शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

हम भारत के लोग: विशिष्‍टजनों के कारण आखिर कब तक होते रहेंगे परेशान ?

यूं भी देश को ब्रितानी हुकूमत से मुक्‍त हुए 72 वर्ष पूरे हो चुके हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाते हैं और उसे लेकर फख्र करते नहीं अघाते किंतु क्‍या यही लोकतंत्र है जिसमें एक सामान्‍य व्‍यक्‍ति पद पर प्रतिष्‍ठापित होते ही इस कदर विशिष्‍ट बना दिया जाए कि आमजन की परछाई भी उस तक न पहुंच सके।
कल सुबह से शाम तक कुछ ऐसा रहा मथुरा-वृंदावन की सड़कों का हाल
26 नवंबर को देश ने संविधान दिवस मनाया और 28 नवंबर को देश के सर्वोच्‍च संवैधानिक पद पर आसीन महामहिम राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद योगीराज भगवान श्रीकृष्‍ण की पावन लीलाभूमि वृंदावन आए।
अपनी पत्‍नी और पुत्री के साथ वृंदावन पधारे महामहिम ने एक ओर जहां स्‍वामी विवेकानंद द्वारा स्‍थापित रामकृष्‍ण मिशन में कैंसर मरीजों के लिए स्‍थापित एक ब्‍लॉक का उद्धाटन किया वहीं दूसरी ओर ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्‍थापित संस्‍था ‘इस्‍कॉन’ से संचालित ‘अक्षय पात्र फाउंडेशन’ का अवलोकन किया। इसके अलावा राष्‍ट्रपति कोविंद ने बांकेबिहारी के दर्शन भी किए।
कुल मिलाकर महामहिम राष्‍ट्रपति यहां कुछ घंटे रुके। राष्‍ट्रपति की इस यात्रा में यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ, राज्‍यपाल आनंदी बेन पटेल सहित अन्‍य तमाम विशिष्‍टजन भी सहभागी थे।
इन विशिष्‍ट और अति विशिष्‍टजनों की यात्रा से लगभग एक सप्‍ताह पहले ही समूचा जिला प्रशासन इनके आगमन की तैयारियों में जुट गया था। जमीन से लेकर आसमान तक की सुरक्षा व्‍यवस्‍था सहित वो हर इंतजाम किया गया जो हमेशा इस वर्ग के लिए किया जाता है। उसके बाद मौके-मुआइने और रिहर्सलों का दौर भी चला। कुल मिलाकर हालात ऐसे थे जैसे आसमान से फरिश्‍तों को जमीन पर उतारा जा रहा हो।
इस सबके बीच सर्वाधिक दिलचस्‍प कवायद इस बात के लिए देखी गई कि महामहिम के रास्‍ते में कोई जनसामान्‍य अर्थात प्रजा कहीं बाधा न बन जाए।
इसके लिए सुबह से शाम तक के लिए वो सभी मार्ग अवरुद्ध कर दिए गए जहां से विशिष्‍ट और अति विशिष्‍टजनों को गुजरनाभर था।
यहां तक कि कई-कई किलोमीटर पहले से उन रास्‍तों पर भी पहरा बैठा दिया गया, जो विशिष्‍टजनों का काफिला निकालने के लिए तय मार्ग की ओर जाते थे। नेशनल हाईवे, हाईवे और एक्सप्रेसवे भी या तो रोक दिए गए या डाइवर्ट कर दिए गए। कहावत में कहें तो ‘परिन्‍दा भी पर न मार सके’ ऐसे चाक-चौबंद इंतजामों को अंजाम दिया गया।
इंसान तो इंसान, बंदर और कुत्तों को भी महामहिम की राह में रोड़ा बनने से रोकने की मुकम्‍मल व्‍यवस्‍था की गई। इसके लिए कहीं पुलिसकर्मी स्‍वयं हाथ में गुलेल लेकर निशाना लगाते देखे गए तो कहीं लंगूर घुमाते नजर आए क्‍योंकि कहा जाता है लंगूर के रहते बंदर पास नहीं आते।
दरअसल, गत दिनों मथुरा की सांसद और बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी ने संसद में वृंदावन के बंदरों का जिक्र कर मंकी सफारी स्‍थापित करने की मांग रखी थी।
