सोमवार, 22 दिसंबर 2014

हद कर दी आपने हुड्डा साहब, एक वकील की फीस 6 करोड़

चंडीगढ़। 
हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 6 करोड़ रुपये से ज्यादा की फीस पर सीनियर वकील केटीएस तुलसी की सेवाएं लीं। हरियाणा सरकार ने तुलसी की सेवा ऐसे समय में ली, जब उस पर 82,000 करोड़ रुपये का बकाया था। इस बात का खुलासा एक व्यापक पड़ताल से हुआ है। हरियाणा के एडवोकेट जनरल ऑफिस में 200 से ज्यादा लॉ ऑफिसर थे, इसके बावजूद राज्य सरकार ने मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में हुई हिंसा के दोषियों के खिलाफ ट्रायल में केटीएस तुलसी को स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया गया। तुलसी की नियुक्ति जुलाई 2012 में की गई।
500 से ज्यादा डॉक्युमेंट्स का आंकलन करके पता लगाया गया कि हुड्डा ने तुलसी के फीस शेड्यूल को सेटल किए बगैर उनकी नियुक्ति की। 'भारी भरकम खर्च' को देखते हुए नौकरशाहों ने तुलसी की सेवाएं बंद करने की सलाह भी दी, लेकिन उनकी सेवाएं बनाए रखी गईं। हुड्डा सरकार ने बिना किसी देरी के न केवल तुलसी को 5.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया, बल्कि विधानसभा चुनावों से पहले उनके लंबित बिलों का भुगतान करने की भी कोशिश की। केटीएस तुलसी के पेंडिंग बिल्स करीब 65 लाख रुपये के थे।
हालांकि, अब मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने तत्काल प्रभाव से तुलसी की सर्विसेज बंद करने और लंबित बिलों की जांच करने का फैसला किया है। राज्य सरकार तुलसी की जगह पर 'रीजनबल फीस' लेने वाले एक सीनियर क्रिमिनल लॉयर को इंगेज करेगी। तुलसी की सर्विसेज लेने के तीन महीने से ज्यादा समय के बाद उनके फीस शेड्यूल (इसमें उनके तीन सहायक वकील भी थे) को फाइनल किया गया।
हालांकि, राज्य के एडवोकेट जनरल हवा सिंह हुड्डा ने 24 अगस्त 2012 को सरकार से कहा था कि फीस शेड्यूल को पहले से तय किया जाए। उन्होंने कहा था कि अगर पहले से फीस तय नहीं की गई, तो इसे स्वीकार करना कठिन हो जाता है। तत्कालीन एडवोकेट जनरल ने राज्य को यह भी सलाह दी थी कि तुलसी से सुनवाई की प्रभावी तरीकों के फीस बिल देने को कहा जाए।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने तुलसी और उनके तीन सहायक वकीलों के फीस शेड्यूल को एक ही दिन मंजूरी दी है। तुलसी पर किए जाने वाले खर्च का मामला एक आरटीआई से सामने आया है। गुड़गांव के रहने वाले एक शख्स ने जनवरी 2013 में सूचना के अधिकार के तहत तुलसी और उनके जूनियर पर किए गए खर्च का ब्योरा मांगा था। मई 2013 में गृह सचिव ने ऑफिशल फाइल पर एक नोट लिखा, जिसमें भारी खर्च बचाने के लिए यह केस पब्लिक प्रॉसीक्यूटर्स को देने की बात कही गई थी।

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