मथुरा। उत्तर प्रदेश में भाजपा को भारी बहुमत मिलने के साथ ही एक ओर जहां
मुख्यमंत्री के पद को लेकर कयासों का दौर जारी है वहीं दूसरी ओर यह
प्रश्न भी उठने लगा है कि क्या प्रदेश सरकार अब मनीषा गुप्ता जैसे अपनी
ही पार्टी के उन जनप्रतिनिधियों पर कार्यवाही करेगी जिनके ऊपर भ्रष्टाचार
के गंभीर आरोप लगे हैं।
गौरतलब है कि मथुरा नगर पालिका पर काबिज भाजपा की चेयरमैन मनीषा गुप्ता सहित अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा पर एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु उठाए गए ठेके में पौने दो करोड़ रुपए का घपला किए जाने का आरोप लगा है।
घपले की जांच करने वाले तीन अधिकारियों तत्कालीन अपर जिलाधिकारी कानून-व्यवस्था/प्रभारी अधिकारी स्थानीय निकाय एस. के. शर्मा, तत्कालीन जिलाधिकारी राजेश कुमार तथा तत्कालीन कमिश्नर आगरा मंडल प्रदीप भटनागर द्वारा पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता सहित घोटाले में लिप्त पाए गए सभी अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ शासन से कार्यवाही की संस्तुति पहले ही की जा चुकी है।
अब यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चल रहा है और वर्तमान जिलाधिकारी मनीष बंसल भी सभी आरोपियों के बारे में कार्यवाही के लिए शासन को रिपोर्ट भेज चुके हैं। हालांकि पालिका प्रशासन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अधिकार को चुनौती देते हुए कहा है कि उसे भ्रष्टाचार संबंधी मामला सुनने का अधिकार ही नहीं है किंतु उसकी चुनौती इसलिए कोई मायने नहीं रखती क्योंकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर ही इसकी सुनवाई शुरू की थी।
उल्लेखनीय है कि एसटीपी व एसपीएस का संचालन सीधे-सीधे यमुना प्रदूषण से जुड़ा है और यमुना को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 1998 में इसकी व्यवस्था के आदेश दिए थे इसलिए उसके संचालन में हुए भ्रष्टाचार की सुनवाई पर एनजीटी को चुनौती कैसे दी जा सकती है।
दरअसल, नगरपालिका प्रशासन सिर्फ और सिर्फ समय बर्बाद करना चाहता है क्योंकि इसी वर्ष जुलाई में वर्तमान पालिका प्रशासन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। यह भी संभव है यह कार्यकाल पूरा होने से पहले मथुरा नगर पालिका को महानगरपालिका घोषित कर दिया जाए क्योंकि अखिलेश सरकार में ही इसके लिए परिसीमन आदि का कार्य पूरा हो चुका है। यदि ऐसा होता है तो समय से पहले ही मनीषा गुप्ता को पालिकाध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है।
वैसे तो इस मामले की एनजीटी में सुनवाई इसी महीने होनी है किंतु शासन चाहे तो वर्तमान जिलाधिकारी तथा पूर्व के जांच अधिकारियों द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 48 के तहत पालिकाध्यक्ष को सीधे बर्खास्त कर सकता है और अन्य आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।
नई सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के इस मामले पर संज्ञान लिया जाना इसलिए आवश्यक है कि प्रथम तो भाजपा को इतना जबर्दस्त बहुमत भ्रष्टाचार व कुशासन के खिलाफ ही मिला है, और दूसरे यमुना प्रदूषण के मामले में हो रहा भ्रष्टाचार करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं व आस्था से जुड़ा है लिहाजा वह उन्हें आहत कर रहा है।
2014 के लोकसभा चुनावों में और अब 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने यमुना को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प दोहराया था। मथुरा की शहरी सीट पर चुनाव लड़े भाजपा प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा ने भी यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का वचन जनता को दिया था।
चूंकि श्रीकांत शर्मा भाजपा के राष्ट्रीय सचिव व प्रवक्ता भी हैं इसलिए उनके वचन को मथुरा की जनता ने गंभीरता से लेते हुए उन्हें एक लाख से भी अधिक मतों से जितवाकर विधानसभा में प्रतिनिधित्व के लिए भेजा है।
