मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में मौजूद अधिकांश प्रमुख प्रत्याशी एक्सीडेंटल पॉलिटीशियन हैं न कि रैगूलर पॉलिटीशियन। यानि ये लोग किसी न किसी दुर्घटनावश या यूं कहें कि हालातों के मद्देनजर अथवा मौका मिलने पर राजनीति में आ गए अन्यथा न तो इनके परिवार में कोई राजनीतिज्ञ रहा और न इनकी अपनी राजनीति में कोई रुचि थी।
सबसे पहले बात करते हैं चार बार विधायक रह चुके कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के गठबंधन प्रत्याशी प्रदीप माथुर की।
1980-81 की बात रही होगी, तब प्रदीप माथुर बीएसए कॉलेज में लॉ (कानून) के विद्यार्थी हुआ करते थे। कृष्णा नगर के एक छोटे से किराए के मकान में रहने वाले प्रदीप माथुर के पिता सरकारी विभाग के मुलाजिम थे और इनकी माली हालत बस गुजारा करने भर की इजाजत देती थी।
लॉ के आखिरी सेमिस्टर की पढ़ाई के दौरान बीएसए कॉलेज के सामने हुई एक सड़क दुर्घटना में किसी युवक की मौत हो गई। पिता के साए से महरूम इस युवक की बहिन का रिश्ता तय हो चुका था और नजदीक ही शादी की तारीख तय थी।
चौबिया पाड़ा क्षेत्र के रहने वाले उक्त युवक के परिवार में इस दुर्घटना से कोहराम मचना ही था। मृत युवक के परिवार की दुर्दशा और उसकी बहिन की होने जा रही शादी को देखते हुए बीएसए कॉलेज के कुछ लॉ स्टूडेंट आगे आए। इन स्टूडेंट्स ने पहले तो कॉलेज के सामने वाली सड़क को अवरुद्ध किया और बाद में युवक के परिवार की मदद करने का बीड़ा उठाया। इन स्टूडेंट्स में से एक का नाम था प्रदीप माथुर। अन्य युवकों में शामिल थे घाटी बहालराय घीया मंडी निवासी रमेश पचौरी। वकील आनंद मोहन पचौरी के पुत्र रमेश पचौरी अब मथुरा में ही रेवेन्यू के वकील हैं। इस ग्रुप में शामिल तीसरे युवक का नाम था अब्दुल जब्बार। सदर बाजार निवासी अब्दुल जब्बार आज वृंदावन में एक कुकिंग गैस एजेंसी के संचालक हैं, साथ ही राजनीति में भी रुचि रखते हैं। अब्दुल जब्बार भी प्रदीप माथुर की तरह कांग्रेसी हैं और प्रदीप माथुर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले हैं, बावजूद इसके उन्हें राजनीति में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं हो पाई।
इनके अलावा इसी ग्रुप में शामिल रहे चौथे छात्र का नाम राकेश यादव है जिन्हें लोग राकेश मामा के नाम से जानते हैं। राकेश यादव भी कांग्रेसी हैं और अब तक प्रदीप माथुर का साथ देकर अपनी निष्ठा पूरी कर रहे हैं। राकेश यादव एक इंटर कॉलेज के संचालक तो हैं ही, कामधेनु गऊशाला का भी संचालन करते हैं। वह एक बार कांग्रेस की टिकट पर एमएलसी का चुनाव लड़ चुके हैं किंतु उसमें सफलता नहीं मिल सकी।
बहरहाल, इन सभी स्टूडेंट्स ने मिलकर सड़क दुर्घटना में मारे गए उस युवक की बहिन का विवाह कराने के लिए चंदा इकठ्ठा किया और तय समय पर उसकी शादी करवा दी।
युवकों के इस नेक काम की गूंज प्रदेश सरकार के कानों तक पहुंची अत: प्रदेश सरकार ने इन युवकों को पुरस्कृत करने का ऐलान किया। तत्कालीन गवर्नर ने इन्हें पुरस्कृत किया तो ये युवक अचानक समाज में हीरो बनकर उभरे।
कांग्रेस को उस दौरान चुनाव लड़ाने के लिए साफ-सुथरी छवि वाले उत्साही युवकों की तलाश थी। मथुरा में कांग्रेस की यह तलाश प्रदीप माथुर के रूप में पूरी हुई जिसका बड़ा कारण हाईकमान तक प्रदीप माथुर के किन्हीं निकटस्थ रिश्तेदार की पहुंच भी बताई जाती है।
जो भी हो, इस तरह अचानक एक दुर्घटना से उपजे हालातों ने प्रदीप माथुर को पहले चुनावी चेहरा बनवाया और फिर विधायक।
पहला चुनाव जीतने के बाद प्रदीप माथुर अगले चुनाव में जीत दर्ज नहीं करा पाए किंतु राजनीति उन्हें रास आ गई। अब वह लगातार तीन बार से विधायक हैं। इस बीच केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार काबिज रही किंतु प्रदीप माथुर ने मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका उल्लेख किया जा सके।
वैसे खुद प्रदीप माथुर पहले यमुना नदी पर गोकुल बैराज को बनवाने का श्रेय लेते थे लेकिन जब से यह सिद्ध हुआ कि गोकुल बैराज सरकार के लिए सफेद हाथी तथा यमुना के लिए वरदान की जगह अभिषाप बन गया है तब से प्रदीप माथुर ने गोकुल बैराज के निर्माण का श्रेय लेना बंद कर दिया है।
