योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने यूं तो भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी पहले दिन से अपना रखी है किंतु ‘मुंह लग चुके रिश्वत के खून’ को ‘सरकारी मशीनरी’ इतनी आसानी से छोड़ने वाली नहीं है, इस बात को योगी जी शायद स्वयं भी अब ढाई साल बीत जाने के बाद अच्छी तरह समझ पाए हैं।
UPPCL का PF घोटाला हो या पुलिस में ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर आ रही पैसे के लेन-देन की खबरें, नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों में चल रहा खेल हो अथवा विकास प्राधिकरणों की भ्रष्टाचार को पालने-पोषने वाली नीति, इन सभी ने योगी जी को यह समझने में मदद की है कि भ्रष्टाचारियों के कॉकश को तोड़ पाना उतना आसान नहीं है जितना वो समझे बैठे थे।
संभवत: इसीलिए गत शुक्रवार को लखनऊ के लोकभवन में आवास एवं शहरी नियोजन विभाग की प्रस्तावित शमन योजना को देखकर सीएम योगी आदित्नाथ ने अधिकारियों से कहा कि वह अलग-अलग टीमें बनाकर अवैध निर्माण को चिन्हित कर शमन शुल्क वसूलें। इसके लिए एक पारदर्शी व्यवस्था बनाई जाए ताकि इसकी आड़ में अवैध कमाई न की जा सके।
सीएम योगी ने यह भी कहा कि जिन अधिकारियों के कार्यकाल में अवैध कॉलोनियों बसाई गई हैं और बेखौफ अवैध निर्माण हुए हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए क्योंकि ये निर्माण विवाद के बड़े कारण बने हुए हैं।
योगी आदित्नाथ का यह कथन स्पष्ट करता है कि उन्हें आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी तो है ही, वह इतना भी जानते हैं कि इससे जुड़े लोगों के संरक्षण से ही अवैध कॉलोनियां तथा अवैध निर्माण होते हैं।
वैसे देखा जाए तो भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने वाली योगी आदित्यनाथ सरकार ने आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को महसूस करने में जरूरत से ज्यादा वक्त लगा दिया अन्यथा ‘पब्लिक डोमेन’ में विकास प्राधिकरण का नाम बहुत पहले से ‘विनाश प्राधिकरण’ प्रचलित है और नगर पालिकाओं को ‘नरक पालिका’ कहा जाता है।
उत्तर प्रदेश इस देश का सबसे बड़ा सूबा है इसलिए इसके एक-एक शहर और कस्बे की कुंडली निकालना थोड़ा जटिल है, लेकिन उन प्रमुख शहरों से प्रदेश की स्थिति को भलीभांति समझा जा सकता है जिन पर योगी सरकार का पूरा ‘फोकस’ बना हुआ है।
ऐसे ही शहरों में शुमार है योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली का गौरव प्राप्त विश्व विख्यात धार्मिक नगरी मथुरा।
एक ओर हरियाणा तथा दूसरी ओर राजस्थान की सीमा से लगा एवं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब और यमुना नदी के किनारे बसा यह तीर्थस्थल चूंकि पर्यटन की दृष्टि से भी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है लिहाजा वर्षभर यहां लोगों का आगमन बना रहता है।
इसके अलावा यह जनपद निवेशकों को भी आकर्षित करता रहा है इसलिए यहां जमीनी कारोबार पिछले कुछ वर्षों के अंदर काफी फला-फूला है।
किसी भी प्रदेश के विकास में वहां की डेवलपमेंट अथॉरिटी का बड़ा हाथ होता है इसलिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण का भी दायरा बढ़ाते हुए योगी सरकार ने एक ऐसे अधिकारी को उसका उपाध्यक्ष नियुक्त किया जो ब्रज तीर्थ विकास परिषद उत्तर प्रदेश का मुख्य कार्यपालक अधिकारी यानी CEO भी है।
