शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

सबूत सहित जानिए: क्या वाकई यूपी के बिजली विभाग ने ऊर्जा मंत्री और योगी सरकार की सुपारी ले रखी है?


 क्या वाकई यूपी के बिजली विभाग ने ऊर्जा मंत्री और योगी सरकार की सुपारी ले रखी है? ये सवाल इसलिए क्योंकि बीती 23 जुलाई को ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने लखनऊ के शक्ति भवन में हुई समीक्षा बैठक के दौरान अधिकारियों को जमकर फटकारा था। इस समीक्षा बैठक में विभाग के चेयरमैन से लेकर अधिशासी अभियंता स्‍तर तक के अधिकारी शामिल थे।  

ऊर्जा मंत्री ने अधिकारियों से कहा कि आप लोग आंख-कान बंद किए बैठे हैं जबकि जनता बिजली न आने से परेशान है। उन्होंने यहां तक बोला कि हमारी सरकार कोई दुकान नहीं चला रही कि जिसमें हमें सिर्फ वसूली की चिंता हो, हमारे लिए यह एक जनसेवा है और हमें उसी के अनुरूप काम करना होगा। ऊर्जा मंत्री ने अधिकारियों को फील्ड में जाने के निर्देश भी दिए। मंत्री महोदय ने कहा कि आपके गलत आचरण का खामियाजा पूरा प्रदेश भुगत रहा है। 

इस समीक्षा बैठक के चार-पांच दिन बाद मंत्री महोदय के एक्स हैंडिल से लिखा गया कि विभाग के कुछ अधिकारी एवं कर्मचारियों ने ऊर्जा मंत्री की ''सुपारी'' ले रखी है। यही नहीं, सोशल साइट पर यह भी लिखा गया कि कुछ अधिकारी और कर्मचारी अराजक तत्वों के साथ मिलकर बिजली विभाग को बदनाम करने में लगे हैं। 

गौरतलब है कि यूपी के ऊर्जा मंत्री खुद गुजरात कैडर के एक नौकरशाह रहे हैं और इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफी करीबी तथा भरोसेमंद माने जाते हैं। अब जरा अंदाज लगाइए कि पीएम का नजदीकी कोई पूर्व नौकरशाह जब अपने विभागीय अधिकारियों पर इतने संगीन आरोप लगा रहा हो तो उसके मायने कितने गंभीर हो सकते हैं। गंभीर इसलिए भी कि जो व्‍यक्‍ति स्‍वयं नौकरशाह रहा हो, वह नौकरशाहों की सभी कारगुजारियों से भली-भांति परिचित तो होगा ही।  

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बोले 

ऊर्जा मंत्री की समीक्षा बैठक और एक्स हैंडिल पर लिखी गई उनकी पोस्ट के बीच गत 25 जुलाई को सीएम योगी आदित्यनाथ ने ऊर्जा विभाग की उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक के दौरान स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रदेश में बिजली व्यवस्था अब केवल तकनीकी या प्रशासनिक विषय नहीं, बल्कि जनता के भरोसे और शासन की संवेदनशीलता का पैमाना बन चुकी है। 

सीएम योगी ने अफसरों को दो टूक शब्दों में कहा कि ट्रिपिंग, ओवरबिलिंग और अनावश्यक कटौती अब किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं की जाएगी, सुधार करना ही होगा। इसके साथ ही सीएम ने कहा कि लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मुख्यमंत्री ने ट्रिपिंग की लगातार आ रही शिकायतों पर गहरी नाराजगी जताई और निर्देश दिया कि प्रत्येक फीडर की तकनीकी जांच हो, कमजोर स्थानों की पहचान कर तुरंत सुधार कराया जाए। 

मुख्यमंत्री ने ऊर्जा विभाग के अधिकारियों से कहा कि संसाधनों की कोई कमी नहीं है। सरकार ने बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण को मजबूत करने के लिए रिकॉर्ड बजट उपलब्ध कराया है। ऐसे में किसी भी स्तर पर लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सभी डिस्कॉम के प्रबंध निदेशकों से उनके क्षेत्रों की आपूर्ति की स्थिति जानने के बाद मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि हर स्तर पर जवाबदेही तय की जाए। 

अचानक नाराज नहीं हुए ऊर्जा मंत्री और मुख्‍यमंत्री

ऊर्जा मंत्री और मुख्‍यमंत्री की बिजली विभाग के अधिकारियों को लेकर यह नाराजगी किसी एक दिन की कुव्यवस्‍था का परिणाम नहीं है। यह लंबे समय से चली आ रही अधिकारियों की लापरवाह कार्यप्रणाली से उपजा आक्रोश है। लेकिन घोर आश्चर्य की बात है कि विभागीय मंत्री तथा मुख्‍मंत्री की इतनी कठोर टिप्‍पणियों के बावजूद अधिकारी हैं कि सुधरने का नाम नहीं ले रहे। 

