मथुरा। आरके ग्रुप ऑफ एजुकेशन के चेयरमैन रामकिशोर अग्रवाल के केडी मेडीकल
कॉलेज को मान्यता न मिल पाने का कारण कॉलेज के संचालन में की जा रही भारी
जालसाजी बताया गया है।
यह जानकारी देशभर के मेडिकल कॉलेजों को मान्यता प्रदान करने वाली संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के सूत्रों ने दी है।
सूत्रों का तो यह कहना है कि अब तक आम लोगों को जालसाजी करके डिग्रियां हासिल करने वाले ”मुन्ना भाइयों” की ही जानकारी रही होगी लेकिन मथुरा का यह पूरा कॉलेज ही ”मुन्ना भाई मेडीकल कॉलेज” निकला।
एमसीआई के सूत्रों का कहना है कि केडी मेडीकल कॉलेज को मान्यता देने के लिए किये गये इंस्पेक्शन में पता लगा कि कॉलेज में न सिर्फ फैकल्टीज फर्जी दिखाई गई हैं बल्कि फर्जी मरीज तक लाकर एडमिट कर दिये गये।
एमसीआई के मुताबिक तीन बार किये गये इंस्पेक्शन के दौरान एमसीआई के पैनल को पता लगा कि जो फैकल्टीज केडी मेडीकल कॉलेज में कार्यरत दर्शायी गई हैं, एक्चुअली वह पहले से किन्हीं दूसरे मेडीकल कॉलेज में कार्यरत थीं।
इसी प्रकार पैनल को जो मरीज पहले इंस्पेक्शन में कॉलेज के अंदर एडमिट दिखाये गये वही मरीज हर बार यानि दूसरे और तीसरे इंस्पेक्शन में भी दिखा दिये गये। कॉलेज के ओपीडी से लेकर आईसीयू आदि में वही मरीज एडमिट मिले।
एमसीआई के सूत्रों ने बताया कि इन मरीजों में से भी करीब 60 प्रतिशत वो लोग बार-बार एडमिट दिखाये जा रहे थे जो किसी रोग से पीड़ित ही नहीं थे।
यही कारण रहा कि केडी मेडीकल कॉलेज को मान्यता की प्रक्रिया से बाहर (डी-बार) कर दिया गया।
एमसीआई के सूत्रों का कहना है कि अब कम से कम दो साल बाद आरके ग्रुप इस कॉलेज की मान्यता के लिए आवेदन कर सकता है लेकिन तब भी उन कारणों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता जिन कारणों से अब इसे डी-बार किया गया है।
बताया जाता है कि केडी मेडीकल कॉलेज के निर्माण पर काफी बड़ी रकम खर्च हो जाने के बावजूद इसे मान्यता न मिल पाने से ग्रुप के चेयरमैन रामकिशोर अग्रवाल डिप्रेशन में आ गये हैं और डिप्रेशन के चलते ही उन्होंने कॉलेज के कर्मचारियों से वो व्यवहार कर डाला जो किसी गरिमामय पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा नहीं देता।
यह भी जानकारी मिली है कि रामकिशोर के व्यवहार और मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिल पाने के कारण बहुत बड़ी संख्या में कर्मचारियों ने कॉलेज छोड़ दिया है।
कुछ समय पहले तक केडी मेडीकल कॉलेज में जहां 104 कर्मचारी हुआ करते थे, वहां आज की तारीख में मात्र 34 कर्मचारी कार्यरत हैं, और ये कर्मचारी भी पिछले दिनों उनके साथ हुई मारपीट की घटना के कारण कॉलेज छोड़ने का मन बना चुके हैं।
केडी मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिलने तथा वहां कर्मचारियों के साथ मारपीट किये जाने का समाचार ”लीजेंड न्यूज़” में प्रकाशित होने के बाद आज आगरा से प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार के पृष्ठ संख्या चार पर केडी मेडीकल कॉलेज का एक क्वार्टर पेज विज्ञापन प्रकाशित कराया गया है किंतु आरके ग्रुप के चेयरमैन रामकिशोर अग्रवाल संभवत: यह भूल गये हैं कि इस तरह ऑब्लाइज करके वह किसी अखबार में समाचार छपने से तो रोक सकते हैं लेकिन मान्यता नहीं पा सकते।
मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिल पाने के बाद आरके ग्रुप के फर्जीवाड़े की और भी बहुत सी जानकारियां अब सामने आ रही हैं।
कॉलेज के ही सूत्र बताते हैं कि ग्रुप में भी एक ही फैकल्टी को कई-कई जगह कार्यरत दिखाया जा रहा है। जैसे जो व्यक्ति इनके डेंटल कॉलेज में किसी एक पद पर कार्यरत है, वही इनकी फार्मेसी में किसी दूसरे पद पर और राजीव एकेडमी में किसी अन्य पद पर कार्यरत दर्शा रखा है।
बताया जाता है कि इसी महीने की 19 से 24 तारीख तक केडी डेंटल कॉलेज का इंस्पेक्शन होना है। इस इंस्पेक्शन के लिए ग्रुप के लोग फर्जी अर्थात् भाड़े की अस्थाई फैकल्टी तथा नकली मरीजों का जुगाड़ करने में लगे हैं ताकि कहीं डेंटल कॉलेज की मान्यता पर भी आंच न आ जाए।
रामकिशोर की कार्यप्रणाली का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इंस्पेक्शन के दौरान वह अपने यहां कार्यरत ठेका मजदूरों को ही मरीज बनाकर लेटा देते हैं और आस-पास के गांवों से ट्रॉलियां भरवाकर लोगों को बुला लेते हैं।
इंस्पेक्शन से पहले अखबारों में फ्री चैकअप तथा कैंप संबंधी विज्ञापन दे दिया जाता है जिससे लोग अच्छी तादाद में पहुंचने लगते हैं जबकि सामान्य दिनों में पहुंचने वाले मरीजों को कॉलेज के डॉक्टर उसी प्रकार तारीख पर तारीख देते रहते हैं जिस प्रकार कचहरी में दी जाती है क्योंकि आज भी डेंटल कॉलेज में फैकल्टी की भारी कमी है।
रही बात मेडीकल कॉलेज के कर्मचारियों से मारपीट करने की तो यह न पहली बार हुआ है न केवल मेडीकल कॉलेज का किस्सा है।
बताया जाता है कि छोटी-छोटी बात पर उत्तेजित होकर आपे से बाहर हो जाना रामकिशोर, उनके पुत्रों तथा मामा के नाम से कुख्यात उनके साले का शगल रहा है।
यह बात अलग है कि अब तक यह अपने पैसे तथा प्रभाव के बल पर ऐसे सभी मामलों को दबाने में सफल रहे हैं।
मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिल पाने की वजह से बर्बादी के कगार तक पहुंच चुके रामकिशोर की इस दशा का एक कारण व्यावसायिक तथा पारिवारिक प्रतिद्वंदता भी बताई जाती है।
सूत्रों की मानें तो हर काले को सफेद करने में माहिर रामकिशोर इस बार इसलिए मात खा गये कि व्यावसायिक व पारिवारिक प्रतिद्वंदियों ने इंस्पेक्शन करने वाले पैनल को कुछ भी गलत करने का मौका नहीं मिलने दिया। उन्होंने रामकिशोर की पूरी असलियत उनके सामने रखी और इसके लिए हर वो हथकंडा अपनाया जिससे पैनल किसी बहकावे में न आ सके।
दरअसल, एक मामूली से व्यवसायी से तकनीकी शिक्षा के हब का चेयरमैन बन जाने वाले रामकिशोर अग्रवाल ने कभी सोचा नहीं था कि वक्त जब करवट लेता है तो सारे पांसे उल्टे पड़ने लगते हैं और सारी जालसाजी रखी की रखी रह जाती है।
रामकिशोर अग्रवाल के स्वास्थ्य के लिए अब यही मुफीद होगा कि वह शिक्षा के अपने व्यवसाय में पूरी परदर्शिता रखें और खुद को किसी मसीहा की तरह पेश न करके व्यावसायिक सच्चाइयों से रुबरू हों।
रामकिशोर अग्रवाल को समझना होगा कि हर रोज किसी न किसी संस्था से कोई अवार्ड पाने का समाचार अखबारों में छपवाने से सच्चाई को बहुत दिनों तक छिपा पाना संभव नहीं होता।
वक्त पर सच्चाई सामने आकर रहती है, और रामकिशोर अग्रवाल इसका अहसास एक बार विधानसभा का चुनाव लड़कर भी कर चुके हैं।
