मथुरा। बात केवल संस्कृति यूनिवर्सिटी के कैंपस 2 में चल रहे अवैध निर्माण कार्य को मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण द्वारा सील किए जाने की नहीं है, सच तो यह है कि समूची यूनिवर्सिटी ही घपलों की बुनियाद पर खड़ी है लेकिन कोई देखने वाला ही नहीं।
कल क्या हुआ
कल क्या हुआ
विशेष कार्याधिकारी मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण द्वारा कल संस्कृति यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार पूरन सिंह को जारी आदेश पत्र के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे ग्राम नरी सैमरी, कस्बा छाता स्थित संस्कृति यूनिवर्सिटी के कैंपस 2 में ‘अस्पताल भवन’ का अवैध निर्माण किया जा रहा था।
इस अवैध निर्माण कार्य की जानकारी होने पर विकास प्राधिकरण ने यूनिवर्सिटी के प्रबंधतंत्र को उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की धारा 27(1) 28(1) व 28(2) के अंतर्गत नोटिस जारी किए गए किंतु यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें गंभीरता से लेना जरूरी नहीं समझा और अवैध निर्माण कार्य जारी रखा।
इसी संदर्भ में अवर अभियंता विकास प्राधिकरण ने विभाग को अपनी आख्या से अवगत कराते हुए बताया कि संस्कृति यूनिवर्सिटी के कैंपस 2 का अवैध निर्माण कार्य जारी है।
अवर अभियंता की रिपोर्ट पर कल प्राधिकरण के विशेष कार्यअधिकारी रविशंकर के निर्देश में अभियंता मलखान सिंह ने अवैध निर्माण कार्य रुकवाकर उसे सील कर दिया।
अवैध निर्माण कार्य हो कैसे रहा था?
अब ऐसे में सबसे पहला सवाल तो यही खड़ा होता है कि यूनिवर्सिटी कैंपस में अवैध निर्माण कार्य इतने दिन से चल कैसे रहा था?
इस बावत जानकारी करने पर पता लगा कि प्रथम तो विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को सब-कुछ मालूम होने के बावजूद वह ‘संबधित पक्ष’ से सेटिंग की कोशिश करते हैं, और जब उनके मनमुताबिक सेटिंग नहीं हो पाती तब भी नोटिस आदि देकर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं। सील करने की कार्यवाही आखिर में तब करते हैं जब सेटिंग का कोई ‘तात्कालिक विकल्प’ रह नहीं जाता।
इतना सब हो जाने और सील लगने के बाद भी चूंकि विकास प्राधिकरण के पास राहत देने के तमाम रास्ते खुले रहते हैं इसलिए सील होते हुए काम शुरू कर दिया जाता है। शहर में ही इसके तमाम उदाहरण सामने हैं।
कैंपस 2 की हकीकत
जिस स्थान पर यह अवैध निर्माण कार्य चल रहा था, उस एक ही कैंपस से दरअसल तीन चिकित्सा पद्धतियों आयुर्वेद, यूनानी एवं होम्योपैथ के कॉलेज संचालित हैं जो कि पूरी तरह नियम विरुद्ध है। एक ही कैंपस में इस तरह तीन पद्धतियों के कॉलेज संचालन की दूसरी कोई नजीर शायद ही सामने आए।
संस्कृति यूनिवर्सिटी ने नक्शा पास क्यों नहीं कराया
संस्कृति यूनिवर्सिटी द्वारा कैंपस 2 में अवैध निर्माण कार्य कराए जाने की वजह भी बहुत महत्वपूर्ण है। वो वजह यह है कि जिस कैंपस 2 में आज तीन-तीन चिकित्सा पद्धतियों के कॉलेज चल रहे हैं, वहां कभी Excel Group का कॉलेज चला करता था। Excel Group से वह संस्कृति यूनिवर्सिटी ने ले तो लिया किंतु उसकी रजिस्ट्री नहीं कराई क्योंकि रजिस्ट्री कराने के लिए करोड़ों रुपए स्टांप पर खर्च करना पड़ता। अब जबकि कैंपस ही संस्कृति यूनिवर्सिटी के नाम नहीं है तो नक्शा संस्कृति यूनिवर्सिटी पास भी कैसे करा सकती है।