हेमा मालिनी ने भले ही यह मांग अब रखी हो और भले ही यह मांग अगले कई वर्षों तक पूरी न हो परंतु विशिष्‍टजनों के लिए बंदर परेशानी का कारण न बनें, इसका इंतजाम करना ही था लिहाजा किया गया।
बेशक ये सारे इंतजाम राष्‍ट्रपति के रूप में न तो पहली बार रामनाथ कोविंद के लिए किए गए थे और न दूसरे विशिष्‍टजन पहली मर्तबा इसकी वजह बने थे। जब-जब कोई वीवीआईपी और वीआईपी कहीं जाते हैं तो ऐसी ही व्‍यवस्‍थाएं की जाती हैं इसलिए पहली नजर में कुछ अनोखा नहीं लगता परंतु अनोखा है जरूर।
वो इसलिए कि जिस देश के संविधान की प्रस्‍तावना ही ”हम भारत के लोग” से शुरू हुई हो, साथ ही जिसमें सिर्फ और सिर्फ लोक कल्‍याण की भावना निहित हो उसमें किसी संवैधानिक पद पर काबिज व्‍यक्‍ति के लिए ऐसी व्‍यवस्‍थाएं करना अनोखा तो लगेगा ही।
हो सकता है कि संविधान रचते वक्‍त आज की परिस्‍थितियों, मसलन जनसंख्‍या की बेतहाशा वृद्धि और उसी अनुपात में वाहनों की तादाद आदि से लेकर सड़कों के सिकुड़ते जाने की संभावनाओं पर गौर न किया गया हो परंतु आज तो इस सबके मद्देजनर समीक्षा की जा सकती है।
यूं भी देश को ब्रितानी हुकूमत से मुक्‍त हुए 72 वर्ष पूरे हो चुके हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाते हैं और उसे लेकर फख्र करते नहीं अघाते किंतु क्‍या यही लोकतंत्र है जिसमें एक सामान्‍य व्‍यक्‍ति पद पर प्रतिष्‍ठापित होते ही इस कदर विशिष्‍ट बना दिया जाए कि आमजन की परछाई भी उस तक न पहुंच सके।
माना कि आतंकवाद जैसी समस्‍याओं ने खास लोगों के जीवन को परेशानी में डाला है परंतु इसका यह मतलब तो नहीं कि उनकी सुरक्षा व्‍यवस्‍था के लिए आम लोगों के सामने कदम-कदम पर अवरोध खड़े किए जाएं।
आम लोगों की अपनी समस्‍याएं हैं और उनसे आज के ये खास लोग भलीभांति परिचित भी हैं क्‍योंकि ये उन्‍हीं आम लोगों के बीच से निकले हैं, किंतु पता नहीं क्‍यों आम से खास होते ही अपने अतीत को भूल जाते हैं।
भूल जाते हैं कि कल तक वो भी खास लोगों के कारण होने वाली परेशानियों से न सिर्फ रूबरू होते थे बल्‍कि इस वीआईपी कल्‍चर को कोसते भी थे।
रामनाथ कोविंद, योगी आदित्‍यनाथ और आनंदी बेन पटेल जैसे अति विशिष्‍टजन हों या कोई जन समान्‍य… श्रीकृष्‍ण का वृंदावन सबका स्‍वागत करता है… सबके लिए सहज सुलभ है। फिर यहां आने वाले वीआईपी सहज क्‍यों नहीं रह पाते। क्‍यों वह सबको सहज नहीं रहने देते। क्‍यों फिरंगियों से विरासत में मिले वीआईपी कल्‍चर को ढो रहे हैं।
निसंदेह खास लोगों का जीवन अमूल्‍य है और इसलिए उनके जीवन की सुरक्षा की जानी चाहिए किंतु वो आमजन को परेशानी में डाले बिना भी किया जाना संभव है। वक्‍त का तकाजा है कि इस ओर गौर किया जाना चाहिए अन्‍यथा वो दिन दूर नहीं कि जिस तरह आज एक परिवार की सुरक्षा व्‍यवस्‍था बदले जाने पर संसद में हंगामा हो रहा है, ठीक उसी तरह समूचे वीआईपी कल्‍चर को लेकर सड़क से संसद तक हंगामा होने लगे।
-सुरेन्‍द्र चतुर्वेदी

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