यही हाल कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूअल मिशन यानि ''जे नर्म'' योजना का हुआ। जे नर्म में मथुरा को शामिल कराने का श्रेय प्रदीप माथुर ने डंके की चोट पर लिया और इस आशय का प्रचार किया कि इस योजना के धरातल पर उतरने के साथ मथुरा का कायाकल्प उसकी गरिमा के अनुसार होगा। इस योजना के तहत मथुरा के लिए 1800 करोड़ से अधिक की रकम निर्धारित की गई किंतु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। जे नर्म के तहत हुए चंद कामों ने पूरे शहर का हुलिया बिगाड़ कर रख दिया और मथुरा की सूरत बनने की जगह बिगड़ती चली गई। यह बात अलग है कि इस योजना के तहत प्रथम फेज का काम पूरा कराने को जो करोड़ों रुपया मिला, उसका विभिन्न स्तर पर बंदरबांट होता रहा और काम समय पर पूरा न हो पाने की वजह से मथुरा को योजना से बाहर कर दिया गया। इस पूरे घपले में कहीं न कहीं विधायक प्रदीप माथुर की भी संलिप्तता का जिक्र होता रहा है लेकिन स्पष्टत: कुछ सामने नहीं आया।
आम जनता द्वारा ''जे नर्म'' में हुए घपले से विधायक प्रदीप माथुर को जोड़ने की एक वजह यह भी रही है कि इस बीच प्रदीप माथुर फर्श से अर्श तक जा पहुंचे जबकि हैसियत उनकी सिर्फ विधायक की ही थी। प्रदीप माथुर की माली हालत की बात करें तो अब वह प्रत्यक्ष में एक गैस एजेंसी और सर्वाधिक कीमती इलाके कृष्णा नगर में करोड़ों रुपए मूल्य की भव्य कोठी के मालिक हैं। उनकी संतानें मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और उनके नाम पर भी पॉश कॉलोनियों में अचल संपत्तियां हैं।
बताया जाता है कि प्रदीप माथुर की दूसरे व्यापारों में भी साझेदारी है किंतु इसकी पुष्टि नहीं हो सकी, अलबत्ता लोकपाल से शिकायत जरूर हुई।
एक ऐसे ही व्यापारिक मामले में सरकारी कर्ज को लेकर प्रदीप माथुर पर केस चला था और उसमें गैर जमानती वारंट भी जारी हुए थे लेकिन वर्तमान में उसका क्या स्टेटस है, यह कोई बताने को तैयार नहीं।
जाहिर है कि मथुरा के लिए प्रदीप माथुर ने कुछ किया या नहीं किया, किंतु अपने लिए इतना कुछ कर लिया है कि आगे आने वाली पीढ़ी को भी शायद ही कभी आर्थिक समस्या का सामना करना पड़े।
यमुना प्रदूषण मुक्ति के लिए शुरू की गई पदयात्रा में बाबा जयकृष्ण दास सहित यमुना भक्तों के साथ प्रदीप माथुर द्वारा केंद्र के इशारे पर किए गए धोखे से मथुरा की जनता बेहद नाराज है और इसीलिए इस बार जब प्रदीप माथुर नामांकन भरने से पहले यमुना पूजन करने पहुंचे तो उनका खासा विरोध किया गया।
मथुरा की जनता से पूछने पर वह साफ कहती है कि कुल चार बार की विधायकी में प्रदीप माथुर ने अपना घर खूब भरा लेकिन मथुरा का कोई भला नहीं कर पाए। मथुरा के लिए जो भी योजनाएं लाई गईं, उनका मकसद निजी स्वार्थ पूरे करना रहा न कि मथुरा को उसके गौरवशाली अतीत से रूबरू कराना।
ऐसे ही दूसरे एक्सीडेंटल पॉलिटीशियन हैं राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी डॉ. अशोक अग्रवाल। जहां तक सवाल बाल रोग विशेषज्ञ रहते राजनीति में आने वाले डॉ. अशोक अग्रवाल का है, तो इसका कारण बनी अपहरण की एक आपराधिक घटना वरना डॉ. अशोक, ''अशोक हॉस्पीटल'' के नाम से चौकी बाग बहादुर क्षेत्र में अपना अच्छा-खासा चिकित्सकीय व्यवसाय चला रहे थे।
यह आपराधिक घटना घटी सन् 2003 के जुलाई महीने में। इस घटना के तहत शहर के मशहूर डॉक्टर उमेश माहेश्वरी का मसानी क्षेत्र से तब देर शाम अपहरण कर लिया गया जब वो चौक बाजार स्थित अपनी क्लीनिक से एनएच टू स्थित अपने घर तथा हॉस्पीटल लौट रहे थे। माहेश्वरी हॉस्पीटल नामक इस संस्थान को डॉ. उमेश माहेश्वरी के पुत्र डॉ. मयंक माहेश्वरी व डॉ. शशांक माहेश्वरी संचालित करते हैं। हॉस्पीटल के ऊपर ही माहेश्वरी परिवार ने अपना निवास बना रखा है।
प्रसिद्ध चिकित्सक उमेश माहेश्वरी के अपहरण से मथुरा ही नहीं नजदीकी शहरों के चिकत्सा जगत में भी हंगामा मच गया क्योंकि डॉ. उमेश माहेश्वरी आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे।
उस वक्त मथुरा के एसएसपी प्रेम प्रकाश हुआ करते थे। जाहिर है कि पुलिस पर डॉ. उमेश माहेश्वरी को जल्द से जल्द अपराधियों के चंगुल से छुड़ाने का खासा दबाव था लिहाजा पुलिस हाथ-पैर तो खूब मार रही थी किंतु नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था।