कृष्‍ण की नगरी मथुरा इसका बड़ा उदाहरण 

उदाहरण के तौर पर यूपी के अत्यंत महत्वपूर्ण जनपदों में शुमार मथुरा के बिजली अधिकारियों की कार्यशैली देखी जा सकती है। 

उल्लेखनीय है कि मथुरा न केवल भाजपा के लिए राजनीतिक दृष्‍टि से एक अहम जिला है बल्कि धार्मिक नजरिए से भी विश्व पटल पर विशिष्ट स्थान रखता है। यहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु विभिन्न स्‍थानों का भ्रमण करने तथा अपने आराध्य के दर्शन करने आते हैं। 

योगी सरकार के सबसे पहले कार्यकाल में मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के विधायक पंडित श्रीकांत शर्मा को ही प्रदेश के ऊर्जा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था, और तब उन्‍होंने पूरे पांच साल बहुत अच्छे तरीके से बिजली की व्यवस्था को संभालने का काम किया था। प्रदेश की जनता आज उनके कार्यकाल को याद करती है। लेकिन अब अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसी व्‍यवस्था पर ऊर्जा मंत्री अरविंद शर्मा से लेकर मुख्‍यमंत्री योगी तक नाराजगी जता रहे हैं।  

कहने के लिए तो मथुरा में बिजली विभाग के सुपरिटेंडिंग इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर तक तैनात हैं किंतु उनके पास जनता तो छोड़िए, पत्रकारों तथा विधायकों की भी बात न तो सुनने का समय है और न उनके किसी मैसेज का जवाब देने का। सबूत के साथ बानगी देखिए-  

ये वो मैसेज हैं जो Legend News की ओर से चीफ इंजीनियर (CE) तथा सुपरिंटेंडेट इंजीनियर (SE) को समय-समय पर भेजे गए। इन वाट्सऐप मैसेज में समय का काफी अंतर होने के बाद भी अधिकारियों की कार्यप्रणाली में कोई अंतर नजर नहीं आता। 
मैसेज डिलीवर होने पर भी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया न देना इस बात को साबित करता है कि इन अधिकारियों को किसी का कोई खौफ नहीं है। इन्‍हें योगी सरकार के उन आदेश-निर्देशों की भी परवाह नहीं है जिसके तहत बार-बार कहा जाता है कि हर फोन तथा मैसेज का जवाब देना जरूरी है और तत्काल जवाब न दे पाने की स्‍थिति में समय मिलने पर संपर्क साधना आवश्यक है। 
जाहिर है कि ये और इन जैसे प्रदेश के तमाम अधिकारी आश्‍वस्‍त हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यहां तक कि मंत्री और मुख्‍यमंत्री भी। यदि ऐसा नहीं होता तो नौकरशाहों की इतनी हिमाकत नहीं होती, और न ये इतने बेलगाम होते कि मंत्री तथा मुख्‍यमंत्री की नाराजगी से भी इनके कानों पर जूं नहीं रेंगती। 
यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि मथुरा में तैनात इन अधिकारियों सहित प्रदेशभर के बहुत से अधिकारियों का ऐसा दुस्‍साहस तभी संभव है जब वो जानते हों कि मंत्री और मुख्‍यमंत्री कहीं न कहीं इतने मजबूर हैं कि वो घुड़की तो दे सकते हैं, एक्शन नहीं ले सकते। वर्ना यदि एक-दो ऐसे अफसरों पर भी समुचित एक्शन हुआ होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। 
एक्शन हुआ होता तो न ऊर्जा मंत्री इतने असहाय दिखाई देते और न मुख्‍यमंत्री को नाराजगी जाहिर करनी पड़ती। 2027 के विधानसभा चुनाव बहुत दूर नहीं हैं। समय रहते यदि योगी सरकार नहीं चेती, तो इसका भाजपा को बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी  

शुक्रवार, 8 अगस्त 2025

मथुरा-वृंदावन नगर निगम का RDF घोटाला: करोड़ों के खेल में आखिर कितने हिस्सेदार?

 


नगर निगम मथुरा-वृंदावन में हुए RDF घोटाले की शिकायत यूं तो विभागीय मंत्री अरविंद कुमार शर्मा तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंच चुकी है, किंतु यहां बड़ा सवाल यह है कि करोड़ों के इस घोटाले में शामिल लोगों को आखिर कौन और क्यों बचा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं घोटाले में कुछ ऐसे विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारी भी हिस्सेदार हों, जिनके ऊपर घोटाले को सामने लाने की जिम्मेदारी बनती है। 

ये गंभीर सवाल इसलिए उठ खड़े हुए हैं क्योंकि नगर निगम ने इस पूरे कांड की प्रमुख किरदार कंपनी के साथ "नोटिस-नोटिस" का खेल तो खूब खेला लेकिन उसे बैक डोर से न सिर्फ भुगतान किया जाता रहा बल्कि शेष भुगतान को भी दिलाए जाने की व्यवस्था की जा रही है।  