यही नहीं, प्रदेश सरकार ने ब्रज तीर्थ विकास परिषद उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद पर अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी शैलजाकांत मिश्र को तैनात किया।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि ये दोनों अधिकारी मथुरा के मिजाज से भलीभांति परिचित हैं।
पीपीएस अधिकारी नागेन्द्र प्रताप की अब तक की नौकरी का एक बड़ा हिस्सा मथुरा-आगरा में ही कटा है और शैलजाकांत मिश्र भी पूर्व में मथुरा पुलिस के मुखिया रहे हैं।
शैलजाकांत मिश्र का ‘देवरहा बाबा’ और उनके आश्रम से भी गहरा नाता रहा इसलिए मथुरा से जाने के बावजूद उनका इस तीर्थस्थल तथा ब्रजवासियों से संबंध कभी टूटा नहीं।
‘योगीराज’ में इन दोनों अधिकारियों को पर्याप्त अधिकार मिले हुए हैं, साथ ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण और ब्रज तीर्थ विकास परिषद एक-दूसरे के पूरक हैं। बावजूद इसके जनपद का कितना व कैसा विकास हुआ है, इसके बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं रह जाती।
ब्रज तीर्थ विकास परिषद के दोनों आला अधिकारियों ने मथुरा-वृंदावन-गोवर्धन या बरसाना का कोई उल्लेखनीय विकास भले ही न किया हो परंतु आरोप-प्रत्यारोप में बराबर जरूर उलझे हुए हैं।
जहां तक सवाल विकास प्राधिकरण का है तो सैकड़ों अवैध कॉलोनियों का जाल इस धर्मनगरी में फैला हुआ है। अधिकृत पॉश कॉलोनियों में भी मनमाना निर्माण कार्य कराने के लिए बिल्डर और मकान मालिक स्वतंत्र हैं।
यदि किसी बिल्डर को तीन मल्टी स्टोरी इमारत खड़ी करने की इजाजत मिली है तो उसने विकास प्राधिकरण की मिलीभगत से छ: मल्टी स्टोरी इमारतें खड़ी कर ली हैं लिहाजा उन्हें लेकर वैसे ही विवाद लंबित हैं जिनका जिक्र सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी मीटिंग में अधिकारियों से किया।
होटल, गेस्ट हाउस, मैरिज होम्स, अत्याधुनिक आश्रम, व्यावसायिक शोरूम आदि का निर्माण धड़ल्ले से वाहन पार्किंग की जगह छोड़े बिना हो रहा है।
नया बस अड्डा क्षेत्र, पुराने बस अड्डे का इलाका, मसानी-हाईवे लिंक रोड, वृंदावन का रमणरेती रोड, गोवर्धन-मथुरा मार्ग तथा आन्यौर परक्रिमा मार्ग सहित शहर का व्यस्ततम इलाका और नेशनल हाईवे व शहर दोनों से सटा हुआ कृष्णा नगर का मार्केट इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
समूचा शहर और यहां तक कि मथुरा की सीमा के अंदर वाला नेशनल हाईवे भी इसी कारण पूरे-पूरे दिन जाम से जूझता रहता है।
सर्वविदित है कि जेब भारी हो तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से कैसा भी नक्शा पास कराना कोई मुश्किल काम नहीं है।
रिहायशी इलाके में टू व्हीलर, थ्रीव्हीलर, फोर व्हीलर और यहां तक कि ट्रैक्टर्स तक के शोरूम बने खड़े हैं क्योंकि विकास प्राधिकरण के अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपना विकास करने में मस्त हैं।
इन शोरूम्स में परमीशन के बिना अपनी जरूरत के हिसाब से परिवर्तन होते भी हर कोई देख सकता है सिवाय विकास प्राधिकरण के। मॉल, इंस्टीट्यूट एवं शिक्षण संस्थाएं हों या व्यावसायिक इमारतें, किसी के लिए एनओसी लिए बिना विकास प्राधिकरण से परमीशन लेना आसान है।