इधर डॉ. उमेश माहेश्वरी के दोनों डॉ. पुत्र तथा अन्य लोग भी अपने स्तर से डॉ. साहब के बारे में जानकारी करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।
इस दौरान पुलिस को पता लगा कि डॉ. उमेश माहेश्वरी के अपहरणकर्ताओं से कुछ लोग संपर्क साधने में सफल हुए हैं और उनकी अपहरणकर्ताओं से बातचीत चल रही है।
इन लोगों में कृष्ण जन्मभूमि की सुरक्षा ड्यूटी में तैनात पुलिस के ही एक सीओ त्रिदीप सिंह, अलीगढ़ में तैनात एलआईयू का एक सब इंस्पेटर मलिक सहित एक उद्योगपति, एक प्रसिद्ध वकील तथा एक डॉक्टर भी शामिल हैं।
पुलिस अभी और कुछ कर पाती कि इससे पहले किसी तरह डॉ. उमेश माहेश्वरी बदमाशों के चंगुल से मुक्त होने में सफल रहे। बदमाशों के चंगुल से मुक्त होकर डॉ. उमेश माहेश्वरी ने होटल मधुवन में एक प्रेस कांफ्रेस करके जो जानकारी दी, उसके मुताबिक पुलिस की उन्हें मुक्त कराने में कोई भूमिका नहीं रही।
डॉ. उमेश माहेश्वरी द्वारा दी गई जानकारी मथुरा पुलिस को काफी नागवार गुजरी और उसने अपना मुंह साफ करने के लिए सबसे पहले सीओ त्रिदीप सिंह पर शिकंजा कसा। पुलिस ने सीओ त्रिदीप सिंह के सरकारी घर से 11 लाख रुपए बरामद करते हुए बताया कि यह रकम बदमाशों को फिरौती देकर डॉ. उमेश माहेश्वरी को छुड़वाने के एवज में सीओ को मिली है तथा सीओ व अन्य कई लोग बदमाशों को फिरौती दिलवाने में शामिल रहे हैं। सीओ त्रिदीप सिंह को आरोपी बनाकर जेल भेजने के बाद पुलिस ने रात में फौजदारी के प्रसिद्ध वकील राम सरीन के डेंपियर नगर स्थित आवास पर दविश दी और फिर चौकी बाग बहादुर स्थित डॉ. अशोक के निवास को घेर लिया।
पुलिस ने डॉ. अशोक पर बदमाशों के साथ सांठगांठ होने का आरोप लगाया और कहा कि फिरौती की रकम दिलवाने में उनकी भी भूमिका रही है। पुलिस ने डॉ. अशोक और एडवोकेट राम सरीन को गिरफ्तार तो नहीं किया लेकिन उनके यहां पुलिसिया तांडव जमकर किया।
डा. अशोक को पुलिस के इस अप्रत्याशित व्यवहार ने पूरी तरह हिला दिया अत: उन्होंने पुलिसिया हरकत के अगले दिन अपने हॉस्पीटल में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। प्रेस कांफ्रेस में डॉ. अशोक ने जो जानकारी दी वो चौंकाने वाली थी।
डॉ. अशोक ने बताया कि पुलिस द्वारा उनके यहां दविश देने से पहले मथुरा दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ अमी आधार निडर का फोन उनके पास आया था और उन्होंने मुझसे एसएसपी के नाम से 5 लाख रुपयों की मांग की।
डॉ. अशोक ने तब प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि अमी आधार निडर ने उनसे साफ कहा है कि एसएसपी प्रेम प्रकाश उनके घर पर बैठे हैं और यदि यह मांग पूरी नहीं की गई तो रात में आपको आरोपी बनाकर जेल भेज दिया जाएगा।
डॉ. अशोक ने प्रेस कांफ्रेस में बाकायदा रोते हुए सिलसिलेवार पुलिस और अमी आधार निडर के धमकाने का ब्यौरा देकर कहा कि यदि मुझे न्याय नहीं मिला तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।
डॉ. अशोक के साथ हुई इस घटना के बाद एसएसपी प्रेम प्रकाश का तबादला पड़ोसी जनपद अलीगढ़ के लिए कर दिया गया और दैनिक जागरण ने अमी आधार निडर को भी हटा दिया।
इसके काफी समय बाद सीओ त्रिदीप सिंह को पहले जमानत मिली और फिर अदालत ने उन्हें निर्दोष भी माना। सीओ के यहां से पुलिस द्वारा बरामद दिखाया गया 11 लाख रुपया सीओ को मिल गया किंतु उस घटना ने डॉ. अशोक को राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. अशोक ने सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ली। बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने को तैयार भी किया किंतु ऐन वक्त पर उनका पत्ता काटकर देवेन्द्र गौतम ''गुड्डू'' को टिकट पकड़ा दिया। इधर गुड्डू गौतम चुनाव हार गए और उधर डॉ. अशोक ने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया।
2012 का विधानसभा चुनाव वह सपा के टिकट पर लड़े भी लेकिन कांग्रेस व रालोद के गठबंधन उम्मीदवार प्रदीप माथुर से मात्र 1500 मतों के अंतर से हारकर तीसरे नंबर पर रहे। यही रालोद जिसके टिकट पर डॉ. अशोक अब चुनाव लड़ रहे हैं।