कुल मिलाकर कैंपस 2 में चल रहे निर्माण कार्य का संबंध सिर्फ नक्शा पास न कराने तक सीमित नहीं है, उससे करोड़ों रुपए की स्टांप चोरी भी जुड़ी है जिससे शासन को मोटा चूना लगा है।
यूनिवर्सिटी प्रशासन परेशान क्यों
अब तक हुई कार्यवाही को लेकर भी यूनिवर्सिटी प्रशासन इसलिए परेशान है कि शीघ्र ही ‘आयुष मंत्रालय’ की टीम कॉलेज कैंपस का वार्षिक मुआयना करने वाली है। नया शिक्षा सत्र प्रारंभ होने से पहले वह कभी भी मुआयना करने आ सकती है। कैंपस के निर्माण कार्य को अवैध पाकर वह यूनिवर्सिटी के खिलाफ कड़ा एक्शन ले सकती है और उसकी वजह से छात्रों के एडमिशन पर बड़ा असर पड़ना लाजिमी है इसलिए यूनिवर्सिटी का प्रबंध तंत्र कैसे भी इस मामले को निपटाना चाहता है।
बताया जाता है कि इसके लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन एक ओर जहां कल देर रात तक मीडिया को मैनेज करने में लगा रहा वहीं दूसरी ओर विकास प्राधिकरण से भी सेटिंग करने के प्रयास किए। यूनिवर्सिटी का प्रबंधतंत्र मामले को निपटाने के लिए कुछ क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारियों की भी मदद ले रहा है क्योंकि वह उनसे ऑब्लाइज रहते हैं।
मीडिया मैनेज हो गया, विकास प्राधिकरण बाकी है
मीडिया को मैनेज करने में तो यूनिवर्सिटी का प्रबंधतंत्र काफी हद तक सफल रहा और इसीलिए दो प्रमुख अखबारों ने चंद लाइनें लिखकर यूनिवर्सिटी का नाम लिखे बिना अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जबकि एक ने आठ-दस लाइनों में समाचार पूरा कर दिया, हालांकि उसने यूनिवर्सिटी के नाम का उल्लेख किया है।
घपले की बुनियाद पर खड़ी है समूची संस्कृति यूनिवर्सिटी
संस्कृति यूनिवर्सिटी के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अवैध निर्माण का यह मामला सिर्फ कैंपस 2 तक सीमित नहीं है। यूनिवर्सिटी की बुनियाद ही अवैध निर्माण पर टिकी है।
जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी की मुख्य इमारत बनाने से पहले में भी सिर्फ एक टेंपरेरी नक्शा ‘बेसमेंट’ के नाम पर पास कराया गया था और उसी की आड़ लेकर पूरी यूनिवर्सिटी खड़ी कर ली। जिस जगह बेसमेंट दिखाया था, आज वहां क्लासेस चल रही हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में पार्किंग तक के लिए कोई जगह मुकर्रर नहीं हैं लिहाजा पार्किंग यूनिवर्सिटी की सड़कों पर होती है।
यूनिवर्सिटी की मान्यता पर भी सवाल
किसी भी कॉलेज को ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ की मान्यता देने के लिए सबसे पहली और जरूरी शर्त यह है कि उसके पास अपनी 40 एकड़ जमीन अधिकतम दो भागों में मौजूद होनी चाहिए।
संस्कृति यूनिवर्सिटी के पास अपनी 40 एकड़ जमीन तो है, किंतु वह दो भागों में न होकर चार भागों में है जिससे संस्कृति कॉलेज को यूनिवर्सिटी की मान्यता दिए जाने पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
सरकारी जमीन पर भी कब्जा
बताया जाता है कि इस 40 एकड़ जमीन में भी काफी हिस्सा ‘चकरोड’ का है जो कायदे से ‘सरकारी’ है लेकिन उसका इस्तेमाल पूर्व में न होने की वजह से उसे यूनिवर्सिटी ने अपनी जमीन में मिला रखा है जोकि एक गंभीर अपराध है।