-लीजेंड न्यूज़ विशेष
यह जानकारी देशभर के मेडिकल कॉलेजों को मान्यता प्रदान करने वाली संस्था मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के सूत्रों ने दी है।
सूत्रों का तो यह कहना है कि अब तक आम लोगों को जालसाजी करके डिग्रियां हासिल करने वाले ”मुन्ना भाइयों” की ही जानकारी रही होगी लेकिन मथुरा का यह पूरा कॉलेज ही ”मुन्ना भाई मेडीकल कॉलेज” निकला।
एमसीआई के सूत्रों का कहना है कि केडी मेडीकल कॉलेज को मान्यता देने के लिए किये गये इंस्पेक्शन में पता लगा कि कॉलेज में न सिर्फ फैकल्टीज फर्जी दिखाई गई हैं बल्कि फर्जी मरीज तक लाकर एडमिट कर दिये गये।
एमसीआई के मुताबिक तीन बार किये गये इंस्पेक्शन के दौरान एमसीआई के पैनल को पता लगा कि जो फैकल्टीज केडी मेडीकल कॉलेज में कार्यरत दर्शायी गई हैं, एक्चुअली वह पहले से किन्हीं दूसरे मेडीकल कॉलेज में कार्यरत थीं।
इसी प्रकार पैनल को जो मरीज पहले इंस्पेक्शन में कॉलेज के अंदर एडमिट दिखाये गये वही मरीज हर बार यानि दूसरे और तीसरे इंस्पेक्शन में भी दिखा दिये गये। कॉलेज के ओपीडी से लेकर आईसीयू आदि में वही मरीज एडमिट मिले।
एमसीआई के सूत्रों ने बताया कि इन मरीजों में से भी करीब 60 प्रतिशत वो लोग बार-बार एडमिट दिखाये जा रहे थे जो किसी रोग से पीड़ित ही नहीं थे।
यही कारण रहा कि केडी मेडीकल कॉलेज को मान्यता की प्रक्रिया से बाहर (डी-बार) कर दिया गया।
एमसीआई के सूत्रों का कहना है कि अब कम से कम दो साल बाद आरके ग्रुप इस कॉलेज की मान्यता के लिए आवेदन कर सकता है लेकिन तब भी उन कारणों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता जिन कारणों से अब इसे डी-बार किया गया है।
बताया जाता है कि केडी मेडीकल कॉलेज के निर्माण पर काफी बड़ी रकम खर्च हो जाने के बावजूद इसे मान्यता न मिल पाने से ग्रुप के चेयरमैन रामकिशोर अग्रवाल डिप्रेशन में आ गये हैं और डिप्रेशन के चलते ही उन्होंने कॉलेज के कर्मचारियों से वो व्यवहार कर डाला जो किसी गरिमामय पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा नहीं देता।
यह भी जानकारी मिली है कि रामकिशोर के व्यवहार और मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिल पाने के कारण बहुत बड़ी संख्या में कर्मचारियों ने कॉलेज छोड़ दिया है।
कुछ समय पहले तक केडी मेडीकल कॉलेज में जहां 104 कर्मचारी हुआ करते थे, वहां आज की तारीख में मात्र 34 कर्मचारी कार्यरत हैं, और ये कर्मचारी भी पिछले दिनों उनके साथ हुई मारपीट की घटना के कारण कॉलेज छोड़ने का मन बना चुके हैं।
केडी मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिलने तथा वहां कर्मचारियों के साथ मारपीट किये जाने का समाचार ”लीजेंड न्यूज़” में प्रकाशित होने के बाद आज आगरा से प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार के पृष्ठ संख्या चार पर केडी मेडीकल कॉलेज का एक क्वार्टर पेज विज्ञापन प्रकाशित कराया गया है किंतु आरके ग्रुप के चेयरमैन रामकिशोर अग्रवाल संभवत: यह भूल गये हैं कि इस तरह ऑब्लाइज करके वह किसी अखबार में समाचार छपने से तो रोक सकते हैं लेकिन मान्यता नहीं पा सकते।
मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिल पाने के बाद आरके ग्रुप के फर्जीवाड़े की और भी बहुत सी जानकारियां अब सामने आ रही हैं।
कॉलेज के ही सूत्र बताते हैं कि ग्रुप में भी एक ही फैकल्टी को कई-कई जगह कार्यरत दिखाया जा रहा है। जैसे जो व्यक्ति इनके डेंटल कॉलेज में किसी एक पद पर कार्यरत है, वही इनकी फार्मेसी में किसी दूसरे पद पर और राजीव एकेडमी में किसी अन्य पद पर कार्यरत दर्शा रखा है।
बताया जाता है कि इसी महीने की 19 से 24 तारीख तक केडी डेंटल कॉलेज का इंस्पेक्शन होना है। इस इंस्पेक्शन के लिए ग्रुप के लोग फर्जी अर्थात् भाड़े की अस्थाई फैकल्टी तथा नकली मरीजों का जुगाड़ करने में लगे हैं ताकि कहीं डेंटल कॉलेज की मान्यता पर भी आंच न आ जाए।
रामकिशोर की कार्यप्रणाली का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इंस्पेक्शन के दौरान वह अपने यहां कार्यरत ठेका मजदूरों को ही मरीज बनाकर लेटा देते हैं और आस-पास के गांवों से ट्रॉलियां भरवाकर लोगों को बुला लेते हैं।
इंस्पेक्शन से पहले अखबारों में फ्री चैकअप तथा कैंप संबंधी विज्ञापन दे दिया जाता है जिससे लोग अच्छी तादाद में पहुंचने लगते हैं जबकि सामान्य दिनों में पहुंचने वाले मरीजों को कॉलेज के डॉक्टर उसी प्रकार तारीख पर तारीख देते रहते हैं जिस प्रकार कचहरी में दी जाती है क्योंकि आज भी डेंटल कॉलेज में फैकल्टी की भारी कमी है।
रही बात मेडीकल कॉलेज के कर्मचारियों से मारपीट करने की तो यह न पहली बार हुआ है न केवल मेडीकल कॉलेज का किस्सा है।
बताया जाता है कि छोटी-छोटी बात पर उत्तेजित होकर आपे से बाहर हो जाना रामकिशोर, उनके पुत्रों तथा मामा के नाम से कुख्यात उनके साले का शगल रहा है।
यह बात अलग है कि अब तक यह अपने पैसे तथा प्रभाव के बल पर ऐसे सभी मामलों को दबाने में सफल रहे हैं।
मेडीकल कॉलेज को मान्यता न मिल पाने की वजह से बर्बादी के कगार तक पहुंच चुके रामकिशोर की इस दशा का एक कारण व्यावसायिक तथा पारिवारिक प्रतिद्वंदता भी बताई जाती है।
सूत्रों की मानें तो हर काले को सफेद करने में माहिर रामकिशोर इस बार इसलिए मात खा गये कि व्यावसायिक व पारिवारिक प्रतिद्वंदियों ने इंस्पेक्शन करने वाले पैनल को कुछ भी गलत करने का मौका नहीं मिलने दिया। उन्होंने रामकिशोर की पूरी असलियत उनके सामने रखी और इसके लिए हर वो हथकंडा अपनाया जिससे पैनल किसी बहकावे में न आ सके।
दरअसल, एक मामूली से व्यवसायी से तकनीकी शिक्षा के हब का चेयरमैन बन जाने वाले रामकिशोर अग्रवाल ने कभी सोचा नहीं था कि वक्त जब करवट लेता है तो सारे पांसे उल्टे पड़ने लगते हैं और सारी जालसाजी रखी की रखी रह जाती है।
रामकिशोर अग्रवाल के स्वास्थ्य के लिए अब यही मुफीद होगा कि वह शिक्षा के अपने व्यवसाय में पूरी परदर्शिता रखें और खुद को किसी मसीहा की तरह पेश न करके व्यावसायिक सच्चाइयों से रुबरू हों।
रामकिशोर अग्रवाल को समझना होगा कि हर रोज किसी न किसी संस्था से कोई अवार्ड पाने का समाचार अखबारों में छपवाने से सच्चाई को बहुत दिनों तक छिपा पाना संभव नहीं होता।
वक्त पर सच्चाई सामने आकर रहती है, और रामकिशोर अग्रवाल इसका अहसास एक बार विधानसभा का चुनाव लड़कर भी कर चुके हैं।
-लीजेंड न्यूज़ विशेष
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