रविवार, 5 अक्टूबर 2025

वो सरकारी विभाग, जहां दम तोड़ देती है योगी बाबा की भ्रष्टाचार को लेकर बनी जीरो टॉलरेंस नीति


 दैनिक जागरण के आगरा एडिशन की संपादकीय में 2 अक्टूबर गांधी जयंती को 'यह कैसी कार्यशैली' शीर्षक से एक महिला का दर्द लिखा है। दरअसल, इस महिला ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) से नीलामी में सवा करोड़ रुपए मूल्य का एक भूखंड खरीदकर वहां अपना घर बनवाया। प्राधिकरण से ही नीलाम भूखंड पर बने इस घर को हाल ही में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने ध्वस्त कर दिया। शिकायत के बाद जांच होने पर एलडीए ने माना कि लेआउट परिवर्तन के दौरान गलती से यह भूखंड 'मिसिंग' में दर्ज हो गया, जिसके कारण मकान के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई हुई। नीलामी में सवा करोड़ का प्लॉट खरीदने के बाद महिला ने उस पर मकान कितनी मुश्किलों से और और कैसे-कैसे पैसे का इंतजाम करके बनवाया होगा, इसका अंदाज कोई भी लगा सकता है। लेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे सरकारी संरक्षण प्राप्त विकास प्राधिकरण के अधिकारी अब उस महिला को 'फ्लैट' ऑफर कर रहे हैं। 

