सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

शिक्षा घोटाले की माया:कितने करोड़ की


उत्‍तर प्रदेश में एनआरएचएम के बाद अब शिक्षा विभाग घोटाले का सिरमौर बन गया है। टीईटी के बाद मान्‍यता,छात्र पंजीकरण,सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत निर्माण कार्य के घोटाले तो अभी खुलने शेष हैं।  इधर संजय मोहन के बाद रिक्‍त हुये पद पर भ्रष्‍टाचार के कारण सस्‍पेंड रह चुके दिनेश कनौजिया को निदेशक बनाना भी चर्चा का विषय बना हुआ है। घोटालेबाजों की फेहरिस्‍त रंगनाथ मिश्र व राकेशधर त्रिपाठी से लेकर संजय मोहन तक तो आ पहुंची है, देखें यह कितनी और लंबी होती है।
प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक संजय मोहन की गिरफ्तारी और इससे कहीं पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में ही विभागीय मंत्री रंगनाथ मिश्रा की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी के यूं तो कई मायने निकलते हैं परन्‍तु माया सरकार में अधिकारियों-मंत्रियों की नीयत देख इस माया तंत्र की असलियत का अंदाजा सहज ही हो जाता है। माध्यमिक शिक्षा विभाग दिनों-दिन घोटालों के दलदल में डूबता रहा और विपक्ष भी लगभग मौन ही रहा , इसका क्‍या मतलब समझा जाये कि जनता की साफ सुथरी सरकार पाने की आकांक्षा बेमानी है ।
सिर्फ टीईटी ही क्‍यों शिक्षा विभाग में ही अभी यदि अन्‍य शाखाओं की जांच हो तो कई घोटाले सामने आयेंगे।

घोटाला नं.1
मंत्री रंगनाथ मिश्रा, आर्किटेक्ट मृदुल सहित संजय मोहन ने विभाग को जमकर चूसा। सूबे के हजारों स्कूलों को बिना मानकों को पूरा किये जिन्‍हें मान्यताएं दी गईं ऐसे तकरीबन आठ हजार स्कूल हैं। विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार अधिकतर स्कूल ऐसे हैं, जिन्हें मानक पूरा न होने के बावजूद मान्यता दी गई। आरोप है कि मानक विहीन विद्यालयों को दो लाख रुपये लेकर मान्यताएं दी गई। ये पैसा मंत्री, मृदुल सहित संजय मोहन ने डकार लिया गया। कई बार ये मामला विधान सभा में उछला लेकिन शिक्षा मंत्री ने कभी भी एक न सुनी। विभाग के लोगों के मुताबिक यह घोटाला लगभग सौ करोड़ रुपये का है।

घोटाला नं.2
माध्यमिक शिक्षा विभाग में दूसरा घोटाला छात्र पंजीकरण का है। शिकायतों के बाद बोर्ड ने तक़रीबन 575 स्कूलों की रेंडम सूची तैयार की। इन स्कूलों में जब जांच हुई तो 1.29 लाख बोर्ड परीक्षार्थियों का पंजीकरण फर्जी निकला। यानी जिन नामों से नौवीं क्लास का पंजीकरण भरा गया, उनके इतर लोगों ने दसवीं और बारहवीं में परीक्षाएं दी। मसलन वह फर्जी परीक्षार्थी थे। अनुमान लगाया जा सकता है कि जब पौने छह सौ स्कूलों का यह हाल है तो प्रदेश के हजारों स्कूलों में फर्जी परीक्षार्थियों की संख्या कितनी होगी। गौरतलब है कि मेरठ जिले के क्षेत्रीय बोर्ड कार्यालय के 345 स्कूल में चेकिंग हुई और 70 हजार फर्जी अभ्यर्थी पाए गए थे। उस समय मामला चर्चा में आया लेकिन बोर्ड ने महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए पकड़े गए सभी फर्जी परीक्षार्थियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी। सूत्रों के मुताबिक यह घोटला भी अरबों में है।

घोटाला नं.3
सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश में कई नए स्कूलों के निर्माण के लिए करोडो रूपया केंद्र से आया, इसके बाद मंत्री रंगनाथ मिश्रा आर्किटेक्ट मृदुल ने सी एंडडीएस ,पैकफेड सहित यूपीपीसीएल को साजिश के तहत इनके निर्माण का काम दिया उसके बाद मृदुल ने जो स्कूल 7 लाख,60 लाख व 3 करोड़ 45 लाख में निर्मित होने थे उनके ठेके आठ से दस प्रतिशत कमीशन पर बाँट दिया, इसके बाद विभाग भी 10 से 12 करोड़ कमीशन लेता था जिसका बंटवारा ऊपर से नीचे तक होता रहा। स्कूलों के निर्माण में जमकर अंधेरगर्दी की गयी मंत्री और आर्किटेक्ट मृदुल के इशारे पर इन ठेकेदारों ने घटिया सामग्री से स्कूलों का निर्माण कराया । इसकी जाँच की जाये तब अरबो के घोटाले का पर्दाफाश होगा।

इन मुख्‍य घोटालों के अलावा माध्यमिक शिक्षा परिषद के डायरेक्टर संजय मोहन की गिरफ्तारी के बाद शिक्षा विभाग ने कमान दिनेश कनौजिया को सौंप दी है। कमान सौपते समय ये भी नहीं देखा गया कि दिनेश कनौजिया पर भी संगीन आरोप है कि वो यूपी टीईटी परीक्षा कमेटी में संजय मोहन के साथ ही सदस्य थे।

ये वही दिनेश कनौजिया हैं जिनको 2003 में हुए आपरेशन ब्लैक बोर्ड घोटाले को लेकर बेसिक शिक्षा के डायरेक्टर पद से सस्पेंड किया गया था। अब कनौजिया बेसिक शिक्षा के साथ माध्यमिक शिक्षा के भी निदेशक बन गए।

गौरतलब है कि एनआरएचएम घोटाले के आरोपी और पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के कथित दत्तक पुत्र सौरभ जैन द्वारा अधिकारियों की सहायता से ही ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड घोटाले को अंजाम देने वाले दिनेश कनौजिया का बचाव किया गया इस सरकार में।

प्रदेश की टीईटी परीक्षा कराने वाली जो कमेटी बनी थी उसमें दिनेश कनौजिया सदस्य थे। कनौजिया स्वयं संगीन आरोपों के कठघरे में हैं। अब बड़ा सवाल ये है कि जब सभी कमेटी सदस्य ही शक के घेरे में हैं तब कैसे कनौजिया को निदेशक बना दिया और किसके इशारे पर ऐसा किया गया है जबकि ब्लैक बोर्ड मामले में दिनेश चंद कनौजिया सस्पेंड भी हो चुके हैं ।

फ़िलहाल  तो यही कहा जा सकता है कि प्रदेश में शिक्षा से जुड़े सभी विभागों की जाँच होनी आवश्यक है तभी पता चल सकेगा कि आखिर कितने करोड़ कि उगाही इन सभी ने अंजाम दी है ।

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