अगला हफ्ता देश और प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ मथुरा के लिए भी खास है। अंतिम चरण का मतदान संपन्न होने के बाद एक ओर जहां समूचे ब्रज मण्डल में होली का खुमार सिर चढ़कर बोलेगा वहीं दूसरी ओर चुनावों के संभावित परिणाम दिलों की धड़कन बढ़ाने का काम करेंगे।
6 तारीख को होने वाली मतगणना के परिणाम किसी के यहां होली पर दीवाली का आभास करायेंगे तो किसी के यहां दिवाला निकलने का। किसी को होली के रंग मुंह चिढ़ाते प्रतीत होंगे तो किसी को हर रंग कुछ अलग संदेश देता नजर आयेगा। जीतने वालों के लिए होली रंगीन होगी जबकि हारने वालों के लिए रंगहीन।
कोई जीते और कोई हारे पर एक बात निश्चित है कि पांच विधानसभा सीटों वाले इस विश्व प्रसिद्ध धार्मिक जनपद में सन् 2012 की 6 मार्च राजनीति का एक नया इतिहास लिखेगी। 6 मार्च को आने वाले परिणाम किसी पार्टी के युवराज का राजनीतिक भविष्य बतायेंगे तो किसी चाणक्य के वजूद को नये सिरे से रेखांकित करेंगे।
बसपा की सरकार में कद्दावर कबीना मंत्री रहे चौधरी लक्ष्मीनारायण से लेकर 10 जनपथ तक अपनी पहुंच का दावा करने वाले कांग्रेसी विधायक प्रदीप माथुर की प्रतिष्ठा का नये सिरे से आंकलन इन चुनाव परिणामों से होगा।
यही नहीं, कुछ नये लेकिन चर्चित चेहरों के लिए 6 मार्च 2012 एक ऐसी तारीख साबित होगी जिसे भूल पाना उनके लिए नामुमकिन होगा। बड़े शान से हाथी की सवारी करते रहे डॉ. अशोक अग्रवाल को अचानक साइकिल पर सवार होकर चुनाव मैदान में उतरना विधानसभा तक पहुंचायेगा या नहीं और शून्य से शिखर छूने का ख्वाब देखने वाले आरएसएस कोटे के भाजपा प्रत्याशी डॉ. देवेन्द्र शर्मा का मार्ग प्रशस्त होगा या नहीं, यह सब 6 मार्च को आने वाले चुनाव परिणामों पर निर्भर होगा।
एक मामूली सरकारी कर्मचारी से वृंदावन नगर पालिका की चेयरमैन बनने और फिर विधानसभा के लिए बसपा की टिकट पाने में सफल रहीं पुष्पा शर्मा का राजनीतिक भविष्य तो यह तारीख तय करेगी ही, साथ ही एक इतिहास भी कायम करेगी क्योंकि मथुरा के इतिहास में अब तक किसी नगरपालिका का कोई चेयरमैन कभी विधायक नहीं बन पाया।
पहली बार अस्तित्व में आई बल्देव विधानसभा की जनता जीत का सेहरा किस पार्टी प्रत्याशी के सिर बांधेगी, यह इतिहास के पन्नों में हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज होने वाला है जबकि आरक्षित से सामान्य हुई गोवर्धन सीट पर भी बसपा के राजकुमार रावत को छोड़कर अगर कोई चुना जाता है तो वह पहली मर्तबा विधानसभा का मुंह देखेगा।
इस सबके अलावा 06 मार्च 2012 को प्रत्याशियों की हार-जीत के अलावा पार्टियों का भविष्य भी निर्धारित होगा।
मथुरा-वृंदावन सीट पर डॉ. अशोक अग्रवाल यदि जीत दर्ज करने में सफल रहते हैं तो सपा के लिए यह बड़ी उपलब्िध होगी क्योंकि आज तक सपा यहां अपना खाता खोलने में असफल रही है।
इसी प्रकार रालोद युवराज तथा मथुरा से ही सांसद जयंत चौधरी अगर विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाते तो चौधरी अजीत सिंह की राजनीतिक समझ-बूझ पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है और यदि श्यामसुंदर शर्मा लोकसभा के बाद जयंत से विधानसभा चुनाव में भी हारते हैं, तो इसे उनकी राजनीति के अवसान बतौर देखा जायेगा।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस बार के चुनाव परिणाम मथुरा के लिए तो विशेष होंगे ही, प्रदेश की राजनीति को भी प्रभावित होंगे।
चूंकि ये परिणाम होली से ठीक एक दिन पहले आने वाले हैं इसलिए इनका रंग कहीं होली के रंगों से अधिक चटख व अधिक गहरा साबित होगा तो कहीं इतना फीका कि त्यौहार ही बदरंग होकर रह जायेगा।
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