तकरीबन यही स्थिति नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों की है। प्रदेशभर में इनकी कार्यप्रणाली बदनाम है क्योंकि यहां की ईंट-ईंट पैसा मांगती है।
मथुरा-वृंदावन जैसे विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल का विकास प्राधिकरण, हड़िया के चावल की तरह उदाहरण मात्र है वरना पूरे प्रदेश की स्थिति इससे कुछ अलग नहीं है। यूपी के “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र” (एनसीआर) से लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक के हालात कमोबेश एक जैसे हैं और इसीलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहरी नियोजन विभाग की बैठक में अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दिए कि अवैध निर्माण ध्वस्त करने या शमन शुल्क वसूलने की आड़ में अनैतिक कमाई का धंधा और जोर-शोर से शुरू न हो।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने भले ही अधिकारियों को कितने ही सख्त आदेश-निर्देश क्यों न दिए हों, परंतु जमीनी हकीकत इससे बदलने वाली नहीं हैं।
शिकायत और जांच से शुरू होने वाला सिलसिला जब तक किसी नतीजे पर पहुंचता है तब तक तो सरकारें बदल जाती हैं।
नोएडा के बुद्धा सर्किट में लगी मूर्तियों के भ्रष्टाचार की जांच हो या फिर गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण में हुए घोटाले की, नतीजा सबके सामने है।
सरकार बनने पर मायावती को जेल भेजने का ऐलान करने वाले सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह आज किसी लायक नहीं रहे तथा पिता की कृपा से अपरिपक्व उम्र में मुख्यमंत्री बनने वाले अखिलेश यादव पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती की उंगली पकड़ कर सत्ता पाने का ख्वाब पालते दिखे।
इससे पहले पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की बागडोर संभालने वाली बसपा प्रमुख मायावती ने कल्पना भी नहीं की थी कि पूर्ण बहुमत के साथ ही कभी सपा भी सरकार बना सकती है।
इनमें से किसी ने शायद ही यह सोचा हो कि सपा-बसपा के नायाब गठबंधन को धता बताकर जनता भाजपा का पूरे सम्मान के साथ राजतिलक कर देगी।
और शायद ही किसी के दिमाग में यह बात भी आई हो कि गेरुआ वस्त्र पहननने वाला गोरखनाथ मंदिर का एक महंत देश के सबसे बड़े प्रदेश की सत्ता संभालेगा।
राजनीति में उलटबांसियों का यह खेल ही उसे जितना रोचक बनाता है, उतना ही चौंकाता भी है।
ढाईसाल से अधिक का ”योगीराज” बीत चुका है। इसे आधा गिलास भरा और आधा गिलास खाली जैसी स्थिति भी कह सकते हैं। आधे से अधिक का समय बीत जाने पर भी यदि भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति परवान नहीं चढ़ पाई तो इतना तय है कि आगे आने वाले ढाई साल बहुत आसान नहीं होंगे।
योगी आदित्यनाथ को यदि वाकई भ्रष्टाचारियों पर प्रभावी अंकुश लगाना है तो उन्हें ‘सत्ता के मठ’ से स्वयं बाहर आना होगा। हड़िया के पूरे चावल न सही, किंतु कुछ चावलों को देखकर पता करना होगा कि अधिकारी उनके आदेश-निर्देशों की तपिश महसूस कर भी रहे हैं या नहीं।
कहीं ऐसा तो नहीं तो भ्रष्टाचार की जीरो टॉलरेंस वाली उनकी नीति को ही हथियार बनाकर अधिकारी व कर्मचारी दोनों हाथों से लूट करने में लगे हों। सख्ती का असर कई मर्तबा इस रूप में भी सामने आता है, यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है।
