आम चुनाव से पहले सियासत की दुनिया से जुड़ा एक बड़ा खुलासा हुआ है. पता
चला है कि हमारे देश में सैकड़ों ऐसे राजनीतिक दल हैं जिन्हें मोटा चंदा
मिलता है जबकि वे चुनाव भी नहीं लड़ते. एक आरटीआई के जरिये मिले जवाब से
इसका खुलासा हुआ है. एक अंग्रेजी अखबार ने चुनाव आयोग से सूचना लेने के बाद
यह खबर दी है. खबर के मुताबिक देश में कई ऐसी पार्टियां हैं जो चुनाव नहीं
लड़तीं लेकिन उन्हें एक लाख से लेकर पांच करोड़ रुपये तक का चंदा मिला है.
ये पार्टियां दिल्ली-एनसीआर से लेकर मुंबई तक फैली हुई हैं.
अखबार ने बताया है कि इटानगर की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी फीनिक्स राइजिंग ने दिल्ली की एक पार्टी को 15 लाख रुपये का चंदा दिया है. इस पार्टी का नाम है नेशनल यूथ पार्टी. इसी तरह एक और पार्टी है फोरम फॉर प्रेसिडेंशियल डेमोक्रेसी और यह मुंबई स्थित है. इसे वहीं के नेप्च्यून रिजॉर्ट्स एंड डेवलपर्स ने 1.5 लाख रुपये का चंदा दिया है.
चुनाव आयोग के पास इस वक्त देश भर के 1600 राजनीतिक दलों का बकायदा रजिस्ट्रेशन है और इनमें से ज्यादातर चुनाव नहीं लड़तीं. लेकिन इनमें से ज्यादातर को चंदा मिलता है. ये चंदा देती हैं छोटी कंपनियां. चंदे की राशि होती है 11,000 रुपये से 5 करोड़ रुपये तक.
क्यों मिल रहा है चंदा?
इस सवाल का जवाब थोड़ा मुश्किल है. जब अखबार ने फोरम फॉर प्रेसिडेंशियल डेमोक्रेसी के सचिव से इस बाबत पूछा तो उसने कहा कि वह चुनाव लड़ना चाहते हैं और इसलिए चंदा ले रहे हैं. चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि इनके चंदा लेने का कारण यह है कि इससे उन्हें इनकम टैक्स में छूट मिलती है. ज्यादातर छोटी पार्टियों के कर्ताधर्ताओं ने बताया कि वे मौजूदा सिस्टम को बदल देना चाहती हैं, इसलिए उन्होंने पार्टी बनाई है और चंदा ले रही हैं.
हैरानी की बात है कि इन पार्टियों को चंदा दूरदराज के शहरों से भी मिल रहा है. अहमदाबाद की एक कंपनी झावेरी एंड कंपनी एक्सपोर्ट्स ने फरीदाबाद की पार्टी राष्ट्रीय विकास पार्टी दो करोड़ रुपये का चंदा दिया. इस पार्टी को कई जगहों से चंदा मिला है. ऐसा ही एक अजीबोगरीब मामला है गुवाहाटी की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का. इसे बेंगलुरू और मुंबई की दो कंपनियों ने चंदा दिया है.
-एजेंसी
अखबार ने बताया है कि इटानगर की एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी फीनिक्स राइजिंग ने दिल्ली की एक पार्टी को 15 लाख रुपये का चंदा दिया है. इस पार्टी का नाम है नेशनल यूथ पार्टी. इसी तरह एक और पार्टी है फोरम फॉर प्रेसिडेंशियल डेमोक्रेसी और यह मुंबई स्थित है. इसे वहीं के नेप्च्यून रिजॉर्ट्स एंड डेवलपर्स ने 1.5 लाख रुपये का चंदा दिया है.
चुनाव आयोग के पास इस वक्त देश भर के 1600 राजनीतिक दलों का बकायदा रजिस्ट्रेशन है और इनमें से ज्यादातर चुनाव नहीं लड़तीं. लेकिन इनमें से ज्यादातर को चंदा मिलता है. ये चंदा देती हैं छोटी कंपनियां. चंदे की राशि होती है 11,000 रुपये से 5 करोड़ रुपये तक.
क्यों मिल रहा है चंदा?
इस सवाल का जवाब थोड़ा मुश्किल है. जब अखबार ने फोरम फॉर प्रेसिडेंशियल डेमोक्रेसी के सचिव से इस बाबत पूछा तो उसने कहा कि वह चुनाव लड़ना चाहते हैं और इसलिए चंदा ले रहे हैं. चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि इनके चंदा लेने का कारण यह है कि इससे उन्हें इनकम टैक्स में छूट मिलती है. ज्यादातर छोटी पार्टियों के कर्ताधर्ताओं ने बताया कि वे मौजूदा सिस्टम को बदल देना चाहती हैं, इसलिए उन्होंने पार्टी बनाई है और चंदा ले रही हैं.
हैरानी की बात है कि इन पार्टियों को चंदा दूरदराज के शहरों से भी मिल रहा है. अहमदाबाद की एक कंपनी झावेरी एंड कंपनी एक्सपोर्ट्स ने फरीदाबाद की पार्टी राष्ट्रीय विकास पार्टी दो करोड़ रुपये का चंदा दिया. इस पार्टी को कई जगहों से चंदा मिला है. ऐसा ही एक अजीबोगरीब मामला है गुवाहाटी की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का. इसे बेंगलुरू और मुंबई की दो कंपनियों ने चंदा दिया है.
-एजेंसी
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