नई दिल्ली। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री कार्यालय
ने सेना के हाथ बांध रखे हैं। सीनियर कमांडरों के मुताबिक प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह की ओर से लागू किए गए नियमों के कारण ही पाकिस्तान की फौज के
हाथों हमारे सैनिक मारे गए हैं। कमांडरों का कहना है कि मौजूदा सेनाध्यक्ष
जनरल बिक्रम सिंह प्रैक्टिकली पीएमओ के निर्देशों का पालन करते हैं जबकि
सार्वजनिक रूप से वे टफ स्टैण्ड लेते हुए दिखाई देते हैं।
सूत्रों के मुताबिक इन दिनों रक्षा मंत्रालय के बाबू टेक्टीकल डिसीजन ले रहे हैं जबकि फैसले फील्ड कमांडरों पर छोड़ देने चाहिए। ऑपरेशन मामलों में रक्षा मंत्रालय का हस्तक्षेप खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। कमांडरों के मुताबिक पाकिस्तान के सैनिक हमेशा हम पर ताना कसते हैं कि यह दिल्ली का हुकूम है। इस कारण हमारे सैनिक पाकिस्तान की उकसावे की कार्यवाही का कोई जवाब नहीं देते।
जून 2012 के बाद नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सीमा पार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। जून 2012 में ही जनरल बिक्रम सिंह ने जनरल वीके सिंह से सेना की कमान अपने हाथ में ली थी। हालांकि एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पिछले एक साल में जवाबी कार्यवाही में जो डाइल्यूशन हुआ है उसमें जनरल बिक्रम सिंह की कोई गलती नहीं है। एक अनुशासित सिपाही होने के नाते जनरल सिंह के पास राजनीतिक और नौकरशाही नेतृत्व की ओर सी दी गई नीति का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जिन कमांडरों ने प्रो एक्टिव स्टैंस लिया उनको करियर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है जबकि पाकिस्तान के मामले में ठीक इसका उल्टा है।
-एजेंसी
सूत्रों के मुताबिक इन दिनों रक्षा मंत्रालय के बाबू टेक्टीकल डिसीजन ले रहे हैं जबकि फैसले फील्ड कमांडरों पर छोड़ देने चाहिए। ऑपरेशन मामलों में रक्षा मंत्रालय का हस्तक्षेप खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। कमांडरों के मुताबिक पाकिस्तान के सैनिक हमेशा हम पर ताना कसते हैं कि यह दिल्ली का हुकूम है। इस कारण हमारे सैनिक पाकिस्तान की उकसावे की कार्यवाही का कोई जवाब नहीं देते।
जून 2012 के बाद नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सीमा पार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। जून 2012 में ही जनरल बिक्रम सिंह ने जनरल वीके सिंह से सेना की कमान अपने हाथ में ली थी। हालांकि एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पिछले एक साल में जवाबी कार्यवाही में जो डाइल्यूशन हुआ है उसमें जनरल बिक्रम सिंह की कोई गलती नहीं है। एक अनुशासित सिपाही होने के नाते जनरल सिंह के पास राजनीतिक और नौकरशाही नेतृत्व की ओर सी दी गई नीति का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जिन कमांडरों ने प्रो एक्टिव स्टैंस लिया उनको करियर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है जबकि पाकिस्तान के मामले में ठीक इसका उल्टा है।
-एजेंसी
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