नई दिल्ली।
पूर्व केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्री जयंती नटराजन पर आरोप है कि उन्होंने दस लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं रोक रखी थीं जबकि इन्हें सभी तरह की मंजूरी मिल चुकी थी और उनके डेडलाइन भी तय कर दिए गए थे. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के मुताबिक जयंती नटराजन ने बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को उनके विभाग के ही पैनलों से तमाम तरह की मंजूरी मिलने के बाद भी रोके रखा. समझा जाता है कि इसी कारण उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा. राहुल गांधी ने शनिवार को फिक्की में कॉर्पोरेट्स की बैठक में इस बात का भरोसा दिलाया था कि परियोजनाओं में अब विलंब नहीं होगा.
लेकिन इसके पहले जयंती नटराजन को इस्तीफा देना पड़ा. ऐसा समझा जाता है कि एक ओर तो राहुल गांधी और उनकी पार्टी की सरकार देश में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को जल्द-से-जल्द मंजूरी दिलाने का प्रयास कर रही थी तो दूसरी ओर जयंती नटराजन फाइलों पर बैठी थीं. इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा.
काफी समय से पर्यावरण मंत्रालय पर इस बात के लिए उंगलियां उठती रहीं कि वहां फाइलों को लटकाया जाता है. दिसंबर के पहले हफ्ते में एक सरकारी आंतरिक आंकलन में पाया गया था कि 14 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं में से 5 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं ऐसी थीं कि जिनमें विलंब के लिए पर्यावरण मंत्रालय जिम्मेदार है. ये ऐसी परियोजनाएं थीं जिन्हें कैबिनेट कमेटी ऑफ इन्वेस्टमेंट तक की मंजूरी मिल चुकी थीं. इनके अलावा 4 लाख करोड़ रुपये की वैसी परियोजनाएं लटका दी गई थीं जिनके लिए डेडलाइन तय कर दी गई थी ताकि उनसे जुड़े मुद्दे सुलझा लिये जाएं. इसके अलावा और एक लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं पर्यावरण मंत्रालय ने रोक ली थीं. इनके बारे में गुजरात सरकार ने भी नाराजगी जताई थी.
सूत्रों ने बताया कि प्रधान मंत्री ने फरवरी महीने में ही कोयले की खदानों से संबिधित परियोजनाओं को जल्द-से-जल्द मंजूरी देने की बात कही थी, लेकिन इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और फाइलें लटकी रह गईं. कोयले की कमी से थर्मल पॉवर स्टेशनों में काम ठप सा हो गया है.
लेकिन जयंती नटराजन ने कहा कि उनके काम की प्रधानमंत्री ने भी सराहना की है और उनके कार्यकाल में कोई भी परियोजना नहीं लटकी रही. मैंने पार्टी के काम काज के लिए मंत्री पद छोड़ा है. इसके अलावा कोई और कारण नहीं है.
-एजेंसी
पूर्व केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्री जयंती नटराजन पर आरोप है कि उन्होंने दस लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं रोक रखी थीं जबकि इन्हें सभी तरह की मंजूरी मिल चुकी थी और उनके डेडलाइन भी तय कर दिए गए थे. वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के मुताबिक जयंती नटराजन ने बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को उनके विभाग के ही पैनलों से तमाम तरह की मंजूरी मिलने के बाद भी रोके रखा. समझा जाता है कि इसी कारण उन्हें अपने पद से हाथ धोना पड़ा. राहुल गांधी ने शनिवार को फिक्की में कॉर्पोरेट्स की बैठक में इस बात का भरोसा दिलाया था कि परियोजनाओं में अब विलंब नहीं होगा.
लेकिन इसके पहले जयंती नटराजन को इस्तीफा देना पड़ा. ऐसा समझा जाता है कि एक ओर तो राहुल गांधी और उनकी पार्टी की सरकार देश में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को जल्द-से-जल्द मंजूरी दिलाने का प्रयास कर रही थी तो दूसरी ओर जयंती नटराजन फाइलों पर बैठी थीं. इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा.
काफी समय से पर्यावरण मंत्रालय पर इस बात के लिए उंगलियां उठती रहीं कि वहां फाइलों को लटकाया जाता है. दिसंबर के पहले हफ्ते में एक सरकारी आंतरिक आंकलन में पाया गया था कि 14 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं में से 5 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं ऐसी थीं कि जिनमें विलंब के लिए पर्यावरण मंत्रालय जिम्मेदार है. ये ऐसी परियोजनाएं थीं जिन्हें कैबिनेट कमेटी ऑफ इन्वेस्टमेंट तक की मंजूरी मिल चुकी थीं. इनके अलावा 4 लाख करोड़ रुपये की वैसी परियोजनाएं लटका दी गई थीं जिनके लिए डेडलाइन तय कर दी गई थी ताकि उनसे जुड़े मुद्दे सुलझा लिये जाएं. इसके अलावा और एक लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं पर्यावरण मंत्रालय ने रोक ली थीं. इनके बारे में गुजरात सरकार ने भी नाराजगी जताई थी.
सूत्रों ने बताया कि प्रधान मंत्री ने फरवरी महीने में ही कोयले की खदानों से संबिधित परियोजनाओं को जल्द-से-जल्द मंजूरी देने की बात कही थी, लेकिन इस पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और फाइलें लटकी रह गईं. कोयले की कमी से थर्मल पॉवर स्टेशनों में काम ठप सा हो गया है.
लेकिन जयंती नटराजन ने कहा कि उनके काम की प्रधानमंत्री ने भी सराहना की है और उनके कार्यकाल में कोई भी परियोजना नहीं लटकी रही. मैंने पार्टी के काम काज के लिए मंत्री पद छोड़ा है. इसके अलावा कोई और कारण नहीं है.
-एजेंसी
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