योगी सरकार को समय रहते यह भी समझना होगा रेत की तरह समय हाथ से फिसलता जा रहा है जबकि अभी बहुत सी चुनौतियों शेष हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
UPPCL का PF घोटाला हो या पुलिस में ट्रांसफर-पोस्टिंग के नाम पर आ रही पैसे के लेन-देन की खबरें, नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों में चल रहा खेल हो अथवा विकास प्राधिकरणों की भ्रष्टाचार को पालने-पोषने वाली नीति, इन सभी ने योगी जी को यह समझने में मदद की है कि भ्रष्टाचारियों के कॉकश को तोड़ पाना उतना आसान नहीं है जितना वो समझे बैठे थे।
संभवत: इसीलिए गत शुक्रवार को लखनऊ के लोकभवन में आवास एवं शहरी नियोजन विभाग की प्रस्तावित शमन योजना को देखकर सीएम योगी आदित्नाथ ने अधिकारियों से कहा कि वह अलग-अलग टीमें बनाकर अवैध निर्माण को चिन्हित कर शमन शुल्क वसूलें। इसके लिए एक पारदर्शी व्यवस्था बनाई जाए ताकि इसकी आड़ में अवैध कमाई न की जा सके।
सीएम योगी ने यह भी कहा कि जिन अधिकारियों के कार्यकाल में अवैध कॉलोनियों बसाई गई हैं और बेखौफ अवैध निर्माण हुए हैं, उनकी जवाबदेही तय की जाए क्योंकि ये निर्माण विवाद के बड़े कारण बने हुए हैं।
योगी आदित्नाथ का यह कथन स्पष्ट करता है कि उन्हें आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी तो है ही, वह इतना भी जानते हैं कि इससे जुड़े लोगों के संरक्षण से ही अवैध कॉलोनियां तथा अवैध निर्माण होते हैं।
वैसे देखा जाए तो भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने वाली योगी आदित्यनाथ सरकार ने आवास एवं शहरी नियोजन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को महसूस करने में जरूरत से ज्यादा वक्त लगा दिया अन्यथा ‘पब्लिक डोमेन’ में विकास प्राधिकरण का नाम बहुत पहले से ‘विनाश प्राधिकरण’ प्रचलित है और नगर पालिकाओं को ‘नरक पालिका’ कहा जाता है।
उत्तर प्रदेश इस देश का सबसे बड़ा सूबा है इसलिए इसके एक-एक शहर और कस्बे की कुंडली निकालना थोड़ा जटिल है, लेकिन उन प्रमुख शहरों से प्रदेश की स्थिति को भलीभांति समझा जा सकता है जिन पर योगी सरकार का पूरा ‘फोकस’ बना हुआ है।
ऐसे ही शहरों में शुमार है योगीराज भगवान श्रीकृष्ण की पावन जन्मस्थली का गौरव प्राप्त विश्व विख्यात धार्मिक नगरी मथुरा।
एक ओर हरियाणा तथा दूसरी ओर राजस्थान की सीमा से लगा एवं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के करीब और यमुना नदी के किनारे बसा यह तीर्थस्थल चूंकि पर्यटन की दृष्टि से भी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है लिहाजा वर्षभर यहां लोगों का आगमन बना रहता है।
इसके अलावा यह जनपद निवेशकों को भी आकर्षित करता रहा है इसलिए यहां जमीनी कारोबार पिछले कुछ वर्षों के अंदर काफी फला-फूला है।
किसी भी प्रदेश के विकास में वहां की डेवलपमेंट अथॉरिटी का बड़ा हाथ होता है इसलिए मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण का भी दायरा बढ़ाते हुए योगी सरकार ने एक ऐसे अधिकारी को उसका उपाध्यक्ष नियुक्त किया जो ब्रज तीर्थ विकास परिषद उत्तर प्रदेश का मुख्य कार्यपालक अधिकारी यानी CEO भी है।
