शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

दो पंचलाइन, दो अखबार, दो विज्ञापन

(लीजेण्‍ड न्‍यूज़ विशेष)
दो पंचलाइन, दो अखबार और दो तरह के विज्ञापन। इनमें से एक अखबार तरक्‍की के लिए नया नजरिया रखने की बात करता है और दूसरा विश्‍व में अपनी सर्वाधिक रीडरशिप का सेल्‍फ दावेदार है।
अब जरा इनके विज्ञापनों पर गौर कीजिए-
1- ....फ्रेंडशिप क्‍लब के साथ जुड़ें और हाईप्रोफाइल हाउस वाइव्‍स, कॉलगर्ल से मीटिंग एंजॉयमेंट कर 15000-75000 रुपये कमाएं।
2- ...लव इंटरनेशल सीक्‍योरिटी एण्‍ड सीक्रेसी स्‍यॉर सर्विस... हाउस वाइव्‍स, कॉलगर्ल से एंजॉयमेंट कर 12000-36000 रुपये रोजाना कमाएं।
3- सेक्‍सी लव फ्रेंडशिप..100% जॉब, हाईप्रोफाइल, फुल एंजाय पार्ट/फुलटाइम कर 11000-31000 तक कमाएं।
4- फ्रेंडशिप एण्‍ड मसाज क्‍लब...(ऑल इंडिया गवर्मेंट सर्विस) सभी उम्र के मेल/फीमेल हाई सोसायटी हाउस वाइव्‍स से हजारों रुपये रोज कमाएं।
5- हैलो दोस्‍त...गपशप..दिल की बात संपर्क करें मोबाइल नंबर **********
6- खुला चेलेंज: मनचाहा स्‍त्री-पुरुष वशीकरण 600 रुपये में। काली शक्‍ति द्वारा लव मैरिज, खोया प्‍यार, जुए-सट्टे में सफलता।
8- कृपया औरत ही फोन करें क्‍योंकि एक औरत ही दूसरी औरत का दर्द समझ सकती है: प्रेम विवाह, मनचाहा वशीकरण, सौतन से छुटकारा। संपर्क करें...
9- मनचाहा समाधान: स्‍त्री-पुरुष, जिस पर चाहें 1 घण्‍टे में वशीकरण कराऐं।
10- खुला ऐलान: 10 मिनट में दुश्‍मन को तड़पता देखो, मनचाहा प्‍यार पाओ। वशीकरण, मुठकरणी आजमाओ। 
ये वो विज्ञापन हैं जो क्‍लासीफाइड के रूप में सभी प्रमुख अखबारों द्वारा छापे जाते हैं।
इन विज्ञापनों के साथ अखबार द्वारा एक कोने में इस आशय की वैधानिक चेतावनी भी छाप दी जाती है- '' पाठकों को सलाह दी जाती है....
कि किसी विज्ञापन पर प्रतिक्रिया से पहले विज्ञापन में प्रकाशित किसी उत्‍पाद या सेवा के बारे में पूरी तरह उपयुक्‍त जांच-पड़ताल कर लें।
 यह समाचार पत्र उत्‍पाद या सेवा की गुणवत्‍ता आदि के बारे में विज्ञापनदाता द्वारा किये गये दावे की पुष्‍टि अथवा समर्थन नहीं करता। समाचार पत्र उपरोक्‍त विज्ञापनों के बारे में किसी प्रकार से उत्‍तरदायी नहीं होगा।''