यमुना तभी प्रदूषण मुक्त होगी जब उसे प्रदूषित करने वाले कारणों को बंद किया जाएगा और उन तत्वों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाएगी जिन्होंने यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने की आड़ में करोड़ों रुपए हड़प लिए।
यमुना के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण मथुरा शहर में कृष्ण जन्मस्थान के निकट दरेसी रोड पर चल रहा वह अवैध कट्टीघर भी है जिसे बंद करने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सन् 1998 में दिया था और जिसमें एक भी पशु का कटान पालिका प्रशासन की सहमति अथवा लापरवाही के बिना नहीं हो सकता।
यदि यह कहा जाए कि यमुना को प्रदूषित कराने में एक बड़ी भूमिका नगर पालिका प्रशासन की ही है, तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि न तो वह पशुओं के अवैध कटान पर पाबंदी लगा पाने में सफल हुआ और न नाले-नालियों से सीधे यमुना में गिर रही गंदगी को साफ करने के लिए एसटीपी व एसपीएस के संचालन में धांधली को रोक पाया। उल्टे इसके लिए दिए गए ठेके की अनियमितताओं में संलिप्त पाया गया।
आश्चर्य की बात इस बीच यह रही कि पूरे लगभग पांच साल के अपने कार्यकाल में पालिकाध्यक्ष मनीषा गुप्ता ने ऐसी अनियमितताओं पर लगाम तक लगाना जरूरी नहीं समझा नतीजतन आज भी वही ठेकेदार एसटीपी व एसपीएस का संचालन कर रहा है जिसे ठेका देने में करीब पौने दो करोड़ रुपए के घपले का आरोप पालिकाध्यक्ष मनीषा गुप्ता और पालिका के दो अभियंताओं सहित पांच लोगों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। इस पूरे प्रकरण का सबसे अहम पहलू यह है कि मनीषा गुप्ता पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए शासन-प्रशासन से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा एनजीटी में गुहार लगाने वाले भी भाजपा के ही कर्मठ कार्यकर्ता व पदाधिकारी हैं इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उनके ऊपर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित व पूर्वाग्रह से ग्रसित होंगे।
निश्चित ही यह और ऐसे अन्य भ्रष्टाचार के मामले पर तत्काल प्रभावी कार्यवाही करने का नैतिक दायित्व भारतीय जनता पार्टी की नई सरकार पर होगा। मथुरा का मामला इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह मामला उस यमुना प्रदूषण से जुड़ा है जिसके लिए मोदी सरकार ने नमामि गंगे परियोजना शुरू की है और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को इसके सफलता पूर्वक क्रियान्वयन का भरोसा दिलाया है।
अब तक केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती यह कहती रही हैं कि नमामि गंगे के काम में अपेक्षा के अनुरूप तेजी न आ पाने का प्रमुख कारण अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी सरकार द्वारा एनओसी न दिया जाना है लेकिन अब इस तरह की दलील सुनना जनता शायद ही पसंद करे।
उमा भारती ने कुछ समय पहले ही मथुरा की अपनी यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों से कहा था कि शीघ्र ही यमुना की सतह से गंदगी साफ करने वाली ट्रैश स्कीमर मशीन स्थाई रूप से यहां भेज दी जाएगी। यह मशीन गत फरवरी में यहां आनी थी किंतु आज तक नहीं पहुंची। इसके लिए भी उमा भारती ने अखिलेश सरकार से एनओसी प्राप्त न होना ही कारण बताया था लेकिन अब ऐसी किसी समस्या के सामने खड़े होने की सभी आशंकाएं समाप्त हो चुकी हैं लिहाजा काम में तेजी लानी होगी।
बस देखना यह है कि यमुना प्रदूषण जैसे संवेदनशील एवं गंभीर मुद्दे पर भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गई अपनी ही पार्टी की पालिकाध्यक्ष के खिलाफ भजपा सरकार कार्यवाही करती है या नहीं और यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने का अपना वचन निभा पाती है या नहीं।
