नगर निगम मथुरा-वृंदावन में हुए RDF घोटाले की शिकायत यूं तो विभागीय मंत्री अरविंद कुमार शर्मा तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंच चुकी है, किंतु यहां बड़ा सवाल यह है कि करोड़ों के इस घोटाले में शामिल लोगों को आखिर कौन और क्यों बचा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं घोटाले में कुछ ऐसे विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारी भी हिस्सेदार हों, जिनके ऊपर घोटाले को सामने लाने की जिम्मेदारी बनती है।
ये गंभीर सवाल इसलिए उठ खड़े हुए हैं क्योंकि नगर निगम ने इस पूरे कांड की प्रमुख किरदार कंपनी के साथ "नोटिस-नोटिस" का खेल तो खूब खेला लेकिन उसे बैक डोर से न सिर्फ भुगतान किया जाता रहा बल्कि शेष भुगतान को भी दिलाए जाने की व्यवस्था की जा रही है।
गौरतलब है कि दयाचरण एंड कंपनी को वर्ष 2023 में नगर निगम मथुरा-वृंदावन ने कूड़े के निस्तारण का ठेका दिया लेकिन ठेका हासिल करने वाली यह कंपनी शुरू से ही अपने काम में बेहद लापरवाह रही नतीजा जहां-तहां काफी कूड़ा एकत्र होता रहा। \
जैसे-तैसे जब कंपनी पर काम पूरा करने का दबाव बनाया तो उसने उसे निर्धारित डंपिंग यार्ड में न डलवाकर सार्वजनिक स्थानों और यहां तक कि तालाब एवं जलाशयों में फिंकवा दिया जिससे कई बीमारियों के फैलने का खतरा है।
आश्चर्य की बात यह है इस पूरे प्रकरण में मथुरा-वृंदावन नगर निगम का कोई जिम्मेदार अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं है, अलबत्ता दबी जुबान ने कुछ कर्मचारी यह जरूर कहते हैं कि यदि किसी अधिकारी ने जुबान खोल दी तो कई पूर्व अधिकारी भी इस घोटाले की जांच के दायरे में होंगे इसलिए चुप्पी साधे बैठे हैं।
ऐसे ही कुछ कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह 2019-20 में डूडा के माध्यम से नगर निगम में लगे थे लेकिन तब से लेकर आज तक न तो उनकी सुरक्षा के लिए तय उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं और न उनका स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया। यही नहीं, पिछले करीब दो साल से कूड़ा निस्तारण के लिए जरूरी मशीनें खराब पड़ी हुई हैं जिस कारण कूड़े के पहाड़ खड़े हो चुके हैं।
कर्मचारियों का दावा है कि दयाचरण एंड कंपनी को ठेका दिए जाने से लेकर अब तक मात्र 25 प्रतिशत कूड़े का निस्तारण किया गया है जबकि टेंडर के मुताबिक कंपनी को कूड़े के निस्तारण की प्रक्रिया पूरी करके उसे जूते बनाने वाली तथा कागज बनाने वाली कंपनियों को भेजना था जिससे नगर निगम की आय होनी थी।
दयाचरण एंड कंपनी की लापरवाही एवं अधिकारियों पर उसकी मेहरबानी के आलम का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कूड़ा निस्तारण की प्रक्रिया के लिए जरूरी बिजली का कनेक्शन तक उसने नहीं लगवाया और जो कुछ आंशिक काम किया उसके लिए नगर निगम की बिजली का इस्तेमाल किया गया।
हालांकि पिछले दिनों जब प्रदेश के नगर निकाय मंत्री अरविंद कुमार शर्मा मथुरा आए तो उनके संज्ञान में इस पूरे घोटाले और इसे संरक्षण दिए जाने की बात लाई गई किंतु उन्होंने शिकायत लिखित में पहुंचाने को कहकर लगभग अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन बताया जाता है कि अब कुछ लोगों ने लिखित शिकायत भी मंत्री तथा मुख्यमंत्री तक पहुंचा दी है ताकि ठेकेदार का शेष भुगतान भी चोरी-छिपे कराकर करोड़ों के इस घोटाले का पूरी तरह पटाक्षेप न कर दिया जाए।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नगर निगम के कुछ जिम्मेदार अधिकारी एवं कर्मचारियों द्वारा यह सारा खेल इसलिए खेला जा रहा है क्योंकि दयाचरण एंड कंपनी ने कहीं अन्यत्र कोई बड़ा टेंडर हासिल कर लिया है। ऐसे में यदि उसके खिलाफ मथुरा-वृंदावन नगर निगम से कोई कार्रवाई की जाती है तो उसका यह टेंडर भी खटाई में पड़ सकता है।
उसके खिलाफ मथुरा-वृंदावन नगर निगम से कोई ठोस कार्रवाई न हो और सबकुछ सामान्य तरीके से निपट जाए इसके लिए अधिकारियों को ऑब्लाइज भी किया जा रहा है क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो अब तक दयाचरण एंड कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया जा चुका होता।
जाहिर है कि कोई तो है जो इस पूरे घोटाले को पहले दिन से प्राश्रय दे रहा है और तमाम अनियमितताओं के बावजूद कंपनी के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की बजाय उसे लगातार बच निकलने के रास्ते उपलब्ध करा रहा है।
योगी सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति तथा भगवान श्रीकृष्ण की नगरी के निवासियों की खुशहाली के लिए जरूरी है कि इस घोटाले की उच्च स्तरीय जांच कराकर इसमें संलिप्त सभी लोगों के चेहरे सामने लाए जाएं और उससे होने वाले बड़े नुकसान को रोका जाए।
-Legend News