इस बार सपा कांग्रेस के गठबंधन से मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र की सीट सिटिंग विधायक तथा कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर के खाते में चली गई और सारी तैयारियों के बाद भी डॉ. अशोक मुंह देखते रह गए।
मौका देखकर राष्ट्रीय लोकदल ने डॉ. अशोक को लपक लिया और उन्हें अपना टिकट थमाकर मथुरा-वृंदावन से चुनाव मैदान में उतार दिया क्योंकि रालोद के पास इस सीट के लिए कोई कद्दावर केंडीडेट था ही नहीं।
दुर्घटनावश राजनीति में आए प्रदीप माथुर की गिनती आज घाघ राजनीतिज्ञों में होती है जबकि चार बार विधायक रहकर भी उन्होंने मथुरा के लिए कुछ नहीं किया। हां, अपने लिए खूब किया। इतना किया कि राजनीति में आने से पहले जिस प्रदीप माथुर की हैसियत स्कूटर पर चलने की नहीं थी आज वह करोड़ों की चल-अचल संपत्ति के मालिक हैं।
इसी सीट से बसपा के प्रत्याशी योगेश द्विवेदी कुछ वर्षों पहले तक होटल में बैरे का काम करते थे। खुद योगेश द्विवेदी ने अपने इस रूप की फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर डाली हुई हैं जिनमें वह बहिन मायावती व मान्यवर कांशीराम की खिदमत करते दिखाई दे रहे हैं। उनसे पहले उनकी मां पुष्पा शर्मा भी इसी प्रकार स्वास्थ्य विभाग में एएनएम थीं और बाद में नगर निकाय का चुनाव लड़कर वृंदावन नगर पालिका की अध्यक्ष बनीं। पुष्पा शर्मा ने एक चुनाव विधायकी का भी लड़ा लेकिन उसमें उन्हें असफलता हाथ लगी थी। इसी प्रकार योगेश द्विवेदी ने 2009 का लोकसभा चुनाव भी बसपा की टिकट पर लड़ा था किंतु वह हार गए। योगेश द्विवेदी की मां पुष्पा शर्मा अपनी आपराधिक छवि के कारण राजनीति में आईं और उनकी प्रेरणास्त्रोत दस्यु सुंदरी से सांसद बनीं फूलन देवी रहीं। फूलन देवी से उनकी निकटता हमेशा चर्चा का विषय रही है।
अब शेष रह जाते हैं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा। श्रीकांत शर्मा का राजनीति में प्रवेश किसी घटना-दुर्घटनावश हुआ या नहीं, इसके बारे में तो कहना मुश्किल है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनके राजनीतिक कद तथा उम्मीदवारी को उनकी ही पार्टी के लोग किसी बड़ी दुर्घटना से कम नहीं मानते।
मथुरा में एक से एक धुरंधर नेता मुंह देखते रह गए और श्रीकांत शर्मा अचानक हवाई मार्ग द्वारा उस धरा पर उतरे, जिस धरा को वह बीस साल पहले ही छोड़ चुके थे। खुद को गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र के गांव गंठौली निवासी बताने वाले श्रीकांत शर्मा हिमालय में तपस्या करके अमित शाह को प्राप्त कर पाए अथवा अमित शाह ने हिमालय जाकर उन्हें हासिल किया, इस रहस्य को जानने के लिए मथुरा की जनता बेहद उत्साहित है। जनता को उनकी जीत-हार से ज्यादा इस बात में रुचि है कि बीस साल से अधिक समय तक वह राजनीति के किन गलियारों की शोभा बढ़ा रहे थे और कैसे मोदी सरकार के साथ-साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता व राष्ट्रीय सचिव जैसे पदों पर नमूदार हो गए।
श्रीकांत शर्मा की शहरी सीट पर उम्मीदवारी मथुरा की जनता के लिए किसी रहस्य-रोमांच से कम नहीं है। आम मतदाता और खुद पार्टी के भी एक बड़े तबके के लिए उनकी उम्मीदवारी किसी दुर्घटना की तरह है।
अब देखना यह है कि इन चारों एक्सीडेंटल पॉलिटीशियन में से किस के सिर जीत का सेहरा बंधता है और कौन-कौन हार से रूबरू होता है परंतु यह निश्चित है कि मथुरा का विकास एकबार फिर यक्षप्रश्न बनने जा रहा है।
यक्ष प्रश्न इसलिए क्योंकि इन चुनावों से ठीक पहले भी मथुरा की जनता को कुछ ऐसी ही आस बंधाई गई थी, ऐसे ही वायदे किए गए थे और ऐसी ही तकरीरें सुनाई गईं थीं जो अब दिवास्वप्न बनकर रह गई हैं।
मथुरा की स्वप्न सुंदरी सांसद अब कहती हैं कि मथुरा के विकास में अखिलेश सरकार रोड़े अटकाती रही है इसलिए विकास चाहिए तो प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनवाइए।
पता नहीं चुनावों का ऊंट किस करवट बैठेगा लेकिन यह जरूर पता है कि किसी न किसी दुर्घटनावश राजनीति में प्रवेश करने वाले मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के ये प्रत्याशी क्या-क्या गुल खिलायेंगे। जीत किसी की हो लेकिन जनता की हार पहले से तय है क्योंकि एक्सीडेंटल राजनीतिज्ञों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
