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रविवार, 27 दिसंबर 2020
बड़ी चौथ वसूली न होने पर खोली गई यूपी के छात्रवृत्ति घोटाले की पोल, सही दिशा में जांच आगे बढ़ने पर ‘मथुरा’ के कई प्रभावशाली जाएंगे जेल
उत्तर प्रदेश के जिस छात्रवृत्ति एवं क्षतिपूर्ति घोटाले में मथुरा के समाज कल्याण अधिकारी सहित तीन विभागीय कर्मचारियों को निलंबित किया गया है, उसकी बुनियाद में दरअसल बड़ी चौथ वसूली का वो प्रयास रहा है जो परवान नहीं चढ़ सका और जिसके कारण इसे सामने लाना प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया।यूपी में छात्रवृत्ति एवं क्षतिपूर्ति घोटाले की बात करें तो इसकी शुरूआत डेढ़ दशक से भी पहले हो चुकी थी किंतु तब इसमें समाज कल्याण विभाग और स्कूल-कॉलेज संचालक ही संलिप्त थे। जैसे-जैसे इसकी जानकारी जनसमान्य और नेतानगरी तक पहुंची, वैसे-वैसे इसके तार बाहरी तत्वों से भी जुड़ने लगे।
देश का एक बड़ा प्रदेश है उत्तर प्रदेश, और उत्तर प्रदेश का एक छोटा पर धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिला है मथुरा। लेकिन डेढ़ दशक पहले तक इस धार्मिक महत्व वाले जिले में शिक्षा के नाम पर कुछ खास नहीं था। यही कारण रहा कि यहां शिक्षा व्यवसाइयों द्वारा छात्रवृत्ति की आड़ में की जा रही लूट से भी लोग अनभिज्ञ थे।
सन् 2000 में जब पहली बार मथुरा को एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज की सौगात मिली तो उसके बाद जैसे यहां शिक्षा व्यवसाय को पंख लग गए। देखते-देखते कृष्ण की यह नगरी एक ओर जहां तकनीकी शिक्षा का एक हब बनने लगी वहीं दूसरी ओर छात्रवृत्ति हड़पने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी।
छात्रवृत्ति के खेल का खुलासा होने पर शिक्षा व्यवसाइयों से इतर लोग भी इसमें रुचि लेने लगे।
बताया जाता है कि इसी रुचि के तहत सत्ता के गलियारों में खासा प्रभाव रखने वाले एक स्थानीय व्यक्ति ने शिक्षा व्यवसाइयों से छात्रवृत्ति घोटाले से की जा रही कमाई में हिस्सा मांगना शुरू कर दिया। शिक्षा व्यवसाइयों ने भी उसका ध्यान रखा और वो उसे आंशिक हिस्सा देने लगे परंतु घोटाले से मिलने वाली बड़ी रकम के कारण आगे बात बनी नहीं रह सकी।
बताते हैं कि सत्ता प्रतिष्ठान तक पहुंच रखने वाले ‘इस व्यक्ति’ ने शिक्षा व्यवसाइयों के सामने प्रति संस्थान पांच लाख रुपए प्रति वर्ष की मांग रखी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया क्योंकि घोटाले में अन्य तत्वों की हिस्सेदारी भी बढ़ने लगी थी।
बस यहीं से खेल बिगड़ना शुरू हुआ और बात जा पहुंची शिकायत के रूप में सदन के पटल तक।
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार छात्रवृत्ति घोटाले में सर्वाधिक कमाई वर्ष 2009 से लेकर 2016 तक हुई। इस दौरान शिक्षा व्यवसायी तो फर्श से अर्श तक पहुंचे ही, अधिकारी एवं कर्मचारियों से लेकर उन तत्वों ने भी खूब मलाई मारी जो इस खेल की तह तक पहुंच चुके थे।
यही वो दौर था जब छात्रवृत्ति घोटाले ने तमाम लोगों की हैसियत बढ़ाई और जो कल तक बमुश्किल जीवन यापन करते देखे जाते थे, वो स्कूल-कॉलेजों के मालिक बन बैठे।
भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़े किए गए इन शिक्षण संस्थानों में पहले जहां बीएड और पॉलिटेक्निक ही घोटाले का प्रमुख आधार थे वहीं देखते-देखते इसका दायरा ITI और BTC व बीएससी से लेकर इंजीनियरिंग एवं फार्मा सहित दर्जनों दूसरे क्षेत्रों तक विस्तार ले चुका था।
आज स्थिति ये है कि प्रदेश का शायद ही कोई शिक्षण संस्थान छात्रवृत्ति घोटाले में लिप्त न हो। फिर चाहे वह कोई स्कूल हो, कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी ही क्यों न हो।
मथुरा के समाज कल्याण अधिकारी भले ही फिलहाल मात्र 23 करोड़ रुपए का घोटाला पकड़ में आने पर निलंबित किए गए हों परंतु कड़वा सच यह है कि एक-एक शिक्षण संस्थान इस खुली लूट में इतना ही पैसा प्रतिवर्ष हड़पता रहा है। अकेले मथुरा जनपद में इसके जरिए सरकारी खजाने का सैकड़ों करोड़ रुपया हजम किया जा चुका है और प्रदेश स्तर पर तो इसका आंकड़ा हजारों करोड़ रुपए है।
भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलने वाली योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली यूपी सरकार यदि घोटाले की परतें सही तरीके से खोलने में सफल हो जाए और अधिकारी अपनी जांच की दिशा लक्ष्य पर निर्धारित करते हुए रखें तो तय जानिए कि सरकारी खेमे के साथ-साथ निजी शिक्षा के अनेक बड़े नामचीन व्यवसायी न सिर्फ मथुरा में बल्कि प्रदेश स्तर पर जेल की सलाखों के पीछे होंगे।
साथ ही वो तत्व भी बेनकाब हो सकते हैं जिन्होंने छात्रवृत्ति की लूट में हिस्सेदारी ली और चौथवसूली करते रहे।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि छात्रवृत्ति घोटाले की दिशा यदि सही रहती है तो इसमें लिप्त शिक्षा व्यवसाइयों के अलावा वो सारे तत्व सामने होंगे जो पिछले डेढ़ दशक से सरकारी खजाने को दोनों हाथों से लूटते रहे और जिन्होंने शिक्षा जैसे पवित्र ध्येय का चेहरा इतना बिगाड़ दिया जिससे जनसामान्य ‘शिक्षा माफिया’ जैसा एक नया शब्द गढ़ने पर मजबूर हुआ।
-सुरेन्द्र चतुर्वेदी
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