यही नहीं, प्रदेश सरकार ने ब्रज तीर्थ विकास परिषद उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद पर अवकाश प्राप्त आईपीएस अधिकारी शैलजाकांत मिश्र को तैनात किया।
यहां यह जान लेना जरूरी है कि ये दोनों अधिकारी मथुरा के मिजाज से भलीभांति परिचित हैं।
पीपीएस अधिकारी नागेन्द्र प्रताप की अब तक की नौकरी का एक बड़ा हिस्सा मथुरा-आगरा में ही कटा है और शैलजाकांत मिश्र भी पूर्व में मथुरा पुलिस के मुखिया रहे हैं।
शैलजाकांत मिश्र का ‘देवरहा बाबा’ और उनके आश्रम से भी गहरा नाता रहा इसलिए मथुरा से जाने के बावजूद उनका इस तीर्थस्थल तथा ब्रजवासियों से संबंध कभी टूटा नहीं।
‘योगीराज’ में इन दोनों अधिकारियों को पर्याप्त अधिकार मिले हुए हैं, साथ ही मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण और ब्रज तीर्थ विकास परिषद एक-दूसरे के पूरक हैं। बावजूद इसके जनपद का कितना व कैसा विकास हुआ है, इसके बारे में कुछ बताने की जरूरत नहीं रह जाती।
ब्रज तीर्थ विकास परिषद के दोनों आला अधिकारियों ने मथुरा-वृंदावन-गोवर्धन या बरसाना का कोई उल्लेखनीय विकास भले ही न किया हो परंतु आरोप-प्रत्यारोप में बराबर जरूर उलझे हुए हैं।
जहां तक सवाल विकास प्राधिकरण का है तो सैकड़ों अवैध कॉलोनियों का जाल इस धर्मनगरी में फैला हुआ है। अधिकृत पॉश कॉलोनियों में भी मनमाना निर्माण कार्य कराने के लिए बिल्डर और मकान मालिक स्वतंत्र हैं।
यदि किसी बिल्डर को तीन मल्टी स्टोरी इमारत खड़ी करने की इजाजत मिली है तो उसने विकास प्राधिकरण की मिलीभगत से छ: मल्टी स्टोरी इमारतें खड़ी कर ली हैं लिहाजा उन्हें लेकर वैसे ही विवाद लंबित हैं जिनका जिक्र सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपनी मीटिंग में अधिकारियों से किया।
होटल, गेस्ट हाउस, मैरिज होम्स, अत्याधुनिक आश्रम, व्यावसायिक शोरूम आदि का निर्माण धड़ल्ले से वाहन पार्किंग की जगह छोड़े बिना हो रहा है।
नया बस अड्डा क्षेत्र, पुराने बस अड्डे का इलाका, मसानी-हाईवे लिंक रोड, वृंदावन का रमणरेती रोड, गोवर्धन-मथुरा मार्ग तथा आन्यौर परक्रिमा मार्ग सहित शहर का व्यस्ततम इलाका और नेशनल हाईवे व शहर दोनों से सटा हुआ कृष्णा नगर का मार्केट इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
समूचा शहर और यहां तक कि मथुरा की सीमा के अंदर वाला नेशनल हाईवे भी इसी कारण पूरे-पूरे दिन जाम से जूझता रहता है।
सर्वविदित है कि जेब भारी हो तो मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण से कैसा भी नक्शा पास कराना कोई मुश्किल काम नहीं है।
रिहायशी इलाके में टू व्हीलर, थ्रीव्हीलर, फोर व्हीलर और यहां तक कि ट्रैक्टर्स तक के शोरूम बने खड़े हैं क्योंकि विकास प्राधिकरण के अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपना विकास करने में मस्त हैं।
इन शोरूम्स में परमीशन के बिना अपनी जरूरत के हिसाब से परिवर्तन होते भी हर कोई देख सकता है सिवाय विकास प्राधिकरण के। मॉल, इंस्टीट्यूट एवं शिक्षण संस्थाएं हों या व्यावसायिक इमारतें, किसी के लिए एनओसी लिए बिना विकास प्राधिकरण से परमीशन लेना आसान है।
तकरीबन यही स्थिति नगर पालिकाओं एवं नगर निगमों की है। प्रदेशभर में इनकी कार्यप्रणाली बदनाम है क्योंकि यहां की ईंट-ईंट पैसा मांगती है।