इनके अलावा दूसरे विज्ञापन वो भी हैं जिन्‍हें छापने के एवज में अखबार लाखों रुपये लेते हैं।
एक नजीर देखिये-
वृंदावन में होगा दु:ख निवारण महाकुंभ। अमेरिकी राष्‍ट्रपति के भाई एम ओबामा होंगे मुख्‍य अतिथि। अब दिये जायेंगे दु:खों से मुक्‍ति के अद्भुत सरल रहस्‍य। प्रभु कृपा दु:ख निवारण समागम एवं दिव्‍य बीज मंत्र वार्षिकोत्‍सव में आप सभी आमंत्रित हैं।
उल्‍लेखनीय है कि अखबारों में यह ''जैकेट पेज विज्ञापन'' कुमार स्‍वामी नामक उस तथाकथित विश्‍व संत का है जो कभी झोला छाप डॉक्‍टर हुआ करता था।
महामण्‍डलेश्‍वर और ब्रह्मर्षि जैसी उपाधियों से विभूषित इस शख्‍स के चमत्‍कारिक कारनामों का भी उल्‍लेख इस दो पेज के विज्ञापनों में विभिन्‍न व्‍यक्‍तियों के माध्‍यम से कराया गया है।
इन लोगों के अनुसार कुमार स्‍वामी की कृपा से किसी की बच्‍चेदानी का कैंसर ठीक हो गया तो किसी को टीबी के रोग से मुक्‍ति मिल गई। किसी को सरकारी नौकरी मिल गई तो किसी को रेजीडेंट वीजा।
कुमार स्‍वामी की कृपा से एमबीबीएस में दाखिला मिलने से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता पाने तक की पूरी कहानी इस विज्ञापन का हिस्‍सा बनाई गई है।
आश्‍चर्य की बात यह है कि विज्ञापन में अपने जमाने की मशहूर अदाकारा हेमामालिनी तथा अभिनेता गोविंदा के भी नाम का सहारा लिया गया है और विदेशी सीनेट व हाउस ऑफ कामंस  का भी इस्‍तेमाल सचित्र किया गया है।
विज्ञापन के अनुसार कुमार स्‍वामी दावा करते हैं कि उनके द्वारा बताया गया 3 मिनट का पाठ किसी भी धर्म को मानने वाले लोगों के लिए कल्‍पनातीत व प्रभावशाली है।
इस विज्ञापन के आस-पास या ऊपर-नीचे कहीं भी कोई वैधानिक चेतावनी अथवा डिस्‍क्‍लेमर नहीं दिया गया जबकि क्‍लासीफाइड विज्ञापनों में खुला चेलेंज करने वालों तथा कुमार स्‍वामी के दावों में कोई अंतर नहीं है। दोनों का सार एक ही है। अंतर है तो केवल इतना कि एक विज्ञापन कुमार स्‍वामी जैसे अरबपति का दिया हुआ है और दूसरों को देने वाले बाबा बंगाली खान टाइप के सड़क छाप तांत्रिक होते हैं। इसे यूं समझा जा सकता है कि कम पैसे में जिस्‍म बेचने वाली औरत को वेश्‍या कहा जाता है और इसी काम के लिए हजारों व लाखों वसूलने वाली कॉलगर्ल कहलाई जाती हैं।
यहां एक स्‍वाभाविक प्रश्‍न यह पैदा होता है कि तरक्‍की के लिए नये नजरिये के हिमायती और विश्‍व में सबसे अधिक रीडरशिप का तमगा लटकाने वाले अखबारों की ऐसे विज्ञापनों को लेकर कोई जिम्‍मेदारी नहीं बनती ?
क्‍या इन और इनके जैसे देश के तमाम कथित बड़े अखबारों की जिम्‍मेदारी केवल इतनी है कि वह वैधानिक चेतावनी के रूप में जहां जरूरी समझें चंद लाइनें छापकर अपराध के लिए प्रेरित करने वाले तथा लोगों को गुमराह करने वाले विज्ञापनों की मोटी कमाई से अपनी तिजोरियां भरते रहें ?
एक ऐसे समय जब महिलाओं के लिए न समाज सुरक्षित रहा है और न घर-परिवार, तब वशीकरण, हाईप्रोफाइल हाउस वाइव्‍स, कॉलगर्ल से मीटिंग एंजॉयमेंट, मनचाहा प्‍यार पाओ, सेक्‍सी लव फ्रेंडशिप, काली शक्‍ति द्वारा लव मैरिज आदि के विज्ञापन कितने उचित हैं ?
सट्टे और जुए में शर्तिया सफलता के विज्ञापन देने तक से अखबार मालिकानों को कोई परहेज नहीं है।
एक दूसरा सवाल यह खड़ा होता है कि क्‍या समाज को प्रदूषित करने, अपराध और अपराधियों की संख्‍या में इजाफा करने, बाबा बंगाली तथा कुमार स्‍वामी जैसे तत्‍वों को संरक्षण देने और लड़कियों को लेकर आपराधिक मानसिकता बनाने में इन अखबारों की भूमिका को कम करके आंका जा सकता है ?
क्‍या ये समाज और देश के उन दुश्‍मनों से किसी मायने में कम हैं जो पैसों की खातिर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और उनके लिए समाज व देश के मूल्‍य कोई अर्थ नहीं रखते ?
सच तो यह है कि ऐसे अखबार मालिकान, समाज को प्रदूषित करने एवं लोगों को गलत रास्‍ते पर ले जाकर अपराध करने की प्रेरणा देने के लिए कुमार स्‍वामी व बाबा बंगाली खान टाइप फरेबियों से कहीं अधिक जिम्‍मेदार हैं क्‍योंकि वही इनके संदेश वाहक हैं और वही संरक्षणदाता भी हैं।
दुर्भाग्‍य से किसी भी किस्‍म के मीडिया के लिए देश में ऐसी कोई ठोस विज्ञापन नीति है ही नहीं, जो लक्ष्‍मण रेखा खींचती हो।
यही कारण है कि मीडिया हाउसेस मात्र वैधानिक चेतावनी अथवा डिस्‍क्‍लेमर देकर वर्तमान विज्ञापन नीति से अपने लिए बच निकलने का रास्‍ता किसी पेशेवर अपराधी की तरह तलाश लेते हैं और फिर कैसे भी विज्ञापन का प्रसारण व प्रकाशन करने से नहीं चूकते। चाहे उसका दुष्‍प्रभाव कितना ही बड़ा क्‍यों न हो।
इसे "शेरजंग" के एक शेर से कुछ यूं भी समझा जा सकता है-
जिनके पैरों तले जमीन नहीं, उनके सिर पर उसूल की छत है।

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