सबसे पहले बात करते हैं चार बार विधायक रह चुके कांग्रेस व समाजवादी पार्टी के गठबंधन प्रत्याशी प्रदीप माथुर की।
1980-81 की बात रही होगी, तब प्रदीप माथुर बीएसए कॉलेज में लॉ (कानून) के विद्यार्थी हुआ करते थे। कृष्णा नगर के एक छोटे से किराए के मकान में रहने वाले प्रदीप माथुर के पिता सरकारी विभाग के मुलाजिम थे और इनकी माली हालत बस गुजारा करने भर की इजाजत देती थी।
लॉ के आखिरी सेमिस्टर की पढ़ाई के दौरान बीएसए कॉलेज के सामने हुई एक सड़क दुर्घटना में किसी युवक की मौत हो गई। पिता के साए से महरूम इस युवक की बहिन का रिश्ता तय हो चुका था और नजदीक ही शादी की तारीख तय थी।
चौबिया पाड़ा क्षेत्र के रहने वाले उक्त युवक के परिवार में इस दुर्घटना से कोहराम मचना ही था। मृत युवक के परिवार की दुर्दशा और उसकी बहिन की होने जा रही शादी को देखते हुए बीएसए कॉलेज के कुछ लॉ स्टूडेंट आगे आए। इन स्टूडेंट्स ने पहले तो कॉलेज के सामने वाली सड़क को अवरुद्ध किया और बाद में युवक के परिवार की मदद करने का बीड़ा उठाया। इन स्टूडेंट्स में से एक का नाम था प्रदीप माथुर। अन्य युवकों में शामिल थे घाटी बहालराय घीया मंडी निवासी रमेश पचौरी। वकील आनंद मोहन पचौरी के पुत्र रमेश पचौरी अब मथुरा में ही रेवेन्यू के वकील हैं। इस ग्रुप में शामिल तीसरे युवक का नाम था अब्दुल जब्बार। सदर बाजार निवासी अब्दुल जब्बार आज वृंदावन में एक कुकिंग गैस एजेंसी के संचालक हैं, साथ ही राजनीति में भी रुचि रखते हैं। अब्दुल जब्बार भी प्रदीप माथुर की तरह कांग्रेसी हैं और प्रदीप माथुर के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले हैं, बावजूद इसके उन्हें राजनीति में कोई उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल नहीं हो पाई।
इनके अलावा इसी ग्रुप में शामिल रहे चौथे छात्र का नाम राकेश यादव है जिन्हें लोग राकेश मामा के नाम से जानते हैं। राकेश यादव भी कांग्रेसी हैं और अब तक प्रदीप माथुर का साथ देकर अपनी निष्ठा पूरी कर रहे हैं। राकेश यादव एक इंटर कॉलेज के संचालक तो हैं ही, कामधेनु गऊशाला का भी संचालन करते हैं। वह एक बार कांग्रेस की टिकट पर एमएलसी का चुनाव लड़ चुके हैं किंतु उसमें सफलता नहीं मिल सकी।
बहरहाल, इन सभी स्टूडेंट्स ने मिलकर सड़क दुर्घटना में मारे गए उस युवक की बहिन का विवाह कराने के लिए चंदा इकठ्ठा किया और तय समय पर उसकी शादी करवा दी।
युवकों के इस नेक काम की गूंज प्रदेश सरकार के कानों तक पहुंची अत: प्रदेश सरकार ने इन युवकों को पुरस्कृत करने का ऐलान किया। तत्कालीन गवर्नर ने इन्हें पुरस्कृत किया तो ये युवक अचानक समाज में हीरो बनकर उभरे।
कांग्रेस को उस दौरान चुनाव लड़ाने के लिए साफ-सुथरी छवि वाले उत्साही युवकों की तलाश थी। मथुरा में कांग्रेस की यह तलाश प्रदीप माथुर के रूप में पूरी हुई जिसका बड़ा कारण हाईकमान तक प्रदीप माथुर के किन्हीं निकटस्थ रिश्तेदार की पहुंच भी बताई जाती है।
जो भी हो, इस तरह अचानक एक दुर्घटना से उपजे हालातों ने प्रदीप माथुर को पहले चुनावी चेहरा बनवाया और फिर विधायक।
पहला चुनाव जीतने के बाद प्रदीप माथुर अगले चुनाव में जीत दर्ज नहीं करा पाए किंतु राजनीति उन्हें रास आ गई। अब वह लगातार तीन बार से विधायक हैं। इस बीच केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार काबिज रही किंतु प्रदीप माथुर ने मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जिसका उल्लेख किया जा सके।
वैसे खुद प्रदीप माथुर पहले यमुना नदी पर गोकुल बैराज को बनवाने का श्रेय लेते थे लेकिन जब से यह सिद्ध हुआ कि गोकुल बैराज सरकार के लिए सफेद हाथी तथा यमुना के लिए वरदान की जगह अभिषाप बन गया है तब से प्रदीप माथुर ने गोकुल बैराज के निर्माण का श्रेय लेना बंद कर दिया है।
