अब अपने बचाव में भोंकेंगे। गौर कीजिएगा कि अब ये जब कभी भोंकना शुरू करेंगे तो इनकी दुम दबी होगी क्योंकि वही इस प्रजाति की कड़वी सच्चाई है जिसे गुज्जू भाई एक झटके में सामने ले आए। जय हिंद। जय भारत।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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