-मथुरा में ADJ रहे ए. के. गणेश भी इन जजों में शामिल
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ के इतिहास में यह पहला अवसर है जब गंभीर आरोपों के चलते न्यायिक सेवा के 15 अधिकारियों को एकसाथ कंपलसरी Retirement देकर घर बैठा दिया गया।
संदिग्ध आचरण के आरोपों पर जबरन सेवानिवृत्त किए गए ये सभी अधिकारी एडीजे और एसीजेएम स्तर के हैं।
इन अधिकारियों को जबरन सेवा निवृत्त करने का निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने एक फुल कोर्ट मीटिंग के बाद इसी महीने की 14 तारीख को लिया।
उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूण द्वारा लिए गए निर्णय से उत्तर प्रदेश सरकार को अवगत कराते हुए इन सभी 15 अधिकारियों के अधिकार छीन लिए गए और अधिकारी के रूप में इनकी सभी गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई।
इस बात की जानकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल शिवेन्द्र कुमार सिंह ने दी।
जिन अधिकारियों को जबरन सेवा निवृत्त करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एतिहासिक निर्णय लिया है, उनमें एडीजे सिद्धार्थनगर शैलेश्वर नाथ सिंह, एडीजे इटावा बंसराज, एडीजे आजमगढ़ राममूर्ति यादव, एडीजे (एंटी करप्शन) लखनऊ ध्रुव राज, एडीजे मुरादाबाद जगदीश द्वितीय, एडीजे सोनभद्र नरेश, एडीजे सोनभद्र विमल प्रकाश काण्डपाल, फैमिली कोर्ट जज कुशीनगर ए. के. गणेश, एडीजे गाजीपुर अरविंद कुमार प्रथम, एडीजे मेरठ अविनाश चंद्र त्रिपाठी, एडीजे मुरादाबाद अविनाश कुमार द्विवेदी, एडीजे फर्रुखाबाद मोहम्मद मतीन खान, एडीजे कांशीराम नगर किशोर कुमार द्वितीय, एसीजेएम पीलीभीत श्याम शंकर सिंह द्वितीय तथा एसीजेएम हरदोई श्याम शंकर द्वितीय शामिल हैं।
इनमें से ए. के. गणेश करीब 5 साल पहले मथुरा में एडीजे थर्ड के पद पर काबिज हुए थे। मूल रूप से दक्षिण भारत के रहने वाले न्यायिक सेवा के इस अधिकारी ने धर्म की नगरी मथुरा में रहकर न केवल अपने अधिकारों का भरपूर दुरुपयोग किया बल्कि कानून के साथ यथासंभव खिलवाड़ किया।
ए. के. गणेश ने मथुरा में तैनाती के दौरान मुख्य रूप से अपना हथियार सीआरपीसी की धारा 319 को बनाया। धारा 319 के लिए जज को यह विशेष अधिकार प्राप्त है कि वह किसी आपराधिक मुकद्दमे में किसी भी ऐसे व्यक्ति को इस धारा का इस्तेमाल करके तलब कर सकता है जिसका नाम पुलिस एफआईआर में न हो अथवा जिसका नाम पुलिस ने तफ्तीश के बाद यह मानते हुए एफआईआर से निकाल दिया हो कि उसकी उक्त घटना में संलिप्तता नहीं थी।
ए. के. गणेश ने इस धारा को हथियार बनाकर एक ओर जहां वादी पक्ष से इस बात का पैसा लिया कि वह उसके बताए किसी भी व्यक्ति को 319 का नोटिस भेजकर आरोपी बना देगा, वहीं आरोपी बनाए गए निर्दोष व्यक्तियों से उन्हें जमानत देने के नाम पर भरपूर लूट की।
ए. के. गणेश ने यह सब तब किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 319 के मामले में इस आशय के स्पष्ट आदेश व निर्देश दे रखे हैं कि 319 के तहत किसी व्यक्ति को तभी तलब किया जाए जब उसके खिलाफ संबंधित आपराधिक घटना में लिप्त होने के पर्याप्त सबूत हों और वो सबूत उसे सजा दिलाने के लिए पर्याप्त हों।
सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 319 का अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग रोकने के लिए ऐसे निर्देश भी दे रखे हैं कि 319 के तहत जारी किए गए तलबी आदेश पर खुद जज के हस्ताक्षर होने चाहिए न कि उनके बिहाफ पर किसी अधीनस्थ के हस्ताक्षर से नोटिस जारी कर दिया जाए।
ए. के. गणेश ने मथुरा में एडीजे के पद पर रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के इन आदेश-निर्देशों की जमकर धज्जियां उड़ाईं और अपने कुछ खास दलालों के माध्यम से लाखों रुपए वसूले।
ए. के. गणेश की मथुरा में मनमानी का आलम यह था कि उसके मुंह से रिश्वत की जो रकम एकबार निकल जाती थी, वह उससे पीछे नहीं हटता था और तब तक लोगों को प्रताड़ित करता था जब तक रकम की पूरी वसूली नहीं कर लेता था।
ऐसा नहीं है कि ए. के. गणेश अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वाला अकेला अधिकारी था या दूसरे न्यायिक अधिकारी उसकी इस कार्यप्रणाली से वाकिफ नहीं थे किंतु बोलता कोई कुछ नहीं था क्योंकि अधिकांश अधिकारियों की कार्यप्रणाली उससे मेल खाती थी और वो उसी कार्यप्रणाली के कायल थे।
अब जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ए. के. गणेश जैसे 15 न्यायिक अधिकारियों को एतिहासिक निर्णय देकर सबक सिखाया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि समूचे न्यायिक अधिकारियों में एक भय व्याप्त होगा और वह अपने विशेष अधिकारों का दुरुपयोग करने तथा पैसा वसूलने के लिए किसी निर्दोष को फंसाने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर।
-लीजेंड न्यूज़
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ के इतिहास में यह पहला अवसर है जब गंभीर आरोपों के चलते न्यायिक सेवा के 15 अधिकारियों को एकसाथ कंपलसरी Retirement देकर घर बैठा दिया गया।
संदिग्ध आचरण के आरोपों पर जबरन सेवानिवृत्त किए गए ये सभी अधिकारी एडीजे और एसीजेएम स्तर के हैं।
इन अधिकारियों को जबरन सेवा निवृत्त करने का निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच ने एक फुल कोर्ट मीटिंग के बाद इसी महीने की 14 तारीख को लिया।
उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूण द्वारा लिए गए निर्णय से उत्तर प्रदेश सरकार को अवगत कराते हुए इन सभी 15 अधिकारियों के अधिकार छीन लिए गए और अधिकारी के रूप में इनकी सभी गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई।
इस बात की जानकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल शिवेन्द्र कुमार सिंह ने दी।
जिन अधिकारियों को जबरन सेवा निवृत्त करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एतिहासिक निर्णय लिया है, उनमें एडीजे सिद्धार्थनगर शैलेश्वर नाथ सिंह, एडीजे इटावा बंसराज, एडीजे आजमगढ़ राममूर्ति यादव, एडीजे (एंटी करप्शन) लखनऊ ध्रुव राज, एडीजे मुरादाबाद जगदीश द्वितीय, एडीजे सोनभद्र नरेश, एडीजे सोनभद्र विमल प्रकाश काण्डपाल, फैमिली कोर्ट जज कुशीनगर ए. के. गणेश, एडीजे गाजीपुर अरविंद कुमार प्रथम, एडीजे मेरठ अविनाश चंद्र त्रिपाठी, एडीजे मुरादाबाद अविनाश कुमार द्विवेदी, एडीजे फर्रुखाबाद मोहम्मद मतीन खान, एडीजे कांशीराम नगर किशोर कुमार द्वितीय, एसीजेएम पीलीभीत श्याम शंकर सिंह द्वितीय तथा एसीजेएम हरदोई श्याम शंकर द्वितीय शामिल हैं।
