पाकिस्तानी गायक अदनान शामी का एक गीत काफी मशहूर है, आपने भी जरूर सुना होगा।
गीत के बोल हैं- तेरी ऊँची शान है मौला, मेरी अर्ज़ी मान ले मौला...मुझको भी तो लिफ्ट करा दे।
थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे, बांग्ला मोटर कार दिला दे... एक नहीं दो चार दिला दे...
मुझको एरो प्लेन दिला दे, दुनिया भर की सैर करा दे, कैसे कैसों को दिया है... ऐसे वैसों को दिया है, मुझको भी तो लिफ्ट करा दे, थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे।
जैसा कि गीत की पक्तियों से जाहिर है कि अदनान शामी ने इन सभी चीजों की मांग ऊपर वाले से की है, किसी नीचे वाले से नहीं।
यूं भी कहा और माना यही जाता है कि जो भी मांगना है ऊपर वाले से मांगना चाहिए क्योंकि नीचे वाले तो सबके सब भिखारी हैं। किसी को कुछ चाहिए तो किसी को कुछ।
ऐसे में किसी भिखारी से क्या मांगना और क्यों मांगना।
अब रही बात ऊपर वाले की तो उससे मांगते वक्त भी अधिकांश लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि कब और क्या मांगा जाए क्योंकि गलत वक्त पर गलत मांग ऊपर वाला भी पूरी नहीं करता।
खैर, फिलहाल हम यहां बात कर रहे हैं ''ऊपर वाले'' जैसी दो तथाकथित महान हस्तियों की। दो दिन पहले तक वह मेरे लिए भी पूरी तरह महान हस्तियां ही थीं किंतु दो दिन में ''तथाकथित'' हो गईं।
पहले बात करते हैं प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपाल दास 'नीरज' की। 91 वर्ष पूरे करके 92 वर्ष में प्रवेश कर चुके यानि कब्र में पैर लटका कर बैठे इस कवि ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा है कि मुझे ईमानदारी से काम करने का ''पूरा फल'' नहीं मिला।
नीरज के अनुसार उन्होंने 72 साल तक लगातार गीतों के माध्यम से हिंदी की सेवा की, फिर भी उन्हें किसी सरकार ने राज्यसभा के लिए नामित नहीं किया।
नीरज का एक और दर्द है कि उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी नहीं नवाजा गया।
कवि व गीतकार नीरज ने जिस दिन अपना यह दर्द एक पत्रकार के सामने बयां किया, उसी दिन ओलंपिक में बैडमिंटन का कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय खिलाड़ी साइना नेहवाल ने पद्म भूषण पुरस्कार के लिए अपना आवेदन खारिज कर दिये जाने पर आपा खो दिया।
साइना नेहवाल का तर्क है कि जब पहलवान सुशील कुमार को पद्म पुरस्कार देने के लिए 5 साल के अंतराल का नियम दरकिनार किया जा सकता है तो उनके लिए क्यों नहीं।
जहां तक मेरी जानकारी है, कवि गोपाल दास नीरज और बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल को देश ने इतना कुछ दिया है जितने की उन्होंने संभवत: खुद कल्पना भी नहीं की होगी।
ये बात अलग है कि जितना उन्हें मिल गया...या मिलता गया...उतनी ही उनकी हवस बढ़ती गई...और नतीजा सामने है।
हो सकता है कि आज की तारीख में उन्हें अब तक प्राप्त प्रतिफल अपनी तथाकथित देश सेवा के सामने कम नजर आता हो लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या सम्मान और पुरस्कार भी मांगने की चीज हैं?
क्या मांग कर प्राप्त सम्मान और पुरस्कार किसी को संतुष्टि प्रदान कर सकते हैं?
क्या मान-सम्मान और पुरस्कारों की भीख मांगी जा सकती है, और क्या भीख में मिला सम्मान या पुरस्कार कोई अहमियत रखता है?