जरा सोचिए कि यह हाल तो प्रदेश की राजधानी के उस विकास प्राधिकरण का है जहां स्‍वयं मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने पूरे मंत्रिमंडल और सभी बड़े अफसरों के साथ बैठते हैं। 
यह भी सोचिए कि जब लखनऊ विकास प्राधिकरण का यह आलम है तो प्रदेश के उन शहरों की डेवलपमेंट अथॉर्टीज का क्या हाल होगा, जहां से लखनऊ तक आवाज पहुंचाना भी आसान काम नहीं है। 
सीएम योगी अपने पहले कार्यकाल से यह कहते चले आ रहे हैं कि भ्रष्टाचार पर उनकी सरकार कोई कंप्रोमाइज नहीं करेगी और इसे लेकर उनकी नीति हमेशा जीरो टॉलरेंस की रहेगी। 
ऐसे में इस तरह के सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि योगी सरकार की इतनी सख्ती और स्‍वयं योगी आदित्यनाथ की बेदाग छवि के बावजूद विकास प्राधिकरण के भ्रष्‍ट अधिकारियों एवं कर्मचारियों की पूंछ सीधी क्यों नहीं होती?  
क्यों प्रदेशभर के विकास प्राधिकरण भ्रष्टाचार का पर्याय बने हुए हैं और क्यों उनके मन में योगी सरकार अथवा योगी आदित्यनाथ का कोई खौफ नहीं है? 
इन प्रश्नों का एक ही उत्तर है कि योगी सरकार ने जिस तरह का अभियान कानून-व्यवस्था पर फोकस करके सामाजिक अपराधियों के खिलाफ चलाया, वैसा कोई अभियान भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आज तक कभी नहीं चलाया गया। कभी-कभार किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई हुई भी है तो वह भ्रष्टाचारियों के मन में भय व्याप्त करने के लिए अपर्याप्त रही। और अगर बात करें विशेष तौर पर प्रदेश के सर्वाधिक भ्रष्‍ट विभाग विकास प्राधिकरण की तो उसका कोई अधिकारी शायद ही कभी कार्रवाई के भी दायरे में आया हो। यही कारण है कि विकास प्राधिकरण के आगे शहरों के नाम भले ही बदल जाते हैं परंतु उसकी भ्रष्‍ट कार्यशैली कहीं नहीं बदलती। वह हर जगह एक जैसी पायी जाती है।  
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण, अंधेर नगरी-चौपट राजा 
देश ही नहीं, दुनिया में अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान रखने वाली योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन जन्मस्थली और क्रीड़ास्‍थली मथुरा-वृंदावन के विकास प्राधिकरण का हाल जानकर तो ऐसा लगता है जैसे यहां अंधेर नगरी-चौपट राजा की कहावत चरितार्थ हो रही हो। 
मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण को यदि भ्रष्‍ट अधिकारियों का पसंदीदा स्थान कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 
वृंदावन का डालमिया बाग घोटाला है सबसे बड़ा उदाहरण 
पिछले साल इन्हीं दिनों वृंदावन स्‍थित डालमिया बाग पर गुरुकृपा तपोवन के नाम से एक कॉलानी डेवलप करने के लिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण में नक्शा मूव किया गया, लेकिन अप्रूवल से पहले ही भूमाफिया ने जमकर उसका फर्जी प्रचार किया और प्‍लॉट बुक करने शुरू कर दिए। माफिया ने इस नक्शे के आवेदन की आड़ में अनुमानत: एक हजार करोड़ रुपया एकत्र कर लिया परंतु विकास प्राधिकरण तमाशा देखता रहा। 
चूंकि भूमाफिया ने कॉलोनी डेवलेव करने की जल्दी में डालमिया बाग के साढ़े चार सौ से अधिक हरे वृक्ष रातों-रात काट डाले इसलिए यह मामला पहले एनजीटी और फिर सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। 
मामला देश की सर्वोच्‍च अदालत की चौखट पर पहुंचा तो सरकार के कानों पर भी जूं रेंगनी प्रारंभ हुई, नतीजतन तत्कालीन कमिश्नर आगरा मंडल ऋतु माहेश्‍वरी ने भी मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण (एमवीडीए) की भूमिका का पता लगाने के लिए एक कमेटी का गठन कर जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा। 
बहरहाल, चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत फिर सच साबित हुई और मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के किसी अधिकारी का कुछ नहीं बिगड़ा। ये बात अलग है कि सुप्रीम कोर्ट के सख्‍त फैसले ने एक ओर जहां भूमाफिया की पूरी प्‍लानिंग चौपट कर दी वहीं विकास प्राधिकरण (एमवीडीए) के अधिकारियों की हसरतों पर पानी फेर दिया क्योंकि इस प्रोजेक्ट के डेवलपर, एमवीडीए के अधिकारियों की दुधारू गाय साबित हो रहे थे। यदि सब-कुछ वैसे ही चलता रहता जैसे एमवीडीए के अधिकारी और भूमाफिया चाह रहे थे तो भूमाफिया जहां अरबों कमाते वहीं कई अधिकारी करोड़ों कमा ले गए होते। 
जो भी हो, मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के लिए न तो गुरुकृपा तपोवन कोई पहला प्रोजेक्ट था और न अंतिम। दुनिया के आकर्षण का केंद्र मथुरा नगरी में जाने कितने डेवलपर हर रोज विकास प्राधिकरण के चक्कर काटने को मजबूर हैं। कोई अवैध निर्माण के लिए चक्कर काट रहा है तो कोई वैध काम कराने के लिए क्‍योंकि काम कैसा भी हो, विकास प्राधिकरण की चौखट चूमे बिना कुछ भी संभव नहीं हो सकता। 
बड़े-बड़े करोड़पति और अरबपति दो के चार और सात के सोलह इनकी कृपा के बिना नहीं कर सकते। इनकी नजर बनी रहे तो शहर के बीचों-बीच अवैध बहुमंजिला इमारत खड़ी की जा सकती है और ये यदि नजर फेर लें तो वैध इमारत को भी मिट्टी में मिला सकते हैं। 
लखनऊ की उस महिला का वैध मकान इसका सबसे बड़ा सबूत है। जमीन चाहे प्राधिकरण से ही क्यों न खरीदी हो, प्राधिकरण के अधिकारियों को चढ़ावा चढ़ाए बिना लेआउट आसानी से परिवर्तन हो सकता है और भूखंड ''मिसिंग'' शो करके मकान पर बुलडोजर भी चल सकता है। 
रही बात योगी बाबा के जीरो टॉलरेंस की तो उसकी जद में अब तक विकास प्राधिकरण आता दिखाई नहीं देता। क्या प्रदेश की राजधानी लखनऊ और क्या कृष्‍ण की जन्‍मभूमि मथुरा, सबका हाल समान है। नक्कारखाने में तूती की आवाज वैसे भी सुनाई कहां देती है। 
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी  
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