यही हाल कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूअल मिशन यानि ''जे नर्म'' योजना का हुआ। जे नर्म में मथुरा को शामिल कराने का श्रेय प्रदीप माथुर ने डंके की चोट पर लिया और इस आशय का प्रचार किया कि इस योजना के धरातल पर उतरने के साथ मथुरा का कायाकल्प उसकी गरिमा के अनुसार होगा। इस योजना के तहत मथुरा के लिए 1800 करोड़ से अधिक की रकम निर्धारित की गई किंतु नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। जे नर्म के तहत हुए चंद कामों ने पूरे शहर का हुलिया बिगाड़ कर रख दिया और मथुरा की सूरत बनने की जगह बिगड़ती चली गई। यह बात अलग है कि इस योजना के तहत प्रथम फेज का काम पूरा कराने को जो करोड़ों रुपया मिला, उसका विभिन्न स्तर पर बंदरबांट होता रहा और काम समय पर पूरा न हो पाने की वजह से मथुरा को योजना से बाहर कर दिया गया। इस पूरे घपले में कहीं न कहीं विधायक प्रदीप माथुर की भी संलिप्तता का जिक्र होता रहा है लेकिन स्पष्टत: कुछ सामने नहीं आया।
आम जनता द्वारा ''जे नर्म'' में हुए घपले से विधायक प्रदीप माथुर को जोड़ने की एक वजह यह भी रही है कि इस बीच प्रदीप माथुर फर्श से अर्श तक जा पहुंचे जबकि हैसियत उनकी सिर्फ विधायक की ही थी। प्रदीप माथुर की माली हालत की बात करें तो अब वह प्रत्यक्ष में एक गैस एजेंसी और सर्वाधिक कीमती इलाके कृष्णा नगर में करोड़ों रुपए मूल्य की भव्य कोठी के मालिक हैं। उनकी संतानें मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और उनके नाम पर भी पॉश कॉलोनियों में अचल संपत्तियां हैं।
बताया जाता है कि प्रदीप माथुर की दूसरे व्यापारों में भी साझेदारी है किंतु इसकी पुष्टि नहीं हो सकी, अलबत्ता लोकपाल से शिकायत जरूर हुई।
एक ऐसे ही व्यापारिक मामले में सरकारी कर्ज को लेकर प्रदीप माथुर पर केस चला था और उसमें गैर जमानती वारंट भी जारी हुए थे लेकिन वर्तमान में उसका क्या स्टेटस है, यह कोई बताने को तैयार नहीं।
जाहिर है कि मथुरा के लिए प्रदीप माथुर ने कुछ किया या नहीं किया, किंतु अपने लिए इतना कुछ कर लिया है कि आगे आने वाली पीढ़ी को भी शायद ही कभी आर्थिक समस्या का सामना करना पड़े।
यमुना प्रदूषण मुक्ति के लिए शुरू की गई पदयात्रा में बाबा जयकृष्ण दास सहित यमुना भक्तों के साथ प्रदीप माथुर द्वारा केंद्र के इशारे पर किए गए धोखे से मथुरा की जनता बेहद नाराज है और इसीलिए इस बार जब प्रदीप माथुर नामांकन भरने से पहले यमुना पूजन करने पहुंचे तो उनका खासा विरोध किया गया।
मथुरा की जनता से पूछने पर वह साफ कहती है कि कुल चार बार की विधायकी में प्रदीप माथुर ने अपना घर खूब भरा लेकिन मथुरा का कोई भला नहीं कर पाए। मथुरा के लिए जो भी योजनाएं लाई गईं, उनका मकसद निजी स्वार्थ पूरे करना रहा न कि मथुरा को उसके गौरवशाली अतीत से रूबरू कराना।
ऐसे ही दूसरे एक्सीडेंटल पॉलिटीशियन हैं राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी डॉ. अशोक अग्रवाल। जहां तक सवाल बाल रोग विशेषज्ञ रहते राजनीति में आने वाले डॉ. अशोक अग्रवाल का है, तो इसका कारण बनी अपहरण की एक आपराधिक घटना वरना डॉ. अशोक, ''अशोक हॉस्पीटल'' के नाम से चौकी बाग बहादुर क्षेत्र में अपना अच्छा-खासा चिकित्सकीय व्यवसाय चला रहे थे।
यह आपराधिक घटना घटी सन् 2003 के जुलाई महीने में। इस घटना के तहत शहर के मशहूर डॉक्टर उमेश माहेश्वरी का मसानी क्षेत्र से तब देर शाम अपहरण कर लिया गया जब वो चौक बाजार स्थित अपनी क्लीनिक से एनएच टू स्थित अपने घर तथा हॉस्पीटल लौट रहे थे। माहेश्वरी हॉस्पीटल नामक इस संस्थान को डॉ. उमेश माहेश्वरी के पुत्र डॉ. मयंक माहेश्वरी व डॉ. शशांक माहेश्वरी संचालित करते हैं। हॉस्पीटल के ऊपर ही माहेश्वरी परिवार ने अपना निवास बना रखा है।
प्रसिद्ध चिकित्सक उमेश माहेश्वरी के अपहरण से मथुरा ही नहीं नजदीकी शहरों के चिकत्सा जगत में भी हंगामा मच गया क्योंकि डॉ. उमेश माहेश्वरी आम जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे।
उस वक्त मथुरा के एसएसपी प्रेम प्रकाश हुआ करते थे। जाहिर है कि पुलिस पर डॉ. उमेश माहेश्वरी को जल्द से जल्द अपराधियों के चंगुल से छुड़ाने का खासा दबाव था लिहाजा पुलिस हाथ-पैर तो खूब मार रही थी किंतु नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था।