अगर किसी के पास इन सवालों के जवाब हों तो कृपया करके अवश्य दें ताकि मैं आगे से किसी महान शख्सियत की शान में गुस्ताखी करने से पहले उन जवाबों पर नजर डाल सकूं।
रहा सवाल कवि व गीतकार गोपाल दास नीरज तथा बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल द्वारा अपने-अपने तरीकों से देश की और हिंदी व खेल की सेवा करने का तो ऐसी सेवा समझ से परे है।
सेवा का तो मतलब ही कुछ और बताया गया है। यह कैसी सेवाएं हैं जिनके एवज में खुलेआम कीमत मांगी जा रही है। बेझिझक अपने लिए राज्य सभा का नॉमीनेशन तथा पद्म पुरस्कार की चाहत की जा रही है।
यदि इसी को देश सेवा, समाज सेवा या किसी भी किस्म की कोई सेवा कहते हैं तो हर वो नागरिक देश सेवा में लीन है जो देश की जनसंख्या बढ़ाने में बिना सोचे-समझे अपना योगदान दे रहा है क्योंकि आज सवा अरब से ऊपर की वह संख्या ऐसे ही लोगों के कारण बन सकी है जिस संख्या पर देश गर्व करने लगा है। जो कभी चिंता का विषय बनी थी किंतु आज उसे लेकर दूसरे देश चिंतित हैं।
यदि यही देश सेवा है तो हर वो व्यक्ति भी देश सेवा कर रहा है जो अपना-अपना काम करके दौलत, शौहरत व इज्ज़त कमा रहा है या फिर बमुश्किल ही सही पर जीविको पार्जन कर रहा है।
देखा जाए तो वह नीरज व नेहवाल जैसे देश सेवकों से कहीं ज्यादा महान है क्योंकि वह सरकार से किसी प्रकार के मान-सम्मान व ईनाम-इकराम की इच्छा पाले बिना और सरकार पर बोझ बने बिना चुपचाप अपना काम कर रहा है और उन बच्चों को भी पाल रहा है जो बेशक पैदा चाहे उसने किये हों किंतु जिस पर गर्व देश कर रहा है। बच्चों को कर्ज लेकर पढ़ाता है और जब वह कुछ बन जाता है तो देश उसका क्रेडिट ले लेता है।
देश के पूर्व और वर्तमान प्रधानमंत्री विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों से कहते हैं कि हमारा युवा हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। हमारे इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक विश्व में देश की पताका फहरा रहे हैं।
यदि राज्यसभा की सदस्यता और पद्म पुरस्कार देने का यही पैमाना है तो शायद ही देश का कोई नागरिक हो, जिसकी इन पर दावेदारी न बनती हो।
उन चोर-उचक्कों की भी जो भारी-भरकम जोखिम उठाकर अपने काम को अंजाम देते हैं सरकारों से कोई ऐसी शिकायत नहीं करते कि यदि उन्हें भी समय रहते उनकी योग्यता के अनुसार रोजी-रोजगार मिल गया होता तो वह इतना जोखिम भरा काम नहीं करते। ऐसा काम जिसमें बच्चों की परवरिश करने के लिए तो कोई पीठ तक नहीं थपथपाता लेकिन पकड़े जाने पर जेल जरूर जाना पड़ता है जबकि वह भी अपने तरीके से देश सेवा ही कर रहे हैं।
91 साल के वयोवृद्ध कवि को कभी देश या ऐसे-वैसे देशवासियों की चिंता नहीं सताई पर इस बात का मलाल है कि किसी सरकार ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा, पद्म विभूषण नहीं दिया। कभी ऊपर वाले का शुक्रिया अदा नहीं किया कि इतना मान-सम्मान और धन-दौलत अपना काम करते हुए दिलवा दिया लेकिन चला-चली की बेला में सरकार से शिकायत कर रहे हैं।
युवा बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने भी कभी देश व देशवासियों की स्थिति-परिस्थितियों पर चिंता जाहिर की हो, ऐसा स्मरण नहीं आता। कभी किसी प्राकृतिक आपदा में करोड़ों की अपनी दौलत से अंशभर कुछ दिया हो, याद नहीं आता परंतु पद्म पुरस्कार ऐसे मांग रही हैं जैसे बैडमिंटन खेल कर एकमात्र देश पर और हर तरह से देशवासियों पर कोई उपकार कर रही हों।
देश अनेक तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है, तमाम देशवासी अपनी ख्वाहिशें पूरी होने के लिए ताजिंदगी तरसते रहते हैं, कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने सपने पूरे होने की उम्मीद में दुनिया से कूच कर जाता है...और हमारी तथाकथित महान हस्तियों को अपनी हवस पूरी न हो पाने से नाराजगी है।
यदि महानता इसी को कहते हैं और ऐसे ही होते हैं महान लोग...तो ऐसी महानता किसी काम की नहीं।
ईश्वर न करे कि आने वाली पीढ़ी को ऐसे महान लोगों की हवस का पता भी लगे...क्योंकि यदि पता लग गया तो उनकी भी नजरों से ये उसी प्रकार गिर जायेंगे जिस प्रकार मेरी नजरों से दो दिन के अंदर गिर गये अन्यथा दो दिन पहले तक मैं भी इन्हें बहुत महान मानता था।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
गीत के बोल हैं- तेरी ऊँची शान है मौला, मेरी अर्ज़ी मान ले मौला...मुझको भी तो लिफ्ट करा दे।
थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे, बांग्ला मोटर कार दिला दे... एक नहीं दो चार दिला दे...