इनमें से ए. के. गणेश करीब 5 साल पहले मथुरा में एडीजे थर्ड के पद पर काबिज हुए थे। मूल रूप से दक्षिण भारत के रहने वाले न्यायिक सेवा के इस अधिकारी ने धर्म की नगरी मथुरा में रहकर न केवल अपने अधिकारों का भरपूर दुरुपयोग किया बल्कि कानून के साथ यथासंभव खिलवाड़ किया।
ए. के. गणेश ने मथुरा में तैनाती के दौरान मुख्य रूप से अपना हथियार सीआरपीसी की धारा 319 को बनाया। धारा 319 के लिए जज को यह विशेष अधिकार प्राप्त है कि वह किसी आपराधिक मुकद्दमे में किसी भी ऐसे व्यक्ति को इस धारा का इस्तेमाल करके तलब कर सकता है जिसका नाम पुलिस एफआईआर में न हो अथवा जिसका नाम पुलिस ने तफ्तीश के बाद यह मानते हुए एफआईआर से निकाल दिया हो कि उसकी उक्त घटना में संलिप्तता नहीं थी।
ए. के. गणेश ने इस धारा को हथियार बनाकर एक ओर जहां वादी पक्ष से इस बात का पैसा लिया कि वह उसके बताए किसी भी व्यक्ति को 319 का नोटिस भेजकर आरोपी बना देगा, वहीं आरोपी बनाए गए निर्दोष व्यक्तियों से उन्हें जमानत देने के नाम पर भरपूर लूट की।
ए. के. गणेश ने यह सब तब किया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने धारा 319 के मामले में इस आशय के स्पष्ट आदेश व निर्देश दे रखे हैं कि 319 के तहत किसी व्यक्ति को तभी तलब किया जाए जब उसके खिलाफ संबंधित आपराधिक घटना में लिप्त होने के पर्याप्त सबूत हों और वो सबूत उसे सजा दिलाने के लिए पर्याप्त हों।
सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 319 का अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग रोकने के लिए ऐसे निर्देश भी दे रखे हैं कि 319 के तहत जारी किए गए तलबी आदेश पर खुद जज के हस्ताक्षर होने चाहिए न कि उनके बिहाफ पर किसी अधीनस्थ के हस्ताक्षर से नोटिस जारी कर दिया जाए।
ए. के. गणेश ने मथुरा में एडीजे के पद पर रहते हुए सुप्रीम कोर्ट के इन आदेश-निर्देशों की जमकर धज्जियां उड़ाईं और अपने कुछ खास दलालों के माध्यम से लाखों रुपए वसूले।
ए. के. गणेश की मथुरा में मनमानी का आलम यह था कि उसके मुंह से रिश्वत की जो रकम एकबार निकल जाती थी, वह उससे पीछे नहीं हटता था और तब तक लोगों को प्रताड़ित करता था जब तक रकम की पूरी वसूली नहीं कर लेता था।
ऐसा नहीं है कि ए. के. गणेश अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वाला अकेला अधिकारी था या दूसरे न्यायिक अधिकारी उसकी इस कार्यप्रणाली से वाकिफ नहीं थे किंतु बोलता कोई कुछ नहीं था क्योंकि अधिकांश अधिकारियों की कार्यप्रणाली उससे मेल खाती थी और वो उसी कार्यप्रणाली के कायल थे।
अब जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ए. के. गणेश जैसे 15 न्यायिक अधिकारियों को एतिहासिक निर्णय देकर सबक सिखाया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि समूचे न्यायिक अधिकारियों में एक भय व्याप्त होगा और वह अपने विशेष अधिकारों का दुरुपयोग करने तथा पैसा वसूलने के लिए किसी निर्दोष को फंसाने से पहले एक बार सोचेंगे जरूर।
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