इधर डॉ. उमेश माहेश्वरी के दोनों डॉ. पुत्र तथा अन्य लोग भी अपने स्तर से डॉ. साहब के बारे में जानकारी करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।
इस दौरान पुलिस को पता लगा कि डॉ. उमेश माहेश्वरी के अपहरणकर्ताओं से कुछ लोग संपर्क साधने में सफल हुए हैं और उनकी अपहरणकर्ताओं से बातचीत चल रही है।
इन लोगों में कृष्ण जन्मभूमि की सुरक्षा ड्यूटी में तैनात पुलिस के ही एक सीओ त्रिदीप सिंह, अलीगढ़ में तैनात एलआईयू का एक सब इंस्पेटर मलिक सहित एक उद्योगपति, एक प्रसिद्ध वकील तथा एक डॉक्टर भी शामिल हैं।
पुलिस अभी और कुछ कर पाती कि इससे पहले किसी तरह डॉ. उमेश माहेश्वरी बदमाशों के चंगुल से मुक्त होने में सफल रहे। बदमाशों के चंगुल से मुक्त होकर डॉ. उमेश माहेश्वरी ने होटल मधुवन में एक प्रेस कांफ्रेस करके जो जानकारी दी, उसके मुताबिक पुलिस की उन्हें मुक्त कराने में कोई भूमिका नहीं रही।
डॉ. उमेश माहेश्वरी द्वारा दी गई जानकारी मथुरा पुलिस को काफी नागवार गुजरी और उसने अपना मुंह साफ करने के लिए सबसे पहले सीओ त्रिदीप सिंह पर शिकंजा कसा। पुलिस ने सीओ त्रिदीप सिंह के सरकारी घर से 11 लाख रुपए बरामद करते हुए बताया कि यह रकम बदमाशों को फिरौती देकर डॉ. उमेश माहेश्वरी को छुड़वाने के एवज में सीओ को मिली है तथा सीओ व अन्य कई लोग बदमाशों को फिरौती दिलवाने में शामिल रहे हैं। सीओ त्रिदीप सिंह को आरोपी बनाकर जेल भेजने के बाद पुलिस ने रात में फौजदारी के प्रसिद्ध वकील राम सरीन के डेंपियर नगर स्थित आवास पर दविश दी और फिर चौकी बाग बहादुर स्थित डॉ. अशोक के निवास को घेर लिया।
पुलिस ने डॉ. अशोक पर बदमाशों के साथ सांठगांठ होने का आरोप लगाया और कहा कि फिरौती की रकम दिलवाने में उनकी भी भूमिका रही है। पुलिस ने डॉ. अशोक और एडवोकेट राम सरीन को गिरफ्तार तो नहीं किया लेकिन उनके यहां पुलिसिया तांडव जमकर किया।
डा. अशोक को पुलिस के इस अप्रत्याशित व्यवहार ने पूरी तरह हिला दिया अत: उन्होंने पुलिसिया हरकत के अगले दिन अपने हॉस्पीटल में एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई। प्रेस कांफ्रेस में डॉ. अशोक ने जो जानकारी दी वो चौंकाने वाली थी।
डॉ. अशोक ने बताया कि पुलिस द्वारा उनके यहां दविश देने से पहले मथुरा दैनिक जागरण के ब्यूरो चीफ अमी आधार निडर का फोन उनके पास आया था और उन्होंने मुझसे एसएसपी के नाम से 5 लाख रुपयों की मांग की।
डॉ. अशोक ने तब प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि अमी आधार निडर ने उनसे साफ कहा है कि एसएसपी प्रेम प्रकाश उनके घर पर बैठे हैं और यदि यह मांग पूरी नहीं की गई तो रात में आपको आरोपी बनाकर जेल भेज दिया जाएगा।
डॉ. अशोक ने प्रेस कांफ्रेस में बाकायदा रोते हुए सिलसिलेवार पुलिस और अमी आधार निडर के धमकाने का ब्यौरा देकर कहा कि यदि मुझे न्याय नहीं मिला तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।
डॉ. अशोक के साथ हुई इस घटना के बाद एसएसपी प्रेम प्रकाश का तबादला पड़ोसी जनपद अलीगढ़ के लिए कर दिया गया और दैनिक जागरण ने अमी आधार निडर को भी हटा दिया।
इसके काफी समय बाद सीओ त्रिदीप सिंह को पहले जमानत मिली और फिर अदालत ने उन्हें निर्दोष भी माना। सीओ के यहां से पुलिस द्वारा बरामद दिखाया गया 11 लाख रुपया सीओ को मिल गया किंतु उस घटना ने डॉ. अशोक को राजनीति में कदम रखने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. अशोक ने सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी की सदस्यता ली। बहुजन समाज पार्टी ने उन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ने को तैयार भी किया किंतु ऐन वक्त पर उनका पत्ता काटकर देवेन्द्र गौतम ''गुड्डू'' को टिकट पकड़ा दिया। इधर गुड्डू गौतम चुनाव हार गए और उधर डॉ. अशोक ने बसपा छोड़कर सपा का दामन थाम लिया।
2012 का विधानसभा चुनाव वह सपा के टिकट पर लड़े भी लेकिन कांग्रेस व रालोद के गठबंधन उम्मीदवार प्रदीप माथुर से मात्र 1500 मतों के अंतर से हारकर तीसरे नंबर पर रहे। यही रालोद जिसके टिकट पर डॉ. अशोक अब चुनाव लड़ रहे हैं।