यदि इन दोनों बातों पर पूरी निष्ठा के साथ अमल नहीं किया गया तो तय जानिए कि जनता जनार्दन की लाठी में भी आवाज नहीं होती।
-लीजेंड न्यूज़
गौरतलब है कि मथुरा नगर पालिका पर काबिज भाजपा की चेयरमैन मनीषा गुप्ता सहित अधिशासी अधिकारी के. पी. सिंह, अवर अभियंता (जलकल) के. आर. सिंह, सहायक अभियंता उदयराज, लेखाकार विकास गर्ग तथा लिपिक टुकेश शर्मा पर एसटीपी व एसपीएस के संचालन हेतु उठाए गए ठेके में पौने दो करोड़ रुपए का घपला किए जाने का आरोप लगा है।
घपले की जांच करने वाले तीन अधिकारियों तत्कालीन अपर जिलाधिकारी कानून-व्यवस्था/प्रभारी अधिकारी स्थानीय निकाय एस. के. शर्मा, तत्कालीन जिलाधिकारी राजेश कुमार तथा तत्कालीन कमिश्नर आगरा मंडल प्रदीप भटनागर द्वारा पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता सहित घोटाले में लिप्त पाए गए सभी अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ शासन से कार्यवाही की संस्तुति पहले ही की जा चुकी है।
अब यह मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में चल रहा है और वर्तमान जिलाधिकारी मनीष बंसल भी सभी आरोपियों के बारे में कार्यवाही के लिए शासन को रिपोर्ट भेज चुके हैं। हालांकि पालिका प्रशासन ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अधिकार को चुनौती देते हुए कहा है कि उसे भ्रष्टाचार संबंधी मामला सुनने का अधिकार ही नहीं है किंतु उसकी चुनौती इसलिए कोई मायने नहीं रखती क्योंकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर ही इसकी सुनवाई शुरू की थी।
उल्लेखनीय है कि एसटीपी व एसपीएस का संचालन सीधे-सीधे यमुना प्रदूषण से जुड़ा है और यमुना को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 1998 में इसकी व्यवस्था के आदेश दिए थे इसलिए उसके संचालन में हुए भ्रष्टाचार की सुनवाई पर एनजीटी को चुनौती कैसे दी जा सकती है।
दरअसल, नगरपालिका प्रशासन सिर्फ और सिर्फ समय बर्बाद करना चाहता है क्योंकि इसी वर्ष जुलाई में वर्तमान पालिका प्रशासन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। यह भी संभव है यह कार्यकाल पूरा होने से पहले मथुरा नगर पालिका को महानगरपालिका घोषित कर दिया जाए क्योंकि अखिलेश सरकार में ही इसके लिए परिसीमन आदि का कार्य पूरा हो चुका है। यदि ऐसा होता है तो समय से पहले ही मनीषा गुप्ता को पालिकाध्यक्ष की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है।
वैसे तो इस मामले की एनजीटी में सुनवाई इसी महीने होनी है किंतु शासन चाहे तो वर्तमान जिलाधिकारी तथा पूर्व के जांच अधिकारियों द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 48 के तहत पालिकाध्यक्ष को सीधे बर्खास्त कर सकता है और अन्य आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही कर सकता है।
नई सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के इस मामले पर संज्ञान लिया जाना इसलिए आवश्यक है कि प्रथम तो भाजपा को इतना जबर्दस्त बहुमत भ्रष्टाचार व कुशासन के खिलाफ ही मिला है, और दूसरे यमुना प्रदूषण के मामले में हो रहा भ्रष्टाचार करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं व आस्था से जुड़ा है लिहाजा वह उन्हें आहत कर रहा है।
2014 के लोकसभा चुनावों में और अब 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने यमुना को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प दोहराया था। मथुरा की शहरी सीट पर चुनाव लड़े भाजपा प्रत्याशी श्रीकांत शर्मा ने भी यमुना को प्रदूषण मुक्त कराने का वचन जनता को दिया था।
चूंकि श्रीकांत शर्मा भाजपा के राष्ट्रीय सचिव व प्रवक्ता भी हैं इसलिए उनके वचन को मथुरा की जनता ने गंभीरता से लेते हुए उन्हें एक लाख से भी अधिक मतों से जितवाकर विधानसभा में प्रतिनिधित्व के लिए भेजा है।