इन सभी मामलों पर संस्कृति यूनिवर्सिटी का पक्ष जानने की काफी कोशिश की गई किंतु यूनिवर्सिटी प्रशासन कोई जानकारी देने की बजाय सिर्फ इस कोशिश में लगा रहा कि किसी भी तरह समाचार प्रकाशित न किया जाए। वो भी तब जबकि यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति सचिन गुप्ता कल यहीं थे और विकास प्राधिकरण ने उनके सामने कैंपस 2 के अवैध निर्माण को सील किया।
इस अवैध निर्माण कार्य की जानकारी होने पर विकास प्राधिकरण ने यूनिवर्सिटी के प्रबंधतंत्र को उत्तर प्रदेश नगर नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की धारा 27(1) 28(1) व 28(2) के अंतर्गत नोटिस जारी किए गए किंतु यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन्हें गंभीरता से लेना जरूरी नहीं समझा और अवैध निर्माण कार्य जारी रखा।
इसी संदर्भ में अवर अभियंता विकास प्राधिकरण ने विभाग को अपनी आख्या से अवगत कराते हुए बताया कि संस्कृति यूनिवर्सिटी के कैंपस 2 का अवैध निर्माण कार्य जारी है।
अवर अभियंता की रिपोर्ट पर कल प्राधिकरण के विशेष कार्यअधिकारी रविशंकर के निर्देश में अभियंता मलखान सिंह ने अवैध निर्माण कार्य रुकवाकर उसे सील कर दिया।
अवैध निर्माण कार्य हो कैसे रहा था?
अब ऐसे में सबसे पहला सवाल तो यही खड़ा होता है कि यूनिवर्सिटी कैंपस में अवैध निर्माण कार्य इतने दिन से चल कैसे रहा था?
इस बावत जानकारी करने पर पता लगा कि प्रथम तो विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को सब-कुछ मालूम होने के बावजूद वह ‘संबधित पक्ष’ से सेटिंग की कोशिश करते हैं, और जब उनके मनमुताबिक सेटिंग नहीं हो पाती तब भी नोटिस आदि देकर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं। सील करने की कार्यवाही आखिर में तब करते हैं जब सेटिंग का कोई ‘तात्कालिक विकल्प’ रह नहीं जाता।
इतना सब हो जाने और सील लगने के बाद भी चूंकि विकास प्राधिकरण के पास राहत देने के तमाम रास्ते खुले रहते हैं इसलिए सील होते हुए काम शुरू कर दिया जाता है। शहर में ही इसके तमाम उदाहरण सामने हैं।
कैंपस 2 की हकीकत
जिस स्थान पर यह अवैध निर्माण कार्य चल रहा था, उस एक ही कैंपस से दरअसल तीन चिकित्सा पद्धतियों आयुर्वेद, यूनानी एवं होम्योपैथ के कॉलेज संचालित हैं जो कि पूरी तरह नियम विरुद्ध है। एक ही कैंपस में इस तरह तीन पद्धतियों के कॉलेज संचालन की दूसरी कोई नजीर शायद ही सामने आए।
संस्कृति यूनिवर्सिटी ने नक्शा पास क्यों नहीं कराया
संस्कृति यूनिवर्सिटी द्वारा कैंपस 2 में अवैध निर्माण कार्य कराए जाने की वजह भी बहुत महत्वपूर्ण है। वो वजह यह है कि जिस कैंपस 2 में आज तीन-तीन चिकित्सा पद्धतियों के कॉलेज चल रहे हैं, वहां कभी Excel Group का कॉलेज चला करता था। Excel Group से वह संस्कृति यूनिवर्सिटी ने ले तो लिया किंतु उसकी रजिस्ट्री नहीं कराई क्योंकि रजिस्ट्री कराने के लिए करोड़ों रुपए स्टांप पर खर्च करना पड़ता। अब जबकि कैंपस ही संस्कृति यूनिवर्सिटी के नाम नहीं है तो नक्शा संस्कृति यूनिवर्सिटी पास भी कैसे करा सकती है।
कुल मिलाकर कैंपस 2 में चल रहे निर्माण कार्य का संबंध सिर्फ नक्शा पास न कराने तक सीमित नहीं है, उससे करोड़ों रुपए की स्टांप चोरी भी जुड़ी है जिससे शासन को मोटा चूना लगा है।
यूनिवर्सिटी प्रशासन परेशान क्यों