मथुरा-वृंदावन जैसे विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल का विकास प्राधिकरण, हड़िया के चावल की तरह उदाहरण मात्र है वरना पूरे प्रदेश की स्थिति इससे कुछ अलग नहीं है। यूपी के “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र” (एनसीआर) से लेकर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक के हालात कमोबेश एक जैसे हैं और इसीलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शहरी नियोजन विभाग की बैठक में अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दिए कि अवैध निर्माण ध्वस्त करने या शमन शुल्क वसूलने की आड़ में अनैतिक कमाई का धंधा और जोर-शोर से शुरू न हो।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने भले ही अधिकारियों को कितने ही सख्त आदेश-निर्देश क्यों न दिए हों, परंतु जमीनी हकीकत इससे बदलने वाली नहीं हैं।
शिकायत और जांच से शुरू होने वाला सिलसिला जब तक किसी नतीजे पर पहुंचता है तब तक तो सरकारें बदल जाती हैं।
नोएडा के बुद्धा सर्किट में लगी मूर्तियों के भ्रष्टाचार की जांच हो या फिर गोमती रिवर फ्रंट के निर्माण में हुए घोटाले की, नतीजा सबके सामने है।
सरकार बनने पर मायावती को जेल भेजने का ऐलान करने वाले सपा के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह आज किसी लायक नहीं रहे तथा पिता की कृपा से अपरिपक्व उम्र में मुख्यमंत्री बनने वाले अखिलेश यादव पिछले विधानसभा चुनाव में मायावती की उंगली पकड़ कर सत्ता पाने का ख्वाब पालते दिखे।
इससे पहले पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की बागडोर संभालने वाली बसपा प्रमुख मायावती ने कल्पना भी नहीं की थी कि पूर्ण बहुमत के साथ ही कभी सपा भी सरकार बना सकती है।
इनमें से किसी ने शायद ही यह सोचा हो कि सपा-बसपा के नायाब गठबंधन को धता बताकर जनता भाजपा का पूरे सम्मान के साथ राजतिलक कर देगी।
और शायद ही किसी के दिमाग में यह बात भी आई हो कि गेरुआ वस्त्र पहननने वाला गोरखनाथ मंदिर का एक महंत देश के सबसे बड़े प्रदेश की सत्ता संभालेगा।
राजनीति में उलटबांसियों का यह खेल ही उसे जितना रोचक बनाता है, उतना ही चौंकाता भी है।
ढाईसाल से अधिक का ”योगीराज” बीत चुका है। इसे आधा गिलास भरा और आधा गिलास खाली जैसी स्थिति भी कह सकते हैं। आधे से अधिक का समय बीत जाने पर भी यदि भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति परवान नहीं चढ़ पाई तो इतना तय है कि आगे आने वाले ढाई साल बहुत आसान नहीं होंगे।
योगी आदित्यनाथ को यदि वाकई भ्रष्टाचारियों पर प्रभावी अंकुश लगाना है तो उन्हें ‘सत्ता के मठ’ से स्वयं बाहर आना होगा। हड़िया के पूरे चावल न सही, किंतु कुछ चावलों को देखकर पता करना होगा कि अधिकारी उनके आदेश-निर्देशों की तपिश महसूस कर भी रहे हैं या नहीं।
कहीं ऐसा तो नहीं तो भ्रष्टाचार की जीरो टॉलरेंस वाली उनकी नीति को ही हथियार बनाकर अधिकारी व कर्मचारी दोनों हाथों से लूट करने में लगे हों। सख्ती का असर कई मर्तबा इस रूप में भी सामने आता है, यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है।
योगी सरकार को समय रहते यह भी समझना होगा रेत की तरह समय हाथ से फिसलता जा रहा है जबकि अभी बहुत सी चुनौतियों शेष हैं।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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