यमुना तभी प्रदूषण मुक्त होगी जब उसे प्रदूषित करने वाले कारणों को बंद किया जाएगा और उन तत्वों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाएगी जिन्होंने यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने की आड़ में करोड़ों रुपए हड़प लिए।
यमुना के प्रदूषित होने का एक बड़ा कारण मथुरा शहर में कृष्ण जन्मस्थान के निकट दरेसी रोड पर चल रहा वह अवैध कट्टीघर भी है जिसे बंद करने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सन् 1998 में दिया था और जिसमें एक भी पशु का कटान पालिका प्रशासन की सहमति अथवा लापरवाही के बिना नहीं हो सकता।
यदि यह कहा जाए कि यमुना को प्रदूषित कराने में एक बड़ी भूमिका नगर पालिका प्रशासन की ही है, तो कुछ गलत नहीं होगा क्योंकि न तो वह पशुओं के अवैध कटान पर पाबंदी लगा पाने में सफल हुआ और न नाले-नालियों से सीधे यमुना में गिर रही गंदगी को साफ करने के लिए एसटीपी व एसपीएस के संचालन में धांधली को रोक पाया। उल्टे इसके लिए दिए गए ठेके की अनियमितताओं में संलिप्त पाया गया।
आश्चर्य की बात इस बीच यह रही कि पूरे लगभग पांच साल के अपने कार्यकाल में पालिकाध्यक्ष मनीषा गुप्ता ने ऐसी अनियमितताओं पर लगाम तक लगाना जरूरी नहीं समझा नतीजतन आज भी वही ठेकेदार एसटीपी व एसपीएस का संचालन कर रहा है जिसे ठेका देने में करीब पौने दो करोड़ रुपए के घपले का आरोप पालिकाध्यक्ष मनीषा गुप्ता और पालिका के दो अभियंताओं सहित पांच लोगों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। इस पूरे प्रकरण का सबसे अहम पहलू यह है कि मनीषा गुप्ता पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए शासन-प्रशासन से लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट तथा एनजीटी में गुहार लगाने वाले भी भाजपा के ही कर्मठ कार्यकर्ता व पदाधिकारी हैं इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उनके ऊपर लगाए गए आरोप राजनीति से प्रेरित व पूर्वाग्रह से ग्रसित होंगे।
निश्चित ही यह और ऐसे अन्य भ्रष्टाचार के मामले पर तत्काल प्रभावी कार्यवाही करने का नैतिक दायित्व भारतीय जनता पार्टी की नई सरकार पर होगा। मथुरा का मामला इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है कि यह मामला उस यमुना प्रदूषण से जुड़ा है जिसके लिए मोदी सरकार ने नमामि गंगे परियोजना शुरू की है और खुद प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को इसके सफलता पूर्वक क्रियान्वयन का भरोसा दिलाया है।
अब तक केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती यह कहती रही हैं कि नमामि गंगे के काम में अपेक्षा के अनुरूप तेजी न आ पाने का प्रमुख कारण अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी सरकार द्वारा एनओसी न दिया जाना है लेकिन अब इस तरह की दलील सुनना जनता शायद ही पसंद करे।
उमा भारती ने कुछ समय पहले ही मथुरा की अपनी यात्रा के दौरान स्थानीय लोगों से कहा था कि शीघ्र ही यमुना की सतह से गंदगी साफ करने वाली ट्रैश स्कीमर मशीन स्थाई रूप से यहां भेज दी जाएगी। यह मशीन गत फरवरी में यहां आनी थी किंतु आज तक नहीं पहुंची। इसके लिए भी उमा भारती ने अखिलेश सरकार से एनओसी प्राप्त न होना ही कारण बताया था लेकिन अब ऐसी किसी समस्या के सामने खड़े होने की सभी आशंकाएं समाप्त हो चुकी हैं लिहाजा काम में तेजी लानी होगी।
बस देखना यह है कि यमुना प्रदूषण जैसे संवेदनशील एवं गंभीर मुद्दे पर भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गई अपनी ही पार्टी की पालिकाध्यक्ष के खिलाफ भजपा सरकार कार्यवाही करती है या नहीं और यमुना को प्रदूषण मुक्त रखने का अपना वचन निभा पाती है या नहीं।
यदि इन दोनों बातों पर पूरी निष्ठा के साथ अमल नहीं किया गया तो तय जानिए कि जनता जनार्दन की लाठी में भी आवाज नहीं होती।
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