अब तक हुई कार्यवाही को लेकर भी यूनिवर्सिटी प्रशासन इसलिए परेशान है कि शीघ्र ही ‘आयुष मंत्रालय’ की टीम कॉलेज कैंपस का वार्षिक मुआयना करने वाली है। नया शिक्षा सत्र प्रारंभ होने से पहले वह कभी भी मुआयना करने आ सकती है। कैंपस के निर्माण कार्य को अवैध पाकर वह यूनिवर्सिटी के खिलाफ कड़ा एक्शन ले सकती है और उसकी वजह से छात्रों के एडमिशन पर बड़ा असर पड़ना लाजिमी है इसलिए यूनिवर्सिटी का प्रबंध तंत्र कैसे भी इस मामले को निपटाना चाहता है।
बताया जाता है कि इसके लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन एक ओर जहां कल देर रात तक मीडिया को मैनेज करने में लगा रहा वहीं दूसरी ओर विकास प्राधिकरण से भी सेटिंग करने के प्रयास किए। यूनिवर्सिटी का प्रबंधतंत्र मामले को निपटाने के लिए कुछ क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकारियों की भी मदद ले रहा है क्योंकि वह उनसे ऑब्लाइज रहते हैं।
मीडिया मैनेज हो गया, विकास प्राधिकरण बाकी है
मीडिया को मैनेज करने में तो यूनिवर्सिटी का प्रबंधतंत्र काफी हद तक सफल रहा और इसीलिए दो प्रमुख अखबारों ने चंद लाइनें लिखकर यूनिवर्सिटी का नाम लिखे बिना अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जबकि एक ने आठ-दस लाइनों में समाचार पूरा कर दिया, हालांकि उसने यूनिवर्सिटी के नाम का उल्लेख किया है।
घपले की बुनियाद पर खड़ी है समूची संस्कृति यूनिवर्सिटी
संस्कृति यूनिवर्सिटी के सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अवैध निर्माण का यह मामला सिर्फ कैंपस 2 तक सीमित नहीं है। यूनिवर्सिटी की बुनियाद ही अवैध निर्माण पर टिकी है।
जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी की मुख्य इमारत बनाने से पहले में भी सिर्फ एक टेंपरेरी नक्शा ‘बेसमेंट’ के नाम पर पास कराया गया था और उसी की आड़ लेकर पूरी यूनिवर्सिटी खड़ी कर ली। जिस जगह बेसमेंट दिखाया था, आज वहां क्लासेस चल रही हैं।
आश्चर्य की बात यह है कि इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी में पार्किंग तक के लिए कोई जगह मुकर्रर नहीं हैं लिहाजा पार्किंग यूनिवर्सिटी की सड़कों पर होती है।
यूनिवर्सिटी की मान्यता पर भी सवाल
किसी भी कॉलेज को ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ की मान्यता देने के लिए सबसे पहली और जरूरी शर्त यह है कि उसके पास अपनी 40 एकड़ जमीन अधिकतम दो भागों में मौजूद होनी चाहिए।
संस्कृति यूनिवर्सिटी के पास अपनी 40 एकड़ जमीन तो है, किंतु वह दो भागों में न होकर चार भागों में है जिससे संस्कृति कॉलेज को यूनिवर्सिटी की मान्यता दिए जाने पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
सरकारी जमीन पर भी कब्जा
बताया जाता है कि इस 40 एकड़ जमीन में भी काफी हिस्सा ‘चकरोड’ का है जो कायदे से ‘सरकारी’ है लेकिन उसका इस्तेमाल पूर्व में न होने की वजह से उसे यूनिवर्सिटी ने अपनी जमीन में मिला रखा है जोकि एक गंभीर अपराध है।
इन सभी मामलों पर संस्कृति यूनिवर्सिटी का पक्ष जानने की काफी कोशिश की गई किंतु यूनिवर्सिटी प्रशासन कोई जानकारी देने की बजाय सिर्फ इस कोशिश में लगा रहा कि किसी भी तरह समाचार प्रकाशित न किया जाए। वो भी तब जबकि यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति सचिन गुप्ता कल यहीं थे और विकास प्राधिकरण ने उनके सामने कैंपस 2 के अवैध निर्माण को सील किया।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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