गौरतलब है कि दयाचरण एंड कंपनी को वर्ष 2023 में नगर निगम मथुरा-वृंदावन ने कूड़े के निस्‍तारण का ठेका दिया लेकिन ठेका हासिल करने वाली यह कंपनी शुरू से ही अपने काम में बेहद लापरवाह रही नतीजा जहां-तहां काफी कूड़ा एकत्र होता रहा। \

जैसे-तैसे जब कंपनी पर काम पूरा करने का दबाव बनाया तो उसने उसे निर्धारित डंपिंग यार्ड में न डलवाकर सार्वजनिक स्‍थानों और यहां तक कि तालाब एवं जलाशयों में फिंकवा दिया जिससे कई बीमारियों के फैलने का खतरा है। 

आश्‍चर्य की बात यह है इस पूरे प्रकरण में मथुरा-वृंदावन नगर निगम का कोई जिम्मेदार अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं है, अलबत्ता दबी जुबान ने कुछ कर्मचारी यह जरूर कहते हैं कि यदि किसी अधिकारी ने जुबान खोल दी तो कई पूर्व अधिकारी भी इस घोटाले की जांच के दायरे में होंगे इसलिए चुप्पी साधे बैठे हैं। 

ऐसे ही कुछ कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह 2019-20 में डूडा के माध्‍यम से नगर निगम में लगे थे लेकिन तब से लेकर आज तक न तो उनकी सुरक्षा के लिए तय उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं और न उनका स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण कराया गया। यही नहीं, पिछले करीब दो साल से कूड़ा निस्‍तारण के लिए जरूरी मशीनें खराब पड़ी हुई हैं जिस कारण कूड़े के पहाड़ खड़े हो चुके हैं। 

कर्मचारियों का दावा है कि दयाचरण एंड कंपनी को ठेका दिए जाने से लेकर अब तक मात्र 25 प्रतिशत कूड़े का निस्तारण किया गया है जबकि टेंडर के मुताबिक कंपनी को कूड़े के निस्तारण की प्रक्रिया पूरी करके उसे जूते बनाने वाली तथा कागज बनाने वाली कंपनियों को भेजना था जिससे नगर निगम की आय होनी थी। 

दयाचरण एंड कंपनी की लापरवाही एवं अधिकारियों पर उसकी मेहरबानी के आलम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कूड़ा निस्तारण की प्रक्रिया के लिए जरूरी बिजली का कनेक्शन तक उसने नहीं लगवाया और जो कुछ आंशिक काम किया उसके लिए नगर  निगम की बिजली का इस्तेमाल किया गया। 

हालांकि पिछले दिनों जब प्रदेश के नगर निकाय मंत्री अरविंद कुमार शर्मा मथुरा आए तो उनके संज्ञान में इस पूरे घोटाले और इसे संरक्षण दिए जाने की बात लाई गई किंतु उन्‍होंने शिकायत लिखित में पहुंचाने को कहकर लगभग अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन बताया जाता है कि अब कुछ लोगों ने लिखित शिकायत भी मंत्री तथा मुख्‍यमंत्री तक पहुंचा दी है ताकि ठेकेदार का शेष भुगतान भी चोरी-छिपे कराकर करोड़ों के इस घोटाले का पूरी तरह पटाक्षेप न कर दिया जाए। 

विश्‍वस्त सूत्रों से प्राप्‍त जानकारी के अनुसार नगर निगम के कुछ जिम्मेदार अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा यह सारा खेल इसलिए खेला जा रहा है क्योंकि दयाचरण एंड कंपनी ने कहीं अन्यत्र कोई बड़ा टेंडर हासिल कर लिया है। ऐसे में यदि उसके खिलाफ मथुरा-वृंदावन नगर निगम से कोई कार्रवाई की जाती है तो उसका यह टेंडर भी खटाई में पड़ सकता है। 

उसके खिलाफ मथुरा-वृंदावन नगर निगम से कोई ठोस कार्रवाई न हो और सबकुछ सामान्य तरीके से निपट जाए इसके लिए अधिकारियों को ऑब्‍लाइज भी किया जा रहा है क्‍योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो अब तक दयाचरण एंड कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया जा चुका होता। 

जाहिर है कि कोई तो है जो इस पूरे घोटाले को पहले दिन से प्राश्रय दे रहा है और तमाम अनियमितताओं के बावजूद कंपनी के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की बजाय उसे लगातार बच निकलने के रास्ते उपलब्ध करा रहा है। 

योगी सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति तथा भगवान श्रीकृष्‍ण की नगरी के निवासियों की खुशहाली के लिए जरूरी है कि इस घोटाले की उच्‍च स्‍तरीय जांच कराकर इसमें संलिप्‍त सभी लोगों के चेहरे सामने लाए जाएं और उससे होने वाले बड़े नुकसान को रोका जाए। 

-Legend News

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...