मुझको एरो प्लेन दिला दे, दुनिया भर की सैर करा दे, कैसे कैसों को दिया है... ऐसे वैसों को दिया है, मुझको भी तो लिफ्ट करा दे, थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे।
जैसा कि गीत की पक्तियों से जाहिर है कि अदनान शामी ने इन सभी चीजों की मांग ऊपर वाले से की है, किसी नीचे वाले से नहीं।
यूं भी कहा और माना यही जाता है कि जो भी मांगना है ऊपर वाले से मांगना चाहिए क्योंकि नीचे वाले तो सबके सब भिखारी हैं। किसी को कुछ चाहिए तो किसी को कुछ।
ऐसे में किसी भिखारी से क्या मांगना और क्यों मांगना।
अब रही बात ऊपर वाले की तो उससे मांगते वक्त भी अधिकांश लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि कब और क्या मांगा जाए क्योंकि गलत वक्त पर गलत मांग ऊपर वाला भी पूरी नहीं करता।
खैर, फिलहाल हम यहां बात कर रहे हैं ''ऊपर वाले'' जैसी दो तथाकथित महान हस्तियों की। दो दिन पहले तक वह मेरे लिए भी पूरी तरह महान हस्तियां ही थीं किंतु दो दिन में ''तथाकथित'' हो गईं।
पहले बात करते हैं प्रसिद्ध कवि और गीतकार गोपाल दास 'नीरज' की। 91 वर्ष पूरे करके 92 वर्ष में प्रवेश कर चुके यानि कब्र में पैर लटका कर बैठे इस कवि ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा है कि मुझे ईमानदारी से काम करने का ''पूरा फल'' नहीं मिला।
नीरज के अनुसार उन्होंने 72 साल तक लगातार गीतों के माध्यम से हिंदी की सेवा की, फिर भी उन्हें किसी सरकार ने राज्यसभा के लिए नामित नहीं किया।
नीरज का एक और दर्द है कि उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी नहीं नवाजा गया।
कवि व गीतकार नीरज ने जिस दिन अपना यह दर्द एक पत्रकार के सामने बयां किया, उसी दिन ओलंपिक में बैडमिंटन का कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय खिलाड़ी साइना नेहवाल ने पद्म भूषण पुरस्कार के लिए अपना आवेदन खारिज कर दिये जाने पर आपा खो दिया।
साइना नेहवाल का तर्क है कि जब पहलवान सुशील कुमार को पद्म पुरस्कार देने के लिए 5 साल के अंतराल का नियम दरकिनार किया जा सकता है तो उनके लिए क्यों नहीं।
जहां तक मेरी जानकारी है, कवि गोपाल दास नीरज और बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल को देश ने इतना कुछ दिया है जितने की उन्होंने संभवत: खुद कल्पना भी नहीं की होगी।
ये बात अलग है कि जितना उन्हें मिल गया...या मिलता गया...उतनी ही उनकी हवस बढ़ती गई...और नतीजा सामने है।
हो सकता है कि आज की तारीख में उन्हें अब तक प्राप्त प्रतिफल अपनी तथाकथित देश सेवा के सामने कम नजर आता हो लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या सम्मान और पुरस्कार भी मांगने की चीज हैं?
क्या मांग कर प्राप्त सम्मान और पुरस्कार किसी को संतुष्टि प्रदान कर सकते हैं?
क्या मान-सम्मान और पुरस्कारों की भीख मांगी जा सकती है, और क्या भीख में मिला सम्मान या पुरस्कार कोई अहमियत रखता है?