इस बार सपा कांग्रेस के गठबंधन से मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र की सीट सिटिंग विधायक तथा कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर के खाते में चली गई और सारी तैयारियों के बाद भी डॉ. अशोक मुंह देखते रह गए।
मौका देखकर राष्ट्रीय लोकदल ने डॉ. अशोक को लपक लिया और उन्हें अपना टिकट थमाकर मथुरा-वृंदावन से चुनाव मैदान में उतार दिया क्योंकि रालोद के पास इस सीट के लिए कोई कद्दावर केंडीडेट था ही नहीं।
दुर्घटनावश राजनीति में आए प्रदीप माथुर की गिनती आज घाघ राजनीतिज्ञों में होती है जबकि चार बार विधायक रहकर भी उन्होंने मथुरा के लिए कुछ नहीं किया। हां, अपने लिए खूब किया। इतना किया कि राजनीति में आने से पहले जिस प्रदीप माथुर की हैसियत स्कूटर पर चलने की नहीं थी आज वह करोड़ों की चल-अचल संपत्ति के मालिक हैं।
इसी सीट से बसपा के प्रत्याशी योगेश द्विवेदी कुछ वर्षों पहले तक होटल में बैरे का काम करते थे। खुद योगेश द्विवेदी ने अपने इस रूप की फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर डाली हुई हैं जिनमें वह बहिन मायावती व मान्यवर कांशीराम की खिदमत करते दिखाई दे रहे हैं। उनसे पहले उनकी मां पुष्पा शर्मा भी इसी प्रकार स्वास्थ्य विभाग में एएनएम थीं और बाद में नगर निकाय का चुनाव लड़कर वृंदावन नगर पालिका की अध्यक्ष बनीं। पुष्पा शर्मा ने एक चुनाव विधायकी का भी लड़ा लेकिन उसमें उन्हें असफलता हाथ लगी थी। इसी प्रकार योगेश द्विवेदी ने 2009 का लोकसभा चुनाव भी बसपा की टिकट पर लड़ा था किंतु वह हार गए। योगेश द्विवेदी की मां पुष्पा शर्मा अपनी आपराधिक छवि के कारण राजनीति में आईं और उनकी प्रेरणास्त्रोत दस्यु सुंदरी से सांसद बनीं फूलन देवी रहीं। फूलन देवी से उनकी निकटता हमेशा चर्चा का विषय रही है।
अब शेष रह जाते हैं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा। श्रीकांत शर्मा का राजनीति में प्रवेश किसी घटना-दुर्घटनावश हुआ या नहीं, इसके बारे में तो कहना मुश्किल है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि उनके राजनीतिक कद तथा उम्मीदवारी को उनकी ही पार्टी के लोग किसी बड़ी दुर्घटना से कम नहीं मानते।
मथुरा में एक से एक धुरंधर नेता मुंह देखते रह गए और श्रीकांत शर्मा अचानक हवाई मार्ग द्वारा उस धरा पर उतरे, जिस धरा को वह बीस साल पहले ही छोड़ चुके थे। खुद को गोवर्धन विधानसभा क्षेत्र के गांव गंठौली निवासी बताने वाले श्रीकांत शर्मा हिमालय में तपस्या करके अमित शाह को प्राप्त कर पाए अथवा अमित शाह ने हिमालय जाकर उन्हें हासिल किया, इस रहस्य को जानने के लिए मथुरा की जनता बेहद उत्साहित है। जनता को उनकी जीत-हार से ज्यादा इस बात में रुचि है कि बीस साल से अधिक समय तक वह राजनीति के किन गलियारों की शोभा बढ़ा रहे थे और कैसे मोदी सरकार के साथ-साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता व राष्ट्रीय सचिव जैसे पदों पर नमूदार हो गए।
श्रीकांत शर्मा की शहरी सीट पर उम्मीदवारी मथुरा की जनता के लिए किसी रहस्य-रोमांच से कम नहीं है। आम मतदाता और खुद पार्टी के भी एक बड़े तबके के लिए उनकी उम्मीदवारी किसी दुर्घटना की तरह है।
अब देखना यह है कि इन चारों एक्सीडेंटल पॉलिटीशियन में से किस के सिर जीत का सेहरा बंधता है और कौन-कौन हार से रूबरू होता है परंतु यह निश्चित है कि मथुरा का विकास एकबार फिर यक्षप्रश्न बनने जा रहा है।
यक्ष प्रश्न इसलिए क्योंकि इन चुनावों से ठीक पहले भी मथुरा की जनता को कुछ ऐसी ही आस बंधाई गई थी, ऐसे ही वायदे किए गए थे और ऐसी ही तकरीरें सुनाई गईं थीं जो अब दिवास्वप्न बनकर रह गई हैं।
मथुरा की स्वप्न सुंदरी सांसद अब कहती हैं कि मथुरा के विकास में अखिलेश सरकार रोड़े अटकाती रही है इसलिए विकास चाहिए तो प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनवाइए।
पता नहीं चुनावों का ऊंट किस करवट बैठेगा लेकिन यह जरूर पता है कि किसी न किसी दुर्घटनावश राजनीति में प्रवेश करने वाले मथुरा-वृंदावन क्षेत्र के ये प्रत्याशी क्या-क्या गुल खिलायेंगे। जीत किसी की हो लेकिन जनता की हार पहले से तय है क्योंकि एक्सीडेंटल राजनीतिज्ञों से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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