अगर किसी के पास इन सवालों के जवाब हों तो कृपया करके अवश्य दें ताकि मैं आगे से किसी महान शख्सियत की शान में गुस्ताखी करने से पहले उन जवाबों पर नजर डाल सकूं।
रहा सवाल कवि व गीतकार गोपाल दास नीरज तथा बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल द्वारा अपने-अपने तरीकों से देश की और हिंदी व खेल की सेवा करने का तो ऐसी सेवा समझ से परे है।
सेवा का तो मतलब ही कुछ और बताया गया है। यह कैसी सेवाएं हैं जिनके एवज में खुलेआम कीमत मांगी जा रही है। बेझिझक अपने लिए राज्य सभा का नॉमीनेशन तथा पद्म पुरस्कार की चाहत की जा रही है।
यदि इसी को देश सेवा, समाज सेवा या किसी भी किस्म की कोई सेवा कहते हैं तो हर वो नागरिक देश सेवा में लीन है जो देश की जनसंख्या बढ़ाने में बिना सोचे-समझे अपना योगदान दे रहा है क्योंकि आज सवा अरब से ऊपर की वह संख्या ऐसे ही लोगों के कारण बन सकी है जिस संख्या पर देश गर्व करने लगा है। जो कभी चिंता का विषय बनी थी किंतु आज उसे लेकर दूसरे देश चिंतित हैं।
यदि यही देश सेवा है तो हर वो व्यक्ति भी देश सेवा कर रहा है जो अपना-अपना काम करके दौलत, शौहरत व इज्ज़त कमा रहा है या फिर बमुश्किल ही सही पर जीविको पार्जन कर रहा है।
देखा जाए तो वह नीरज व नेहवाल जैसे देश सेवकों से कहीं ज्यादा महान है क्योंकि वह सरकार से किसी प्रकार के मान-सम्मान व ईनाम-इकराम की इच्छा पाले बिना और सरकार पर बोझ बने बिना चुपचाप अपना काम कर रहा है और उन बच्चों को भी पाल रहा है जो बेशक पैदा चाहे उसने किये हों किंतु जिस पर गर्व देश कर रहा है। बच्चों को कर्ज लेकर पढ़ाता है और जब वह कुछ बन जाता है तो देश उसका क्रेडिट ले लेता है।
देश के पूर्व और वर्तमान प्रधानमंत्री विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों से कहते हैं कि हमारा युवा हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। हमारे इंजीनियर, डॉक्टर और वैज्ञानिक विश्व में देश की पताका फहरा रहे हैं।
यदि राज्यसभा की सदस्यता और पद्म पुरस्कार देने का यही पैमाना है तो शायद ही देश का कोई नागरिक हो, जिसकी इन पर दावेदारी न बनती हो।
उन चोर-उचक्कों की भी जो भारी-भरकम जोखिम उठाकर अपने काम को अंजाम देते हैं सरकारों से कोई ऐसी शिकायत नहीं करते कि यदि उन्हें भी समय रहते उनकी योग्यता के अनुसार रोजी-रोजगार मिल गया होता तो वह इतना जोखिम भरा काम नहीं करते। ऐसा काम जिसमें बच्चों की परवरिश करने के लिए तो कोई पीठ तक नहीं थपथपाता लेकिन पकड़े जाने पर जेल जरूर जाना पड़ता है जबकि वह भी अपने तरीके से देश सेवा ही कर रहे हैं।
91 साल के वयोवृद्ध कवि को कभी देश या ऐसे-वैसे देशवासियों की चिंता नहीं सताई पर इस बात का मलाल है कि किसी सरकार ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा, पद्म विभूषण नहीं दिया। कभी ऊपर वाले का शुक्रिया अदा नहीं किया कि इतना मान-सम्मान और धन-दौलत अपना काम करते हुए दिलवा दिया लेकिन चला-चली की बेला में सरकार से शिकायत कर रहे हैं।
युवा बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने भी कभी देश व देशवासियों की स्थिति-परिस्थितियों पर चिंता जाहिर की हो, ऐसा स्मरण नहीं आता। कभी किसी प्राकृतिक आपदा में करोड़ों की अपनी दौलत से अंशभर कुछ दिया हो, याद नहीं आता परंतु पद्म पुरस्कार ऐसे मांग रही हैं जैसे बैडमिंटन खेल कर एकमात्र देश पर और हर तरह से देशवासियों पर कोई उपकार कर रही हों।
देश अनेक तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है, तमाम देशवासी अपनी ख्वाहिशें पूरी होने के लिए ताजिंदगी तरसते रहते हैं, कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने सपने पूरे होने की उम्मीद में दुनिया से कूच कर जाता है...और हमारी तथाकथित महान हस्तियों को अपनी हवस पूरी न हो पाने से नाराजगी है।
यदि महानता इसी को कहते हैं और ऐसे ही होते हैं महान लोग...तो ऐसी महानता किसी काम की नहीं।
ईश्वर न करे कि आने वाली पीढ़ी को ऐसे महान लोगों की हवस का पता भी लगे...क्योंकि यदि पता लग गया तो उनकी भी नजरों से ये उसी प्रकार गिर जायेंगे जिस प्रकार मेरी नजरों से दो दिन के अंदर गिर गये अन्यथा दो दिन पहले तक मैं भी इन्हें बहुत महान मानता था।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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